गाओं की चंदा की कामुकता

gav ki chanda ki kamukta sex कैसे हो आप सब?? दोस्तो मैं यानि आपका दोस्त राज शर्मा हाजिर हू एक नई कहानी गाओ की चंदा के साथ दोस्तोवैसे तो आपको मेरी सारी कहानिया पसंद आती हैं लेकिन ये कहान बहुत मस्त है आप अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर देना आपका दोस्त राज शर्मा बात तब की है जब मैं 11थ पास कर चुका था और गर्मी की च्छुतटियाँ चल रही थी… 1992 की बात है तब कंप्यूटर वागरह होते नही थे जो मैं कोई कंप्यूटर कोर्स वागरह करने लगता..

तो फुल च्छुतटियाँ चल रही थी… रूपी भाभी भैया के साथ लखनऊ शिफ्ट हो चुकी थी और मैं अपने लंड को सहलाता अकेला रह गया था… रूपी भाभी की एक बात मैने गाँठ बाँध ली थी कि किसी माल को मेरा मतलब चूत को कभी अपने हाथ से नही निकालूँगा..
कोई कोमल हाथ या चूत ही यूज़ करूँगा इसके लिए… हा तो मैं खाली था और दिन भर वीडियो गेम्स मे लगा रहता था.. तभी डॅड ने शायद चिड के ये हुकाँ सुना दिया कि मुझे 2 महीने के लिए गाओं जाना पड़ेगा और वाहा अपने पुराने घर और खेती की देखभाल करनी होगी.. क्यूकी गाओं वाले चाचा जी 2 महीने के लिए काम से मुंबई जा रहे थे.. वैसे खेती की देख भाल करने के लिए वाहा आदमी थे पर घर की देख रेख करनी थी..

मुझे गाओं जाना कभी भी पसंद नही था क्यूकी वाहा कोई चीज़ नही थी.. कच्चे मकान, कच्ची सड़के, गंदा सा लेटरीन बाथरूम जिसमे मैं घुस भी नही पाता था और मजबूरन मुझे सुबह खेतो मे जाना पड़ता था और नहाने के लिए कुएँ पे या गाओं के बाहर नदी पे जाना पड़ता था…
मन तो बिल्कुल नही था पर बाप से पंगा कोन लेता.. पॉकेट्मोनी का सवाल था.. जो गाओं मे और ज़्यादा मिलने वाली थी.. सो मेरा समान पॅक कर दिया गया… और दो दिन बाद ही मैं गाओं मे था… चाचा जी (पापा के) मुझे देख के बहुत खुश हुए.. उन्हे 2-3 दिन मे मुंबई के लिए निकलना था क्यूकी उनके बच्चे वही रहते थे और उनको पोता हुआ था.. इसलिए वो चाची जी के साथ 2 महीने के लिए वाहा जा रहे थे ताकि अपनी बहू की देखभाल कर सके.. उसका बड़ा ऑपरेशन हुआ था..

गाओं मे मेरा पहला ही दिन बड़ा बर्बाद सा रहा.. थकान के कारण मे 9 बजे तक सोता रहा.. उठ के लेटरीन के लिए गया तो देखा कच्ची लेटरीन पूरी भरी पड़ी थी और जमादार 11 बजे से पहले आने वाला नही था.. मेरी तो वाट लग गयी करू तो क्या करू दिन के इस समय तो मैं खुले मे भी नही जा सकता था.. किसी तरह 11 बजे तक का वेट किया जमादार आ के गया तब मैं फ्रेश हो पाया. अब नहाने की प्राब्लम थी.. मुझसे अंडरवेर वागरह पहन के नहाया नही जाता था और अगर अंगोछा (लाइट टवल) पहन के नहाता तो मुझे मालूम था कि मेरा लंड सबको दिख जाना था क्यूकी वाहा औरतें भी अक्सर कुएँ पे ही नहा लेती थी.. वाहा एक खास बात ज़रूर थी.. औरतें बडो का बहुत सम्मान करती थी.. सबके सिर पर हर समय पल्लू रहता था गर्देन तक उसके बाद चाहे ब्लाउस के नीचे चोली पहनी हो या नही कोई फ़र्क नही पड़ता.. मैं कुएँ पे गया पर वाहा दो औरतों को देखा तो वापस आ गया.

