मेरा नाम रंगीला है.. मैं 28 साल का हट्टा-कट्टा और एकदम गोरा चिट्टा युवक हूँ।
मैं आप लोगों के लिए मेरी एक नई और सच्ची सेक्स कहानी लेकर आया हूँ, यह घटना यही साल भर पहले की है।
जवानी की शुरूआत में ही मुझे मेरी भाभी ने अच्छा ख़ासा ज्ञान और अनुभव दे दिया था.. जिसके कारण मैंने अपनी बहन और भाभी दोनों से सेक्स का मजा बहुत लिया है।
उम्र के साथ-साथ मेरी सेक्स की भूख भी बढ़ती जा रही थी, अब तो जिस भी सेक्सी लड़की को देखता.. तो उसे चोदने के लिए बेचैन हो उठता… किसी भी लड़की की चूचियां देखते ही मेरे हाथों में खुजली होने लगती, उसकी उभरी गांड को देखते ही लंड खड़ा हो जाता।
एक दिन मैं अपने घर पर ही था कि घर के बाहर गाड़ी के रुकने की आवाज सुनाई दी। मैंने मेनगेट खोला तो देखा मेरी दीदी की ननद ऑटो से उतर रही थीं.. साथ में उनकी बेटी सपना भी थी।
वे लोग बिहार के हाज़ीपुर के रहने वाले हैं।
मैंने उन दोनों का स्वागत किया और उन्हें घर के अन्दर ले गया, मेरे घर वाले उन्हें देख कर बहुत ही खुश हुए।
थोड़ी बहुत बातचीत के बाद बेबी दी (दीदी की ननद का नाम) गेस्ट रूम में फ्रेश होने के लिए चली गईं।
यहाँ मैं बता दूँ कि दीदी की ननद जो कि मुझसे बड़ी थीं.. उन्हें भी मैं दीदी कह कर ही बुलाता था।
सपना अभी भी हम लोगों के पास बैठी थी, सपना से बातचीत के बाद पता चला कि वो हमारे शहर में एग्जाम देने आई है।
सपना बहुत ही खूबसूरत और बोल्ड लड़की थी, वो मुझे बहुत ही सेक्सी लग रही थी, पर मैं उसे जी भर के देख नहीं पा रहा था क्योंकि वो मेरी भतीजियों के साथ थी, वे सब आपस में बातें कर रही थीं।
सपना की उम्र यही कोई 20 साल की होगी, उसकी चूचियाँ संतरे के आकार की होंगी और उसकी गांड भी बड़ी और उठी हुई थी।
वो लैगीज और शार्ट कुरती में कयामत ढा रही थी।
चूंकि मेरी भतीजियां भी उसे घेर कर बैठी थीं.. तो मैं चोरी से सबकी नजरें बचा कर सपना की नुकीले पहाड़ सी तनी हुई चूचियों को देख कर अपने लंड को मसल रहा था।
मैं मन ही मन उसे चोदने का प्लान सोच रहा था। वो हमारे यहाँ करीब एक सप्ताह रुकने वाली थी, यह सोच कर मैं बहुत खुश हो रहा था कि एक सप्ताह में साथ दिन होते हैं यानि कि जब दुनिया एक सप्ताह में सात बार घूम सकती है तो क्या कोशिश करने से मैं एक बार सपना की बुर नहीं चूम सकता।
खैर.. जैसे-तैसे दिन बीता। मैं ज़्यादा समय सपना के आगे-पीछे मौके की तलाश में घूमता रहा.. पर उसके चूचियों को छूने का कोई मौका नहीं मिला, हाँ एक-दो बार मैंने उसके चूतड़ों को हल्के हाथों से टच जरूर कर लिया था.. जिसका उसे पता नहीं चला.. या शायद उसे पता भी चल गया होगा.. पर मैंने इस अंदाज में उसके गोल मुलायम उभरे हुए चूतड़ों को टच किया था कि उसे लगा होगा कि ये अंजाने में हुआ।
शरीर से चिपकी हुई मुलायम कपड़े की लैगीज के ऊपर से भी मैंने उसकी गांड की गर्मी को महसूस किया था।
मेरा लंड का तो हाल पूछो ही मत दोस्तो.. अगर मैं पजामे के अन्दर चड्डी नहीं पहना होता.. तो शायद लंड महाशय अब तक पजामे को फाड़ चुके होते।
जब वो चलती.. तो मेरी नजर उसकी बल खाती पतली कमर के साथ ऊपर-नीचे होती गांड पर ही जम कर रह जाती। बुर की प्यास से मेरा गला बार-बार सूख रहा था.. जिसे पानी नहीं भिगो पा रहा था।
उस वक़्त मेरे पास मेरी प्यास बुझाने वाला और कोई भी नहीं था।
इतनी हसीन लड़की को अपने घर में पा कर मैं चुदाई करने के लिए बेचैन हो गया था। अगर सपना कभी अकेली मिलती.. तो मैं उसे खींच कर बात भी करता.. पर मेरी भतीजियां उसे अकेला छोड़ ही नहीं रही थीं।
किसी तरह समय बीत रहा था।
सपना को चोदना है.. इसके अलावा मेरे दिमाग़ में और कुछ आ भी नहीं रहा था कि मैं कोई प्लान भी बना सकूँ। उसकी चूचियां और चूतड़ ही मेरे दिमाग़ में घूम रहे थे। उत्तेजना के मारे मेरा बुरा हाल था.. जिसे मेरी भाभी ने पढ़ लिया।
जब सब रात का खाना खा रहे थे, तो भाभी ने मुझे अपने कमरे में आने को कहा। भाभी की उम्र अभी करीब 40 साल की होगी। अब वो मुझे उतना समय नहीं दे पाती थीं क्योंकि मेरा पूरा घर बच्चों से भर गया था। साथ ही भाभी का भी सेक्स में इंटरेस्ट कम हो गया था, बस अब वो भैया तक ही सिमट कर रह गई थीं, कभी कभार ही महीनों में मुझे चान्स मिलता.. जब भैया कहीं बाहर होते।
खैर.. मैं भाभी के रूम में गया, तो भाभी मेरा इंतजार कर रही थीं। भाभी ने मुझे अपने पास बैठाया.. फिर मुझसे बोलीं- क्या बात है तुमने खाना क्यों नहीं खाया और इतने परेशान से क्यों हो?
