दोस्तों मेरी पहली चुदाई की कहानी के अगले पार्ट में आप सब का हार्दिक अभिनंदन करता हूं। अब आगे-
अब मुठ मारना मेरी रोज की आदत हो गई। मैं जब भी सुबह सो कर उठता मां की नज़र हमेशा मेरे पैंट पर लगे वीर्य के दाग पर होती। मैं भी बेपरवाह ये सब करता रहता। सबसे ज्यादा मजा तो सुबह-सुबह आता, जब पेंट मे लंड खड़ा होता, और मैं बेपरवाह इधर-उधर घूम कर अपना लंड मां को और छोटी बहन को दिखाता फिरता।
मेरे और मां के लिए यह बहुत सामान्य बात होती जा रही थी। पर अभी तक मां कुछ भी उत्तेजक कार्य नहीं कर रही थी। उनके लिए यह उत्तेजना का विषय था भी नहीं। एक जवान होते लड़के को पालना उनके लिए भी नया अनुभव था।
एक बार मैं बीमार पड़ा, मुझे मलेरिया हो गया था। शुरू के दो-तीन दिन तो मुझे खूब बुखार रहा, पर चौथे दिन कुछ आराम हुआ। तो मैंने दरवाजा बंद करके मुठ मारना शुरू कर दिया। परिणाम यह हुआ कि बुखार फिर आ गया। मां ने जब वीर्य से सनी मेरी पैंट देखी, तो वह सब समझ गई। अब मां से रहा ना गया, और उन्होंने मुझे टोक ही दिया।
मां: बेटा ये सब क्या करते रहते हो? अपनी सेहत का तो ख्याल रखो। ये करने से तुम और कमजोर हो जाओगे।
अचानक इस तरह के सवाल की मुझे उम्मीद नहीं थी, सो मैं चुप ही रहा। मेरा बदन अभी भी बुखार से तप रहा था। मां ने मेरी पैंट को दोनो छोर से पकड़ा, और खींच कर निकाल दिया। मेरा लंड सिकुड़ा हुआ पड़ा था। लंड के चारो ओर घने बाल उगे थे, और वीर्य बालों पर ही सुख गया था। कुल मिला कर मेरा लंड बड़ा गंदा दिख रहा था। उधर मेरी बहन भी दरवाज़े पर खड़ी हो कर यह सब देख रही थी।
दो औरतों के सामने मेरा लंड मुरझा कर और छोटा पड़ गया, तो मैंने शर्म से आंखे बंद कर ली। कुछ देर बाद मां एक भींगा तोलिया लेकर आई और मेरी कमर और जांघो की सफाई करने लगी। सफाई करने के दौरान वो बार-बार मेरे लंड को देखती, फिर मुझे देख कर आंखें चुरा लेती। धीरे-धीरे उनका हाथ मेरे लंड के करीब, और करीब आता गया। अचानक उन्होंने मेरे लंड को अपने पंजे में दबोच लिया। दोस्तों बुखार से तपता लंड गर्म तो था ही, सिकुड़ा हुआ भी था। मेरा पूरा लंड उनके हाथों में मानो गायब हो गया।
अब बारी थी मेरे लंड के करतब दिखाने की। दोस्तों कभी छतरी वाले मशरूम को फास्ट मोशन में उगते हुए देखा है? मेरा लंड भी कुछ इसी तरह मां के हाथों में मोटा होता हुआ बाहर आया। सिर उठाया हुआ और चमकता हुआ। मां लगातार मेरे लंड को ही देख रही थी। उनका हाथ कसे होने के कारण लंड की चमड़ी खिच गई थी, और लंड की टोपी सिर उठाए मां को घूर रही थी। इस वक्त मां का रिश्ता मेरे लंड से गहराता चला गया।
