गुलाबी बदन पार्ट -1

अपूर्वा मेरी प्रिया पबित्रा की सब से करीब की सहेली थी. पबित्रा कनक-काया साँचे ढली अप्रतिम गदराई प्रतिमा थी तो अपूर्वा केसर घुली दूधिया गुलाबी बदन की परी थी. एक का दमकता तपा रूप खींचकर बदन को पिघला छोड़ता था तो दूसरी पूनम की वह दूधिया चांदनी थी जिसमे सर से पाँव तक अपने रूप की शीतल चादर में लपेटकर होश गम कर रखने का जादुई कमाल था.

पबित्रा ने मेरे पास आ सकने के लिये पेंटिन्ग सीखने का बहाना चुन रखा था.ज़िद करके अब सप्ताह में दो दिन अपूर्वा भी उसके साथ आने लगी थी. उस रोज़ भी मौज़ के साथ हम तीनों बैठे हुए थे. दोपहर दो बजे का वक्त हो रहा था. तभी पबित्रा का मोबाइल फोन बजा. वह अपूर्वा से बोली कि मिस्टर का फोन है. वो लंच के लिये आ गये हैं. चल चलते हैं. मैं ज़ल्दी से खाना खिला दूंगी फिर अपन अभी ही लौट आते हैं.

अपूर्वा बोली – “यार, तुम तो अपना काम करोगी, लेकिन मैं वहां बैठ कर भला क्या करूंगी? मैं यहीं बैठती हूं. तुम खाना खिला कर लौट आओ. तब तक मैं इनसे पहले का छूटा हुआ पाठ समझ लेती हूं.”

पबित्रा ने अपूर्वा को घूरकर देखा और फिर मेरी तरफ आंखें गड़ाती रुखसत हो गई.

पबित्रा के पलटते ही अपूर्वा ने मेरी निगाहों में झांका और मुस्कुराने लगी. मुझसे उसने पूछा – ” बताइये तो भला कि वह आप की तरफ़ आंखें गड़ाये क्यों देख रही थी?”

मैने भी उसी अन्दाज़ में जवाब लौटाया -” यह तो मैं तुमसे भी पूछ सकता हूं. आखिर पहले तो उसकी निगाह तुम पर ही गई थी.”

” तो क्या हुआ? आप ही बताइये ना!”अपूर्वा मनुहार करते हुए मचली.

” अचला, अब कहो भी न यार. तुम्हीं ने पहेली बुझाई है तो तुम्हारी मीठी बोली में ही सुनना मुझे अच्छा लगेगा.”

” पहले आप प्लीज़. कह भी दीजिये ना..आखिर जो मैने सोचा है वह आप के मन में भी तो होगा.”

अपूर्वा की अदाएं मुझे लुभा चली थीं. मैने तय कर लिया कि मन की बात बिन्दास कह दूं.

“मैं बताऊं”, झिझकते हुए मैं आगे बढ़ा – ” पबित्रा सोच रही थी कि उसके जाने के बाद हम दोनों..”,

कहते-कहते भी मैं ठिठक चला. रुकी हुई बातअपूर्वा की ज़ुबान से निकली – “मौके का फ़ायदा न उठा लें”

अपूर्वा कह तो गई थी पर मुस्कुराते लबों के बावजूद उसकी निगाहें झुक चली थीं. मौसम का मिजाज बदल रहा था. मैनेअपूर्वा को छेड़ा-

“ठीक तो सोचा उसने. जी तो सचमुच चाहता है कि..”

हौले से आंखें मिलाते उसने कहा ” क्या..?”

अचला को हौले से अपनी ओर खींच बांहों में समेटते मैने जवाब दिया –

” कि तुम्हें बांहों में भर लूं..”

