मेरी भाभी मेरे प्रेमी की दीवानी

मैं नहा कर तैयार होने के लिए बाथरूम में गयी। मैं नहा कर तौलिया पहन कर बाहर निकल ही रही थी की मुझे भाभी की दस्तक बाथरूम के दरवाजे पर सुनाई दी। भाभी ने बताया की वह चाय नाश्ता ले कर आयी थीं। मैंने बिना सोचे समझे हड़बड़ाहट में जब आधा दरवाजा खोला तो भाभी ने मेरे बदन का हाल देखा और उनकी आँखें चौंधियाँ सी गयीं। मैंने फटाफट दरवाजा बंद किया और दरवाजे के पीछे से ही मैंने भाभी को बताया की मैं तैयार हो रही हूँ।

भाभी ने कहा वह बैठ कर मेरे बाहर आने का इंतजार करेगी। उसी समय मैंने बाथरूम के अंदर से मेरे कमरे में रखे हुए मेरे फ़ोन की घंटी बजती हुई सुनी। शायद राज का फ़ोन था। मैं अपना फ़ोन टेबल पर छोड़ नहाने आयी थी। मुझे फ़ोन पर बात करते हुए भाभी की आवाज सुनाई दी। बाथरूम के अंदर से भाभी की मेरे पति से क्या बात हुई वह मैं नहीं सुन पायी।

मैं नहा कर बाथरूम से बाहर निकली और अपने भीगे बाल सूखा रही थी तब भाभी ने मुझे निचे से ऊपर तक अच्छी तरह से देखा। भाभी की पैनी नजर देख कर मेरी तो जान ही निकल गयी। मेरा हाल ऐसा था की काटो तो खून ना निकले। मेरे बदन (गाल, छाती, बाँहें इत्यादि) पर काफी निशान ऐसे थे जो कपड़ों में भी छिपाए नहीं जा सकते थे। खैर, भाभी सब कुछ देख कर शरारती लहजे में मुस्कुरायी पर कुछ ना बोली।

भाभी ने मुझे कहा की जीजू (राज) का फ़ोन आया था। भाभी ने कहा की जीजू चाहते थे की मैं उनको फ़ोन करूँ। जब मैंने पूछा की क्या बात हुई तब भाभी ने कहा की जब मैं जीजू से बात करुँगी तो वह सब बता देंगे। मैं भाभी के शरारती स्वभाव को जानती थी। मुझे भाभी के बोलने के अंदाज से ही समझ में आ गया था की भाभी ने जरूर मेरा सेठी साहब के साथ हुए कारनामे के बारेमें अच्छा खासा विवरण दे दिया होगा।

भाभी यह कह कर चली गयी की वह कुछ देर के बाद आएगी और सारे बर्तन ले जायेगी। मैंने नाश्ता कर चाय पीकर राज से बात करने के लिए फ़ोन मिलाया। मेरा शक बिलकुल सही निकला। अंजू भाभी ने राज को मेरे बारे में जो कुछ भी उनके मन में था वह सब बता दिया था। कहीं ना कहीं भाभी को आइडिया था की राज भी इस कौभान्ड में शामिल था। इस लिए वह मेरे पति से सारी बातें इशारों इशारों में बताने से ना हिचकिचाई।

अब समस्या यह थी की इस अंजू भाभी से कैसे निपटा जाए ताकि सेठी साहब और मेरी बदनामी ना हो। मेरे पति राज से बात हो गयी तो फिर मेरे सामने अब एक और नयी चुनौती खड़ी हो गयी थी। राज ने जो आइडिया दिया वह मेरी समझ में ठीक से नहीं आ रहा था। पर मुझे सारी बातों को शान्ति और गंभीरता से सोचना पड़ेगा और तय करना होगा की क्या किया जाए।

राज की यह बात तो सही थी की अंजू भाभी को सेट करना बहुत जरुरी था। वैसे तो भाभी सेट ही लग रही थी पर मुझे यह पक्का करना था की किसी भी हाल में आगे चलके वह हमारा राज़ किसी से उगल ना दे। और उसके लिए भाभी को मुझे हमारे पक्ष में लाना जरुरी था। मैंने तय किया की मैं भाभी को प्यार से मना कर पटा कर देखूंगी की उनके मन में क्या है और उनको कैसे सम्हाला जा सकता है। मेरे पति राज की बात मुझे ठीक लगी।