चाचा जी बोले खेत पे चले जाओ ट्यूबिवेल मे नहा लेना.. मैं ट्यूबिवेल पे गया वाहा उस समय कोई नही था. मैने ट्यूबिवेल ऑन किया और सारे कपड़े उतार के होदि मे कूद पड़ा.. पर ट्यूबिवेल क़ी आवाज़ सुनके कुछ लोग वाहा और चले आए.. वैसे उन्होने कुछ कहा तो नही पर उनके सामने नंगा नहाते हुए मुझे बहुत शरम आई.. मैने अंडरवेर मुंडेर पे से उठा के पानी की होद मे ही पहना और घर चला आया फिर कभी वाहा ना नहाने का सोच के… शाम को गाओं मे घूमते फिरते मेरी दोस्ती कई लड़के लड़कियो से हो गयी.. जो सब वाहा ही रहते थे और गये-भेँसो को चराते या खेत पे काम करते थे.. ज़्यादातर लड़के खेतो पे काम करते और लड़कियाँ पशुओं को चराने ले जाया करती थी… 2-4 बड़ी क्यूट सी लड़किया भी थी वहाँ जो मुझे शहरी होने की वजह से घूर घूर के देख रही थी..

खेर इस दिन से सबक ले के मैं अगले दिन सुबह सवेरे ही डिब्बे मे पानी ले के खेत की तरफ चल दिया… पर ये क्या जिधर भी मैं जाता वाहा पहले से ही कोई ना कोई बैठा मिल जाता.. खेर एक जगह खाली और सॉफ देख के मैं पेंट उतार के बैठ गया.. तभी वाहा 2 औरतें आ गयी.. “अरे ये तो वही बबुआ है जो शहर से आया है..” कहते हुए वो मेरे करीब ही बैठ गयी अपने पेटीकोत उठा के.. पल्लू उनके मूह पे था तो मेरे उनको पहचानने का सवाल ही नही था.. और हालत ऐसी थी कि मैं वाहा से उठ के भी नही जा सकता था.. मेरी तो उपेर की उपेर और नीचे की नीचे रह गयी थी.. जबकि वो मज़े से बातें भी करती जा रही थी और हागती भी जा रही थी.. वो मेरे बराबर से बैठी थी तो मैं उनकी तरफ देख भी नही पा
रहा था.. हिम्मत करके मैने पुछा आपको शरम नही आती ऐसे लेटरीन करते हुए..

उनमे से एक बोली..” नही बबुआ, शरम कैसी ये काम तो सबको करना ही होता है और गाओं मे सब सवेरे ही निकालते हैं तो रोज़ कोई ना कोई मिल ही जाता है.इसमे शरमाना कैसा.. तुम्हे शरम आ रही है क्या??” मैं कुछ नही बोला..उन्होने खुद को धोया और चली गयी… फिर मैं भी फ्रेश हो के घर आ गया…अब बारी थी नहाने की.. मैने सोच लिया था कि मैं नदी पे जाया करूँगा..वाहा ठीक रहेगा और मेरी स्विम्मिंग की प्रॅक्टीस भी होती रहा करेगी..अपने नहाने का समय मैने 12 बजे दोपहर का रखा जिससे किसी के वाहा होने की कोई पॉसिबिलिटी ना हो.. तो दोपहर मे मैं नदी पे पहुचा.. मेरी उम्मीद के मुताबिक वाहा कोई नही

था.. मैने सारे कपड़े उतार के एक बड़े पत्थर पे रख के छ्होटे पत्थर से दबा दिए.. और नदी मे कूद पड़ा.. मुझे आदत है मैं पानी के नीचे 4-5
मिनिट्स तक आसानी से रह लेता हू.. मैं तैरता हुआ काफ़ी दूर तक चला गया और फिर पानी के नीचे नीचे ही वाहा वापस आ गया.. पानी से मूह बाहर निकाल के कपड़ो की तरफ देखा तो होश उड़ गये वाहा कुछ पशु और एक लड़की खड़ी थी.. मैने पहचाना.. ये तो चंदा थी.. उमर 15 या 16 साल के करीब.. अच्छा सॉफ रंग.. थोड़े थोड़े फूले हुए गाल, नाज़ुक गुलाबी होंठ, पतली लंबी गर्देन और सीने पे ब्लाउस के नीचे 2 मोटे मोटे पोर छ्होटे से फूल. मेरा दिल धक रह गया..तब तक उसकी नज़र भी मुझ पे पड़ गयी.. “अच्छा वीनू.. तुम नहा रहे हो यहा, मैं भी कपड़े देख के सोच रही थी कि किसके कपड़े हो सकते हैं.. ऐसी चड्डी बनियान तो गाओं मे कोई पहनता ही नही है.. इलास्टिक वाली.. और ना ही यहा कोई आता है नहाने, सब कुएँ पे ही नहाते हैं. चलो अब बाहर आओ, बहुत नहा चुके..