बांहों में अपने सर को छिपाएअपूर्वा ने मंद-मंद स्वरों में दिल की बात उजागर की. वह बोली –

” मैने तो उसी रोज़ आप को देख लिया था जिस रोज़ रानी के यहां आप छिपे बैठे थे. मैं अनजाने में पहुंच गई थी. दरवज़ा भिड़ा होकर भी खुला रह गया था. रानी झटपट आहट सुनती यूं दौड़ी थी जैसे आफ़त आकर दरवाजे पर खड़ी हो गई हो. उसने मुझे झटपट टाला कि परेशान हूं अभी. बाद में आना प्लीज़. लेकिन मैं उससे क्या कहती कि अंदर के आईने ने मेरी आंखों को बता दिया था कि अंदर बिस्तर को खूब हिलाकर आप वहां मेरी सहेली के साथ आराम के मज़े फ़रमा रहे थे.

अपूर्वा को और कसते और उसके होठों पर होठ लहराते हुए मैने भी वैसी ही लरज़ती आवाज़ में दिल में छिपे उस रहस्य की बात को उजागर कर दिया जो मुझे अधीर कर रही थी.

” अच्छा हुआ जो तुमने देख लिया था. अब यह भी जान लो कि जिस आईने ने तुम्हें मुझे दिखाया था उसी में मैने उस सुन्दरी अपूर्वा को देख लिया था, जो उस रोज़ नीली साड़ी में स्वर्ग से उतरी अप्सरा लग रही थी. मेरा तो जी किया कि उसी वक्त तुम्हें लपककर बाहों में घसीट लूं और…”

“और?” -अचला की उंगलियों ने मेरी छाती को टुहकते हुए पूछा.

” जमकर लिपटाऊं और…”

मेरा संकोच देखकर अपूर्वा ने मनुहार भरी ज़िद से कहा -” बोलो ना प्लीज़. बहुत शरमाते हो. यहां कौन बैठा है? जिसे सुनना है वह तो तुम्हारी बांहों में समाई है..”

“वहीं के वहीं पटक कर तुम पर चढ़ जाऊं और तुममें समाकर अपना सारा होश खो दूं.”

सामने अपूर्वा का छोटा सा प्यारा चौकोर चेहरा प्यार की चढ़्ती गर्मी से लाल हुआ पड़ रहा था. उसकी शरारत मुझको चिढ़ाती हुई खिझा रही थी.अपूर्वा को बिना आगे मौका दिये “अपनी प्यारी अपूर्वा को चोद डालूं” कहता सोफे पर ही उसपर पिल पडा. मैने उसकी पतली कमर को बांहों में लपेटते हुये उसकी गोल-गोल छातियों को जकड़कर अपनी छाती में समेत लिया था. मेरे ओठ अपूर्वा के बारीक गुलाबी होठों की फांक पर टूट पडे थे. कभी मेरे और कभी उसके ओठ आपस में होड़ लगते एक दूसरे को निगल रहे थे. भारीभारी सांसों दे साथअपूर्वा की कोमल छातियां मेरी कठोर छाती पर मचल रही थीं.अपूर्वा अपने को संभाल नहीं पा रही थी और उसकी”आह..आह” की दबीदबी आवाज मुझको आगे बढ़कर दोनों बदनों की प्यास बुझाने उत्तेजित किये जा रही थी. सोफे में बदन समाये नही पड़ रहे थे और मैं बेकाबू हुआ जा रहा था.अपूर्वा की नाजुक कमर को झटके से अपनी तरफ खींचते हुए छातियों को कसकर जकड़े हुये और बगैर अलग किये बार-बार पूरी आवाज के साथ बेतहाशा चूमता हुआ मैने दोनों के चिपके बदनों को दीवार से सटाया. दीवार से चिपककर अब खड़े-खड़ेअपूर्वा और मेरा बदन खूब अकड़ते एक-दूसरे को दबाते ऎंठे जा रहे थे.अपूर्वा और मै इस प्रकार गुंथे पड़ रहे थे जैसे दो डोरियां बारबार लिपटती हुईं एक-दूसरे को बुन रही हों. हम दोनों पर मदहोशी की तारी छाई जा रही थी. मेरा एक हाथ अपूर्वा की साड़ी को ऊपर सरकाता उंगलियों से उस जगह को कुरेद रहा था जहां उसकी छोटी रानी जीभ लपलपाती लार तपका रही थी और अपूर्वा उसी तरह अपना एक हाथ नीचे करके छोटी रानी के चहेते राजा को मुठ्ठी में थाम प्यार से खींच-खींचकर शिकायत कर रही थी कि बहुत दिनों में तुमको पाया है. क्यों इतना तड़पाया है तुमने मुझको.