एक बात तो पक्की थी। भाभी से बात छिपाने की कोशिश करना बेवकूफी होगी। वह सब अच्छी तरह से समझ गयी थी। ऊपर से मेरे बदन पर निशान देखकर अब शक की कोई गुंजाइश ही नहीं बची थी।

कुछ देर बाद जब अंजू भाभी वापस आयी तब मैंने बड़े प्यार से उन्हें मेरे बाजू में बिठा कर उनका हाथ मेरे हाथों में थाम कर कहा, “भाभी, आप बड़ी ही समझदार और संवेदनशील हैं। आपने फ़ौरन सेठी साहब और हमारे संबंधों की बारीकियों को समझ लिया है। पर अब मैं क्या करूँ मुझे चिंता हो रही है। इस हाल में मैं कैसे निचे जाऊं? कहीं भैया या मम्मी पापा को शक हो गया तो?”

मुझे लगा की मेरे साफसाफ ईमानदारी से बात करने का भाभी पर अच्छा खासा असर हुआ। भाभी अब गंभीर हो गयी और मेरा हाथ थाम कर अंजू भाभी एकदम धीमी आवाज में जैसे मेरे कान में फुसफुसा कर बोली, “ननदसा, आप चिंता कोनी करो। मैं हूँ ना। देखिये, आप मेरी ननद हैं। अब मैं आपसे कुबूल करती हूँ की हम दोनों एक ही डाल के पंछी हैं। हम एक दूसरे की बात किसी से क्यों करेंगे? मैं आपसे वादा करती हूँ की मैं चुप रहूंगी। ना मैंने कुछ देखा, ना मैंने कुछ सुना।”

फिर मेरे बदन पर हुए निशानों पर नजर मार कर बोली, “और जहां तक आपके इन निशानों को देखने का सवाल है, आप चिंता कोनी करो। मैं इन पर कुछ लेप लगा दूंगी दोपहर तक सब गायब हो जाएगा। तब तक मैंने सांस ससुरजी को बोल दिया है की ननदसा की तबियत थोड़ी ढीली है। शाम तक ठीक हो जाएगी। आपके भाईसा उनकी कंपनी के काम से दो दिन के लिए टूर पर गए हैं।”

फिर मेरी मेरी आँखों में आँखें डालकर मेरी दाढ़ी की ठुड्डी पकड़ कर उसे हिलाती हुई भाभी बोली, “पर दीदी एक बात कहनी पड़ेगी। सेठी साहब का जवाब नहीं। मेरी ननद जैसी सुंदरी अप्सरा को भी वश में कर लिया उन्होंने। खैर सेठी साहब भी तो कुछ कम नहीं। आखिर मेरी ननदसा कोई ऐसे वैसे से थोड़े ही पटेगी?”

मैंने जब भाभी से यह सूना की “हम पंछी एक डालके।” तब मेरी जान में जान आयी। इसका मतलब तो यह हुआ की मेरी भाभी की भी कहीं ना कहीं किसी ना किसी से सेटिंग थी। अगर मैं इन सब बातों को भाभी ने सेठी साहब की तारीफ़ की उससे जोड़ कर देखूं तो एक बात साफ़ हो गयी की इसका मतलब बहभी मुझे सेठी साहब के बारे में कुछ ना कुछ इशारा कर रही थी। अचानक मेरे दिमाग की बत्ती जल उठी। बापरे! मेरे पति बिलकुल ठीक कह रहे थे। भाभी सेठी साहब से काफी इम्प्रेस्सेड हो चुकी थी और मुझे बिना कहे कुछ इशारा कर रही थी। मुझे समझना पडेगा की वह क्या कहना चाह रही थी।

यहां मैं पाठकगण को एक जरुरी बात कहना चाहता हूँ। हमारे रिश्तों में कई बार ऐसा होता है की हम जो कहना चाहते हैं वह कह नहीं पाते। अगर वह बात हमें खाये जाती है तो हम उसे इशारों इशारों में कहने की कोशिश करते हैं। जैसे कोई लड़की अगर अपने प्रेमी से चुदना चाहती है तो वह पहले तो यह उम्मीद रखेगी की उसे कुछ कहना या करना ना पड़े और प्रेमी ही पहल करे। पर अगर प्रेमी भोंदू हो तो प्रेमिका उसे कुछ ना कुछ इशारा करेगी। या तो वह अपने आपको एक्सपोज़ करने की कोशिश करेगी, क्लीवेज दिखाएगी, अपने कूल्हे टेढ़े मेढ़े करेगी या ऐसा कुछ करके इशारा करेगी की वह चुदासी है।

मुझे भी मेरी भाभी क्या इशारा कर रही थी वह समझना होगा। मैंने तय किया की मैं एक दाँव खेलूंगी। हो सकता है मेरा तीर निशाने पर लग जाए। मैंने भाभी से बड़े ही प्यार से कहा, “भाभी जब आपने इतना खुल कर बात कह ही दी है तो मैं एक बात कहूं? आप बुरा तो नहीं मानोगे?”

