मजबूरी ने रंडी बनाया-पति के नशेड़ी दोस्तों के साथ गंगबांग

नमस्ते दोस्तों, तो बिना आपका वक़्त लिए सीधा कहानी पे आते है. तो मेरी प्रेग्नेन्सी का 8त मंत्स स्टार्ट हो गया था. मैने अब दूसरो के घर में काम करना भी छ्चोढ़ दिया था, क्यूंकी मुझसे ज़्यादा उतना-बैठना नही हो पाता था. ज़्यादातर वक़्त मैं निघट्य पहने बस लेती रहती थी. घर भी जैसे-तैसे चल रहा था.

मेरा पति भी ना के बराबर ही कमाता था. जब से मैं प्रेग्नेंट हो गयी थी, तब से उनका दारू पीना भी बढ़ गया था. तोड़ा बहुत जो भी कमाता था, वो दारू और जुवे में उड़ा देता था.

मेरे पति के 3 नशेड़ी दोस्त थे गोपी, दीपक, श्लोक. तीनो मज़दूर ही थे, और ज़्यादातर लूँगी-शर्ट पहने रहते थे. उनकी नज़र पहले से मुझ पर थी, और उन्हे बस मौका चाहिए था. और वो मौका उन्हे मेरे हज़्बेंड ने परोस दिया, जब वो जुवे में काफ़ी पैसे हार गये, और मेरा सौदा भी कर आए.

रात के 12 बाज रहे थे. वो अक्सर लाते आया करते थे. तो मैं दरवाज़ा खोल कर सोई थी. तभी तीनो मेरे पति को नशे में धुत रूम में लेकर आए. हमारा घर काफ़ी छ्होटा है, सिर्फ़ एक ही रूम है जिसमे किचन और सब कुछ है.

मैं बेड पे लेती थी. उन्हे देख कर मैं जैसे-तैसे उठ के उनके पास गयी, और उन्हे पानी दिया.

तभी पीछे से गोपी ने मेरी कमर पकड़ ली, और अपने लंड पर रगड़ने लगा.

मे: गोपी भाई, ये क्या हरकत है?

तभी फिर दीपक भाई भी मेरे बूब्स दबाने लगा. श्लोक मेरे पति को एक थप्पड़ मार के होश में लाया, और उनसे पूछा-

श्लोक: बता इन्हे हम सब के बीच क्या डील हुई थी.

हज़्बेंड: तुझे मैं इन सब से हार गया हू आज रात के लिए.

इतना बोल के वो दोबारा नशे में धुत हो गये.

मे: नही, मैं ये सब नही मानती. ये ग़लत है, मेरी हालत पे तो तरस खाओ.

श्लोक सामने से उठ कर आया और मेरे चूचे पकड़ कर कस्स के दबा दिए.

श्लोक: इस हालत में तो आप और भी सुंदर हो गयी हो भाभी जी.

दीपक: हमे आपके और लाला के बीच के सौदे के बारे में भी पता है. तो चुप-छाप से हमसे छुड़वा लो, वरना ये बात तुम्हारे पति को भी पता चल जाएगी.

मैं मजबूर थी, और मेरे पास कोई चारा नही बचा था. मेरी आँखों में आँसू भर आए, और मैने सिर हिला कर हामी भर दी.

उसके बाद उन्होने मुझे घेर लिया. गोपी भाई मेरी गांद पर अपना लंड रगड़ने लगे. दीपक भी मुझे किस करने लगे, और श्लोक भाई ने मेरे बूब्स को निघट्य से बाहर निकाला, और उनको तोड़ा छाता. फिर वो बूब्स पर थप्पड़ मारने लगे.

मे: श्लोक भाई आराम से, काफ़ी दर्द हो रहा है.

श्लोक भाई ने मेरी एक ना सुनी. उन्होने थप्पड़ मारते-मारते मेरे दोनो चूचे लाल कर दिए. अब बूब्स छूने से भी दर्द हो रहा था. फिर उन्होने मुझे घुटने पे बिताया, और अपनी शर्ट उतार दी, और तीनो ने अपनी लूँगी उठा कर अपना-अपना लंड मेरे फेस पर रख दिया.

