ट्रेन में अंजान लड़की की चुदाई

तो कैसे है आप लोग? ये मेरी पहली सेक्स कहानी है इस साइट पर. आशा करता हू आपको पसंद आएगी. तो शुरू करते है.

देल्ही से कोलकाता का सफ़र शुरू हुआ. एक ठंडा दिन था. ट्रेन के अंदर काफ़ी लोग थे. लेकिन एक कपल मेरे सामने बैठा था, जो तुरंत मेरी नज़र में आया. पहली नज़र उन पर गयी, और मेरी आँखें उस लड़की पर टिक गयी. लड़की थी ज़ोया, 5’4” लंबी, और उसका फिगर 36-24-38 था, एक-दूं मॉडेल जैसा.

उसके लंबे काले बाल और गुलाबी चेहरा किसी का भी दिल जीत ले. पहली बार जब मेरी और उसकी आँखें मिली, तो जैसे एक पल के लिए सब कुछ रुक गया हो. उसका पति अल्फ़ाज़ भी साथ था, लेकिन उसका तो एक-दूं अलग ही माहौल था. अल्फ़ाज़, 5’5” लंबा, और पतला-दुबला था, उसके पास कोई मसल्स नही थे.

मैं, विक्रम नाम है मेरा, 5’9” लंबा, जिम का शौकीन, फिट और मस्क्युलर बॉडी के साथ. मेरी फिज़ीक देख के कोई भी लड़की अपनी नज़र नही हटा पाती, और ज़ोया भी अलग नही थी. शायद उसने मुझे पहली बार देखते ही नोटीस कर लिया था.

सफ़र की शुरुआत में ही ज़ोया मेरी तरफ अक्सर देख रही थी, और मैं भी उसकी तरफ नज़र मार रहा था. पहले तो चुपके-चुपके, लेकिन धीरे-धीरे हमारे बीच एक साइलेंट केमिस्ट्री बन रही थी. ज़ोया के चेहरे पर हल्की मुस्कान थी, और हर बार जब अल्फ़ाज़ कुछ बोलता, वो हस्ती थी. लेकिन एक च्छूपी हुई नज़र मेरी तरफ ज़रूर डालती थी. ये जो च्छूपी हुई मुस्कान थी, उसमे जैसे एक इन्विटेशन था, एक ग़लत रिश्ता शुरू होने की पहली सीडी.

धीरे-धीरे हमारे बीच फ्लर्टिंग शुरू हुई. एक बार मैने एक हल्का सा जोक मारा, और ज़ोया खुल के हासणे लगी. उसकी हस्सी के साथ वो मेरी बाहें छ्छूने लगी. उसका टच एक पल का था, लेकिन वो इतना जान कर था की एक-दूं से टेन्षन और बढ़ गयी थी. अल्फ़ाज़ हमेशा मुस्कुराता रहता, जैसे वो ये सब देख के खुश हो.

उसकी हस्सी से लग रहा था की उसके अंदर शायद कोई कॉंपिटेशन का सेन्स नही था. शायद अल्फ़ाज़ को पता था की मेरी मस्क्युलर बॉडी और हाइट के आयेज उसकी कोई नही चलेगी. एक पल आया जब मैने कॅष्यूयली बोला-

मैं: ज़ोया, अगर तुम मुझसे पहले मिली होती, तो तुम मेरी गर्लफ्रेंड होती.

ज़ोया की आँखें चमक उठी, और वो मुस्कुराते हुए बोली: हो सकती हू अभी भी, विक्रम. बस तुम चाहो तो.

उसकी ये बात सुन कर मेरे दिल की धड़कन तेज़ हो गयी. हर बार जब वो हस्ती थी, तो उसके हाथ मेरे पैर या बाहों को छ्छूने लगते. उसका हाथ जब भी मुझे छ्छूते, एक अजीब सी फीलिंग होती थी, जैसे हम दोनो के बीच अब कुछ और बात बाकी थी. अल्फ़ाज़ सब देख रहा था, लेकिन कुछ नही बोला. शायद उसको अंदर से पता था की उसकी मेरे सामने कोई औकात नही थी. या वो मान चुका था की उसकी पोज़िशन मेरे कंपॅरिज़न में काफ़ी कमज़ोर थी.

रात के वक़्त हो गया. सब तोड़ा ठंडा होने लगा. हमारे बीच ज़्यादा बात-चीत नही हुई, लेकिन नज़रें अब भी एक-दूसरे को देख रही थी. कुछ घंटो बाद मुझे वॉशरूम जाना था. मैं तोड़ा तक गया था, इसलिए सोचा फ्रेश हो लू. जब मैं वॉशरूम में था, तो डोर पे ज़ोर से नॉक होने लगा.