भाभी ने मेरी और कुछ शंका भरी नजर से देखा और बोली, “नहीं ननदसा, बोलो ना, क्या बात है?”

मैंने कहा, “भाभी आप कह रही थी ना की आप सेठी साहब से बड़ी इम्प्रेस्सेड हैं? अरे मैं क्या बताऊं? आपसे सेठी साहब और भी ज्यादा इम्प्रेस्सेड हैं। वह तो कल आपकी आवभगत, आपकी फिटनेस और आपकी सुंदरता की बड़ी तारीफ़ कर रहे थे। वह कह रहे थे की मेरा भाई बड़े ही तक़दीर वाला है की उन्हें आप जैसी सुशिल, सुन्दर और गुणवान पत्नी मिली। चूँकि घर में वह आपसे खुल कर बात नहीं कर सकते, तो क्या आप आज कुछ ना कुछ बहाना कर के रात को यहां मेरे कमरे में ऊपर आ सकते हो? हम लोग साथ में बैठ कर कुछ गपशप मारेंगे।”

मेरी बात सुनते ही भाभी उछल पड़ी। उनके चेहरे की मुस्कान मुझे बता रही थी की मेरा तीर निशाने पर लगा था। भाभी ने कहा, “ननदसा, उसकी चिंता आप मति करो। मैंने सांस को बोला है की आपकी तबियत ठीक नहीं है। मैं रात को घर ठीकठाक करके आपके पास आ जाउंगी। मैं सांस ससुर को कह दूंगी की मुझे आपका ध्यान रखना पडेगा। आपके भाई टूर पर गए हैं। चिंता की कोई बात ही नहीं है। आप जहां जाना है जाओ। मुन्ने का ध्यान मैं रखूंगी।”

फिर कुछ दबी हुई आवाज में भाभी ने कहा, “पर ननदसा मैं आप दोनों के बिच में रंग में भंग नहीं करना चाहती। कबाब में हड्डी नहीं बनना चाहती। मैं जानती हूँ कितने पापड़ बेल कर आप दोनों ने यहां आने का प्रोग्राम बनाया होगा।”

मैंने मेरी भाभी को बाँहों में भर लिया। अब मेरे सर से सारी चिंता छूमंतर हो चुकी थी। मैंने भाभी को बड़ा प्यार जताते हुए कहा, “भाभी, आप रंग में भंग थोड़े ही करोगे? आप के आने से आप तो हमारे रंग में और भी रंग भर दोगे। और भाभी सच कहूं? मैं आपका बहुत बड़ा शुक्रिया करती हूँ की आपने मेरी बात मान ली। सेठी साहब तो यह सुनकर बड़े ही खुश होंगे। भाभी, मैंने कभी सोचा भी नहीं था की मेरी भाभी इतनी रंगीली होगी।”

भाभी ने भी मेरी बात का सटीक जवाब देते हुए कहा, “ननदसा, सोचा तो मैंने भी नहीं था की मेरी ननदसा भी ऐसी रंगीली होगी। चलो देर आये दुरस्त आये। पर ननदसा, यह बात हम दोनों के बिच ही रहनी चाहिए। तुम्हारे भाई को कानो कान कोई खबर ना हो।”

मेरे मुंह से हँसी फूट पड़ी। मैंने बड़े ही शरारती लहजे में कहा, “भाभी क्या बात करते हो? बेईमानी के धंधे में सब बड़े ईमानदार होते हैं। ना आप कुछ बोलोगे ना हम।” मैंने मेरी जीभ पर अपनी उँगलियों से पट्टी लगाने का इशारा कर बात वहीँ ख़त्म की।

मैंने राज को फ़ौरन मेसेज भेजा, “आपकी मेरे लिए बतायी गयी कड़वी दवाई भाभी पर काम कर गयी। अब हमें भाभी रात भर झेलना है। पर मिशन सफल हुआ। भाभी भी कार्यक्रम में शामिल होगी। अब कोई दिक्क्त नहीं।”