” सहा नहीं जा रहा है. अब मुझको थामकर बिस्तर पर ले चलो प्लीज़.”

अपूर्वा उसी प्वाइंट पर आ गई थी जहां मेरा दिल भी पहुंचा हुआ था. मेरा एक हाथ उसके घुटनों पर पहुंचा और दूसरा हाथ उसकी पीठ पर. प्यारी अपूर्वा के खूबसूरत कोमल बदन को बाहों में थामे मैं बिस्तर की ओर चला. बाहों में थमे हुए गुलाई में ढला अपूर्वा का बदन मुझसे चिपक चला था.अपूर्वा की आंखों की पुतलियां एकटक मेरी आंखों में डूबी मुझे निहार रही थीं और उसके मादक रसीले होठ बिला-संकोच आवाज करते मेरे होठों को लगतार चूमे जा रहे थे.

अपूर्वा उस वक्त मुझे अत्यंत खूबसूरत और प्यारी लग रही थी. “ये पल फिर न जाने हासिल हों” मैने सोचा कि उसके एकएक अंग को मै आज जी भरकर निहार लूं. उसकी छरहरी देह जैसे बड़ी फुरसत में गढ़ी गई नक्काशी की प्रतिमा थी. सिर से पैर तक बदन का हर अंग मन को मोह लेने वाले इतने खूबसूरत कटाओं से भरा था कि प्यारी अपूर्वा की समूची देहयष्टि में हिमालय की कंदराओं से अपनी उछ्लती तरंगों के साथ चट्टानों के बीच से आड़ी-तिरछी दौड़ती निर्मल, चंचल उस मानभरी सरिता की सुन्दर छबि दिखाई पड़ती थी जिसका स्निग्ध, शीतल, पारदर्शी जल चाहे जितना-जितना पिया जाता रहे, वह मन में और-और पीते जाने की तृष्णा जगाता उसे सदैव अतृप्त्ता में अधीर बनाये रखता है.

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अपूर्वा का समूचा बदन मेरे सामने संगमरमर की खूबसूरत नक्काशीदार ऐसी दूधिया मूरत की मानिन्द बिछी थी जिसे गुलाबी रंग में नहलाया गया हो. चित्त लेटी हुई अपूर्वा के बदन पर मैं पेट के बल पूरी लंबाई में सवार हो चला था. उसके पैरों की उंगलियों से लेकर उसके खूबसूरत चेहरे तक मेरा हर अंग अपूर्वा रानी के अंगों से चिपका था. उसके हाथों की अंगुलियों में मैने अपनी उंगलियां फंसाते हुए सिर के पार फैलाकर पूरी लंबई मे चिपक लिया था.उसका छोटा सा कोमल मुख बड़ा प्यारा लग रहा था जिसपर पतली नाक के नीचे बारीक लाल होठों की नाजुक फांक सजी थी. मेरे होठों उन होठों पर बेताबी से खेल रहे थे. हम दोनों में एक दूसरे के होठों को निगल जने की होड़ लगी थी.अचला की खू्बसूरत सुराहीदार गरदन को अपने गले से रगड़ता और जीभ से चाटता हुआ मैंने अपनी हथेलियों से उसके कन्धों को दबाया. अब म्रेरी निगाह अचलारानी के उन कोमल उभारदार संगमरमरी स्तनों पर पहुंची, जिनपर गुलाबी बेरियां सजी थीं. उन्हे अपने गालों से खिलाता बारी-बारी से होठों में दबाता मै चूसता हुआ हौले से यूं चबा जाता था किअपूर्वा रानी की सुरीली सिसकियां निकल आती थीं.