“5 मिनिट,” मैने कहा, लेकिन नॉक रुका नही. तोड़ा अनाय्ड होके मैने डोर खोला, तो सामने ज़ोया खड़ी थी. उसका चेहरा देख कर मैं शॉक था.

“ज़ोया, तुम यहाँ क्या कर रही हो?”, मैने धीरे से पूछा.

ज़ोया ने कुछ नही कहा, बस वॉशरूम के अंदर चली आई और डोर बंद कर दिया. जगह छ्होटी थी, लेकिन उस वक़्त वो जगह हमारे लिए काफ़ी थी.

“मैं रोक नही पाई अपने आप को,” ज़ोया ने हल्की सी साँस लेते हुए कहा. “विक्रम, तुम इतने पवरफुल हो. अल्फ़ाज़ मेरी खुशी कभी नही बन सकता. तुम जैसे एक मर्द को कैसे छ्चोढ़ सकती हू? मैं चाहती हू तुम मुझे अपना बना लो. मेरा जीवन बेकार होगा अगर मैं तुम्हे खुशी नही दे पाई.”

वो धीरे से नीचे झुकती गयी, मेरे हाथो को छूटे हुए. उसके लिप्स, जैसे वो कुछ कहने वाली हो. मेरा दिल ज़ोर से धड़क रहा था, और मैं जान गया था की ये मोमेंट वापस नही आएगा.

मैने उसके बाल पकड़े, और उसके होंठो पर अपने होंठ रख दिए. उसने माना नही किया, और मैं उसके होंठो का रस्स पीने लगा. मैने कस्स कर चूमा तो उसने भी मेरा साथ दिया किस्सिंग में. पता ही नही चला की कब हमारी नॉर्मल चुम्मि फ्रेंच किस में बदल गयी.

मुझसे अब रहा नही जेया रहा था. तो मैने उसे दीवार की और तोड़ा झुकाया, और एक हाथ से उसके बूब्स कपड़ों के उपर से ही दबाने लगा. मैने फिर उसकी सलवार के अंदर हाथ डाला, और धीरे-धीरे उसके पेट को सहलाते हुआ उपर उसकी ब्रा तक पहुँचा.

अब और रहा नही जेया रहा था. तोड़ा ज़ोर लगाया और ब्रा को अंदर ही फाड़ दिया, और उसके नंगे बूब्स को हाथो में लेके दबाने लगा. आए हाए! क्या मस्त सॉफ्ट-सॉफ्ट बूब्स थे. दबाने का मज़ा ही आ रहा था. उसने भी मुझे उसके बूब्स दबाने दिए.

फिर मैने उसे दीवार की तरफ मूह करने को कहा. वो पलट गयी. मैने उसकी सलवार का नाडा खोला, और अंदर हाथ डालने लगा. चड्डी के अंदर सीधा हाथ डाल दिया. हल्की झाँते महसूस कर पा रहा था मैं. पर झांतो से होते हुए मैने उसकी छूट पर हाथ रखा, और सहलाने लगा. उसकी छूट पहले से ही गीली हो चुकी थी. उसकी गीली छूट अपने आप में ही किसी लूब्रिकॅंट का काम कर रही थी.

मैं पहले एक दो उंगलियों से उसकी छूट में अंदर-बाहर करने लगा, और वो भी एक पैर उठा कर मुझसे करवा रही थी. कुछ वक़्त तक मैने ऐसे ही किया. मेरा मॅन तो उसकी छूट मारने का कर रहा था. उसने उसके बाद मेरे लंड को पंत के उपर से पकड़ा. मैने झट से अपनी पंत का बटन और ज़िप खोली, और उसका हाथ पकड़ कर खुद ही अपनी पंत में डाल दिया.

उसने मेरा लंड पहले एक हाथ से पकड़ने की कोशिश की, और हिलना चाहा. पर मेरा लंड उसके नाज़ुक हाथो से बड़ा था, तो उसने दोनो हाथो से मेरा लंड पकड़ा और हिलने लगी. उसकी इस हरकत से मेरी हवस और बढ़ गयी. मैं उसकी चूचियों को दबाने लगा. उसकी दोनो चूचियाँ अभी भी कड़क थी.

वो भी नही रुकी. वो भी अपने हाथ से मेरा लंड हिलने लगी. मैं और ज़ोर से दबाने लगा, और वो आवाज़ करने लगी, “आआहह और ज़ोर से, ज़ोर से दब्ाओ, और ज़ोर से”.

मैं भी नही रुका, और उसकी पनटी को घुटनो तक नीचे कर दिया, और उसकी छूट सहलाने लगा. उसकी छूट बिल्कुल ही नयी थी, मानो अब तक किसी ने नही छोड़ी हो. ज़ोया उल्टी हुई और मेरे लंड को चूसने लगी. कभी-कभी अपनी हलाक तक मेरा लंड ले जेया रही थी. मैने भी उसके बाल पकड़े और उसके मूह की चुदाई की.