मैं भाभी से क्या छुपाता.. मैंने उन्हें सच-सच बता दिया कि सेक्स की भूख मुझे बेचैन कर रही है।
भाभी पहले तो मुझे देख कर मुस्कुराईं.. फिर अचानक ही भाभी ने अपना एक हाथ मेरे पजामे में डाल दिया। अब भाभी मेरे लंड को पकड़ कर सहलाने लगीं।
मेरी उत्तेजना इतनी बढ़ी हुई थी कि भाभी के द्वारा मेरे लंड को सहलाने से मेरी आँखें बंद हो गईं ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
भाभी मेरे होंठों को भी चूसने लगी थीं।
दो ही मिनट में मेरे लंड ने पिचकारी छोड़ दी।
भाभी ने कसके मुझे अपने से चिपका लिया और मेरे कान में बोलीं- मेरे राजा अभी मेरा महीना आया है.. इसलिए इतने से ही काम चलाओ, अब चलो जल्दी से खाना खालो।
मुझे थोड़ी राहत मिली.. और मैं भाभी के पीछे चल दिया। मैंने खाना खाया और अपने रूम में सोने के लिए चला गया।
अपने कमरे में जाते हुए मेरी आँखें सपना को ढूँढ रही थीं.. पर वो मुझे नहीं दिखी। अपनी भतीजी राखी से पूछने पर पता चला कि वो पढ़ रही है, क्योंकि कल ही उसका एग्जाम है।
करवटें बदल-बदल कर किसी तरह रात बीती।
सुबह-सुबह नींद आई ही थी कि सपना मेरे रूम में पहुँच गई, वो अकेली ही आई थी, वो मुझे उठाने लगी, यह मौका में कैसे गंवाता।
अनजान बनते हुए मैंने सपना को बांहों में समेट लिया और उसे अपने साथ लिटा लिया और बोला- गुड मॉर्निंग बच्चा.. क्यों सुबह उठा रही है राखी.. सोने दे ना.. तेरी चाची है साथ में!
यह सब करते हुए मेरी आँखें बंद थीं, सपना के शरीर की भीनी खुशबू मेरी सांसों में समा रही थी। शायद वो नहा चुकी थी क्योंकि उसके गीले बाल मेरी गर्दन महसूस हो रहे थे।
सपना मेरी बांहों में कसमसाते हुए बोली- मामाजी.. मैं राखी नहीं.. सपना हूँ, उठिए और फ्रेश हो जाइए। आपको मुझे एग्जाम दिलाने ले चलना है।
इतना कहते हुए वो मेरी बांहों से छूटने की कोशिश करने लगी। उसके ऐसा करने से उसकी चूचियां जो मेरे सीने में दबी थीं.. वो सीने से रगड़ने लगीं।
मैंने उसे अपने ऊपर खींच लिया था और मैं उसे छोड़ ही नहीं रहा था। उसके मखमली जिस्म की छुअन से मेरा लंड खड़ा होकर उसकी जाँघों के बीच में बुर से सटा हुआ था। सपना जब जब हिलती.. तो कपड़े के ऊपर से मेरा लोहे की तरह कड़ा लंड उसकी बुर से रगड़ ख़ाता।
‘मामाजी उठिए ना.. मामाजी छोड़िए ना..’ यह कहते हुए वो हिल-हिल कर मुझसे छूटने की कोशिश कर रही थी और मैं आँखें बंद किए उसे कसके जकड़े हुए था।
शायद सपना को अपनी बुर पर मेरे लंड का स्पर्श अच्छा लगने लगा था.. इसीलिए उसने इधर-उधर हिलना कम कर दिया और अपनी बुर को मेरे लंड पर दबाने लगी थी।
अब मुझे लगने लगा था कि सपना की बुर भी फड़क उठी है और आज नहीं तो कल ये मेरे लंड पर झूल ही जाएगी।
मुझे लगा कि सपना की बुर भी फड़क उठी है, यह महसूस करते ही मेरा साहस और बढ़ गया। फिर मैं अपना एक हाथ सपना की पीठ से नीचे सरकाते हुए एकदम से उसकी गांड पर ले गया और धीरे-धीरे सहलाते हुए दबाने लगा।
पर यह क्या.. मेरी पकड़ ढीली होते ही वो एक झटके से मेरे ऊपर से उठ गई और रूम से बाहर जाते हुए मुझसे बोली- जल्दी उठिए.. और नहा लीजिए.. नाश्ता तैयार है।
मैं बस उसे जाता हुआ देखता रहा और मन ही मन बोला- नाश्ता तो करा दिया.. अब खाना भी खिला दो सपना डार्लिंग!