वो आगे की ओर झुक कर मेरे लंड को चूम ली। फिर अपने गर्म होठों को कुछ देर मेरे लंड पर ही चिपकाए रखा। उनके होंठ खुले और लंड की टोपी उनके मुंह में समा गई, और कुछ क्षणों में ही बाहर आ गई। दोस्तों उस क्षण में मैं जन्नत की सैर करके वापस भी आ गया। दोस्तों मां को देखा तो उनकी आंखे मुझे गीली नजंर आई। मुझे पता नहीं पर शायद मां को पापा के साथ बिताए कोई क्षण याद आ गए थे। उन्होंने मेरे लंड पर तोलिया रखा, और अच्छी तरह उसे पोंछ कर फिर से हाथ में पकड़ लिया, और जॉय स्टिक की तरह चारों ओर घुमाते हुए लंड के आधार, और मेरे अंडकोष को साफ किया, और मुझ पर चादर डाल दी।
दोस्तों उस रात मां मेरे साथ ही सोई। अगले दो दिन तक मां रोज मुझे गीले तोलिया से साफ करती। मेरे पूरे बदन को, और खास कर मेरे लंड को। मेरी बहन रोज दरवाजे पर छिप कर इसका आनंद लेती। मां रोज रात मेरे साथ ही सोती, तो मैं मुठ भी नहीं मार पाता। दो-तीन दिन में मैं पूरी तरह ठीक हो गया। रात को फिर से वहीं बैचेनी ने मुझे घेर लिया। मां बगल में ही सो रही थी।
मैंने अपनी पेंट उतारी और लंड हिलाने लगा। फिर मां की ओर ध्यान गया। वो नाईटी पहन कर सो रही थी, जो आगे से एक डोरी से बंधी थी। मैंने वो डोरी खींच कर निकाल दी। दोस्तों उस रात तो मेरा जैकपॉट लग गया। मां अंदर कुछ भी नहीं पहनी थी। अब सिर्फ उनकी बड़ी चूचियां साफ़ नज़र आ रही थी। अब मुझे उन्हें किसी भी तरह सीधा करना था, तांकि अपना जन्मस्थल ठीक से देख संकू। वह एक पैर पर एक पैर चढ़ा कर सोई थी।
सबसे पहले तो नाईटी को किसी तरह खींच कर उनकी कमर को नंगा किया। दोस्तों उनकी सफेद गांड कमाल की लग रही थी। दो काजू बादाम को एक पर एक रख दो तो वो कैसे लगेंगे, बस वैसे ही मां की उभरी गांड दिख रही थी। दोस्तों पहले ही बहुत कुछ हो चुका था, इसलिए मेरा डर लगभग समाप्त हो चुका था।
मैंने उठ कर कमरे की लाइट आन की, और वापस आ कर गांड के उभारों को सहलाने लगा। गांड की दरार के बीच जब हाथ रखा तो वह काफी गर्म मालूम हुई। मैंने मां के एक पैर को खींच कर सीधा करने की कोशिश की, तो वह खुद ही सीधी हो गई। दोस्तों अब क्या बताऊं खुद ही कल्पना करो। किसी के लिए भी उसकी मां की बुर ना केवल पहली बुर होती है, बल्कि सबसे खास होती है। मैं तो कहूंगा हर मां को अपनी बुर एक समय के बाद अपने बेटे को सौंप देनी चाहिए।
दोस्तों मां अपनी बुर काफी चिकनी रखती थी। बुर की हालत देख कर लग रहा था कि दस दिन पहले झांटे साफ़ की गई थी। बुर पर छोटे-छोटे बाल उगे थे। बुर के बांए उभार पर एक भूरे रंग का तिल था। गोरी बुर दरारों के पास थोड़ी लालिमा लिए हुए थी। बुर का उभार जांघो से भी ऊपर जा रहा था। दरारों के बीच गहरे रंग की दो पंखुड़ियां निकली हुई थी। दोस्तों जिसने भी बुर को करीब से देखा है, वह जानता है इन पंखुड़ियों के बीच औरतों का सबसे सेंसटिव अंग भगनाश होता है, छोटा सा किसमिस नुमा।
