चाची की बहन की खुली छत पर चुदाई

‘तो तुम्हारा हाथ कहाँ पर है?’
मैंने उससे ‘सॉरी’ कह दिया.. वो बोली- कोई बात नहीं.. रख लो, वैसे भी मैं तुम्हारी मौसी हूँ।

इसके बाद मैं उसकी कमर को पकड़ कर ही खड़ा रहा.. मेरा चेहरा उसके सर के पास था।

हम दोनों बिल्कुल सटे हुए थे.. जिससे पता नहीं कब मेरा खड़ा हो गया और उसकी गांड की फांकों से टकराने लगा।
इसका उसने कोई विरोध नहीं किया और वैसे ही खड़ी रही।

इस बारे मैं मैंने भी गौर नहीं किया था। मेरा हाथ अब भी उसकी कमर पर ही था। इससे हुआ ये कि वो थोड़ा सा झुकी सी हो गई थी और मेरा लंड उसकी फांकों के बीच में आ गया था.. जिसको शायद वो महसूस कर सकती थी।

थोड़ी देर बाद अचानक मेरा ध्यान मेरे लंड पर गया.. जो उसकी गांड से सटा हुआ था।

अचानक उसके मुँह से मैंने एक आवाज़ सुनी ‘यह क्या कर रहे हो.. सीधे खड़े हो।’

उसके मुँह से यह सुन कर मेरा उसके पीछे खड़ा होना मुश्किल हो गया और अब मेरा पूरा ध्यान वहीं पर था। मैं जानबूझ कर उससे और सट गया।

उसकी तरफ से कोई विरोध नहीं हुआ.. तो मैंने अचानक अपना लंड थोड़ा जोर लगा कर कपड़ों के ऊपर से ही ठेल दिया.. जिससे वो हरकत में आई और मेरी शिकायत करने को कह कर वहाँ से चली गई।

इससे मेरी हालत बहुत खराब हो गई। मेरी गाँव में एक इमेज थी.. वो खराब न हो जाए.. सो उससे बचने के लिए मैंने जाकर उससे ‘आई लव यू’ बोलने का फैसला कर लिया।

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अब मैं मौका देखने लगा.. मुझे मौका मिला।
वो कपड़े धो रही थी.. पर मैंने उधर कुछ नहीं बोला और वापस चला आया।

शाम हो गई और मैं घर के बाहर फोल्डिंग चारपाई डाल कर लेट गया। सब लोग भी वहीं पर लेट गए.. वो भी वहीं पर आ गई और मेरी चारपाई पर लेट गई।

हम घर के लोग आपस में बातें कर रहे थे और बात करते-करते अचानक मेरा हाथ उसके मम्मे पर पड़ गया।

तो मैंने ‘सॉरी’ कहते हुए हटा दिया।
उसने कहा- कोई बात नहीं।

उसके मुँह से यह सुन कर मेरी हिम्मत बढ़ गई.. लेकिन मैं कुछ और नहीं कर सकता था इसलिए मैंने अपना हाथ धीरे से उसकी कमर से सटा दिया और उसकी सलवार के ऊपर से ही थोड़ा सा लगता रहा।

मैंने अपना हाथ उसकी कमर के ऊपर धीरे-धीरे ले जाना शुरु किया.. जिसका उसने कोई विरोध नहीं किया।

कुछ ही देर में मुझ पर गर्मी चढ़ गई थी, मैंने अपना हाथ उठा कर उसकी कमर के ठीक नीचे नाड़े के पास रख दिया.. वो फिर भी कुछ नहीं बोली जिससे मेरी हिम्मत और बढ़ी और मैंने एक बार जोर लगा दिया।
इससे उसने मेरा हाथ पकड़ लिया।

मेरी तो फट गई, पर उसने मेरा हाथ वहीं रहने दिया और हाथ को हाथ से पकड़ कर रखा।

मैंने थोड़ी हिम्मत दिखाई और अपना हाथ छुड़ाते हुए उसके नाड़े के पास रख दिया।
उसने मेरे सीने पर हाथ रख कर दिलासा दी।

तब मुझे समझ में आया कि आग दोनों तरफ है।
उसने बोला- अभी नहीं।
इतना कह कर वो वहाँ से चली गई।

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अब तो मैं उसके पीछे पड़ना शुरू हो गया, धीरे-धीरे हम दोनों खुल गए थे।

सुबह-सुबह वो मेरे चारपाई के पास आकर बैठ जाती और चाची की छोटी सी लड़की को लेकर बिल्कुल मेरे सर के पास बैठ जाती थी। जिससे मैं उसकी चूत में उंगली कर लेता था।

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