तीनो का लंड लगभग 8 इंच का मोटा कला लंड था. उनके लंड से बदबू भी काफ़ी आ रही थी, शायद उन्होने कुछ दीनो से नाहया नही था. झाँते भी तीनो के काफ़ी बड़ी थी.

दीपक: देख क्या रही हो भाभी? लाला का लंड तो बड़े मज़े से चूस्टी हो. चलो इन्हे चूसना भी चालू कर दो.

मे: लाला के साथ सोना मेरी मजबूरी थी. भैसाब प्लीज़ ये बात आयेज मत फैलाना.

मैं इतना बोल ही रही थी, की दीपक भाई अपना लंड मेरे मूह में देकर अंदर-बाहर करने लगे. मैं भी गोपी और श्लोक का लंड हाथ में पकड़ कर हिलने लगी.

गोपी भाई का लंड सीधा गले तक जेया रहा था. तीनो काफ़ी रफ थे. श्लोक भाई ने मेरी निघट्य उतार दी. गर्मी और प्रेग्नेंट होने के कारण मैं अंदर और कुछ नही पहनती थी. अब मैं उन तीनो के सामने नंगी उनके लंड चूस रही थी.

मैं बारी-बारी से तीनो का लंड चूस रही थी. तभी श्लोक भाई ने मेरे बाल पकड़े, और गोतों के पास मेरा सर ले गये.

श्लोक भाई: इन्हे भी चाट कर सॉफ करो रंडी भाभी.

मैं भी उनके गोतों को चूसने लगी. बारी-बारी से तीनो ने अपने गोते मुझसे चटवाए. फिर गोपी भाई एक बार मेरे मूह में लंड डाल कर निकालते, और फिर मेरे गाल पर थप्पड़ मारते. ऐसा उन्होने पॅटर्न बना लिया था. अब अंदर ही अंदर मुझे भी मज़ा आने लगा था, और मैं गीली होने लगी थी. ये श्लोक भाई ने देख लिया.

श्लोक: अर्रे भाभी भी गीली हो रही है. मतलब इन्हे भी मज़ा आ रहा है.

ये सुन के गोपी भाई और ज़ोर से मेरे मूह में लंड देते, और ज़ोर से थप्पड़ मारते. मेरा चेहरा थप्पड़ से लाल हो गया था. दीपक भाई नीचे लेट कर मेरी छूट से निकलता पानी चाटने लगा.

दीपक भाई के चाटने से मैं और गीली होती जेया रही थी. मैं खुद को मोन करने से रोक रही थी. कुछ देर ऐसे ही चलने के बाद गोपी भाई ने मुझे घोड़ी बनने को कहा.

मे: नही गोपी भाई, इस हालत में झुका नही जाता. सीधा लिटा के जो करना है कर लो.

गोपी भाई: ठीक है भाभी, चलो टांगे फैला कर लेट जाओ.

मैं बेड पे जेया कर वैसे ही लेट गयी. गोपी भाई पहले तो मेरी झाँत के साथ खेले. मैने भी कुछ महीनो से शेव नही की थी. फिर दीपक भाई मेरे चूचों को चाटने लगे.

गोपी भाई ने अपने लंड पर थूक लगाया, और एक झटके में पूरा लंड मेरी छूट में घुसा दिया. मेरी दर्द के मारे सिसकी निकल आई.

मे: आहह… उउउइ मा, भैसाब आराम से. आराम से करो भैसाब.

गोपी: चुप साली रंडी भाभी. इतने दीनो बाद हाथ आई है. एक बात मानी ना तेरी, अब चुप-छाप लेती रह.

गोपी भाई किसी जानवर की तरह मेरी चुदाई करने लगे, और मैं सिर्फ़ सिसकिया लेती रही. इतने में श्लोक भाई आके मेरे मूह पर बैठ गये. चल मेरी गांद चाट कर सॉफ कर भाभी.

