Bhabhi Ne Bujhai Mere Lund Ki Pyas

मैंने दरवाजे में से देखने की कोशिश की पर कुछ नहीं दिख रहा था। बस उनकी आवाजें आ रही थीं। ताऊजी बाहर आँगन में सो रहे थे.. तो उन तक आवाज जाने का कोई डर नहीं था। थोड़ी देर में जोर जोर से चुदाई की आवाजें आने लगीं।

मैंने अपना लिंग हाथ में ले लिया और हिलाने लग गया।
थोड़ी देर बाद आवाज आनी बंद हो गईं, मुझे लगा कि दोनों चुदाई खत्म करके सो गए।

मैं वापिस छत पर आ गया।
मैंने आरती को देखा तो उसकी भी स्कर्ट घुटनों तक चढ़ी हुई थी। वैसे तो मुझे उसमें कोई दिलचस्पी नहीं थी.. पर नीचे से चुदाई की आवाजें सुन कर आ रहा था.. तो वो भी सेक्सी लगने लग गई।

मैं उसके पास जाकर बैठ गया और पैर सहलाने लग गया। धीरे-धीरे में उसकी स्कर्ट को ऊपर करने लग गया.. साथ ही साथ अपने लिंग भी सहला रहा था।
फिर ऊपर से ही उसके नितम्ब दबाने लग गया।

मुझे काफी अच्छा लग रहा था। मैंने उसकी स्कर्ट के अन्दर हाथ डालकर उसकी योनि को मसल दिया। आरती थोड़ा हिली.. पर वापिस सीधी होकर सो गई।

उसका टॉप भी थोड़ा नीचे खिसक गया था.. तो उसके उभार दिखने लग गए।

मुझे तो उस वक्त आरती ही इतनी सेक्सी लग रही थी कि उसी को चोद देता.. पर उसके साथ ज्यादा कुछ करना नहीं चाहता था.. तो मैंने धीरे से उसके हाथ में अपना लिंग पकड़ा दिया और लिंग को आगे-पीछे करने लगा।

मैंने उसके हाथ में ही अपना वीर्य निकाल दिया और फिर मैं भी सो गया।

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अगली सुबह में उठा तो छत पर केवल में ही था.. आरती भी नीचे चली गई थी। मुझे लगा कि आरती को सुबह अपना हाथ गीला तो लगा होगा।

नीचे गया.. तो भाभी नहाने जा रही थीं। मेरी तरफ देख कर मुस्कुराकर बोलीं- उठ गए देवर जी.. चलो चाय नाश्ता कर लो।
मैंने आरती से पूछा- भैया और ताऊजी कहाँ हैं?

तो उसने कहा- तुम्हारे भैया तो जल्दी उठकर शहर चले गए.. ताऊजी किसी पुराने मित्र से मिलने गए हैं।

मुझे लगा चलो भाभी के साथ ज्यादा टाइम मिलेगा।

थोड़ी देर बाद भाभी नहाकर निकलीं तो मैं उनकी तरफ देखता ही रह गया।
उन्होंने मैक्सी पहन रखी थी, शायद ताऊजी नहीं थे इसलिए।

उन्होंने मेरी तरफ एक प्यारी से स्माइल दी और अपने कमरे में चली गईं।
फिर आरती भी नहाने चली गई.. तो मैं भाभी के कमरे में चला गया।

भाभी अपने बाल बना रही थीं।
मैंने पूछा- भाभी मैं रात में उठा था.. तो आप और भैया छत पर नहीं थे। कहाँ चले गए थे आप दोनों?
भाभी बोलीं- तुम्हारे भैया को प्यास लगी थी.. तो उनकी प्यास बुझाने चली गई थी।
मैंने कहा- पानी तो आप ऊपर लाकर भी पिला सकती थीं।

तो उन्होंने हँसकर कहा- प्यास सिर्फ पानी की ही नहीं होती देवर जी.. कुछ प्यास अकेले कमरे में भी बुझानी पड़ती है।
मैं उनका इशारा समझ गया और बोला- भाभी प्यास तो मुझे भी बहुत लगती है.. उसका भी कुछ करो न।
भाभी बोलीं- बोला था न आपसे.. कुछ सोचते हैं.. अब इंतजार तो करो थोड़ा।

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थोड़ी देर में आरती आ गई.. तो हम दोनों चुप हो गए। फिर मैं भी नहा लिया और सबने नाश्ता भी कर लिया।
थोड़ी देर बाद आरती अपनी सहेली से मिलने चली गई।

मैं वापिस भाभी के पास बैठ गया और पूछने लगा- कब सोचोगे आप.. कुछ दिन में वापिस चला जाऊंगा.. तब सोचने का क्या फायदा।
वो हँसने लगीं और बोलीं- ये बताओ कि आरती तुम्हें कैसी लगती है?
मैंने कहा- ठीक है।

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