चुदाई का ट्यूशन की कहानी पार्ट – 2

chudai ki tution ki kahani “मुझसे ज़बान लड़ती है. बदतमीज़! जो कहता हूँ चुप चाप करो” अनिल पूरी तरह चिढ़ चुका था. दिव्या भी अनिल की पूरी खिचाई कर चुकी थी. अब उसे भी अनिल का मज़ा लेना था. वो चुप चाप बेड से उतर झुक कर खड़ी हो गयी. अनिल फिर उसकी गांद पर लंड को दबा खड़ा हो गया और कमीज़ केउपर से उसके चुचियों को मसल्ने लगा. जिस चीज़ के लिए अनिल पिछले दो महीनो से तड़प रहा था, वो हाथ में आने के बाद अब अनिल के लिए खुद पर काबू रखना मुश्किल हो रहा था. उसने दिव्या की गांद पर अपने लंड का दबाव और उसकी चुचि पर अपने हाथ का दवाब बढ़ाया. जोश और बढ़ा तो वो दिव्या के कमीज़ के बटन खोलने लगा.

“मा आ गयी तो?” दिव्या ने पूछा

“दरवाज़ा बंद है” अनिल ने अस्वासन देना चाहा

“अगर मा ने पूछा दरवाज़ा क्यूँ बंद है?”

“बोल देना कि हवा पढ़ाई में डिस्टर्ब कर रही थी”

दिव्या के कमीज़ के सारे बटन खुल चुके थे और अनिल के हाथ कमीज़ में घुस कर रसगुल्ले की तरह दिव्या की दोनो चुचियों का रस निचोड़ने लगे. दिव्या के मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगी. अनिल का जोश और बढ़ा और उसने दिव्या की गांद पर ज़ोर का झटका दिया. दिव्या फिसल कर बेड पर गिर गयी. अनिल उसके उपर गिरा और उसकी चुचियों को भींचते हुए उसकी गांद पर अपना लंड मसल्ने लगा. वो अपना होश पूरी तरह से खो चुकाथा, उसे कोई परवाह नही थी कि कोई आ जाएगा.

उसे तो ये भी ध्यान नही था कि उसने अभी तक पॅंट पहना हुआ है. वो तो बस दिव्या के दोनो संतरों से रस को निचोड़ते हुए कुत्ते की तरह उसकी कोमल गांद पर अपना लोहे जैसा लंड मसले जा रहा था. जब वो आनंद की शिखर पर पहुँचा तो उसे ध्यान आया कि उसका लंड अभी भी पॅंट के अंदर है. उसने जल्दी से पॅंट की ज़िप को खोल कर लंड बाहर निकालना चाहा, पर बहुत देर हो चुकी थी. विशफोट उसकी पॅंट के अंदर ही हुआ. क्या हुआ जो उसने कपड़े के उपर से गांद पर ही लंड मसला था, जिश्म तो लड़की का था. 80% सेक्स मस्तिष्क में होता है. ये एहसास कि वो किसी लड़की के बदन पर है ही उसके आनंद को बढ़ाने के लिए प्रयाप्त था. उसके लंड से प्रेमरस की जो मात्रा आज बही वो पहले कभी नही बही थी.

कुच्छ ही देर में उसके अंडरवेर को गीला करती हुई प्रेमरस रिस्ते हुए पॅंट पर आ पहुँचा. उसके लंड के पास एक बड़े क्षेत्र में उसकी पॅंट पर गीलेपन का निशान था और उसके प्रेमरस की खुसबू उसके पॅंट से उड़ते हुए सीधे दिव्या की नाक में जा रही थी. झाड़ जाने के बाद वो होश में आ चुका था, वो दिव्या के उपर से उठ दरवाजे को खोल फिर से अपने कुर्शी पर बैठ चुका था, दिव्या अपनी कमीज़ को ठीक कर सभ्य विद्यार्थी की तरह अपने स्थान पर पूर्ववत विराजमान थी. दिव्या अब भी नशे में थी और अनिल के प्रेमरस की खुसबू उसके नशे को कम नही होने दे रही थी. ये पहली बार था जब उसने ऐसी मदहोश कर देने वाली खुसबू को सूँघा था.