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मुझे अपने जनवरो को नहलाना है..” “उफ्फ फस गया” मैने सोचा. फिर कहा मैं अभी कुछ देर और तैरुन्गा. तुझे जानवर नहलाने हैं तो नहला ले.. मैं कोई पूरी नदी थोड़े ही घेरे खड़ा हू… धात्ट, वो बोली… पूरी नदी पर यही एक जगह है जहाँ थोड़ी आड़ है.. बाकी सब खुला हुआ है.. तो क्या तेरे जनवरो को खुले मे नहाते हुए शरम आती है??? मैने पूछा. अरे घोचु.. जानवरो को नही पर मुझे तो आएगी.. वो बोली तुझे??? तुझे क्यू आएगी शरम?? ओये घोचु इनको नहलाने मे मैं भी तो भिगुंगी और मेरे पास दूसरे कपड़े भी नही हैं.. ओह्ह.. अब मैं समझा.. मैं मुस्कुराया.. उसे ऐसे देखने लगा जैसे उसको बिना कपड़ो के ही देख रहा हू. क्या देख रहे हो?? अब समझ गये हो तो चलो बाहर निकलो और फूटो यहा से… तू यहा रोज़ आती है क्या?? मैने पुच्छ लिया. हां, आती तो रोज़ ही हू आज थोड़ी देर हो गयी.. ] कितनी देर हो गयी ??

यही कोई आधा घंटा..!! ओह्ह तो ये भी रोज़ 12 बजे ही आती है.. पटाना पड़ेगा इसे…मैने सोचा. अब जाओ ना..क्या सोच रहे हो??? उसकी आवाज़ से मेरी सोच टूटी… जाता हू चंदा रानी.. पर पहले तू जा और 2 मिनट के बाद वापस आ.. क्यू???? मेरे सामने शरम आती है क्या बाहर आते हुए?
मैं मुस्कुराया, “मुझे तो नही आती पर मैं बाहर आ गया तेरे सामने तो तुझे शरम ज़रूर आएगी..” समझी?? अरे!! तो क्या अंगोछा भी नही बाँधा तुमने??? नही मैं अंगोछा नही पहनता.. अंडरवेर के उपेर पाजामा पहनता हू… क्या?? क्या के उपेर पाजामा पहनते हो?? धात्ट तेरे की… उधर देख पत्थर पे.. क्या रखा है… उसने टीशर्ट उठाई ये तो एंगलिस बनियान है.. पाजामा उठाया., ये पाजामा है फिर अंडरवेर उठाया.. ये तो इंग्लीश चड्डी है..
इंग्लीश चड्डी नही अंडरवेर है.. अब रख दे और जा, मेरे पास इनके अलावा और कोई कपड़ा नही है.. तोलिया भी नही लाया हू..अब वो शरमाई और पत्थर के पीछे हो गयी.. मैने 1 मिनट तक देखा.. वो नज़र नही आई तो मैं बाहर आ गया..

सूरज बिल्कुल सिर पे था पर नदी किनारे की हवा
शरीर को बहुत अच्छी लग रही थी.. मैने पत्थर के नीचे आके अपना अंडरवेर उठाना चाहा तभी मुझे उपेर से एक परछाई दिखाई दी.. मैं चोका पर फिर समझ गया कि वो चंदा पत्थर के उपेर से मुझे नंगा देखने के लिए झाँक रही है.. मैने भी मज़ा लेने का सोचा.. मेरा लंड उठान पे था… मैने सीधा खड़ा हो के हल्के से उसे सहलाया.. वो और तन्तनाने लगा…मैने पूरे शरीर पे इस तरह हाथ फेरा जैसे पानी सूखा रहा हू… फिर हाथो से ही बाल झाडे…अपने लंड को पकड़ के 2-3 झटके दिए जैसे पानी हटा रहा हू और फिर अंडरवेर उठा के पहनने लगा. फिर टी-शर्ट और पाजामा पहन के जैसे ही मैने आवज़ दी. चंदा.. आ जा मैं जा रहा हू. वो फॉरन सामने आ गयी.. उसकी छातियाँ बड़ी तेज़ी से उपेर नीचे हो रही थी और आखें लाल हो रही थी..
मैने मज़ाक किया, कही से दौड़ की आ रही है क्या??? वो कुछ नही बोली और मुझे घूरती रही…

