चचेरी और फुफेरी बहन की सील तोड़ी 2

गतान्क से आगे………….. चचेरी और फुफेरी बहन की सील तोड़ी

मेरे दिमाग में घंटी बजी !

तभी डॉली जल्दी से उठ कर बाथरूम के अन्दर चली गई और दरवाजा बंद कर लिया, तो मैंने ललिता से मौका देख कर पूछा तो उसने मुस्कराते हुए बताया कि डॉली को पीरियड आ गया, चूँकि उसको डेट याद नहीं रही, तो पैड वगैरह नहीं थे, इसी लिए हम लोग अपनी क्लास टीचर से जल्दी छुट्टी लेकर घर आ गए।

अब बात मेरे समझ में आई।

मुझे यह बताने के बाद ललिता अन्दर कमरे में गई और अपनी एक ड्रेस और चुनमूनियाँ में पीरियड के समय लगाने वाला पैड (मुझे दिखाते हुए) लेकर बाथरूम के बाहर लेकर दरवाजे पर दस्तक दी। जिसको कि डॉली ने हाथ निकाल कर ले लिया। मैंने तुरंत अपना दिमाग लगाया और ललिता को वापस आते ही अपनी बाँहों में भर लिया और उसके प्यारे चेहरे पर अनगिनत चुम्मी कर डालीं। ललिता ने भी उसी तरह से उत्तर दिया। फिर मैंने उसकी आँखों में देखा और मुस्कराने लगा, शायद उसको मेरी आँखों की भाषा समझ आ गई थी।

वो प्यार से मेरी आँखों में देखती हुई बोली- क्या बहुत मन है.. डॉली की सील तोड़ने का प्रियम !

मैंने उसको बहुत जोर से अपने से चिपका लिया और कहा- हाँ जान.. बहुत ज्यादा !

उसने कहा तो कुछ नहीं, बस वैसे ही चिपके हुए मेरे बाल सहलाती रही, फिर बोली- अभी तुम जाओ, देखती हूँ.. क्या हो सकता है !

शाम को फूफा जी डॉली को लेने आए, लेकिन फिर जो भी बात हुई हो उनकी ललिता और डॉली से, वो अकेले ही वापस लौट गए थे।

दूसरे दिन सुबह ललिता के स्कूल जाने के टाइम मैं बालकनी में गया तो देखा कि ललिता अकेले ही स्कूल जा रही थी, डॉली उसको गेट तक छोड़ने गई।

उसने ऊपर मेरी तरफ देखा और मुस्कराकर मुझे नमस्ते किया। मैंने भी उसको नमस्ते का जवाब दिया, मुझे लगा शायद ललिता ने जानबूझ कर मुझे मौका देने के लिए ऐसा किया है और मुझे इसका फायदा उठाना चाहिए।

लेकिन अभी तो चाचा जी भी घर में थे और मेरी तरफ मेरी माता जी भी घर में ही थीं।

मैं थोड़ी देर बाद अपने चाचा की तरफ गया तो देखा कि चाचा आफिस जाने के लिए तैयार हो रहे थे और डॉली सोफे पर बैठ कर टीवी देख रही थी।

मुझे देख चाचा जी बोले- राज, आज डॉली की तबियत ठीक नहीं है, यह घर पर ही रहेगी, तुम इसका ध्यान रखना !

मैंने कहा- जरूर !

थोड़ी देर बाद चाचा जी चले गए, मैं भी वहीं डॉली के साथ सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा।

फिर मैंने पूछा- डॉली, अब तबियत कैसी है, डाक्टर के यहाँ तो नहीं चलना?

उसने कहा- नहीं भैया, मैं ठीक हूँ.. बस थोड़ा आराम कर लूँ, सब ठीक हो जाएगा।

खैर… हम लोग टीवी देखते रहे, फिर थोड़ी देर बाद मैं खड़ा हुआ और कहा- डॉली मुझे कुछ काम है, मैं अभी आता हूँ !

मैं वहाँ से निकल आया, लेकिन दोस्तों मैंने अपना मोबाइल फ़ोन जानबूझ कर वहीं छोड़ दिया।

यहाँ मैं बता दूँ कि मैं 2 मोबाइल रखता हूँ, और मेरे दूसरे मोबाइल में बहुत सारी चुदाई की मूवी और फोटो, गंदे-जोक्स वगैरह स्टोर रहते हैं।

मैंने अपना वही फ़ोन डॉली के पास छोड़ा था। मैं जानबूझ कर बहुत देर तक उधर नहीं गया और आज तो वैसे भी मेरी माता जी घर पर ही थीं।

मैं अपने कमरे में लेटा टीवी देख रहा था, लेकिन मेरा दिमाग डॉली की तरफ ही था। पता नहीं उसने मेरा फ़ोन देखा भी होगा या नहीं।

करीब 2 घंटे के बाद मेरे कमरे में हल्की सी आहट हुई मैंने पलट कर देखा तो डॉली थी।

वो तुरंत बोली- भैया आपका फ़ोन, आप शायद भूल आए थे !