उसके मुँह और चूत दोनो में पानी आ रहा था. जब अनिल के जाने का समय आया तो अनिल बड़ी मुस्किल में था. कहीं दिव्या की मम्मी ने उसकी पॅंट पर उस दाग को देख लिया तो मुसीबत हो जाएगी. वो अपने शर्ट को पॅंट से बाहर निकाल कर उससे धक लेने की बात से भी संतुष्ट नही था. हमेशा उसका शर्ट उसके पंत के अंदर होता है. अगर आज बाहर होगा तो दिव्या की मम्मी को संदेह हो जाएगा. उसने दिव्या से कहा “दिव्या तुम पहले निकलो और देखो तुम्हारी मम्मी नीचे ड्रॉयिंग रूम में तो नही है?” दिव्या ने अनिल को चिढ़ाते हुए काफ़ी माशूमियत से पूचछा “क्यूँ?”. अनिल ने पॅंट की तरफ इशारा करते हुए कहा “इस पोज़िशन में उनके सामने कैसे जाउ?” दिव्या अपनी आँखों में शरारत भरे दबी आवाज़ में हँसने लगी. दिव्या की मा किचन में थी. दिव्या नीचे उतर अनिल को इशारे से नीचे आने को कहा. नीचे उतर अनिल जैसे ही दरवाजे तक पहुँचा पीछे से दिव्या की मा किचन से निकल कर बोली “सर जी, पढ़ाई ख़तम हो गयी?”

अनिल की तो जैसे जान ही निकल गयी. उसने बिना पीछे मुड़े हुए कहा – “जी आंटी जी”

“अब कैसी पढ़ाई कर रही है. कुच्छ सुधार हुआ है या अभी भी उसे मंन नही लगता. मैं तो कभी इसे पढ़ते देखती ही नही हूँ. दिन भर टीवी के सामने बैठी रहती है” जितना अनिल को वहाँ से भागने की जल्दी थी उतनी ही आंटी जी को बात करने का मंन था.

“पहले से तो इंप्रूव हुई है. कुच्छ दिनो में लाइन पर आ जाएगी” अनिल ने बात ख़त्म करने के अंदाज़ में कहा.

“नाश्ता करके जाइए” दिव्या की मा ने दूसरा पाश फेंका.

“नही आंटी जी, फिर कभी. कल कॉलेज में असाइनमेंट जमा करना है. बहुत काम बांकी है. मुझे हॉस्टिल जल्दी पहुँच काम करना है”

“ठीक है. प्रणाम”

“प्रणाम आंटी” बिना पीछे घूमे ही इतना कह कर वो वहाँ से ऐसे भागा जैसे पीछे कोई कुत्ता दौड़ रहा हो. अनिल के निकल जाने के बाद सीढ़ी के पास साँस रोके खड़ी दिव्या के जान में जान आई.

अगले दिन की सज़ा में अनिल कुच्छ और आगे बढ़ा. बेड पर हाथ रख झुक कर खड़ी दिव्या की सलवार का नाडा उसने खीच कर खोल दिया. उसकी सलवार खुल कर नीचे गिर गयी. “दरवाज़ा खुला है” दिव्या ने कहा. “रहने दो, तुम्हारी मम्मी चाइ देने के बाद कभी उपर नही आती” अनिल उसकी चिकनी गांद को सहला रहा था. कुच्छ ही देर में दिव्या की पॅंटी भी नीचे सरक चुकी थी और अनिल की उंगली उसकी गीली चूत के आस पास भ्रमण कर रही थी. पहली बार अपनी नंगी चूत पर किसी का स्पर्श पा दिव्या बहुत उत्तेजित थी. उसकी चूत से लार की धारा और उसके मुँह से सिसकारियाँ फूट रही थी.