उसके जाने के बाद भी मैं अपना लंड पकड़ कर अपने सीने पर उसकी चूचियों का और लंड पर उसकी चूत का दबाव महसूस कर रहा था। क्या दिलकश मंजर था वो.. जब सपना अपनी चूत मेरे लंड पर दबा रही थी। मुझे जो मजा मिला, मेरे पास इसको लिखने के लिए शब्द नहीं हैं.. जो उस अनुभव को लिख सकूँ।
सपना की ओर से हरी झंडी मिल गई, यह खुशी में बर्दाश्त नहीं कर सका और उठ कर नाचने लगा।
मुझे पता नहीं था.. पर जब हँसने की आवाज सुनी तो देखा सपना दरवाजे पर खड़ी थी और मुझे नाचता देख कर हँस रही थी। मेरे देखते ही वो भाग गई और मैं शर्मा कर बाथरूम में घुस गया।
मैं फ्रेश होकर बाहर आया तो देख सपना तैयार थी। मैंने जल्दी से नाश्ता किया और हम दोनों घर से एग्जाम के लिए मेरी बाइक पर निकल गए।
एग्जाम को लेकर सपना कुछ नर्वस थी, रास्ते भर वो ज़्यादा कुछ नहीं बोली, बस पढ़ाई की टॉपिक पर थोड़ी बहुत बात कर रही थी। एग्जाम सेन्टर तक का रास्ता लंबा था। उसका सेंटर हमारे घर से करीब 55-60 किलोमीटर दूर था। हम दोनों लगभग एक घंटे में पहुँच गए। मैंने उसे ‘बेस्ट ऑफ लक’ विश किया.. जिस पर वो मुस्कुरा कर ‘थैंक्यू..’ बोली और स्कूल के अन्दर चली गई।
अब मैं सोच में पड़ गया कि अचानक ऐसा क्या हो गया कि बाइक पर वो मुझसे काफ़ी दूर ही बैठी रही थी, उसके हाथ को छोड़ उसका कोई अंग मुझसे नहीं छू रहा था, वो काफ़ी सम्भल कर बैठी थी।
मेरे मन में ख्याल आने लगा कि शायद सुबह की उसकी हरकत मेरे पकड़ से छूटने की कोई चाल तो नहीं थी। हो भी सकता है नारी के लिए कुछ भी असंभव नहीं होता.. वो बहुत ही चालाक होती है, अपने शरीर को इस्तेमाल करके वो अनहोनी को भी होनी कर सकती है।
मैं जिसे हरी झंडी समझ रहा था.. वो तो एक छलावा था। रास्ते भर के उसके बर्ताव से मुझे यही लग रहा था। जो मैं चाह रहा था, अगर वो भी वही चाहती, तो अकेलेपन का फायदा उठाती.. बाइक पर मुझसे चिपक कर बैठती और रास्ते भर मज़े करती। पर ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तो मैं भी अब सावधान हो गया कि मेरी जल्दबाज़ी में कहीं बनती बात बिगड़ ना जाए।
सपना दो घंटे बाद स्कूल से बाहर आई.. वो खुश दिखाई दे रही थी। शायद उसका एग्जाम बढ़िया गया था।
उसके पास आते ही मैंने पूछा- एग्जाम कैसा हुआ सपना?
सपना- अच्छा हुआ मामाजी.. जो-जो तैयारी की थी.. उन्हीं में से सवाल आए थे।
मैं- तो अब क्या भूख लगी है?
सपना- हाँ मामाजी भूख भी और प्यास भी ज़ोर की लगी है.. स्कूल के अन्दर अच्छा पानी भी नहीं था।
लंच का समय भी हो गया था.. सो मैं सपना को एक रेस्टोरेंट में ले गया। वहाँ हमने खाना खाया और फिर घर की ओर चल दिए। इस बार वो थोड़ा रिलॅक्स लग रही थी। अभी हम थोड़ी दूर आए ही थे कि सपना मुझे बाइक रोकने को बोली। जिस जगह उसने बाइक रुकवाई.. वो एरिया जंगल का था, चारों ओर पेड़ और झाड़ियां थीं।
मैंने बाइक रोक दी।
सपना बाइक से उतरी और रोड के साइड में घनी झाड़ियों में घुस गई, शायद वो पेशाब करने गई थी।
मैं भी बाइक खड़ी करके चुपके से उसे देखने के लिए झाड़ियों के करीब चला गया। वो पेशाब करेगी यह सोच कर मैं खुद को रोक नहीं पाया और झाड़ियों के पास जाकर देखा तो उसने अपनी लैगी पूरी उतार ली थी, उसकी शार्ट कुरती उसकी गांड तक ही आ रही थी, इसलिए मुझे उसकी गोरी चिकनी जांघें पीछे से दिख रही थीं।
सपना की पीठ मेरी तरफ थी.. वो मुझे नहीं देख पा रही थी। उसकी नंगी जाँघों का दीदार पाते ही लंड महाशय जाग गए.. जो अब तक डर से दुबके हुए थे।
सपना ने अपनी पेंटी भी उतार दी, अब वो नीचे से पूरी नंगी थी, उसकी गांड क्या गजब की थी… एकदम दूध जैसी सफेद!