मैने भी और कुछ नही कहा और गाओं की तरफ चल दिया… थोड़ी देर तक मुझे उसकी नज़रें अपनी पीठ पे ही महसूस होती रही.. अचानक मैं वापस लौट पड़ा.. मंन नही मान रहा था… दिल ने कहा अभी कुछ करना नही है.. गाओं की लड़की है भड़क सकती है.. पर उसको देखने का मंन कर रहा था… हमारे नहाने की जगह से थोड़ा पहले ही एक पेड़ (ट्री) था. मैं चुपके से उसके पीछे आया और धीरे से उसपे चढ़ गया. और खुद को पत्तो मे छिपाते हुए आगे वाली डाल पे जा के बैठ गया.. पेड़ पे चढ़ना मैं पहले से जानता था.. गाओं पहले भी आ चुक्का था और स्कूल मे भी अक्सर चढ़ जाया करता था जामुन के पेड़ पे. अब मैं यहा से उसे अच्छी तरह देख सकता था.. मुझे 10 मिनिट लगे होंगे जाने और वापस यहा पहुचने मे.. चंदा अभी वही खड़ी थी… पर इस समय वो एक धोती को खुद पे लपेट रही थी.. उसके पहने हुए सारे कपड़े नीचे पत्थर पे रखे थे..वो
अपनी कमर ढक चुकी थी पर उसके योवन उभार (बूब्स) देख के मेरा लंड फड़फादाने लगा..

फिर वो अपनी गाये भेँसो को पानी मे उतारने लगी.. और लास्ट मे खुद भी पानी मे उतर गयी.. ज़रा ही देर बाद वो एक भेंस की पीठ पे थी.. और उसे यहा वाहा रगड़ रही थी.. फिर दूसरी फिर तीसरी.. उसकी धोती गीली हो चुकी थी और उसके शरीर से बिल्कुल चिपकी हुई थी.. पूरा शरीर सॉफ दिख रहा था..तभी उसने एक गाय की
पीठ से पानी मे छलाँग लगाई तो उसकी धोती उपेर हो गयी और ज़रा सी देर को उसकी जाँघो के दर्शन हुए… “इनको तो पा के ही रहना है, मैने मन मे सोचा” वो करीब 1 घंटे तक वाहा नहाती नहलाती रही फिर वो उन सब जनवरो को बाहर निकाल के खुद भी पानी से बाहर आ गयी.. अफ..क्या लग रही थी वो इस वक़्त… आग… मैं जला जा रहा था.. इतने दिनो से संभाल के रखा मेरा कुवरापन बाँध तोड़ के बहने पे उतारू था…मैं पाजामा के उपेर से ही लंड को सहला रहा था कि शांत हो जा यार..

पर वो मेरी कब सुनने वाला था…उधर चंदा ने अपनी धोती इधर उधर देखते हुए उतार दी.. वो पूरी नंगी खड़ी थी.. उसके चेहरे पे प्यारी सी मुस्कान थी.. उसने जैसे मेरी नकल करते हुए अपनी कमर को झटका दिया पानी सुखाने के लिए.. फिर अपने पूरे बदन पे हाथ फेरा और लास्ट मे एक हाथ को चूत पे फिराते हुए पानी सॉफ किया.. मैं समझ गया कि इसने मुझे पूरा देखा था..
फिर वो अपनी चड्डी पहनने लगी.. उसके बाद उसने लोकल ब्रा (कपड़े की बनाई हुई) पहनी और फिर ब्लाउस और पेटिकोट पहन लिया. अब उसने अपनी धोती को झाड़ा और वही सुखाने लगी.. ज़रा देर मे ही धोती सूख गयी तो वो उसे पहनने लगी.. “शो समाप्त” मैने सोचा और पेड़ से उतर के गाओं की तरफ चल दिया… जैसे तैसे वो दिन गुज़रा… शाम को मैं फिर गाओं घूमने निकला तो मेरी आखें चंदा कोही ढूँढ रही थी. फिर वो दिखी.. अपनी सहेलियो के साथ लंगड़ी खेल रही थी. और मुझे ही देख रही थी.. मैं पहुच गया..