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अनिल ने अपनी पॅंट की ज़िप खोल अपने खड़े लंड को बाहर निकाला और उसकी गीली चूत के दरवाजे पर रगड़ने लगा. आज पहली बार अनिल के लंड ने चूत और दिव्या के चूत ने लंड का स्पर्श किया था. दोनो इस स्पर्श और उससे कहीं अधिक इस विचार से कि लंड चूत के अंदर घुसने वाला है, अत्यधिक उत्तेजित थे. तभी सीढ़ियों पर कदमो की आहट सुनाई दी. दिव्या अपनी सलवार समेत झट से बेड पर जा बैठी. अनिल भी तुरंत कुर्शी पर बैठ गया.

दिव्या झुक कर कॉपी पर कुच्छ कुच्छ लिखने लगी. ये सारी घटना इतनी जल्दी हुई कि ना तो दिव्या को ठीक से अपनी सलवार ही समेटने का वक़्त मिला और ना ही अनिल को अपने हथियार को पॅंट के अंदर करने का. दिव्या पीछे से पूरी तरह नंगी थी. पूरी सलवार को सामने की तरफ समेट कर उसने अपनी कमीज़ से धक रखा था और कुच्छ इस तरह से झुकी हुई थी कि सामने से पता ना चले. पर उसकी जान अटकी हुई थी. अगर मा पीछे गयी तो क्या होगा. अनिल ने एक किताब को अपनी गोद में रख उससे अपने लंड को धक रखा था.

“दिव्या बेटी. बक्से की चाभी किधर रखी है? मुझे मिल नही रही”

“वहीं टीवी वाले टेबल पर पड़ी होगी!”

“नहीं है वहाँ, मैने सब जगह ढूँढ लिया. बहुत ज़रूरी है. कुच्छ देर के लिए नीचे चल के खोज दे”

दिव्या और अनिल दोनो की जान निकल गयी. दिव्या के माथे पर पसीना आने लगा. “देखो ना वहीं कहीं पड़ी होगी, पढ़ाई छ्चोड़ कर कैसे आउ?”

दिव्या की मा ने अनिल की तरफ देखते हुए कहा “सर जी, थोड़ी देर के लिए जाने दीजिए. बहुत ज़रूरी है.” अनिल के मुँह से तो आवाज़ ही नही निकल रही थी. उसे तो लगा कि आज सारा भांडा फूट जाएगा.

“ठीक है, तुम नीचे जाओ. मैं इस सवाल को ख़तम करके आती हूँ” दिव्या ने स्थिति को संभाल लिया.

“जल्दी आ” मा नीचे चली गयी.

दोनो ने राहत की साँस ली. दिव्या ने उठ कर अपनी सलवार को ठीक किया और अनिल ने कद्दू से मिर्च हो चुके लंड को पॅंट के अंदर किया.

दिव्या के वापस आने पर अनिल ने उसे फिर से सज़ा देनी चाही, पर वो नही मानी. “मा आ जाएगी”

अगले दिन अनिल के काफ़ी ज़ोर देने पर दिव्या सज़ा के लिए तैयार तो हुई पर उसने शर्त लगा दी कि कपड़े मत उतरिएगा. अनिल को कपड़ो के उपर से ही दिव्या की चुचि गांद और चूत को मसल कर संतोष करना पड़ता था. अपने पुराने अनुभव के कारण वो पॅंट के अंदर लंड झार नही सकता था और दिव्या उसे लंड बाहर निकालने नही देती थी. अगले कुच्छ दिनो तक अनिल को बस उपरी मज़ा मिला. गहराई में उतरने की उसकी लालसा बस लालसा बन कर ही रही. पर जो भी मिल रहा था बहुत था.