सपना जब पेंटी को अपने पैरों से निकालने के लिए सामने की ओर झुकी तो मुझे पीछे से उसकी हल्के काले बालों से घिरी गुलाबी नंगी चूत दिखाई दी, उम्म्ह… अहह… हय… याह… जिससे मेरा लंड उत्तेजना में भरकर मेरे जींस से बाहर निकलने को तड़पने लगा।
मैंने उसे ज़्यादा तड़पने नहीं दिया और अपनी जींस को खोलकर जाँघों तक कर लिया और अपने लंड को हाथों में ले कर सहलाने लगा। लंड पूरी तरह तन कर लाल हो गया था।
उधर सपना को ना जाने क्या हुआ और वो पेंटी को वहीं फेंक दी और पेशाब करके सिर्फ़ लैगीज पहन ली।
मैं उसे एकटक देख रहा था और अपने लंड को सहला रहा था। वो वापस आने लगी.. पर मैं वहाँ से नहीं हटा। पता नहीं मुझे अब अंजाम की परवाह नहीं थी, मैं वहीं खड़ा सपना से नजर मिला कर अपने लंड को सहलाता रहा।
मैंने देखा सपना तिरछी नजरों से मेरे लंड को देखते हुए बगल से चली गई। उसने बाइक के पास जाकर मुझे आवाज़ दी। मैं उसी अवस्था में घूम गया और जींस को पहनते हुए उसके करीब जाने लगा।
मेरा लंड अब भी बाहर था। चुदाई की सोच कर उत्तेजना में लंड इस कदर तना हुआ था कि वो जींस के अन्दर समा नहीं रहा था। मैंने अपनी टी-शर्ट से उसे ढक तो दिया.. पर उसके उभार को छुपा नहीं पाया और वैसे ही सपना के पास चला गया।
वो मेरे लंड के उभार को देख कर घूम गई थी, सपना की पीठ मेरी ओर हो गई थी। मुझ पर चुदाई का भूत सवार हो गया था, मेरा पूरा शरीर काँपने लगा लगा था। पीछे से सपना की गांड से लंड को सटा कर मैंने उसे बांहों में भर लिया।
सपना- क्या करते हो मामाजी? छोड़िए मुझे!
यह बात उसने मुझसे गुस्से में कही, पर मैंने अनसुना कर दिया और उसकी गांड में अपने लंड को और जोर से दबा दिया।
इस पर वो तिलमिला गई और घूम कर मुझे धक्का देते हुए बोली- होश में आइए मामाजी.. आप घर चलिए, मैं सबको आपकी इस हरकत के बारे में बताऊँगी।
यह सुनते ही मेरा माथा चकरा गया, मैंने एक बार प्यासी नज़रों से सपना को देखा, वो मुझे गुस्से से घूर रही थी।
उसका गुस्सा देख कर लंड महाशय कोने में दुबक लिए.. मुझसे कुछ भी कहा नहीं जा रहा था, मैंने चुपचाप जींस के ज़िप को बंद किया और बाइक पर बैठ गया.. सपना भी मेरे पीछे बैठ गई।
मैंने बाइक को स्टार्ट किया और हम दोनों घर की ओर चल दिए।
मैं रास्ते भर सोचता रहा कि अब क्या होगा.. सपना तो सबको बता देगी, इस सबके बाद मेरा क्या होगा! यही सब उल्टे-सीधे ख्याल मन में आते रहे।
सपना रास्ते भर चुप रही.. आख़िर हम लोग घर पहुँच ही गए। मेरा दिल ज़ोरों से धड़क रहा था.. घबराहट से मुझे पसीना आ रहा था।
सपना जब बाइक से उतर कर जा रही थी, तो मैंने पीछे से आवाज़ दी- सपना आई एम सॉरी.. प्लीज़ किसी को कुछ मत बताना, तुम जो कहोगी.. मैं वही करूँगा प्लीज़..!
उसने मुझे कुछ भी जवाब नहीं दिया, उल्टे मुझे गुस्से से घूरते हुए घर के अन्दर चली गई।
सपना के इस गुस्से को देख कर मेरी गांड फट गई थी.. मैं सोच रहा था कि पता नहीं अब क्या बवाल होने वाला है।
मैं डर के मारे बाहर ही खड़ा था। करीब दस मिनट बाद सपना फिर से बाहर आई और मुझे बुला कर घर के अन्दर ले गई। अन्दर जाकर देखा तो सभी अपने-अपने काम में मग्न थे.. माहौल बिल्कुल शांत था। यह देख कर मुझे थोड़ी राहत मिली कि सपना ने किसी को कुछ नहीं बताया था।
मैं सीधा अपने कमरे में गया और बिस्तर पर पसर गया। मेरी आँखों के सामने कभी सपना की नंगी गांड आती.. तो कभी उसका गुस्से में लाल चेहरा आता।
थोड़ी ही देर में सपना मेरे कमरे में आई उसके हाथ में नाश्ते की ट्रे थी।
मैं उसे देखते ही उठ कर बैठ गया, वो मेरे पास आई और चाय का कप मुझे देते हुए बोली- मामाजी, आप शादी क्यों नहीं कर लेते? मामी आ जाएँगी तो ऐसे गंदे ख्याल आपके मन में नहीं आएँगे।
मैं चुपचाप नज़रें नीचे किए चाय पी रहा था।
तभी रूम में सपना को ढूँढते हुए राखी आ गई, सपना ने उसे ये कहकर वापस भेज दिया कि उसे मुझसे कुछ ज़रूरी काम है।
राखी के जाने के बाद वो मुझसे बोली- मामाजी आपने कहा है ना.. कि मैं जो कहूँगी, आप करोगे.. तो मैं चाहती हूँ कि इसी साल में आप शादी कर लो.. मानोगे ना मेरी बात!