मेरे पति ने जवाब में लिखा, “चलो जो हुआ अच्छा हुआ। आखिर तुम्हारा टेंशन तो टला। अब तुम्हारा थ्रीसम का सपना भी पूरा हो जाएगा।”

मैंने एक मेसेज सेठी साहब को भी भेजा। लिखा, “मुबारक हो। कहते हैं, देने वाला जब भी देता देता छप्पर फाड़ के। अब तुम्हारे रंगमहल में मेरी भाभी भी शामिल होने को तैयार हो गयी है।”

सेठी साहब का फ़ौरन जवाब आया, “इस के लिए मैं जिम्मेवार नहीं हूँ। अगर तुम कहती हो तो ठीक है। एक से दो भली।”

मैंने सेठी साहब को जवाब में गुस्से वाली इमोजी भेजी।

अब भाभी और मेरे बिच आत्मीयता और सुहार्दमय सम्बन्ध स्थापित हो चुका था। भाभी ने मेरे गाल, हाथ, गले और छाती के दीखते हुए निशानों पर चन्दन का लेप लगाया। मैंने जब उन्हें मेरी स्तनोँ , चूत और जाँघों पर भी लेप लगाने को कहा तो वह हँस पड़ी और बोली, “रहने दो उन्हें ननदसा। उन्हें कौन देखेगा? रात को यह निशान अपने प्रियतम को दिखाना। वह अपनी मर्दानगी पर खुश होंगे और उनके हाथों से ही लेप लगवा लेना। यातो वह लेप लगाएंगे या तो वह उन्हें और बढ़ा देंगे।”

मैंने भी हँस कर मजाकिया अंदाज में एक हल्का सा नकली घूँसा भाभी को मारा, हालांकि अंदर से तो भाभी पर मैं गुस्से की आग में धधक रही थी। रात में मेरे और सेठी साहब के बिच के प्रोग्राम में भाभी ने बड़ी सेंध मार दी थी। पर कहते हैं ना की मरता क्या ना करता?

भाभी ने सारा प्रोग्राम बड़ी ही दक्षता से सेट कर दिया था। दोपहर को एक रैपिड कोरोना किट मंगवा कर भाभी ने सबको यह कह दिया की मेरा टेस्ट नेगेटिव आया है। पर मेरी तबियत ढीली होने के कारण भाभी रात भर मेरा ध्यान रखने के लिए मेरे साथ सोयेगी। रात में भाभी ने मेरे मुन्ने को अपने मुन्ने के साथ अपने कमरे में सुला दिया। मैंने दिन भर काफी आराम किया और सोई। भाभी ने मेरा खाना भी मेरे कमरे में पहुंचा दिया था।

सेठी साहब अपना काम निपटा कर जयपुर से करीब आठ बजे घर पहुंचे। उनका बेसब्री से इंतजार हो रहा था। नहाकर फ्रेश होने के बाद सेठी साहब करीब नौ बजे डिनर टेबल पर आये तब मैं भी खाना खा कर तैयार हो रही थी। वह रात कुछ अजीब सी होने वाली थी।

भाभी के कारनामों के बावजूद भी पता नहीं क्यों और कैसे मेरे मन में भाभी के लिए बड़े अजीबोगरीब भाव उमड़ रहे थे। एक तरफ मुझे भाभी पर मेरी सेठी साहब के साथ रति क्रीड़ा की योजना में सेंध मारने के लिए बड़ा ही गुस्सा आ रहा था। पर दूसरी तरफ मुझे भाभी पर अजीब तरह का प्यार भी था की मेरे प्रियतम को वह भी पसंद करती हैं।

औरत का दिल बड़ा ही संवेदानशील होता है। वह आसानी से पिघल जाता है। भाभी के सौहार्दपूर्ण व्यवहार से मेरे मन में उनके प्रति कड़वाहट तो थी ही पर साथ साथ में प्यार का अंकुर भी पनप रहा था। आखिर भाभी भी तो एक औरत है। सेठी साहब जैसे वीर्यवान पुरुष के प्रति आकर्षित होती है तो उसका क्या दोष? मैं भी तो भाभी की तरह ही एक प्रेमाकांक्षी औरत ही हूँ। मैंने भी तो विवाहोतर प्रेम किया था सेठी साहब से और चुदवाया।

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