मैंने उसके हाथ से फ़ोन ले लिया, उसके चहरे पर हल्की सी मुस्कान थी

मैं समझ गया कि इसने खूब अच्छी तरह से मेरा फ़ोन देखा है।

मैं तो चाहता भी यहीं था, उसके बाद वो मुड़ी और मेरी माँ के कमरे में चली गई।

थोड़ी देर बाद ललिता भी स्कूल से वापस आ गई, मौका मिलते ही ललिता ने मुझसे पूछा- कुछ हुआ?

मैंने कहा- नहीं !

और उसको पूरी बात बता दी, सुनने के बाद वो बोली- जो करना है कल कर लो, क्योंकि कल के बाद डॉली अपने घर चली जाएगी !

अब मैं अभी से कल की प्लानिंग में लग गया क्योंकि कल तो मुझे डॉली की कुंवारी चुनमूनियाँ की सील किसी भी हाल में तोड़नी होगी।

दूसरे दिन सुबह, ललिता फिर अकेले ही स्कूल जा रही थी, मेरी नजर मिलते ही उसने मुझे इशारे से फिर याद दिला दिया कि आज शाम को डॉली अपने घर चली जाएगी।

थोड़ी देर बाद मैं अपनी माँ के कमरे की तरफ गया तो माँ ने बताया कि अभी मेरे मामा जी, जो घर के पास में ही रहते हैं, उनकी तबियत ठीक नहीं हैं और वे उनको देखने जायेंगी।

मैंने कहा- ठीक है और इधर मेरे दिमाग ने योजना बनाना शुरू कर दिया क्योंकि अब चाचा के जाने के बाद पूरे घर में सिर्फ मैं और डॉली ही बचेंगे।

करीब नौ बजे मेरी माँ, मामा के यहाँ गईं, मैं उनको गेट तक भेज कर वापस सीधे चाचा के पोर्शन में गया, चाचा ऑफिस जाने के लिए बिल्कुल तैयार थे।

डॉली शायद बाथरूम में थी। मैंने चाचा से बात करते हुए धीरे से अपना मोबाइल मेज पर जहाँ डॉली की एक किताब रखी थी, उसी के बगल में रख दिया।

चाचा ने डॉली को आवाज दी- मैं ऑफिस जा रहा हूँ !

मैं भी उनके साथ ही बाहर निकल आया, उनके जाने के बाद गेट बंद करके मैं सीधा अपने कमरे में चला गया।

मेरे पास कुछ चुदाई वाली फिल्मों की सीडी थीं, उनमें से एक मैंने सीडी प्लेयर में लगा कर प्ले कर दिया और सिर्फ चड्डी और बनियान पहन कर सोफे पर बैठ कर चुदाई वाली फिल्म का आनन्द उठाने लगा।

मैं देख तो रहा था टीवी, लेकिन मेरे दिमाग में सिर्फ डॉली का बदन ही घूम रहा था।

मैं सोच रहा था कि पता नहीं आज डॉली मेरे मोबाईल को देखेगी या नहीं !

यही सब सोचते हुए करीब एक घंटा गुजर गया। इधर अन्जलि को चोदने के ख्याल से ही मेरा लंड बिल्कुल सीधा खड़ा हो गया था। मैं अपनी चड्डी के अंदर हाथ डाल कर उसको सहला रहा था, तभी मुझे दरवाजे पर कुछ आहट महसूस हुई।

मैं समझ गया कि डॉली ही होगी, लेकिन मैं वैसा ही सोफे में पसरा रहा, टीवी में इस समय भयकंर चुदाई का सीन चल रहा था।

मेरे कमरे में ड्रेसिंग टेबल इस तरह सेट है कि उसमें कमरे के दरवाजे तक का व्यू आता है।

मैंने उसमें देखा कि डॉली की नजर टीवी पर पड़ गई थी और वो दरवाजे पर ही रुक गई, पर उसकी नजरें अभी भी टीवी पर ही थीं। मैंने जानबूझ कर अपनी चड्डी नीचे खिसका दी, अब मेरा नंगा लंड मेरे हाथ में था। मैं उसको सहला रहा था, मेरे हिलने से शायद डॉली का ध्यान मेरी तरफ गया और मुझे लगा कि वो मुड़ कर जाने वाली है।

