जब मैं खेत में गयी, तो मैने देखा की कमाल कमरे में मूठ मार रहा था. ये देख कर मैं दर्र गयी, और दीवार के पीछे च्छूप गयी. मेरी धड़कने तेज़ हो गयी थी. मैने अपना हाथ अपनी छाती पर रख दिया, और मेरा मूह खुला रह गया. मेरे दिमाग़ में एक ही समय पर बहुत कुछ चलने लगा.
मैने सोचा मैं वाहा से चली जौ, पर मेरे अंदर कुछ था जो वो कह रहा था की मैं उसको मूठ मारते हुए देखु. मैं फिर दबे पावं डोर के पास गयी, और देखा कमाल बहुत ज़ोर से लंड हिला रहा था. उसका मूह खुल गया था, और उसकी आँखें बंद थी. वो मेरा नाम ले रहा था.
मेरा नाम सुन कर मेरे फेस पे स्माइल आ गयी. चाहे औरत कितनी भी सीधी-सॅडी क्यूँ ना हो, पर जब कोई उसका दीवाना बनता है, तो उसको बहुत अछा लगता है. आज मुझे कमाल पर गुस्सा नही आ रहा था. मैं थोड़ी घबराई हुई थी. फिर भी मैं उस स्टोर रूम में चली गयी, और डोर लॉक कर दिया.
कमाल मूठ मारने में इतना बिज़ी था, की उसको पता ही नही चला मैं उसके सामने थी. मैने गुस्से में और थोड़ी भारी आवाज़ में चिल्लाई-
संगीता: कमाल!
कमाल की आँखें खुली और वो मुझे उसके सामने देख कर दर्र गया. उसने जल्दी में उसका लंड पंत में डाल दिया, और ज़िप बंद कर दी. मुझे थोड़ी हस्सी आई, पर मैने अपने आप पर कंट्रोल किया. मुझे कमाल की क्लास लेनी थी. मैने तब तक सोचा नही था की उसके साथ ऐसा कुछ करूँगी. मुझे बस उसको समझना था की मेरे बारे में ये सब ना सोचे, पर शायद वो मेरे बारे में सोच रहा था ये मुझे अछा भी लगता था.
संगीता: कमाल तुम आ क्या कर रहे थे? तुझे शरम नही आई, मुझे तुम ऐसे सोच कर ये सब गंदा काम कर रहे हो? आज तो दीदी को सब बताना पड़ेगा. आज तेरी खैर नही.
कमाल ( मेरे पैरों पर गिर गया): आप प्लीज़ ऐसा मत करना. पापा मुझे मार डालेंगे. मुझे घर में नही घुसने देगे.
मैं आयेज कुछ बोली नही, और मैं खाट पर बैठ गयी. कमाल मेरे आयेज गिड़गिदा रहा था. मैं बिना कुछ बोले उसको तिफ्फ़िं देकर घर चली आई. शाम को सब घर आ गये. कमाल सीधा रात को घर आया. वो बहुत ही ज़्यादा दर्रा हुआ था. वो रात को देर से घर आया तो सब लोग उसको डाँटने लगे. पहले तो उसको लगा मैने सब कुछ घर में बता दिया था.
मेरी तरफ उसने देखा तो मैं उसको आँखें दिखाने लगी. रात को कमाल बिना खाना खाए सो गया. वो इतना दर्र गया था की अब वो बीमार हो गया. दूसरे दिन उसको हॉस्पिटल लेकर गये.
डॉक्टर ने बोला: ऐसा कुछ है नही, पर ज़्यादा टेन्षन में ऐसा होता है.
मुझे फिर बहुत अफ़सोस हुआ की मुझे उसको समझना चाहिए था. उसकी पूरी बात सुन लेनी चाहिए थी. कमाल को मैं खाना देती थी. वो माना करता तो बोल देती की तू नही खाएगा तो तेरी शिकायत कर दूँगी. 2-3 दिन बाद कमाल बिल्कुल ठीक हो गया.
एक दिन ऐसा हुआ की दीदी को हॉस्पिटल ले गये थे, तो घर पर कोई था नही. और नयी बहू को अकेले खेत में भेजना ठीक नही था. तो मुझे कमाल को तिफ्फ़िं देने जाना था. दोपहर को खेतों में कोई होता नही है. मैने उस दिन सोच लिया था की आज कमाल से बात करनी थी, और उसके दिमाग़ में मेरे लिए क्या चल रहा था, वो पता करना था. और कमाल मेरे पर लट्तू था, ये बात जान कर मुझे भी अब अछा लग रहा था.
मैं उस दिन तोड़ा साज कर गयी. मैने येल्लो कलर सारी पहनी थी, जिसमे फ्लवर बने हुए थे. और साथ में माचिंग ब्लाउस था. सारी कस्स के पहनी थी, जिससे मेरे बूब्स और गांद आचे से दिखे. मैने बाल खुले रखे थे. मुझे खेत में जाता देख बहुत से मर्दों ने आहें भारी.