” हाय, धीरे..” वह कहती और शरारत में उन्हे मेरे दांत और जोर से काट जाते थे. मेरे हाथ उस प्यारी के स्तनों को कसकर थामे पहाडी़ के तले से उसकी चोटी तक मालिश किये जा रहे थे. अपूर्वा रानी के बदन का खूबसूरत पहाडी़ दरिया हौले-हौले कांपता लहरें लेने लगा था. उसकी नाजुक गुलाबी एड़ियां मुझको नीचे उतरने का न्यौता दे रही थीं. गालों और होठों को मैने धीरे-धीरे नीचे उतारता हुआ मैं नदी की उस संकरी घाटी में पहुंच चला था जो मेरी रानी की बाईस इन्ची कमर थी. अपूर्वारानी के पुठ्ठों को दबाकर घेरते हाथों के पन्जों ने उसकी क्षीण कटि को खूब कसकर जकड़ रखे था और नाभि के दायें-बायें मचलते गालों के बीच मेरे ओठ

‘पुच्च-पुच्च..’ की ध्वनि के यौनत्तेजक स्वरों के साथ नाभि में डूब-डूब कर नहा रहे थे. काया की नदी में तरंगें उठीं.अपूर्वा की बाहों ने मेरी गरदन को घेरते मेरे माथे, मेरे गालों और फिर लबों को ताबड़-तोड़ ठीक वैसी ही आतुरता से चूम डाला. उसके कांपते हुए लबों का बेताब संगीत मेरे कानों में मिठास घोलता गुनगुना रहा था –

‘ आह, मेरे प्यारे प्रियहरि,…आह, तुम मुझे पागल किये जा रहे हो… मैं तुम्हारी दीवानी हो गयी हूं ….अब मुझसे रहा नहीं जा रहा है…मैं भीगी जा रही हूं.अपूर्वा की सांसें भारी हो रही थीं और उखडे़-उखडे़ स्वरों में वह मेरे कानों में बुदबुदाए जा रही थी-

‘ हाय मेरी किस्मत ….तूने मेरे मन के राजा से मिलाया भी तो कितने छोटे लम्हे के लिये…वो आती होगी …मेरे राजा..आज इस मौके को मै अधूरा नही छोड़ना चाहती.’

अपूर्वा ने उठकर अपनी बाहों में भींचते हुए अपनी छाती में कसकर मुझे जकड़ लिया. धक्का देती मुझे धकेलकर उसने मुझे चित्त कर दिया था. उसकी फुर्ती की मन ही मन तारीफ

करता हुआ मैने कहा-

‘ मेरी प्यारी जंगली बिल्ली. मौका भले आज मिला है लेकिन ख्वाबों में तो तुम्हारी झाडी़ में उस लम्हे में ही घुस पडा़ था, जब पहली बार तुमसे मेरी आंखें टकराई थीं.’

‘हां, मुझे भी वह लम्हा हमेशा याद रहेगा.’

इस बीच मेरी प्यारी सुन्दरी अपूर्वा के हाथ मेरे तन्नाए हथियार को उसकी मूठ से उस चमकते तिकोने गोल सिरे तक खींच रहे थे जो अपनी लाली में लार टपकाता मचल रहा था.अपूर्वा बार-बार होठों से उसे चूमती नीचे से ऊपर तक जुबान फिराती प्यार से चाटे जा रही थी. इधर मेरी अंगुलियां अपनी रानी की बेदाग, चिकनी, पतली और सुडौल टांगों पर फिसलतीं नरम और ताजगी से चुस्त जंघाओं के बीच घुंघराली झाड़ियों में उस बारीक फांक को टोह रही थीं, जहां अपने आप को बडे़ जतन से घूंघट में छिपाये रानीअपूर्वा की लाल लचीली कोमल कली लजाती उस राजकुमार का इन्तिज़ार कर रही थी जो इस वक्त उसकी मालकिन की हथेलियों पर खेलता बार-बार दुलार से चूमा जा रहा था. मैने पास ही रखे जैम में अपनी उंगलियां डालते रानी की आंखों में झांका.