मैंने अपना सर घुमा कर दरवाजे की ओर देखा और तुरंत उसी पोजीशन में खड़ा हो गया।

डॉली वापस जाने के लिए मुड़ चुकी थी। मैंने तुरंत उसको आवाज दी, वो मुड़ी मेरी तरफ देखा और जब उसने मुझे उसी हाल में (मेरी चड्डी नीचे खिसकी हुई थी और मेरा लंड खड़ा था) पाया तो मैंने देखा उसका चेहरा बिल्कुल लाल हो रहा था।

उसने हल्की सी मुस्कान दी और बिना रुके वापस चाचा जी के पोर्शन की तरफ भागती हुई चली गई।

मैंने एक-दो मिनट सोचा और फिर एक तौलिया लपेट कर उधर गया।

धीरे से अन्दर गया तो देखा कि डॉली ललिता के बेड में उलटी लेटी थी, उसकी पीठ मेरी तरफ थी और वो मेरे मोबाइल में शायद कुछ कर रही थी।

मैंने तुरंत निर्णय लिया, मैंने अपनी तौलिया हटाई और कूद कर डॉली के पास बेड पर पहुँच गया। मेरी नजर सीधे मोबाइल में गई, उसमें एक चुदाई वाली फिल्म चल रही थी।

मेरे इस तरह पहुँचने से डॉली एकदम चौंक गई। इसके पहले कि वो मोबाइल बंद करती, मैंने उसके हाथ से मोबाइल ले लिया। वो सब इतना अप्रत्याशित था कि डॉली एकदम स्तब्ध रह गई।

मैंने उसको गौर से देखा तो उसने अपनी नजरें नीची कर लीं।

आज शायद उसने अपने बालों में शैम्पू किया था क्योंकि उसके बाल खुले थे जो उसकी खूबसूरती को और बढ़ा रहे थे।

आज उसने ललिता का गुलाबी स्कर्ट और टॉप पहना था।

शायद वो थोड़ी देर पहले ही नहा कर आई थी, वो बहुत ही खूबसूरत लग रही थी।

मैंने सीधे उससे पूछ लिया- कैसी लगी पिक्चर?

वो कुछ नहीं बोली, मैंने थोड़ी हिम्मत कर उसको ठोढ़ी को हाथ से ऊपर उठाया और फिर पूछा- डॉली तुमको यह मोबाइल वाली पिक्चर कैसी लगी?

अबकी वो थोड़ा मुस्कराई और उठ कर भागने की कोशिश करने लगी।

मैंने तुरंत उसका हाथ पकड़ कर बेड में गिरा दिया और ताबड़-तोड़ चुम्बन करना शुरू कर दिया।

इसके पहले कि वो कुछ समझ पाती, मैंने उसके ऊपर छा गया और बहुत सारे चुम्बन कर दिए।

अब वो छटपटाने लगी, पहली बार उसने बुरा सा मुँह बनाते हुए कहा- छोड़िए मुझे !

मैंने कहा- क्यों केवल मोबाइल में चुदाई देखनी है?

कहने के साथ ही मैंने अपना हाथ नीचे स्कर्ट के अन्दर डाल दिया, उसने चड्डी नहीं पहनी थी, इसलिए मेरा हाथ सीधे चुनमूनियाँ पर ही पहुँच गया।

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डॉली बहुत जोर से चिहुंक गई, उसने पूरा जोर लगा कर मुझे अपने ऊपर से हटाना चाहा, लेकिन मैंने अपने हाथ से उसकी चुनमूनियाँ को सहलाना शुरू कर दिया और दूसरे हाथ से उसके हाथों को संभालता रहा।

डॉली की चुनमूनियाँ पर एक भी बाल नहीं था, बहुत ही हल्के-हल्के रोयें थे, ऐसा मुझे अपने हाथ से अहसास हुआ।

खैर.. अब उसने अपने पैरों को क्रॉस करना चाहा, तो मैंने उसके दोनों पैरों के बीच अपना एक पैर डाल दिया और उसका एक पैर दबा भी लिया। अब मेरी उंगलियां उसकी चुनमूनियाँ की कसी हुई फांकों को अलग करने में व्यस्त हो गईं।

मेरी उंगलियाँ उसकी कसी हुई चुनमूनियाँ की फांकों को अलग नहीं कर पाईं, तो मैंने उसकी चुनमूनियाँ की पतली सी दरार में अपनी उंगली से रगड़ना शुरू कर दिया। इस दौरान मैं उसके भग्न को भी रगड़ रहा था।