थोड़ी देर ये सब चला, और मैं उसके मूह में ही झाड़ गया. मगर मेरा लंड अभी भी खड़ा था, और उसकी छूट की प्यास अभी भी शांत नही हुई थी. वो मेरी तरफ आ गयी. मेरे सामने घुटनो पर बैठ कर उसने मेरी त-शर्ट निकाल दी. फिर मेरी पंत को पूरा बाहर निकाल दिया. अब चड्डी को नीचे कर एक हाथ से मेरा लंड सहलाने लगी. फिर मेरे घुटनो पर बैठ के मेरा बदन चूमने लगी.

वो मेरे उपर थी. मैने उसकी सलवार पूरी निकाल दी. ज़ोया के चूसने से मेरा लंड गीला था. मैने धीरे से अपना लंड उसकी छूट में डाला. वो भी इन सब से खुश थी. धीरे से लंड अंदर जाते ही उसकी हवस बढ़ती चली गयी. धीरे-धीरे वो भी इसका आनंद ले रही थी.

वो मेरा बदन चूमती रही, और निपल्स चूसने लगी. पर मैं उसे जाम कर पेलना चाहता था. धीरे-धीरे मैने अपना लंड पूरा अंदर डाला, और उसकी आवाज़ निकल गयी. मैं और ज़ोया दर्र गये, पर कोई नही उठा. मेरे एक हाथ की उंगलियों को वो मूह में लेके चूसने लगी, और मेरे उपर बैठ कर मेरे लंड पर उछालने लगी.

उपर-नीचे होने से उसके दूध उछाल रहे थे. थोड़ी देर तक वो मेरे लंड पर किसी रांड़ की तरह उछालती रही. मैं उसके दूध को पकड़ कर मूह में लेना चाहता था. उसके दूध को पकड़ कर मैने उसे नीचे खींच कर अपने साथ चिपका लिया.

अब मैने ज़ोर से डाला, और उसे किस कर लिया. उसके बड़े दूध हमारे बीच में दबे हुए थे. उसकी छूट में बार-बार लंड जाते ही उसका च्छेद और बड़ा होते गया. उसकी चूचियाँ एक-दूं कड़क हो गयी. मैं उन चूचियों को चूसने लगा. मैं उसकी छूट में लंड अंदर-बाहर करता रहा.

पहले धीरे-धीरे होते हुए, मैने अपनी स्पीड बढ़ा दी. फिर ज़ोर-ज़ोर से अपना लंड उसकी छूट में डालने लगा. इतनी जाम कर छूट मारने के बाद वो तक गयी थी, और झड़ने वाली थी. उसने मुझे रुकने को कहा. मैं और ताक़त से जाम के उसकी छूट मारने लगा. वो माना करती रही पर मैं नही रुका. थोड़ी देर तक ये सब चला, और वो झाड़ गयी.

इतना जाम कर छोड़ने से उसकी छूट लाल हो गयी थी. पर वो मेरे बदन चूमते रही. अब मैं भी झड़ने वाला था. मैने उससे पूछा, “इस गरम माल को अंदर ही डाल डू?”. वो कुछ नही बोली और वापस अपने घुटनो पे आ गयी. उसने मेरा लंड पकड़ा, और पूरा लंड उसने अपने मूह के अंदर ले लिया.

मैं उसके मूह में अपना लंड अंदर-बाहर करने लगा. वो भी बड़े आनंद से चूसने लगी. अब मैं उसके मूह में ही झाड़ गया. उसका मूह मेरे माल से भरा था. वो मेरा गरम माल पूरी तरह पी गयी. फिर वो उठी, और खड़ी हो कर मेरी तरफ आ गयी. पर नीचे से वो नंगी थी. मैने उसे वापस पकड़ा, और उसको पलट दिया, और उसकी पीठ चूमने लगा.

वो फिरसे मेरे लंड को एक हाथ से पकड़ कर सहलाने लगी. उसकी पीठ को चूमते ही उसकी चूचियाँ वापस कड़क हो गयी, और मैं ज़ोर-ज़ोर से उसके दूध दबाने लगा. वो अब भी मेरे लंड को सहला रही थी. मैने अपने लंड को धीरे से उसकी गांद में डाल दिया. धीरे-धीरे लंड अंदर जाने लगा. वो भी आयेज-पीछे होने लगी.