मैं बस इनमें खो गया। मां के पैरों को बड़ी ही सावधानी से फैला कर उनके पैरों के बीच बैठ गया। दोस्तों बुर का आकर्षण ऐसा था कि मैं उसकी ओर खिचा चला गया। अपने होठों को मां के भगनाश में रख कर एक गहरी सांस ली। बुर की एक तीखी नशीली गंध मुझे और मदहोश कर गई। अपनी लार से भगनाश को गीला कर मैं उसे चूसने लगा। फिर पूरी जीभ बाहर निकाल कर बुर की दरारों पर रगड़ दिया।
इतने में मां के दोनों घुटने ऊपर की ओर मुड़े। मैं जैसे ही उठने को हुआ, मां का हाथ मेरे सर पर आया। उन्होंने मेरे बालों को सहलाते हुए हल्का सा दबाव मेरे सिर पर दिया। तो मैं पुनः बुर चाटने में लग गया। मां अपने दोनों पैरों को हाथों से पकड़ कर मुझे अपने बुर का रसपान करवा रही थी। मैं भी पूरी शिद्दत से बुर चाटने में लगा था।
अब मां ने कमर हिलाना शुरू किया, तो मैंने एक उंगली बुर में डाल दी, और अपनी उंगली से मां की बुर चोदने लगा। मां ने अपना हाथ मेरे सिर से हटा कर मेरी उंगलियों को पकड़ लिया, और मेरी एक और उंगली अपनी बुर में घुसा ली। दोस्तों चुदी-चुदाई बुर में एक उंगली से क्या होगा भला।
दोस्तों अब बारी थी मां के झड़ने की। उन्होंने कमर ऊपर उठाई और झटके खाते हुए झड़ने लगी। धीरे-धीरे वह शांत हो गई दोस्तों। दोनों हाथ और पैर फैलाए हुए अभी भी पड़ी रही, और मैं उनकी बुर चाटता रहा। दोस्तों उन्होंने अपने हाथों से मुझे अपने और ऊपर की तरफ खींचा। मैं घुटनों के बल ऊपर की ओर उठा, और आगे बढ़ कर मां के ऊपर लेट गया। मैंने बड़ी सावधानी से अपना लंड ठीक मां की बुर के ऊपर रखा। अब जा कर मां की और मेरी नज़र मिली। मां मुस्कुरा रही थी। उन्होंने मेरे माथे को चूमते हुए बोला-
मां: आखिर तूने अपने मन की कर ही ली।
मैं: अभी कहा मां, मेरा कहां हुआ है।
मां: और करना है?
मैं: हां।
मां: और क्या करेगा?
मैं: आपको प्यार करूंगा।
मां: अभी तो किया।
मैं: अपने जन्म स्थान को प्यार करूंगा।
मां: अभी तो वहीं कर रहा था।
मैं: उसकी यात्रा करूंगा मां।
मां: कैसे?
मां अपने पैरो को एक-दूसरे से जोड़ती हुए बोली कैसे।
मैं: प्लीज़ मां अपने पैर खोलो ना।
मां: खुद ही खोल लो।
मैं अभी तक सिर्फ नीचे से नंगा था, सो मैंने ऊपर उठ कर अपनी बनियान उतारी, और पूरा नंगा होकर मां के ऊपर लेट गया।
मां: इससे क्या होगा?
मैं: देखती जाओ मां।
मैंने अपने लंड को मां की बुर पर जोर से दबाया, और अपने हाथों से उनकी चूचियां मसलने लगा।
मां ने इठलाते हुए कहा: बस इतना ही?