वो तो अपने कॉलेज के एग्ज़ॅमिनेशन के समय भी दिव्या को ट्यूशन पढ़ाने आता, उसे सज़ा देने आता. अब पढ़ाई में पढ़ाई से अधिक महत्वपुर्णा पनिशमेंट हो गया था. कहते हैं ना ‘स्पेर दा रोड, स्पायिल दा चाइल्ड’. अनिल अपने रोड को बिल्कुल स्पेर नही करता था. दिव्या को हर ग़लती पर पनिशमेंट में रोड मिलता तो सही पर अवॉर्ड में. ट्यूशन का सत्तर फीसदी समय दिव्या केपनिशमेंट में जाता. दिव्या का गणित सुधरा या नही ये तो उपर वाला जाने, पर उसकी चुचि का आकार ज़रूर सुधर गया था.

आज दिव्या घर में अकेली थी. उसके मा और बाबूजी दोनो गाओं गये थे. दिव्या ने पढ़ाई का बहाना कर मना कर दिया था. वास्तव में उसे बहुत ज़िद करनी पड़ी थी. उसकी मा तो गुस्सा हो गयी थी पर बाबूजी पढ़ाई के प्रति दिव्या के समर्पण से खुस थे. अनिल के आने पर दिव्या ने कहा “आज नीचे ही पढ़ा दीजिए”

“क्यूँ?”

“घर में कोई नही है. उपर गये और कोई घर में घुस आया तो?”

दिव्या के घर में अकेली होने के बात से ही अनिल का लंड तमतमा गया. उसका पॅंट फूलने लगा.

“दरवाजा बंद करके उपर चलो”

“कहीं कोई आया तो पता कैसे चलेगा?”

“आने दो, पढ़ाई में कोई डिस्टर्बेन्स नही होनी चाहिए. तुम्हारा ध्यान पढ़ाई में बिल्कुल नही रहता. तुम्हे पढ़ाई से अधिक लोगों की फिक्र है”

दिव्या को अनिल के इरादे की भनक लगने लगी थी. उसके निपल भी तन गये, धड़कने और साँसे तेज़ हो गयी और चूत में हलचल होने लगी. उसने दरवाजे को बंद किया और उपर चढ़ने लगी. अनिल उसके पीछे पीछे पॅंट के अंदर अपने लंड को अड्जस्ट करता हुआ चढ़ने लगा. उपर कुर्शी पर बैठते ही अनिल ने कहा

“कल का होमवर्क बनाई हो”

दिव्या ने बनाया ही कब था जो आज बनाती. “इतना पनिशमेंट के बाद भी तुम सुधरी नही हो. मुझे तुम्हारा पनिशमेंट बढ़ाना पड़ेगा. चलो अपना कमीज़ उतारो”

“क्या!”

“जो कहता हूँ चुप चाप करो, बिना इसके तुम नही सुधरने वाली हो” वो दिव्या की कमीज़ को पकड़ उपर उठाने लगा.

“कोई आ जाएगा”
तो दोस्तो दिव्या का ट्यूशन पढ़ाई का या चुदाई का तरक्की पर है आगे क्या हुआ जानने के लिए इस कहानी का अंतिम भाग ज़रूर पढ़े आपका दोस्त राज शर्मा
क्रमशः……

गतान्क से आगे……..

“कोई नही आएगा, नीचे दरवाजा बंद है” उसका सफेद चिकना पेट खिड़की से आ रहे सूरज के प्रकाश से दीप्तिमान हो रहा था और जैसे जैसे कमीज़ उपर उठती जा रही थी काली ब्रा में छिपि दो गोल चुचियाँ उसकी कमीज़ से ऐसे उभर कर बाहर आ रही थी जैसे बदल के छटने से ग्रहण लगा हुआ चाँद उभर रहा हो. अनिल ने पहली बार दिव्या की चुचियों को कमीज़ के बाहर देखा था. उसका लंड तुरंत पॅंट फाड़ कर बाहर निकलने के लिए उतावला हो गया. उसने दिव्या को फिर से बेड पकड़ कर आगे की तरफ झुकने के लिए कहा. दिव्या की मक्खन जैसी चिकनी पीठ पर ब्रा के काले स्ट्रॅप केअलावा कुच्छ भी नही था.