अब मैने लंड बाहर निकाल कर थूक लगा दी. तोड़ा-तोड़ा करते हुए मैने पूरा लंड उसकी गांद में डाल दिया. फिर ज़ोर-ज़ोर से अपना लंड उसके अंदर डालने लगा. वो भी जाम कर उछालने लगी. उसके बड़े-बड़े दूध भी उछाल रहे थे. थोड़ी देर तक मैने उसकी जाम कर गांद मारी, और उसकी गांद पूरी तरह से लाल हो गयी.

उसने मेरा लंड अपनी गांद से बाहर निकाला, और मेरी तरफ मूह करके किस करने लगी. मेरे लिप्स और उसके लिप्स एक-दूसरे को चूस रहे थे. उसने अपनी छूट में मेरा लंड डाल लिया. अब मैं उसे और भी जाम कर छोड़ने लगा. ज़ोया मेरे से पूरी तरह चिपक गयी.

उसने अपने नाख़ून से पीठ पर निशान बना दिए. मैं ज़ोर-ज़ोर से पूरा लंड अंदर-बाहर करने लगा. वो मेरी उंगलियों को चूस्टी रही. मगर आज तक मैने इतनी मोटी गांद नही मारी थी. तो मैने उससे पलटा दिया और उल्टा करके मैने अपना लंड पीछे से उसकी गांद में डाल दिया. फिर उसकी आवाज़ ना निकले, इसलिए एक हाथ को पूरा उसके मूह में ही डाल दिया. वो अब इस चुदाई का और भी आनंद ले रही थी. मैं भी जाम कर उसकी गांद मारता रहा.

थोड़ी देर बाद मैं उसके अंदर ही झाड़ गया. फिर हम थोड़ी देर एक-दूसरे को किस करने लगे. उसने अपनी सलवार वापस पहनी, और हम दोनो अपने कपड़े ठीक किए.

हम दोनो वापस अपनी जगह पर आ गये, जैसे कुछ हुआ ही नही हो. ट्रेन में सब सो रहे थे, और ज़ोया वापस अल्फ़ाज़ के पास बैठ गयी. मैं अपनी सीट पर वापस आया, लेकिन मेरे ज़हन में अब तक वो मोमेंट चल रहा था. मुझे नींद नही आ रही थी. कभी ज़ोया के चेहरे का ख़याल, कभी उसके टच का एहसास, सब कुछ जैसे अभी हो रहा था.

मैं कुछ देर के लिए सो गया, लेकिन रात के बीच में अल्फ़ाज़ ने मुझे उठाया. मैने आँखें खोली तो देखा वो मेरे उपर झुका हुआ था. एक पल के लिए लगा की वो मुझसे लड़ने आया होगा. लेकिन उसका चेहरा तोड़ा नर्वस और हेल्पलेस लग रहा था.

“विक्रम भाई,” उसने धीरे से कहा, “ज़ोया को आपसे कुछ कहना है, लेकिन वो शर्मा रही थी. क्या आपके पास सो सकती है? उसे ठंड लग रही है.”

मुझे एक पल के लिए समझ नही आया की वो क्या कह रहा था. उसके शब्दों में डेस्परेशन थी. मैं तो सोचा था की वो मुझसे जो वॉशरूम में हुआ उस बात पर लड़ाई करेगा, लेकिन ये तो कुछ और ही था.

“प्लीज़ भाई, ज़ोया तोड़ा शाइ फील कर रही है, लेकिन वो आपके पास आके सो जाएगी. अगर आप हा कह दो तो मैं ज़िंदगी भर आपका शूकर गुज़ार रहूँगा.”

मैने देखा की वो मेरे पैरों को दबाने लगा, जैसे मुझे कन्विन्स करने के लिए. मेरे समझ के बाहर था ये सब. लेकिन उस वक़्त मुझे उसकी हालत देख कर लगा की मैं इनकार नही कर सकता.

“ठीक है,” मैने कहा.

अल्फ़ाज़ ने ज़ोया को बुलाया, जो चुप छाप खड़ी थी, आँखों में एक हल्की सी मुस्कान के साथ. वो मेरे पास आई, और अल्फ़ाज़ वापस नीचे झुक गया, मेरे पैरों को दबाने लगा. ज़ोया मेरे बाजू में आके लेती, उसका शरीर मेरे से चिपका, उसके बूब्स और उसके हाथ मेरे छाती पर थे.

मेरा हाथ उसकी गांद पे था पर अल्फ़ाज़ ने तब भी कुछ नही कहा. ज़ोया के शरीर की गर्मी का एहसास मुझे नींद में भी महसूस हो रहा था. अल्फ़ाज़ अब भी मेरे पैरों को दबाता रहा, शायद ये दिखाने के लिए की वो मुझसे कितना शुक्रिया अदा करना चाहता था. मैं नींद में डूबा, ज़ोया मेरे हाथो में थी, और अल्फ़ाज़ मेरे पैर दबाता हुआ एक अजीब रात की कहानी बना गया.

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