मेरी आँखें डॉली के चेहरे को देख रही थीं, वो शायद शर्म की वजह से अपनी आँखें बंद किए थी। पर मुझे उसके चेहरे पर गुस्सा नहीं दिखा तो मेरी हिम्मत बढ़ गई।

अब मैंने डॉली के होंठों पर अपने होंठ लगा दिए, डॉली ने अपने होंठों को कस कर बंद कर लिए। फिर भी मैं अपनी जीभ उसके होंठों पर घुमाने लगा, इधर मेरी उँगलियाँ उसकी कुंवारी चुनमूनियाँ में हलचल मचा रही थीं शायद इस वजह से वो थोड़ी ढीली पड़ गई थी।

अब मैंने अपने दूसरे हाथ को धीरे से उसके टॉप के अन्दर खिसका दिया। डॉली की चूचियाँ एक मध्यम आकार के अमरुद के बराबर की थीं। मेरी उँगलियों ने जैसे ही डॉली की चूचियों को छुआ, वो फ़िर एकदम से चिहुंक गई, पर मेरी पकड़ बहुत मजबूत थी।

अब मैंने डॉली की चूची को सहलाना शुरू किया।

मैंने देखा कि डॉली के चेहरे के भाव बड़ी जल्दी से बदल रहे थे, शायद उसके बदन को पहली बार किसी मर्द ने इस तरह छुआ था। अब मैंने अपना हाथ दूसरी चूची को सहलाने में लगाया।

उधर एक हाथ अभी भी उसकी चुनमूनियाँ को सहला रहा था।

अचानक डॉली का बदन ऐंठने लगा, उसकी साँसें जोर-जोर से चलने लगीं। तभी मेरा हाथ जो कि डॉली की चुनमूनियाँ में था, कुछ गीला-गीला सा लगा, मैं समझ गया कि डॉली झड़ गई है।

अब उसका बदन बिल्कुल ढीला हो गया था, उसने जरा सा होंठ खोला शायद गहरी सांस लेने के लिए।

मैंने तुरंत अपनी जीभ उसके होंठों के अन्दर घुसेड़ दी, अब उसने आँखें खोल कर मेरी तरफ देखा। वो शायद कुछ कहना चाह रही थी। मैंने अपनी जीभ उसके मुँह से निकाल ली।

वो बोली- भैया.. अब मुझे छोड़ दीजिए, मुझे सांस लेने में दिक्कत हो रही है।

मैंने कहा- डॉली, अभी तो मैंने कुछ किया भी नहीं, ऐसे-कैसे छोड़ दूँ?

वो फिर बोली- मैं ठीक से सांस नहीं ले पा रही हूँ !

तो मैंने अपने दोनों पैर उसके पैरों के बीच में कर लिए और अपने घुटनों के बल बैठ गया और दोनों हाथों से उसके टॉप को ऊपर करने के साथ ही मेरा मुँह उसकी चूची पर पहुँच गया।

जैसा कि मैंने बताया, डॉली की चूचियाँ छोटी हैं, तो पूरी चूची मेरे मुँह में समा गई और दूसरी चूची को हाथ से सहलाने लगा।

डॉली को अब शायद मजा आ रहा था क्योंकि उसकी आँखें फिर से बंद हो गईं थीं।

मौका देख कर मैंने एक हाथ से अपनी चड्डी खिसका कर निकाल दी और फिर उसी पोजीशन में अपने लंड को डॉली की चुनमूनियाँ से छुआ दिया।

अब मैंने अपना मुँह डॉली की दूसरी चूची में लगा दिया और पहले वाली को हाथ से सहलाने लगा। मेरा लंड बीच-बीच में डॉली की चुनमूनियाँ को छू लेता था।

तभी डॉली ने अपनी आँखें खोलीं और मुझे देख कर बोली- भैया, प्लीज़ अब मुझे छोड़ दीजिए, आपने बहुत कुछ कर लिया है !

मैंने कहा- देखो डॉली मुझे तुम्हारे साथ वो सब करना है, जो तुमने अभी मेरे मोबाइल की चुदाई वाली पिक्चर में देखा है !

तो वो बोली- नहीं वो सब मैं नहीं कर सकती !

मैंने कहा- क्यों?

तो वो चुप रही, फिर मैंने कहा- देखो डॉली, करना तो मुझे है ही, अब तुम अगर मर्जी से करवा लोगी तो तुमको भी अच्छा लगेगा.. नहीं, तो मैं तो कर ही लूँगा !

वो चुपचाप मेरी आँखों में देखने लगी।

फिर बोली- तो आप मेरे साथ भी वही सब करना चाहते हैं जो आपने ललिता के साथ किया है..?