‘ ज़रा फिरा दूं. मिठास आ जाएगी?’

आंखों में आंखें डुबोती वह धीरे से बोली-‘वह स्वाद तो जुबान पर यूं ही चढा़ रहता है. मुझे यही बहुत प्यारा है, जो ताजिन्दगी मुझमें बसा रहेगा.’

आंखों के जादू ने फौरन यूं असर किया कि अपूर्वा और मेरी छातियों ने कसकर भिड़ते हुए एक-दूसरे को बांध लिया. हम दोनों गाल सटाए इक-दूजे के गले से लिपटे थे.अपूर्वा मेरे कानों में बुदबुदा रही थी -‘ मैने पहली बार में ही आप को अपने अंदर प्रवेश करता देख लिया था.

पबित्रा भी साथ हुआ करती थी, मगर न जाने कैसे मेरी और आप की नज़रें दूर से ही एक दूसरे से टकराती यूं भिड़ जाती थीं कि फिर किसी और के साथ होने का अह्सास ही न होता था.’

‘ हां, तब मै भी न जाने कहां खो जाता था. मुझे यूं लगता जैसे पास आते-आते स-शरीर मेरे अन्दर समा गई हो.’

‘ आह, प्यार का यह कैसा अजीब संयोग था. और तब क्या होता था जानते हो ? दिन और रात हर घडी़ नज़रों से गुजरता वह नज़ारा झरने की तरह वहां पहुंचकर बेचैन गुदगुदी से यूं भर देता कि उसके साथ मेरी समूची देह रिसने लगती थी.’

रानी अपूर्वा की आवाज़ जैसे किसी स्वप्नलोक से आ रही थी. उसका कहना जारी था-‘एक रात तो मैं सपनों में यूं मचलती रही कि आंख खुलने पर अपने को रिस-रिसकर सचमुच रात के रस में बहता पाया’

क्रमशह……………………………।

गतांक से आगे। ………………………………………….

‘ कहीं यह दो दिन पहले की बात तो नहीं जब मैने तुम्हें रेशमी हरी कुर्ती और वैसी ही चमकती सफेद सलवार में देखा था?’

‘ हां, उसी सुबह जब आप को मैने भी हल्की हरी धारियों वाले वासंती केसरिया फूलों के रंग में पाया था. उस रोज किसी एक ने मजा़क में जब यह कहा कि आज तो सुबह-सुबह केसरिया और हरे के साथ पार्क में वसन्त उतर आया है री. लगता है कि जैसे पहले से आज का मुहूर्त तय करके आए हैं. उसे सुनकर सभी खिलखिलाकर हंस पडी़ थीं. केवल दीदी पबित्रा ने प्रश्नित करती उदास आंखों से मेरे चेहरे को देखा था.’

मैने अपूर्वा की चिबुक थामकर उसके चेहरे को प्यार से निहारा और उसे फिर गले से लिपटाता अपनी छाती से चिपका लिया. अपने होठ प्रिया के कान से सटा उसकी कोमल फुनगी को नरमी से चबाते मैने प्यार में सनी आहिस्ता आवाज़ में कहा-‘उस रात मेरी भी हालत वैसी ही थी. सुबह की तुम्हारी खूबसूरत छबि को आंखों में बसाये मैं भी तुम्हारी यादों में सारी रात ठीक तुम्हारी तरह भीगता और रिसता रहा था.’