मुझे मजबूरन चाटना पड़ा. बीच में दीपक भाई मेरे चूचों को छ्चोढ़ ही नही रहे थे. प्रेग्नेंट होने के कारण मेरे चूचे फूले हुए भी थे. कभी-कभी वो दाँत से मेरे निपल्स खींचा करते, और मेरे चूचों पे दाँत गाड़ देते.

फिर दीपक भाई ने गोपी भाई की जगह ले ली. पहले तो कुछ देर दीपक भाई ने मेरी जांघों पर ज़ोर-ज़ोर के थप्पड़ मारे. जब मेरी जांघें लाल होकर सूज गयी, तो फिर मेरे पेट को चूमते हुए छूट तक गये, और छूट में दाँत गाड़ा दिए.

मेरे चीख निकल गयी, मगर उन्हे रहें नही आया. फिर उन्होने उंगली उठा कर दांतो से पकड़ा, और मेरी चुदाई शुरू की. उनका ये अंदाज़ मुझे पसंद आया, जैसे कोई राउडी हीरो हो. मगर मैने अपने एमोशन्स को छुपाया.

ऐसे ही मैं लगभग 30 मिनिट तक चुड्ती रही. तीनो नशे में होने के कारण जल्दी झाड़ भी नही रहे थे. फिर बारी आई श्लोक भाई की. पहले तो उन्होने कुछ देर मेरा पूरा जायेज़ा लिया, और मेरी हालत देखी की कहा-कहा तीनो ने दाग छ्चोढे थे.

मुझे लग ही रहा था की ये तो कम से कम आराम से करेंगे. मगर ये मेरी ग़लत-फहमी थी. उन्होने मेरी गांद को दोनो हाथो से उठाया, मेरी दोनो जांघों को अपने कंधे पर रखा, और मुझे अपनी तरफ खींचा, और मेरी गांद में लंड सेट करके मेरी गांद छोड़ने लगे.

मैने हटने की कोशिश की, मगर मेरी जांघों को उन्होने हाथो से दबाया हुआ था. मैं बस सिसकियाँ लेती रही, और आराम से करने को बोलती रही. जो की उन्होने ना सुनी. वो बस चुप-छाप मुझे छोड़ते रहे. मेरी गांद मानो फटने की हद पर थी.

गोपी भी अपना लंड मेरे होंठो पर रख कर सहलाने लगे. तभी मेरे मूह से ग़लती से निकल गया की “कितना बदबूदार लंड है.” बस मानो उनका ईगो हर्ट हो गया हो. फिर उसने मुझपे चढ़ कर मेरे मूह में अपना लंड दे दिया, और ज़ोर-ज़ोर से मेरा मूह छोड़ने लगे. पीछे श्लोक भाई मेरी गांद तो छोड़ ही रहे थे.

गोपी: ले चूस साली ये बदबूदार लंड.

मे: उघह… उघह… उघह… भैसाब ग़लती से मूह से निकल गया, माफ़ कर दो.

मगर उन्होने ना सुनी, और जाम कर मेरे मूह की चुदाई की. लगभग रात के 2 बाज गये, और मैं अभी भी चुड ही रही थी. मैं बेबस लेती थी, और सब मुझे जैसे चाहे वैसे छोड़ रहे थे.

फिर तीनो ने दोबारा से मुझे घेर लिया, और बारी-बारी से अपना माल मेरे शरीर पर गिरा दिया. मेरा पूरा माल भर चुका था माल से. वो तीनो तक चुके थे, और वही नीचे सो गये, और मैं बेड पर उसी हालत में सो गयी.

सुबा सबसे पहले मेरे पति की नींद खुली, और ये सब देख कर उसको अफ़सोस तो हुआ, मगर फिर भी उसकी आदत नही छूटी.

तो दोस्तों आपको मेरी ये स्टोरी कैसी लगी, मुझे कॉमेंट्स में ज़रूर बताए.

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