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नीचे काले रंग की चूड़ीदार सलवार नीचे की तरफ सरकी हुई थी जिससे दिव्या की गुलाबी ब्रा का उपरी भाग बाहर झाँक रहा था. अपनी गर्म नंगी पीठ पर अनिल की शार्ड उंगलियों के स्पर्श से शिहर उठी. उसने बेड को मुट्ठी में जाकड़ लिया. अनिल अपने हाथ से दिव्या की पीठ की गर्मी को महशूष करता हुआ उसके गर्दन से कमरपर होते हुए नितंब तक गया. फिर अहिश्ते आहिस्ते उपर बढ़ कर उसके ब्रा के स्ट्रॅप को अनहुक किया. दिव्या ने अपनी आँखो को बंद कर लिया. अनिल के हाथ दिव्या की पीठ से होते हुए उसकी गोल चुचियों को अपनी हथेलियो से ढक कर मसल्ने लगे. दिव्या की चुचियों पर से ब्रा की काली पर्छाया हटा कर अनिल ने दोनो चंद्रमाओं को ग्रहण से मुक्त किया और वो चाँदनी की तरह चमक उठे. चमकते गोलाकार चाँद पर दिव्या के गुलाबी निपल्स शिखर के समान खड़े थे.

अनिल ने उन गुलाबी शिखरों को अपनी उंगलियों के बीच में दबा कर मसला. “इस्शह” दिव्या नशीले धीमी स्वर में चीखी. दिव्या की चीख ने अनिल के लंड में रक्त संचार को और तीव्र कर दिया. उसने दिव्या की चुचि को ज़ोर से मसल्ते हुए अपने लंड को उसकी गांद पर दबाया. फिर अपने एक हाथ को नीचे सरकाते हुए दिव्या के पेट पर ले गया. दिव्या की मुट्ठी काज़ोर बढ़ने लगा. जैसे जैसे अनिल के हाथ नीचे की तरफ बढ़ रहे थे वैसे वैसे दिव्या का बदन तन रहा था. उसके नितंब कस गये और दिव्या अपनी दोनो जांघों को दबाने लगी. अनिल ने दिव्या की सलवार के नाडे को खीच कर खोल दिया और अपने हाथ से उसकी सलवार को नीचे सरका कर दिव्याको नंगा कर दिया. सलवार के नीचे जाते ही गुलाबी पॅंटी के बीच आधे छिपे दिव्या के पुष्ट सुडौल नितंब प्रत्यक्ष हो उठे.

अनिल ने अब तक दिव्या को केवल ढीले सलवार और कमीज़ में देखा था जिसमे उसके जिश्म की खूबसूरती पूरी तरह से नही झलकती थी. नंगी दिव्या के जिश्म का नज़ारा कुच्छ और ही था. साढ़े पाँच फुट लंबा कद, दुबली काया – 26 की कमर. दुबली साइलेंडरिकल बदन पर दो गोल पुष्ट उरोज़ और कमर के नीचे औसत से अधिक बड़े नितंब दिव्या को बहुत सेक्सी बना रहे थे. दिव्या के इस कामिनी रूप देखने के पस्चात अनिल के लिए सब्र रखना मुश्किल हो रहा था. उसने अपना शर्ट और पॅंट उतारना सुरू कर दिया. बंद आँखों में मूर्ति की तरह झुक कर खड़ी दिव्या अचानक से अनिल कास्पर्श ख़त्म होने से थोड़ी अचंभित थी. उसने ये उम्मीद नही किया था कि उसके अनिल सर उसके सामने नंगे हो जाएँगे. थोड़ी देर बाद जब अपनी जांघों पर अनिल के जांघों की गर्मी,