इस तरह प्यार में लिपटी जाती देह और आनन्द की तरंगों पर मचलते दिलों को पूरा भरोसा हो चला था कि हम एक-दूसरे के लिये ही बने हैं. बातों को विराम देतेअपूर्वा और मैं चुप्पी में अचानक गंभीर हो चले थे.

बातों-बातों में अपूर्वा और मैं इतने नजदीक आ चले थे कि अब किसी भूमिका की ज़रूरत नहीं रह गई थी. जैसे तूफान आने से पहले हवा थम जाती है, वैसे ही अब जो होने जा रहा था उसका मूड हमपर छा चला था. हम दोनों के चेहरे लाल हो गये थे और एक-दूसरे को निगल जाने के लिये नसों में दौड़ता खून खलबली मचा रहा था.

मुझे कुछ देर पहले कही अपूर्वा की बात याद आई. मैने अपनी उंगलियों से उसकी चिबुक थामकर आखों में आंखें डाल उसकी सूरत को प्यार से निहारते हुए शरारत से छेडा़ -’ तुमने अभी-अभी कहा था कि मेरी देह का नज़ारा झरने की तरह तुम्हारे वहां कहीं पहुंचकर बेचैन गुदगुदी से यूं भर देता कि उसके साथ तुम्हरी समूची देह रिसने लगती थी.मुझे बताओ न कि वहां का मतलब कहां ?’

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अपूर्वा शरमा गई. उसकी आंखें चमककर बिजली की तरह मेरी आंखों पर झपटीं. मेरे गाल पर हल्की सी चपत पडी़ -’ शरारत…?’ छाती से चिपकती निगाहें नीची किये रबर के गुड्डे को बारीक फांक के मुहाने पर टिकाती वह बोली-’ यहां.’

न जाने अचानक भावना का वह कैसा ज्वार मुझसे लिपटीअपूर्वा की देहलता में उमड़ आया था कि अपने स्तनों पर मुझे भींचती और मेरे कन्धे पर सिर गडा़ए अपूर्वा सिसकियां ले रही थी. उसके लिये मेरा भी प्यार ज्वार बनकर मुझपर छा चला. यह सम्पूर्ण मिलन की बेला थी. अब देर करने का कोई काम न था.अपूर्वा को मैने धीरे से अलग किया. अपनी उंगलियों से उसके सुन्दर मुखडे़ की चिबुक थाम मैने उसकी आंखों को बारी-बारी से चूमा.अपूर्वा के आंसुओं के सारे मोती मेरे अधरों ने सोख लिये.अपूर्वा के दोनों गालों को अपनी हथेलियों के बीच मैने कसकर समेटा और अपूर्वा के नाजुक अधरों से मेरे होठ टूटकर भिड़ चले. तेज होती सांसों के तूफ़ान के बीच लताओं की तरह गुंथी पड़ती हमारी कायाएं बिस्तर पर बिछ्ती चली गई थीं. मेरे हाथों की हथेलियांअपूर्वा के फैल चले हाथों की हथेलियों पर अपनी उंगलियों में उसकी उंगलियों को जकड़कर दबाये थीं.अपूर्वा की गुब्बारे की तरह फूलती छातियां मेरी छाती की जकड़न में बन्धीं उठती-बैठतीं मचल रही थीं. एड़ियों, घुटनों से जंघाओं तक हम दोनों की टांगें एक-दूसरे पर काबू पाने होड़ ले रही थीं. झाड़ियों में छिपी राजकुमारी के बारीक होठों को बेचैनी मे लहराते मेरे राजकुमार ने झटके से ठेल किले में जैसे ही प्रवेश किया वैसे ही मेरी प्यारी अपूर्वा रानी की बेहोश होती पलकों ने आह भरी सिसकी ली. उसकी वह मीठी आह उस गुठली के स्वाद की थी जो उसके होठों के बीच अटक गई थी.