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मैं भी खेलु?? तुमको आता है लंगड़ी खेलना..?? हां! मैने कहा. पर ये तो लड़कियो का खेल है.. तो क्या हुआ..?? खेल तो खेल है कोई भी खेल सकता है.. मैं थोड़ी देर खेला फिर लड़को के साथ क्रिकेट खेलने चला गया… अब तक मेरे दिमाग़ ने कई सारी प्लॅनिंग कर ली थी.. काम कल से शुरू होना था.. और कल ही चाचा जी और चाची जी को भी मुंबई के लिए निकलना था… वो लोग अगले दिन सुबह ही निकल गये… अब मैं बिल्कुल आज़ाद था.. पड़ोस मे से खाना आना था.. वाहा सब सुबह 10-11 बजे तक खाना खा लेते थे तो मैने कह दिया था कि मेरा खाना मेरे कमरे मे रख दिया कीजिए मैं बाद मे खा लिया करूँगा.. क्यूकी मेरी आदत 3 बजे खाने की है और रात का खाना 10 बजे. जबकि वो लोग 7 बजे तक खा लेते थे… अगले दिन मैं नहाने के लिए 12:15 पर पहुचा… मैने पहले पेड़ से देख लिया…

चंदा वही थी और उसकी गायें-भेंसें भी..! मैने इधर उधर देखा.. दूर दूर तक कोई नही था.. मैने अपने सारे कपड़े उतार के वही पत्थर से दबा दिए और पेड़ की साइड से ही नही मे सरक गया… मैने के गहरी साँस ली और पानी के अंदर ही अंदर तैरता हुआ चंदा की तरफ बढ़ चला.. पास पहुच के देखा पानी के बहाव से उसकी धोती उपेर को उठी हुई थी और उसकी मुलायम चूत बिल्कुल सॉफ दिख रही थी.. वो गर्दन भर पानी मे थी और
उसके हाथ एक गाय की बॉडी पे इधर उधर चल रहे थे उसे नहलाने के लिए… उसके बूब्स गाय की बॉडी से रगड़ खा रहे थे.. मैने अचानक ही अपना हाथ उसके बूब्स और गाय की बॉडी के बीच मे कर दिया. उसके बूब्स मेरे हाथ पर रगड़ गये.. पर उसे कुछ लगा तो उसने हाथ अपने बूब्स पे फेर के देखा.. कुछ ना पा कर वो फिर दूसरी गाय को नहलाने लगी.. उसकी धोती पूरी की पूरी उपेर हो चुकी थी और वो बूब्स के निचले हिस्से तक बिल्कुल नंगी दिख रही थी क्यूकी वही पे उसने धोती मे गाँठ लगा रखी थी…

मैने थोड़ी दूर जा कर फेस पानी से बाहर करके सांस भरी और फिर पानी मे आ गया… मुझे शरारत सूझ रही थी और मेरा लंड एक दम लोहे की रोड की तरह तना हुआ था… मैं चुपके से तैरते हुए उस गाय के नीचे पहुचा जिसे वो नहला रही थी… उसकी पूछ पकड़ी और उसकी चूत पे हाथ घुमाने लगा… वो कुछ ठहर गयी.. फिर उसने हाथ अपनी चूत की तरफ किया. मैने पूछ उसके हाथ से लगा दी जिसे उसने उपेर खीच लिया.. फिर उसकी आवाज़ आई.. तू गुदगुदा रही थी मुझे… फिर उसका हाथ पूछ के साथ नीचे आया और वो खुद ही पूछ को अपनी चूत पे फिरने लगी.. उसकी चूत की दरार बड़ी प्यारी लग रही थी.. चूत का दाना तो बड़ा ही प्यारा लग रहा था.. मैने हल्के से उंगली उसपे फेर दी…. अब मुझसे सहन नही हो रहा था.. पर मैं उसका रेप भी नही करना चाह रहा था.. मैने अपने तने हुए लंड को