मैं- ठीक है.. कर लूँगा, पर लड़की तुम्हीं को पसंद करनी होगी!
सपना खुश होते हुए बोली- ठीक है.. मैं अपने लिए मामी पसंद कर लूँगी और हाँ.. आपने जो आज किया है, उसकी सज़ा के तौर पर आप मुझे बाइक चलाना सिखाओगे।
इतना कहते हुए उसने नजरें नीची कर ली थीं।
मैंने भी तुरंत हामी भर दी।
शाम को सपना और राखी दोनों तैयार थी, मैंने भी फ्रेश होकर उन दोनों को अपने साथ लिया और वहीं पास के मैदान में ले गया। मैदान काफ़ी बड़ा था और चारों तरफ़ पेड़ से घिरा हुआ था। मैदान में कुल दो चार ही लोग थे, जो मैदान के एक कोने में बैठे ताश खेल रहे थे।
मैदान में दोनों को बाइक से उतरने को कहा, फिर बाइक स्टार्ट करके सपना से बाइक में मेरे आगे बैठने को कहा और मैं पीछे को हो गया, सपना मेरे आगे दोनों तरफ पैर करके बाइक पर बैठ गई।
सपना- हम्म.. मैं बैठ गई, अब मुझे क्या करना होगा?
मैं- अब दोनों हाथ से हैंडल पकड़ो..
सपना- पकड़ लिया.. इसके बाद?
मैं- अब बाएं हाथ से क्लच दबाओ।
सपना- दबाया.. फिर!
मैं- अब गियर लगाओ..
सपना- मामाजी गियर कहाँ है?
मैं- तुम्हारे बाएं पैर के नीचे, अब उसे पीछे की ओर एक बार दबाओ.. फिर धीरे-धीरे क्लच छोड़ते हुए एक्सीलेटर घुमाना.. ठीक है समझ गई ना!
सपना ने ‘हाँ’ में सिर हिलाया और जैसा मैंने कहा था, वैसा करने की कोशिश की, पर कर नहीं पाई। उसने क्लच को झटके से छोड़ दिया, तो बाइक झटका लेकर बंद हो गई। इस झटके में मेरे लंड ने सपना के चूतड़ों पे भी एक झटका दे दिया। मेरे पैर ज़मीन पर थे, इस वजह से बाइक नहीं गिरी।
इस तरह मेरे कहने पर सपना ने कई बार कोशिश की, पर वो बाइक को आगे नहीं बढ़ा पाई।
यह देख कर राखी.. जो वहीं पास में ही खड़ी थी.. ज़ोर-ज़ोर से हँसे जा रही थी और इधर बार-बार सपना के चूतड़ों से लंड टकराने से मेरे लंड महाशय भी तन गए थे। मैं सपना से थोड़ी दूरी बनाकर बैठा हुआ था.. जिस कारण सपना को पजामे के भीतर मेरे खड़े लंड का एहसास नहीं हो रहा था।
सपना- मामाजी आप मुझे बाइक को आगे बढ़ा कर दो फिर मैं चलाऊँगी।
मैं- ठीक है.. मैं ऐसा ही करता हूँ।
क्योंकि मैं सपना के पीछे बैठा था.. इसलिए मैं पीछे से ही बाइक का हैंडल पकड़ने के लिए आगे को आ गया। अब में सपना की पीठ से बिल्कुल चिपक गया.. ऐसा कि हमारे बीच से हवा भी ना गुजर सके।
अब मेरा खड़ा लंड सपना की कमर से दब गया था। मैंने सपना के पैर को भी उठा कर बाइक के इंजन गार्ड पर रख दिया और अपने पैरों को गियर और ब्रेक स्टैंड पर रख दिया.. जिससे मेरी जाँघों के ऊपर सपना की जांघें आ गईं।
इस पोज़ीशन में मैं अपना होश फिर से खोने लगा था। मैंने अपने मन पर तो काबू रखा था.. पर इस लंड को कौन समझाए.. गांड के ऊपर होते हुए भी इसे सपना की गांड और बुर दोनों की गर्मी महसूस हो रही थी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
मेरा लंड सपना की कमर और मेरे पेट के बीच दबा हुआ तड़प रहा था। मुझे लंड और जाँघों पर सपना की पेंटी का किनारा भी महसूस हो रहा था। मेरी बांहें सपना की नर्म बांहों से भी चिपकी हुई थीं। कुल मिलाकर सपना मेरी गोद में सी बैठी हुई थी।
मैंने बाइक को स्टार्ट किया और धीरे से आगे बढ़ा दिया। थोड़ी दूर जाने पर मैं सपना से बोला- अब मैं हैंडल से हाथ हटाता हूँ.. तुम हैंडल संभालो!
