Chudai ke Wo Sat Din Fufa Ji Ke Sath

नमस्कार मेरा नाम तारा है.. मेरी उम्र 43 साल है.. और मैं तीन बच्चों की माँ हूँ। मेरे पति रेलवे में काम करते हैं, उनकी उम्र 49 साल है। वो पिछले 3 साल से ओड़िसा में हैं।

मैं अपने जीवन काल में अब तक 4 लोगों के साथ सम्भोग कर चुकी हूँ। शादी के 3 साल के बाद ही मेरे और मेरे पति के बीच रतिक्रिया में बहुत बदलाव आ गया था। मैं उन दिनों जवान तो थी ही और मेरी कामेक्षा भी अधिक हो गई थी.. क्योंकि एक बार सम्भोग का स्वाद चख लेने के बाद चूत की चुदने की चाहत बढ़ जाती है।
मेरी हालत भी ऐसी ही हो गई।

पति की अरुचि के कारण मैंने हस्तमैथुन की आदत लगा ली। फ़िर जब मुझे मौका मिला तो मैंने दूसरों से सम्भोग कर लिया।

मैं अन्तर्वासना की नियमित पाठिका हूँ मुझे यहाँ की कहानियाँ पढ़ना बेहद पसन्द हैं। इसलिए मैंने भी अपने कहानी लिखने की सोची।
आज मैं अपने जीवन की सबसे रोमान्चक घटना बताने जा रही हूँ.. जो आज भी मुझे उत्तेजित करती है।

बात 5 साल पहले की है। मेरे पति के फूफ़ा जी की बीवी यानि बुआ जी की तबियत बहुत खराब थी और उनके घर कोई नहीं था.. तो मेरे पति ने मुझे उनके घर जाने को कहा।
मैं अपने छोटे बच्चे के साथ वहाँ चली गई, उस वक्त मेरा बेटा 15 महीने का था।

मैं बुआ जी की देखभाल में लग गई। घर में बस हम 4 लोग ही थे, मैं.. मेरा बेटा और वो दोनों।

एक दिन सुबह बुआ जी की तबियत ज्यादा ही खराब हो गई और उन्हें अस्पताल में भर्ती करवाना पड़ा। उनकी बच्चेदानी में घाव हो जाने से इन्फेक्शन बढ़ गया था।
दिन में तो मैं उनके साथ रहती.. पर शाम को वापस घर आ जाती, फूफाजी के साथ ही शाम का खाना खाते और फ़िर बातें करते और फ़िर अपने-अपने कमरे में सोने चले जाते।

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एक रात मैं जब पेशाब करने बाहर गई तो मैंने फूफाजी के कमरे के दरवाजा खुला देखा और उसमें से रोशनी आती देखी।
मैंने सोचा कि शायद फूफाजी को कोई परेशानी होगी.. इसलिए अन्दर उनसे पूछने चली गई।

जब मैंने अन्दर देखा.. तो मेरे होश ही उड़ गए।
मैंने देखा कि वे अपनी आँखें बन्द किए अपने लिंग को जोर-जोर से हिला रहे हैं।

यह नजारा देखते ही मैं वापस अपने कमरे की और दौड़ पड़ी। मैं सोने की कोशिश करने लगी.. पर मुझे नींद ही नहीं आ रही थी, मेरे दिमाग में बस उनके विशाल लिंग की ही छवि आ रही थी।

मुझे भी चुदास की गर्मी महसूस होने लगी.. और मेरे हाथ खुद व खुद मेरी बुर पर चली गए।
करीब 5 मिनट ही हुए होंगे कि मैंने किसी के अन्दर आने की आहट सुनी।
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इससे पहले कि मैं कुछ कह पाती.. किसी ने मेरे ऊपर आते हुए मुझे कस कर पकड़ लिया।
मैंने चिल्लाना चाहा.. पर उन्होंने अपने हाथ से मेरी आवाज बन्द कर दी।

फिर एक आवाज आई- तारा तुम भी प्यासी हो.. और मैं भी.. क्यों न एक-दूसरे की मदद करके इस आग को शान्त कर दें।
फिर उन्होंने अपना हाथ मेरे मुँह से हटाया और मेरे ऊपर से उठ गए।
अब उन्होंने लाइट जला दी।

मेरे सामने फूफा जी खड़े थे।
मैंने कहा- यह आप क्या कह रहे हैं, मैं आपकी बेटी की तरह हूँ।
उन्होंने कहा- जरूरत इन्सान को बदल देती है, मैं जानता हूँ तुम्हरी भी यही इच्छा है।

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