कोई बोला “यार क्या माल है, ऐसी औरत हो तो मज़ा आ जाए”. ये सब सुन कर शायद मुझे अछा लग रहा था. जो चीज़ से मुझे नफ़रत थी, वो अब मुझे अची लग रही थी. शायद मैने आक्सेप्ट कर लिया था, की ये सब चीज़ों का एक अलग ही मज़ा है. मैने कमाल को स्टोर रूम में आने को बोला. वो दर्रा हुआ सर झुकाए मेरे पास आया
फिर मैने उसको तिफ्फ़िं दिया और उसने खाना खा लिया. मैं उसको देख रही थी, पर आज वो मेरी और देख नही रहा था. मुझे उस बात पर तोड़ा बुरा लगा. ना जाने क्यूँ मुझे कमाल की वो आदत मुझे अची लगने लगी थी. पर अब कमाल मेरी और देख भी नही रहा था. मैने सोचा वो शायद मेरे कड़क स्वाभाव से दर्र रहा था. मैने सोचा मैं ही उससे बात करती हू.
संगीता: कमाल क्या हुआ है? अब तुम मेरे से बात क्यूँ नही करते? ( कमाल कुछ बोल नही रहा था ना ही मेरी और देख रहा था) कमाल तुम मुझे सुन रहे हो? मैं तेरे से बात कर रही हू.
मैने कमाल का हाथ पकड़ा, और उसको खाट में मेरे पास बिता दिया, और उसकी और देख के स्माइल की. मेरी स्माइल देख कर कमाल भी तोड़ा नॉर्मल हुआ.
संगीता: कमाल तुम दररो मत. मैं किसी से कुछ नही कहूँगी. तुम मुझे सब कुछ कह सकते हो. विश्वास करो मैं तेरे साथ हू. पर तुम मुझे सब कुछ सच बताना. क्या सोच रहे हो मेरे बारे में?
कमाल ( थोड़ी देर बाद): आप मेरे पर गुस्सा करोगी? और मैं अब वो सब नही सोचता.
संगीता: अब भी तुम मेरे पर विश्वास नही करते ना? मैं तो यहा तेरी हेल्प करने आई थी. मैने सोचा शायद तुम मेरे से बात करके अपनी प्राब्लम बता पाओगे ( मैने कमाल को विश्वास दिलाया की मैं गुस्सा नही करूँगी और दीदी से नही कहूँगी).
कमाल: अर्रे क्या करू मैं? मुझे तो जीना ही नही है. कोई मुझे नही समझता.
संगीता: ऐसा मत बोलो तुम. मैं तेरे साथ हू. मैं समझती हू तेरे छ्होटे भाई की शादी हो गयी, और तुम्हे कोई लड़की नही मिल रही. घर में भी सब तुमको दाँत रहे है. नयी बहू भी ताना मार्टी है.
कमाल: हा ऐसा ही है. मैं क्या करू अब?
संगीता ( उसके फेस को मेरी और घुमाया और उसकी आँखों में देख कर): वो सब छ्चोढो, मेरे बारे में क्या सोच रहे हो?
कमाल: सच काहु तो गुस्सा नही करोगे?
संगीता (उसकी और स्माइल करते हुए): बिल्कुल नही. मुझे अपना दोस्त समझो.
कमाल: मैं बहुत अकेला फील करता हू. मैने बहुत सोचा की ये ग़लत है, पर मैं आपकी और खिछा चला आ रहा था. आपको जब बस स्टॅंड लेने आया, तब आपकी आ जवानी देख कर मुझे कुछ होने लगा था.
संगीता: अछा ऐसा क्या देख लिया मेरे में? मैं 3 बच्चो की मा हू. मेरे में अब वो बात कहा, जो तुम मेरे और आकर्षित हो.
कमाल: आप में वो बात है, जो आज कल की लड़कियों में भी नही है ( कमाल की बात सुन कर मैं शर्मा गयी. मुझे अब वो बातें अची लगने लगी)
संगीता: तुम कुछ भी बोल रहे हो. ऐसा कुछ नही है.
कमाल: बहुत कुछ है.
संगीता ( उसकी और देख कर स्माइल करते हुए शर्मा कर): क्या है?
कमाल ( मेरे होंठो की और इशारा करते हुए): आपके आ रसीले होत. ( मेरे बूब्स की और इशारा करते हुए) आपके ये बड़े आम. ( कमर दिखा कर) ये पतली कमर. आपकी हर एक अदा पर मैं मोहित हो गया हू.
कमाल मेरे से ऐसे बात करेगा आ मैने सोचा नही था. कमाल को मैं जितना उल्लू समझ रही थी इतना वो था नही. लड़की पटना आता था, पर कभी हिम्मत नही जताई होगी ऐसा लग रहा था.
संगीता: कमाल तुम सच में पागल हो. मेरे में ऐसा कुछ नही है.
अब मैं भी कुछ नही बोल रही थी. और कमाल भी कुछ बोल नही रहा था. हम एक-दूसरे की आँखों में देख रहे थे. आयेज क्या हुआ, वो मैं आपको नेक्स्ट पार्ट में बतौँगी. आपको स्टोरी अची लगे तो अपने दोस्तों से शेर करे, और कॉमेंट करे. और आप को बात करनी हो तो मूडछंगेरबोय@गमाल.कॉम पर मैल करे.