अपनी चूत के पास अनिल के लंड, अपनी गांद पर अनिल के बॉल और पीठ पर अनिल की नंगी छाती महशूष करने के बाद उसे यकीन हो चुका था कि सर नंगे हो गये हैं. पर उसकी आँख खोल कर देखने की हिम्मत नही हो रही थी. उसने अपने निचले होंठ को दांतो में दबा लिया और सर के अगले कदम का इंतेज़ार करने लगी. दिव्या को अधिक देर तक इंतेज़ार नही करना पड़ा. अनिल का एक हाथ फिर से उसकी चुचियों से खेल रहा था और दूसरा हाथ नीचे उसकी पॅंटी के उपर से उसकी गीली चूत को मसल रहा था. चुदाई के इस पहले मौके में अनिल केलिए सब्र रखना संभव नही था. वह बिना अधिक समय गवायें दिव्या की पॅंटी को नीचे सरका कर उसकी चूत को अपनी उंगली से मसल्ने लगा. ज़ोर से धड़कते दिल और तेज़ चलती सांसो के बीच बंद आँखों में अपने होंठ को दाँतों तले दबाए दिव्या ने अपनी जांघों को एक दूसरे की तरफ दबाया.

अनिल ने उसकी जांघों को फैलाया और उसकी चूत में अपनी उंगली घुसा दी. दिव्या का बदन अकड़ गया. अनिल की उंगली इस काली घाटी की गहराइयों में उतरने लगी. अब दिव्या भी आनंद में मचल रही थी. अनिल दिव्या को मस्ती में देख समझ गया कि अब दिव्या उसके लंड को लेने केलिए तैयार है. उसने उसकी चूत से उंगली निकाल कर अपने लंड का सूपड़ा उसकी चूत पर मसल्ने लगा. फिर धीरे धीरे उसने लंड को अंदर घुसाया. दिव्या की कुँवारी चूत बहुत टाइट थी.

लंड के दबाव से दिव्या चीखने लगी. अनिल ने लंड को अंदर घुसाना बंद कर उसकी चुचियों को मसल्ने लगा. दिव्या के शांत होने पर उसकी चुचियों को छ्चोड़ अनिल दिव्या की कमर और गांद को अपने दोनो हाथों से मसल्ने लगा. और फिर दिव्या की कमर को पकड़ एक झटके के साथ लंड को अंदर धकेल दिया. दिव्या दर्द से चीख उठी. दिव्या के शांत होने तक अनिल उसकी चुचियों और बदन को सहलाने लगा. कुच्छ देर में दिव्या फिर से शांत हो गयी.

फिर अनिल ने अपने लंड को धीरे धीरे हिलाना सुरू किया. थोड़ी देर में ही अनिल दिव्या को पूरे जोश में चोद रहा था और दिव्या भी अपनी गांद को हिला और सिसकारियाँ भर कर अनिल को पूरा सहयोग दे रही थी. पहली बार चुदाई का मज़ा ले रहे अनिल और दिव्या को चरम पर पहुँचने में अधिक वक़्त नही लगा. एक धमाके के साथ दोनो के प्रेमरस का संगम हुआ. आख़िरकार अनिल को उसकी पहली चुदाई का मज़ा मिल ही गया.

उस दिन दिव्या का ट्यूशन पूरी रात चला और पूरी रात अनिल ने उसे अलग अलग ढंग से सज़ा दी. अगले 18 महीनो के ट्यूशन में अनिल ने दिव्याको हर तरह से, हर पोज़िशन में हर पासिबल तरीके से चोद कर उसका मज़ा लिया. दिव्या इस ट्यूशन से फिज़िक्स मैथ में स्ट्रॉंग तो नही हुई परचुदाई में अव्वल दर्जे की हो गयी.
दोस्तो ये तो होना ही था मुझे पहले से ही शक था कि ये ट्यूशन पढ़ाई का है या चुदाई का आपका दोस्त राज शर्मा

समाप्त दा एंड



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