टारगेट पे लिया और एक ठोकर उसकी चूत पे मार दी.. वो चोन्कि..!! उसने अपनी चूत पे हाथ फिराया… जैसे ही उसने हाथ हटाया मैने फिर से उसकी चूत पे अपने लंड की एक ठोकर और मार दी.. अब की बार वो थोड़ा उपेर हुई फिर उसने सिर पानी मे डाल के देखना चाहा.. मैं जल्दी से एक भेंस के पीछे हो गया और मूह बाहर निकाल के साँस फिर से भर ली… तब तक वो नीचे देख के वापस उपेर हो गयी थी.. उसने शायद कोई मच्चली समझा था जो उसकी चूत से टकरा गयी थी…. मैने फिर से निशाना बाँधा और एक टक्कर फिर से उसकी चूत पे दी… अब वो कुछ चोकन्नि सी हो गयी.. उसने हाथ नीचे पानी मे कर लिए.. और अपनी जाँघो पे फिरने लगी… मैं कहा मानने वाला था मैने फिर से चूत का निशाना लिया और
फिर एक ठोकर मारी.. पर इस बार उसके हाथ जल्दी से आए और मेरे लंड पे रगड़ते चले गये… मैं समझ गया कि वो मेरा लंड पकड़ना चाहती है… मैं ज़रा देर रुक गया पर वो अपने हाथ अपनी जाँघो और चूत पे फिराती रही..

फिर उसने हाथ अपने चूतड़ की तरफ किए तभी मैने फिर से एक और टक्कर मारनी चाही..पर इस बार उसकी चूत से मेरा लंड छुते ही उसने लपक के मेरा लंड पकड़ लिया… पर मैं जैसे ही पीछे हटा उसके हाथ से लंड निकल गया… अब मुझसे और नही रहा गया… मैं पानी से बाहर निकल के उसके सामने आ गया.. चंदा बहुत ज़ोर से चौंकी.. अरे वीनू.. तू कब आया.. मैने कहा मैं तो बहुत देर से हू.. तू ही बाद मे यहा आई है… वो बोली नही मैं यहा पहले से हू.. तेरे कपड़े भी यहा नही थे.. मैने कहा मैने आज कपड़े पेड़ के पास रखे थे और वही से नदी मे कूदा था.. पर तू क्या कर रही है..??? देख नही रहा, जानवरो को नहला रही हूँ…!
देख तो रहा हू..पर काफ़ी देर से तू पानी मे उच्छल सी रही है.. नेलहा तो रही नही है… हां.. वो क्या है कोई मेरे पेरो मे काट रहा था..
कौन?? पता नही, कोई मच्चली होगी शायद.. मैने उसे पकड़ा भी पर वो हाथ से निकल गयी… कैसी मच्चली थी..??
मालूम नही पर इतने ठंडे पानी मे भी गरम थी.. तभी तो छूट गयी… ओहो.. चंदा तूने मेरी मच्चली पकड़ ली थी…!

तेरी मच्चली..??? तूने यहा कौन सी मच्चली पाल ली है..??? वो भी पूरी नदी मे..?? तुझे कैसे पता कि वो तेरी मच्चली थी..??
मुझे पता है चंदा रानी..!!! मेरी मच्चली हमेशा मेरे साथ ही रहती है… मेरा कहा मानती है.. मेरे साथ ही घूमती फिरती है.. समझी..!!!??
नही समझी…! ऐसा कैसे हो सकता है कि कोई मच्चली को हमेशा अपने साथ ले के घूम सके.. हो सकता है क्यू नही हो सकता..? मैं अभी तुझे अपनी मच्चली दिखा सकता हू… अच्छा… दिखा..!!! डरेगी तो नही…??? डर… मैं किसी से नही डरती… फिर इस नदी मे शार्क तो आने से रही???
मेरी मच्चली शार्क से भी भयानक है…!! सोच ले.. चंदा… तू पकड़ नही पाएगी.,. उसके मूह पे गुस्से के भाव आ गये… तू झूठ बोलता है..

तेरे पास कोई मच्चली है ही नही.. मुझे बनाता है तू.. चल ठीक है.. मैं तुझे अपनी मच्चली पकड़वा ही देता हू…. ला अपना हाथ दे…
उसने झट से अपना हाथ मेरी ओर बढ़ा दिया…मैने उसका पंजा थामा… पानी के नीचे लिया और अपने लंड को उसके हाथ मे थमा दिया..उसने फॉरन सख़्त पकड़ बनाई.. पर फिर वो सब समझ गयी… दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज
शर्मा
क्रमशः.



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