यह कह कर मैंने हैंडल छोड़ दिया। मेरे हैंडल छोड़ते ही बाइक थोड़ा लड़खड़ाई.. तो मैंने दुबारा हैंडल पकड़ लिया। फिर बाइक का बैलेंस सम्हालने के बाद धीरे से हैंडल छोड़ते हुए सपना की दोनों कलाईयों को पकड़ लिया और बाइक चलाता रहा।
हम बाइक को मैदान में गोल गोल घुमा रहे थे। इधर मेरे पेट और सपना के कमर के बीच मेरे लंड को दबे हुए काफ़ी समय हो गया था.. क्योंकि लंड भी खड़ा था तो लंड में दर्द होने लगा था।
मैं बाइक रोक कर लंड को एड्जस्ट भी नहीं कर सकता था.. क्योंकि मुझे ऐसा करता देख सपना बुरा मान सकती थी और बाइक के चलने के दौरान मैं सपना की कलाई भी नहीं छोड़ सकता था, क्योंकि वो बाइक संभाल भी नहीं पा रही थी। मेरे हाथों के सहारे पर वो मज़े से बाइक चला रही थी।
मेरे खड़े लंड को तो वो भी अपनी कमर पर महसूस कर रही थी। शायद इसी लिए वो लंड की चुभन से बचने के लिए कभी-कभी अपनी कमर को इधर-उधर हिलाती थी, पर उसके ऐसा करने से मेरा लंड दबने के साथ रगड़ता भी था।
अब मुझसे दर्द सहना मुश्किल था और अंधेरा भी हो चुका था, सो मैंने बाइक रोक दी और ‘आज के लिए बस इतना ही..’ कहकर उन दोनों को अपने पीछे बैठाया और घर की ओर चल दिया।
आज बाइक चला कर सपना बहुत ही खुश थी।
घर पहुँच कर मैं अपने कमरे में चला गया और पजामा खोल कर लंड को हल्के हाथों से तेल लगा कर मालिश की, तब जाकर लंड के दर्द से राहत मिली, पर इस सबसे मेरा मन बहुत ही खुश था।
रात को कुछ खास नहीं हुआ.. सबने मिलकर खाया-पिया और अपने-अपने कमरों में सोने चले गए।
सपना का एग्जाम एक दिन का ही था.. सो कल का कोई प्रोग्राम नहीं था। सुबह-सुबह फिर वही कोयल सी आवाज़ कानों में पड़ी- मामाजी गुड मॉर्निंग.. सुबह हो गई.. उठ जाइए!
मैंने आँख खोलकर देखा, तो सामने सपना ही थी.. पर मुझसे काफ़ी दूर ही खड़ी मुस्कुरा रही थी।
मैंने भी उसे ‘गुड-मॉर्निंग’ कहा और घड़ी की तरफ देखा तो चौंक गया.. क्योंकि अभी तो सिर्फ़ सुबह के 4:30 बजे थे।
मैं सपना की ओर देखते हुए बोला- अभी तो सुबह के सिर्फ़ 4:30 बजे हैं.. इतनी जल्दी क्यों उठा दिया?
सपना- मुझे बाइक सीखने जाना है।
मैं- पर अभी तो बाहर अंधेरा है!
सपना- मैं मैदान में नहीं.. रोड में सीखूँगी और इस वक़्त रोड भी तो खाली होती है.. चलिए ना, मामाजी प्लीज़!
मैं- लेकिन सपना..
सपना- लेकिन-वेकिन कुछ नहीं.. अभी चलना है.. तो अभी चलना है, बस आप जल्दी से उठो!
मैं- पर कपड़े तो बदल लो!
सपना- नहीं.. मैं ऐसे ही ठीक हूँ, आप चलो बस.. मैं कुछ नहीं जानती।
मैंने देखा वो एक लूज़ ट्रैकसूट वाला पजामा और टी-शर्ट पहने हुई थी।
आज मुझे टी-शर्ट के अन्दर सपना की चूचियां कुछ ज़्यादा ही बड़ी लग रही थीं.. शायद उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी हुई थी, जिस कारण उसकी चूचियों के निप्पल टी-शर्ट में साफ पता चल रहा था। उसकी टी-शर्ट भी पतले कपड़े की थी। नीचे देखा तो पजामा भी ढीला-ढाला था.. फिर भी उसकी गांड का उभार का पता चल रहा था।
खैर.. जब वो ज़िद करने लगी, तो मैं उठ कर बाथरूम में घुस गया और फ्रेश होकर बाहर निकला।
अब तक वो मेरे रूम में ही थी, आज सपना कुछ बदली-बदली सी लग रही थी।
सपना कुछ ही देर बाद मेरी गोद में बैठेगी.. ये सोच कर ही मेरा लंड खड़ा होने लगा था, जो पजामे में तंबू की तरह लगने लगा था, क्योंकि पजामे के अन्दर मैंने चड्डी नहीं पहनी थी।
सपना बड़ी गौर से मेरे पजामे में बने तंबू को देख रही थी, ये देखकर मेरा लंड ख़ुशी के मारे झटके मारने लगा था। मैंने बाइक को घर से निकाला.. और स्टार्ट करके सपना को पीछे बैठने को कहा।
इस पर वो बोली- मैं यहीं से बाइक चलाकर ले जाऊँगी।