मैं समझ गया कि ललिता ने इसको हमारी चुदाई के बारे में सब बता दिया होगा।

मैंने कहा- हाँ, मैं तुम्हारी भी सील तोड़ना चाहता हूँ… ललिता की तरह!

यह कह कर मैंने उसके चेहरे पर बहुत सारे चुम्बनों की बौछार कर दी।

अचानक डॉली ने अपने दोनों हाथ मेरे कंधे पर रख दिए और बोली- भैया मुझे छोड़ दीजिए, मुझे बहुत दर्द होगा.. मैं वो सब नहीं कर पाऊँगी, जो आपने ललिता के साथ किया था !

मैंने कहा- क्यों?

तो वो फिर चुप हो गई, अब जब मैंने देखा कि उसका विरोध करीब ख़त्म हो गया है तो मैंने अपने दोनों हाथो से उसके टॉप को उसके दोनों हाथ ऊपर करके हटा दिया।

अब उसके बदन में सिर्फ स्कर्ट आर मेरे बदन में सर्फ बनियान थी।

अब मैं जल्दी से उठा और अपनी बनियान भी निकाल दी। अब मैं अपनी पीठ के बल लेट गया और डॉली को अपने ऊपर खींच लिया। मैं अपने दोनों हाथों से डॉली की स्कर्ट उतारना शुरू किया, उसने रोकने की कोशिश की परन्तु कामयाब नहीं हो सकी।

अब हम दोनों बिल्कुल नंगे थे, मैंने डॉली को अपने बदन से चिपका लिया। उसके खुले हुए बालों से मेरा चेहरा ढक गया। मुझे बहत अच्छा लग रहा था। तभी मैंने अपने हाथों से डॉली की गाण्ड को सहलाना शुरू किया, उसके चुनमूनियाँड़ बिल्कुल गोल थे। काफी मस्त माल था !

मेरी उंगली उसकी गाण्ड के छेद का मुआयना करने लगी, तो अंजली ने तुरंत अपनी गाण्ड हिला कर मुझे ऐसा करने से मना किया।

खैर… अब मेरी उंगली उसकी गाण्ड से होते हुए उसकी चुनमूनियाँ पर पहुँच गई थी।

इधर मेरा लंड उसकी चुनमूनियाँ को छूकर और उत्तेजित हो रहा था। मुझे अहसास हो रहा था कि उसकी चुनमूनियाँ गीली थी।

मैं अचानक बैठ गया और डॉली को अपने हाथों के सहारे धीरे से लिटा दिया। मैंने झुक कर अपना मुँह उसकी चुनमूनियाँ की ओर किया, मैंने पहली बार उसकी कुंवारी चुनमूनियाँ को देखा।

दोस्तों डॉली की चुनमूनियाँ में बहुत ही हल्के से रोंयें थे और उसकी चुनमूनियाँ की दोनों फांकें एकदम जुड़ी हुई थीं। अब मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी चुनमूनियाँ की फांकों को अलग किया तो अन्दर का रंग बिल्कुल गुलाबी था।

दोस्तों मैंने अपने होंठों को तुरंत डॉली की चुनमूनियाँ में लगा दिया। अचानक डॉली ने मेरे बाल पकड़ लिए और जोर से ऊपर की ओर खींचना चाहा और बोली- नहीं भैया… यह मत करो, अभी वहाँ खून हो सकता है !

तब मुझे याद आया कि डॉली का तो पीरियड था और आज तीसरा दिन था।

क्रमशः………………

गतान्क से आगे…………..

दोस्तों सब कुछ जानते हुए भी अब मेरा रुक पाना मुश्किल था। मेरे दिमाग में सिर्फ डॉली को चोदने की ही बात थी। मैंने अपने आस-पास नजर दौड़ाई। बेड के बगल में ही ललिता की ड्रेसिंग मेज रखी थी, उसके ऊपर मुझे नारियल तेल की शीशी दिख गई।

मैंने हाथ बढ़ा कर उसको उठा लिया और अंजली की दोनों टांगों को और फैला दिया। अब मैंने अपने एक हाथ में खूब सारा तेल लिया और अंजली की चुनमूनियाँ में लगा दिया। कुछ तेल डॉली की चुनमूनियाँ की दरार के अन्दर भी चला गया।

अब मैंने अपने लंड को तेल से बिल्कुल भिगो लिया। शीशी को वहीं पर रख कर मैं फिर अपनी पीठ के बल लेट गया और अंजली को अपने ऊपर बैठाया। मैंने एक हाथ से अपने लंड को अंजली की कुंवारी चुनमूनियाँ के मुँह में अन्दर करना चाहा, पर मेरा लंड फिसल गया। मैंने यह कई बार प्रयास किया, किन्तु लंड हर बार फिसल रहा था।