’ हाय..,बहुत मोटा लग रहा है. ये तो दरवाजे पर ही एकदम टाइट हो गया है..मै कैसे संभाल पाउंगी..बहुत डर लग रहा है. धीरे-धीरे करना प्लीज़.’ -अचला बोली.

’ तुम देखो तो.., एक बार घुस जाने दो फिर कुछ नहीं होगा. लो संभालो..’- कहकर मैने जैसे ही अपने हथियार को उसकी चूत में ठेला तो वह उठती हुई चीख पडी़ – ’ हाय-हाय..मेरी चूत फट गई.’ उसने अपनी मुठ्ठी में लौडे़ को कसकर जकड़ लिया और गुस्से में चिल्लाई – ’नइ ना प्लीज़. निकाल लो इसको. मैने कहा ना कि मेरी चूत फट रही है.’

आधे धंसे लौडे़ को आंख फाडे़ वह देख रही थी. वह उसकी हथेली के घेरे में नहीं समा रहा था.अपूर्वा की आंखों से लालच की लार टपक रही थी मगर जुबान कह रही थी-’ हा..य ! कहां मेरी पतली सी नाजुक चूत और कहां तुम्हारा इत्ता मोटा लौडा़ ! मैं घुसाने नहीं दूंगी. इसे निकालो न प्लीज़..’

उसका हाथ हटाते हुए मैने कहा – ’ अच्छा बाबा.., लो.’

मुसंबी जैसे स्तनों को कसकर झिन्झोड़ते हुए मैने अपूर्वा को बिस्तर पर दबाया और बाहर निकालने की बजाय अपने लौडे़ कोअपूर्वा की चूत में बेरहम झटके से पूरा का पूरा यूं ठेला कि उसकी कमर, नितंब और जांघें चमककर उछल पड़ीं.

’ मेरी प्यारी, जिसके लिये तुम डर रही थीं वो हो गया.’

अपूर्वा की चूत-कुमारी का मूड वैसे तो पहले से ही पिघलता हुआ लार टपका रहा था लेकिन आहिस्ता-आहिस्ता और नजाकत के साथ चोदते हुए मैने और पिघलाना शुरू किया.

इतना कि वह खुद मूड में आ गई थी. वह बोली – ’ हाय.., तुमने मुझे आखिर वश में कर ही लिया.

…मेरे राजा, अब चोद डालो जितना चोदना हो. मैं भी चाहती हूं कि आज जी भर कर चुदवाऊं और तुमको पाने की तमन्ना पूरी कर लूं.’

ठीक इसी वक्त पबित्रा की रिन्ग आई. उसका संदेशा आया कि बीस-पच्चीस मिनट में पहुंच रही हूं.अपूर्वा ने सुना तो, लेकिन इस वक्त वह दूसरी दुनिया में थी.

मुझसे बोली कि राजा अब मैं पीछे नहीं हतने वाली. आए तो अभी आ जाये.आज मैं जी भर चुदवा कर ही हटूंगी. तुम्हे कसम है मेरी. तुम उसके सामने ही मुझे उठा-उठाकर, पटक-पटककर, रगड़-रगड़कर चोदना.

मौज में तन्ना-तन्नाकर ऐंठते, फूल-फूलकर लगातार मुटाते, और हर कदम के साथ लंबाते जा रहे प्यारे गुब्बारे के हर झटके को सुन्दरीअपूर्वा की आह भरी सिसकारी आनंद के स्वर्गिक संगीत में बदल रही थी. कहीं कोई रुकावट न आए इसलिये ऊपर से किन्चित नीचे खिसक अपना सिर मैने अपूर्वा की संगमरमरी छातियों पर ला टिकाया था. इधर कटिभाग से नीचे मैने अपनी देह को अपूर्वा की देह के साथ यूं अवस्थित किया था कि बिना किसी अतिरिक्त आसन के मेरा लंब बिछौने पर ठीक समान सतह पर आगे-पीछे होता उसकी गुलाबी फांक को चपाचप पूरी लंबाई का मज़ा पहुंचाता हुआ ठोंक सके. स्पीड बढ़ती गई और उसके साथ झाग में भीगते चूत और लौडे़ की हर टक्कर जोर-जोर से फक्क-फक्क, चप्प-चप्प का शोर मचाती तेज़ होती गई.