यह सुनकर मैं सिर्फ़ नाम मात्र को ही पीछे सरका और सपना को आगे बैठने को कहा। सपना जब मेरे आगे बैठने लगी.. तो अंधेरे का फायदा उठाकर मैंने अपना पजामा थोड़ा नीचे सरका कर अपना लंड बाहर निकाल कर सामने की ओर झुका दिया.. ताकि जब सपना मेरी गोद में बैठे, तो मेरा लंड उसकी कमर को नहीं.. उसकी बुर को टच करे.. और हुआ भी यही।
अब देखते हैं कि सपना रानी कब तक मेरे लंड की गर्मी से खुद को बचाती है।
जब सपना पैर फैला कर बैठ रही थी.. तो मैं थोड़ा आगे भी सरक गया.. जिससे मेरा खड़ा लंड सपना की दोनों जाँघों के बीच में आ गया और सपना मेरे लंड को अपनी बुर से दबाते हुए उसके ऊपर बैठ गई। लंड के ऊपर बैठते ही वो चिहुंक कर उठने ही वाली थी कि मैंने बाइक स्टार्ट करके आगे बढ़ा दी, जिससे वो उसी पोज़ीशन में कसमसा कर बैठ गई।
सपना जब मेरे लंड पर बैठी.. तब मुझे एहसास हुआ कि उसने भी पेंटी नहीं पहनी है.. क्योंकि मेरा लंड सपना की बुर के दरार में फंस गया था।
क्या गर्म बुर थी उसकी.. मेरे लंड और उसकी बुर के बीच में सिर्फ़ एक पतला सा कपड़ा था.. जो सपना पहने थी। इधर मेरा लंड तो नंगा ही था।
सपना कुछ बोल तो नहीं रही थी.. पर रह-रह कर वो अपनी गांड हिला-हिला कर अपनी बुर की दरार से मेरे खड़े लंड को अलग करने की कोशिश कर रही थी, पर हो उसका उल्टा रहा था। उसकी गांड हिलने से मेरा लंड सपना की बुर में कपड़े सहित धंसता जा रहा था।
अभी हम करीब 3-4 किलोमीटर ही गए होंगे कि मेरे लंड को गीला-गीला सा महसूस होने लगा, शायद सपना की बुर ने पानी छोड़ दिया था। उसका बदन भी कंपकंपाने लगा था.. उसकी साँसें तेज हो गई थीं।
अब सपना अपनी बुर को मेरे लंड पे दबा कर धीरे-धीरे अपनी गांड आगे-पीछे करने लगी थी। मेरे लंड का आधा सुपारा सपना की बुर में कपड़े सहित घुसा हुआ था।
सपना के मुँह से सिसकारी फूटने लगी थी-आह.. यससस्स.. आ आ आ एसस्स यसस्स आ अयाया आ..
उसने बाइक के हैंडल से दोनों हाथ हटा कर पेट्रोल टंकी पर रख लिए थे। अब मेरे दोनों हाथ बाइक के हैंडल पर थे, पर अब मैं भी अपनी कमर नीचे से धीरे-धीरे हिला कर ताल से ताल मिलाने लगा था, मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं सपना को डॉगी स्टाइल में चोद रहा हूँ.. क्योंकि सपना मेरी गोद में बैठी थी और मेरा लंड सपना की गांड से होता हुआ उसकी बुर के मुहाने पर टिका था, बस बुर के अन्दर घुसना बाकी रह गया था।
मैं यह मौका छोड़ना नहीं चाहता था.. इसलिए मैंने अपना एक हाथ हैंडल से हटा कर सपना की जांघ पर रख दिया और जांघ को सहलाने लगा।
सपना कोई विरोध नहीं कर रही थी.. यह देख कर मैं पजामे के ऊपर से ही सपना की बुर को हाथ सहलाने लगा था। सपना की बुर से लगातार पानी निकल रहा था.. जिससे उसका पजामा बुर के पास गीला हो चुका था।
मुझसे रहा नहीं गया और बाइक को रोड से किनारे एक पेड़ के तरफ ले गया और वहाँ बाइक को रोक कर बंद कर दिया।
सपना को मैंने उसी पोजीशन में गोद में बैठाए रखा और अपने हाथ को नीचे से उसकी टी-शर्ट में घुसा कर सपना की एक चूची को दबाने लगा, साथ ही अपना दूसरा हाथ सपना के पजामे के अन्दर डाल कर उसकी बुर के बालों को खुजलाने लगा।
सपना- आह.. यसस्स.. मामाजी वहाँ नहींईई.. बुर को खुजलाइए ना.. आह.. यसस्स आह मम्मी आ..
मैं- कैसा लग रहा है सपना!
सपना- आह.. बहुत अच्छा लग रहा है.. आह.. यससस्स मामाजी..
मैं- मजा आ रहा है?
सपना- हाँ मामाजी आह यससस्स बहुत मज़ा अआआ रहा है.. आह्ह..
मैं- और ज़्यादा मजा लोगी सपना?
सपना- हाँ मामाजी.. पर कैसे.. आह मैं आ मर जाऊँगी.. मेरी बुर को खुजलाइए ना..
मैं- चुदाई करोगी?
सपना- हाँ चोदिये..