इधर उत्तेजना से मेरा हाल बुरा हो रहा था, लग रहा था कि मैं ऐसे ही झड़ जाऊँगा और उधर अंजली का भी बुरा हाल था, उसकी भी साँसें बहुत तेज चल रही थीं।

मैंने तुरंत फिर से अंजली को लिटा दिया और मैं उसकी दोनों टांगों के बीच में इस तरह बैठा कि मेरा लंड उसकी चुनमूनियाँ के बिल्कुल करीब था।

अब मैंने अपने दोनों हाथों से डॉली की चुनमूनियाँ की फांकों को अलग-अलग किया और कमर हिला कर अपने लंड को डॉली की चुनमूनियाँ के मुँह में सैट किया, फिर मैंने अपने एक हाथ से अपने लंड को सहारा दिया जिससे कि वो अब बाहर ना निकल पाए।

मैंने डॉली की तरफ देखा तो उसने अपनी आँखें बंद की हुई थीं, होंठ भींचे हुए थे। मैंने अपनी कमर से थोड़ा दबाव बनाया, पर लंड डॉली की कुंवारी चुनमूनियाँ में इस बार भी नहीं जा पाया।

फिर मैंने अपने पैरों से डॉली के दोनों पैरों को और फैलाया और दुबारा अपनी कमर से दबाव बनाया। अब की बार मेरे लंड का थोड़ा सा सुपाड़ा ही अंजली की चुनमूनियाँ में गया होगा, लेकिन उसकी चीख निकल गई, चूँकि घर में इस समय कोई और था नहीं। मैंने उसी पोजीशन में और दबाव बनाया।

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अबकी बार मेरे लंड का आधा सुपाड़ा अंजली की कुंवारी चुनमूनियाँ में घुस गया था और इधर डॉली लगातार चिल्ला रही थी।

मैंने उसकी कमर को बहुत ही मजबूती से पकड़ रखा था, मैंने अपनी कमर से एक हल्का धक्का मारा, तो मेरा करीब आधा लंड डॉली की चुनमूनियाँ को फाड़ता उसके अन्दर घुस गया।

मैंने डॉली के चेहरे की तरफ देखा तो मोटी आंसुओं की धार बह रही थी।

वो लगातार मुझसे कह रही थी- अब छोड़ दो, मैं मर जाऊँगी, बहुत दर्द हो रहा है !

अब मैं उसी पोजीशन में उसके ऊपर लेट गया और उसके आंसुओं को अपने होंठों से साफ़ किया, फिर उसके होंठों को चूसने लगा। इससे उसका चिल्लाना भी कम हुआ और कुछ ध्यान बंटा।

अपने दोनों हाथों से मैं डॉली की चूचियों को सहलाने लगा। इसी बीच मैंने एक जोर से धक्का अपनी कमर से मारा, जिससे मेरा करीब पूरा लंड डॉली की चुनमूनियाँ में समां गया, चूंकि डॉली के होंठ मेरे होंठों से दबे थे उसकी चीख तो नहीं निकल पाई, लेकिन वो बहुत तेज कसमसाई।

2-4 सेकंड रुक कर मैंने अपनी कमर को ऊपर-नीचे करने के लिए हिलाना चाहा, पर डॉली की चुनमूनियाँ इतनी कसी हुई थी कि मेरा लंड हिल भी नहीं सकता था।

खैर.. मैंने एक और जोर का धक्का मारा, अब मेरा पूरा लंड डॉली की कुंवारी चुनमूनियाँ में समा गया था। अचानक मुझे लगा कि मैं झड़ जाऊँगा।

डॉली की कुंवारी चुनमूनियाँ एकदम गरम भट्टी की तरह मेरे लंड को जलाए दे रही थी। कंट्रोल कर पाना मुश्किल था, तभी मुझे लगा कि डॉली का बदन अकड़ रहा है, उसने अपने हाथ से मेरी पीठ को इतना कस कर जकड़ा कि उसके नाखून मेरी पीठ में चुभ रहे थे।तभी मुझे अपने लंड के झड़ने का भी अहसास हुआ।

मेरी कमर ने 2-3 हिचकोले खाए और लंड ने पूरा लावा डॉली की कुंवारी चुनमूनियाँ में ही उगल दिया।

हम दोनों उसी अवस्था में थोड़ी देर लेटे, फिर डॉली ने अपने हाथ से मुझे अपने ऊपर से हटाने की कोशिश की, तो मैं हट गया।