अपूर्वा तरन्नुम में थी. सारा संकोच हवा में उड़ चुका था.खुशी में वह उछ्ली पड़ रही थी -’आह, कितना मजा आ रहा है. मेरे राजा तुम कितने अच्छे हो. .चोदो राजा..चोदे जाओ…आह..तुम तो मुझे स्वर्ग में ले आये हो.’

’ लो मेरी रानी..लेती जाओ..ये लो..और जोर से…लो…ये संभालो..’ कहता मैं भीअपूर्वा की प्यास मिटा रहा था.’

दीवानगी अब काबू से बाहर हो रही थी. मैने अपूर्वा की टांगें उठाकर अपने कन्धे पर सम्भाल ली और सामने कीचड़ से सनी चूत पर एक-एक फीट की दूरी बना दनादन यूं

चोट देनी शुरू की कि अपूर्वा की चूत और मेरे लौडे़ के साथ हम दोनों की जांघें और टांगें भी चटाचट-चटाचट, छ्पाछप की चीख के साथ हाहाकार मचाने लगीं.अपूर्वा की झाड़ियों और जांघ का प्रदेश प्यार की दलदल में नहाया पड़ रहा था. उसकी पानी-पानी होती चूत के लिये मेरे भन्नाये लौड़े की चोट को संभालना मुश्किल पड़ रहा था. आंखें मूंदे वह टांगें फटकारती और हाथों से मुझे ठेलती चीख रही थी – ’ हाय-हाय बस करो..छोड़ दो प्लीज़..छोड़ दो मेरे राजा ..बस करो..हाय-हाय मर गई रे……..आह…उफ्फ़..मार डाला राजा..’

जितनी जोर की टक्कर होती उतनी ही ज्यादा जोश से मेरा लौडा़ फूला पड़ रहा था. शरीर का सारा आनंद बनकर उसमें भर आया था. अपनी अपूर्वा रानी की चूत में उस रस को खाली किये बगैर वह ह्टने वाला नहीं था. आखिरकर बिजली की सनसनी के साथ लगातार फुहारों से अपूर्वा रानी की अंधेरी सुरंग के हर सिरे को कंपाते मेरा लौडा़ अपनी प्यारी चूत में बरस पडा़.अपूर्वा की चूत सिकुड़ती-कसती-बांधती उस वक्त अपने प्यारे लौडे़ को अपने अंदर समेटे गले लगा रही थी. बारिश के उस लम्हे में अपूर्वा और मैं मदहोश होकर एक-दूसरे में यूं समा गए कि न वह अलग रही और न मै अलग रहा.रहा तो केवल वह आनंद जिसकी चाहत में हम दोनों पागल हुए जा रहे थे. समय कुछ देर के लिये हमारे बीच से गायब हो चला था.

पबित्रा के आने की आहट से तुरंत अलग होकर अच्छे बच्चों की तरह मैं और अपूर्वा अपनी-अपनी जगहों पर बैठ गये थे.

’ क्या हो रहा है ?’ कहते हुए उसने बारी से हम दोनों के चेहरों की तरफ देखा. मेरा चेहरा खून की लाली से अब भी असाधारण रूप से दमक रहा था.अपूर्वा का चेहरे पर मिहनत की थकान अब भी लिखी थी. पबित्रा ने अपूर्वा और मेरे बीच की असाधारण खामोशी को जरूर पढा़ होगा. उसने मेरी तरफ खिसियाई मुस्कुराहट के साथ देखा था. उसकी दृष्टि में जिज्ञासा भरा व्यंग था- ” अच्छा, तो ये बात ? देखती हूं तुम्हें बाद में.”

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