सपना चुदने के लिए बहुत ही तड़पने लगी थी.. वो अपने हाथों से अपनी बुर पर मेरा हाथ दबा रही थी, साथ ही साथ अपनी गांड भी हिला-हिला कर मेरे लंड पर अपना बुर रगड़ रही थी।
मुझसे भी नहीं सहा जा रहा था.. सो उसी पोजीशन में मैं सपना के होंठों को अपने होंठों में दबा कर चूसने लगा। वो भी मेरा पूरा साथ दे रही थी।
अब मैंने उसे बाइक से नीचे उतारा और उसे अपना पजामा खोलने को कहा, उसने तुरंत अपना पजामा खोल दिया। मैंने भी अपना पजामा खोल दिया और फिर से बाइक पर बैठ गया।
मैंने सपना को मेरी ओर मुँह करके मेरी गोद में बैठने को कहा। उसकी बुर काफ़ी गीली हो चुकी थी.. इस कारण जब वो मेरी गोद में बैठने लगी.. तो मैंने अपना लंड से उसकी फूली हुई मक्खन जैसे चिकनी बुर के होंठों को फैला कर बुर के मुँह से लंड को सटाए रखा और उससे बैठने को कहा।
वो जैसे ही बैठी.. ‘फुच्च..’ की आवाज़ के साथ मेरा लंड उसकी बुर में आधा घुस गया। बुर में लंड के घुसने से शायद उसे दर्द हुआ.. इसलिए उसने ज़ोर से ‘मम्ममी..’ कहती हुई गोद से उठने की कोशिश की.. पर तब तक देर हो चुकी थी.. क्योंकि तब तक मैं उसकी गोल गोल गुब्बारे सी फूली हुई मुलायम गांड को दोनों हाथों से पकड़ चुका था। मैंने उसे कस कर अपने लंड पर दबा दिया.. इससे आधा बाहर बचा लंड भी पूरा बुर के अन्दर घुस गया।
‘ओ मम्मी..मर गई.. मामाजी छोड़िए.. ओह मम्मी..’ वो दर्द से चिल्लाने लगी.. साथ ही अपने मुक्के से मेरे सीने पर मारने लगी.. पर मैं उसे अपने लंड पे दबाए रहा और एक हाथ से उसकी चूचियों को खूब कस कसके दबाने लगा।
जब उसकी चूचियों में भी दर्द होने लगा.. तो वो बुर के दर्द को भूल सी गई और कहने लगी- धीरे से मामाजी.. धीरे से दबाइए ना.. दर्द होता है।
इतना सुनना था कि मैंने चूचियों को दबाना बंद कर दिया और उसकी एक चूची के निप्पल को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा, साथ ही दूसरी चूची के निप्पल को चुटकी से धीरे-धीरे मसलने लगा।
अब उसे अच्छा लगने लगा था.. वो अपनी बांहों से मेरे सिर को पकड़ कर अपनी चूचियों पर दबाने लगी थी और धीरे-धीरे अपनी गांड भी हिलाने लगी थी।
उसके गांड हिलाने से मेरा लंड उसकी बुर में अन्दर-बाहर होने लगा था.. मुझे भी मज़ा आ रहा था और सपना को भी मज़ा आने लगा था।
करीब 5-7 मिनट बाद अचानक वो कस के मेरे होंठों को चूसने लगी और अपनी गांड को भी जल्दी-जल्दी और ज़ोर-ज़ोर से हिलाने लगी, जिससे उसकी बुर से ‘पुच्छ.. पुच्छ..’ की आवाजें आने लगी थीं, साथ ही उसके मुँह से भी ‘आहह.. आह..’ निकलने लगा था।
कुछ ही देर में उसका जिस्म अकड़ने लगा.. उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और उसके चोदने की स्पीड एकदम तेज हो गई थी।
तभी मुझे मेरे लंड पर गर्म-गर्म सा एहसास हुआ.. जिसे मेरा लंड झेल नहीं पाया और सपना की बुर में ही मेरा पानी निकल गया। सपना भी झड़ रही थी.. उसने अपनी बुर के होंठों से मेरे लंड को कस कर जकड़ा हुआ था और कुछ ही पलों में वो अपनी बुर को मेरे लंड पर दबाते हुए शांत हो गई।
उसकी इस अदा पर मुझे बहुत प्यार आया.. सो मैं उसके चेहरे को दोनों हाथों से पकड़ कर उसके पूरे चेहरे को करीब दो मिनट तक चूमता रहा।
फिर हम बाइक से उतरे और वो पेशाब करने के लिए बैठने ही वाली थी कि मैंने उसे रोक दिया और उसे अपनी गोद में बिठा कर उसे पेशाब करने को कहा। वो एकदम से शर्मा गई और मुझसे गोद में बैठे-बैठे ही लिपट गई।
अगले ही पल वो उसी अवस्था में पेशाब करने लगी, उसकी बुर से निकलती हुई पेशाब सीधे मेरे लंड पर पड़ रही थी.. क्योंकि वो मेरे गोद में बैठी थी।
जब उसका पेशाब करना हो गया.. तो मैंने उसे खड़ा किया और उसके पीछे से अपना लंड उसकी दोनों जाँघों के बीच बुर के पास घुसाया और मैंने भी पेशाब की।
फिर हम दोनों ने कपड़े पहने और घर की ओर चल दिए। अब तक सुबह के 5:15 हो चुके थे और अंधेरा भी मिट चुका था।