उसने उठने की कोशिश की, पर उठ नहीं पाई। मैंने देखा कि उसकी चुनमूनियाँ का बुरा हाल था, दोनों फांकें फूल कर पाव की तरह हो गई थीं और उसकी चुनमूनियाँ से अभी भी खून निकल रहा था जोकि उसकी जाँघों से होकर नीचे जमा हो रहा था।

मैं तुरंत उठा एक अखबार उठा कर बेड की चादर उठा कर उसके नीचे रख दिया, जिससे कि खून गद्दे में ना जाने पाए और एक पुराना कपड़ा लेकर मैंने डॉली की चुनमूनियाँ और जाँघों में लगा खून साफ़ कर दिया, वरना वो घबरा जाती।

उसी कपड़े को मैंने उसके चुनमूनियाँड़ उठा कर बिछा दिया। अब खून कहीं दिखाई नहीं दे रहा था।

फिर मैंने डॉली को सहारा देकर उठाया, उठते ही उसने अपनी चुनमूनियाँ को झाँक कर देखा, वहाँ ज्यादा खून न देख कर शायद उसको आश्चर्य हुआ और उसने मेरी तरफ देखा।

अब मैंने उसको अपनी गोद में बिठा लिया और उसके होंठों को चूमना शुरू कर दिया, क्योंकि मैं उसको अभी एक बार और चोदना चाहता था।

मेरे दोनों हाथ उसकी पीठ से होते हुए उसकी चूचियों को सहला रहे थे।

अब मैंने अपनी जीभ को डॉली के मुँह के अन्दर डाल दिया। पहली बार अंजली ने भी चुम्मन क्रिया में मेरा सहयोग किया। मैंने अपना एक हाथ धीरे से डॉली की चुनमूनियाँ पर लगाया, तो उसने अपने पैरों को थोड़ा और खोल दिया। मैंने अपनी ऊँगली से उसकी चुनमूनियाँ की दरार को सहलाया। वो अभी भी वैसी ही टाइट थी, बिल्कुल जरा सा अंतर आया था। अब मेरी उंगली उसकी चुनमूनियाँ की दरार में चल रही थी।

मैं उसके ‘जी-पॉइंट’ को भी सहला देता था। अब डॉली कुछ जोश के साथ मेरे चुम्बन का जवाब दे रही थी, मेरी जीभ को कस कर चूस रही थी।

मेरा लंड तो टाइट था ही, मैंने अपने हाथ को उसकी चूचियों से हटाया और उसके हाथ को लेकर अपने लंड को पकड़ा दिया।

वो बिना देखे ही उसको सहलाने लगी। उसके नरम हाथों के स्पर्श से मेरे लंड में नई जान आ गई। मैंने डॉली को थोड़ा पीछे की ओर झुकाया और अपना मुँह उसकी चूची में लगा दिया।

मैंने खूब जोर लगा कर उसकी चूची को पीना शुरू किया और दूसरी चूची को हाथ से मसलना, कमरे में डॉली की सिसकारियाँ गूंज उठीं। फिर इसी तरह जोर से मैंने उसकी दूसरी चूची को भी पीया, अब मैंने डॉली की आँखों में देखा तो मुझे लगा कि वो भी दुबारा चुदाई के लिए तैयार है।

मैंने उसको फिर से लिटा दिया और उसके पैरों के बीच बैठ गया। इस बार मैंने उसके दोनों पैर उठाए और एक तकिया उसकी गाण्ड के नीचे रखा और उसके पैरों को अपने कंधे पर ले लिया।

डॉली की चुनमूनियाँ और मेरे लंड में तेल तो पहले से ही लगा था। मैंने अपने लंड को डॉली की चुनमूनियाँ के मुँह में सैट किया।

वह मेरी तरफ देख कर बोली- ज़रा धीरे से ! उस बार मेरी जान निकलते बची थी !

मैंने कहा- अब परेशान मत हो, अब उतना दर्द नहीं होगा !

लंड को सैट करके मैंने अपनी कमर का हल्का सा धक्का दिया तो इस बार लंड फिसला नहीं बल्कि चुनमूनियाँ में थोड़ा सा चला गया।

डॉली थोड़ा कसमसाई, पर पकड़ मजबूत थी। मैंने तुरंत दूसरा जो से धक्का मारा, इस बार लंड टाइट चुनमूनियाँ की दीवारों को रगड़ता हुआ आधा घुस गया।

डॉली बोली- भैया, अब बस इससे ज्यादा मत घुसेड़ो… मेरी चुनमूनियाँ में बहुत दर्द हो रहा है !

मैंने कहा- देखो, पहले तो अब भैया कहना बंद करो, क्योंकि अब तुम्हारी चुनमूनियाँ में मेरा लंड घुसा है… और रही दर्द की बात, तो अभी ख़त्म हो जाएगा !

यह कहते हुए मैंने एक जोर का धक्का अपनी कमर से मारा, अबकी मेरा लंड पूरी तरह डॉली की चुनमूनियाँ में घुस गया। वो बड़ी तेज चीखी और अपना सर झटकने लगी, मैं उसी पोजीशन में रुक गया।

मैं अपने हाथों से उसके गालों को सहला रहा था, 2-4 सेकण्ड के बाद मैंने बहुत धीरे से अपनी कमर को हिलाने की कोशिश की, फिर थोड़ा और हिलाया। इस तरह मैंने बहुत ही संभाल कर अपनी कमर को आगे-पीछे करना शुरू किया।

मैंने देखा कि डॉली भी कुछ सामान्य हो रही थी, फिर मैंने थोड़ा सा जोर लगाकर धक्के लगाने शुरू किए। डॉली की टाइट चुनमूनियाँ में मेरा लंड बिल्कुल जकड़ा हुआ चल रहा था।

अब शायद डॉली को कुछ अच्छा लगा क्योंकि अब वो चुप हो गई थी। मैंने उसके बाल सहलाते हुए पूछा- जान.. अब कैसा लग रहा है?

मेरे मुँह से अपने लिए ‘जान’ सुन कर पहले तो उसने मेरी आँखों में देखा, फिर उसने अपने हाथ मेरी पीठ पर कस दिए और अपनी आँखें बंद कर लीं।

अब मैंने अपने धक्कों की स्पीड थोड़ा बढ़ा दी, मुझे ऐसा लगा जैसे डॉली भी अपनी कमर को थोड़ा बहुत हिलाने की कोशिश कर रही है।

मैं और जोश में आ गया और इस बार मैंने करीब अपना आधा लंड बाहर करके स्पीड के साथ डॉली की चुनमूनियाँ में घुसेड़ दिया।

डॉली एकदम चिहुंक गई, आँखें खोल कर मेरी तरफ देखा और बोली- क्या जान की जान ही ले लोगे आज?

मैंने उसको चूमते हुए कहा- नहीं मेरी जान!

फिर आराम से धक्के पर धक्के लगते रहे, अब कमरे में डॉली की चीखों की जगह उसकी सिसकारियाँ और मेरी तेज-तेज साँसें सुनाई दे रही थीं।

अचानक मुझे लगा कि डॉली की पकड़ मेरी पीठ पर टाइट होती जा रही है। उसके नाखून मेरी पीठ में धंसने लगे, मैं समझ गया कि यह अब झड़ने वाली है। मैंने भी अपने धक्कों की स्पीड को बढ़ा दिया, अचानक हम दोनों के बदन थरथराये, हम एक साथ ही झड़ने लगे।

मेरे लंड से गरम-गरम लावा निकल कर डॉली की चुनमूनियाँ में भरने लगा। हम दोनों ने एक-दूसरे को बहुत ही जोर से जकड़ लिया।

दोस्तो, हम दोनों उसी अवस्था में करीब आधे घंटे तक बिल्कुल नंगे एक-दूसरे से लिपटे हुए लेटे रहे।

फिर मैं उठा, बाथरूम में जाकर अपनी जांघों वगैरह में लगे खून को साफ किया, फिर डॉली को गोद में उठा कर बाथरूम में ले जा कर उसकी सफाई की। उसको बेड पर लिटाने के बाद, मैंने रसोई में से एक गिलास दूध गुनगुना करके डॉली के पास आया।

उसको अपनी गोद में बिठा कर दूध पिलाया, थोड़ा सा मैंने भी पिया।

फिर मैंने उससे कहा- जान अब धीरे से उठो और कपड़े पहनो !

क्योंकि बेड भी सही करना था।

खैर… डॉली धीरे से उठी, अपने कपड़े पहने, मैंने भी पहन लिए, फिर उसने बेड से चादर हटाई, पेपर हटाए और दूसरी चादर बिछा कर बेड सही कर दिया।

अब मैंने उसको गले से चिपका कर पूछा- जान कैसा लगा तुमको !

तो वो भी मेरे सीने से चिपक गई और बोली- जैसा ललिता ने बताया था, उससे बहुत अच्छा !

मैंने उसके चहरे पर बहुत सी चुम्मी ले डालीं। उसने भी मुझे उसी तरह जवाब दिया।

मैंने घड़ी देखी, ललिता के स्कूल से आने का समय हो गया था।

मैंने डॉली को कहा- मैं अभी जा रहा हूँ ! और यह कह कर मैं अपने पोर्शन में आ गया।

यह थी मेरी फुफेरी बहन डॉली की सील तोड़ने की सच्ची कहानी

समाप्त



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