फिर मैंने अपने होंठ उनकी गर्दन पर लगा दिए, और जीभ से उनकी गर्दन चाटने लगा। मां मदहोश होने लगी। मैं उनके दोनों हाथों को सिर के ऊपर करके उनकी कांख को चूमने लगा। अब मां ने कमर हिलाते हुए अपने दोनों पैरो को खोल दिया। मैंने अपने लंड से मां की बुर को घिसना शुरू किया, तो मां ने हाथ नीचे ले जा कर मेरे लंड को अपनी बुर पर रख कर अंदर की ओर प्रवेश करा दिया। दोस्तों बुर की गर्मी का अहसास मुझे पहली बार हुआ था। मैं बिल्कुल शांत होकर उस गर्मी का मजा लेने लगा।
मां: धक्के मार बेटा!
मैंने लंड को और अंदर की ओर गाड़ दिया।
मां: और अंदर बेटा।
मां ने दोनों पैर फ़ैला लिए।
मैं और अंदर अपने लंड को सरका दिया। अब पूरा लंड मां की बुर में था
मां: बेटा धक्के मार ना!
मैंने कमर ऊपर उठा कर फिर से धक्का मारा।
मां: एसे ही बार-बार करो।
मैं: क्यों मां मजा आ रहा है?
मां: हा! कर ना।
मैं: नहीं चोदूंगा जाओ।
मां: चोद ना बेटा, अपनी मां को अच्छे से चोद, क्यों तड़पाता है? मैं धीरे-धीरे अपनी चुदाई चालू रखा था, और मां को बातों से उकसा रहा था। उस वक्त मां से मुझे गंदी बाते करने में मज़ा आ रहा था।
मैं: उसका क्या जो आप मुझे तड़पती थी?
मां: मैने कब तड़पाया तुझे?
मैं: घर में एक ही तो लंड है। उसकी भी प्यास तुम दोनों मां-बेटी मिल कर नहीं बुझाती।
मां: अपनी बहन को भी चोदेगा क्या?
मैं: मेरा हक है मां।
मां: अच्छा!
मैं: और नही तो क्या, दूसरो से चुदवाओगी क्या?
मां: तू नहीं चोदेगा तो चुदवाना ही पड़ेगा।
मैं: बुर फाड़ दूंगा दूसरों से चुदवाई तो।
मां: सिर्फ मेरी बुर फाड़ेगा?
मैं: शिल्पी की भी फाड़ दूंगा।
मेरे धक्के तेज होते जा रहे थे।
मां: रुक जा, थोड़ी सांस लेने दे।
मैं: अभी से थक गई मां?
मां: तू जो इतना भारी हो गया है।
मैं उठ कर बेड के नीचे खड़ा हो गया, और मां के दोनों पैरो को खींचते हुए बिस्तर के किनारे ले आया। मां की गांड बिस्तर के किनारे तक ला कर उनके पैरों को हाथ से उठाया, और अपने लंड को फिर से बुर में पेल दिया। इस तरह चोदने का अपना ही मजा है दोस्तों। बुर में लंड अंदर-बाहर जाता हुआ नज़र आता है। मेरा लंड बुर चीरते हुए अंदर जाता, और बुर की मलाई खींच कर बाहर ले आता। मां की बुर लसलसा गई थी।
दोनों पैरो को फैला कर अपने लंड को एक बार फिर पूरा अंदर गाड़ दिया।
मां: आह! दर्द होता है बेटा, इतना अंदर नहीं।
मैं: क्यों मां, तुम तो चुदी-चुदाई हो। शिल्पी ऐसा बोलती तो ठीक भी लगता।
मां: तू लगता है उसे भी चोद कर ही मानेगा।
मैं: मेरी बहन है। मेरे सिवा और कौन चोदेगा?
मां: उसका पति चोदेगा।
मैं: पहले मैं चोदूंगा, बाद मैं जिससे भी चुदवाये।
अब मैं पूरा लंड बुर से निकालता हूं, और एक ही बार में पेल देता हूं। मेरे झटके और मेरी बाते मां को चरम तक पहुंचा रही थी।
मां ने पूरा पैर ऊपर की ओर उठा लिया, और चिल्लाते हुए बोली-
मां: पेल दो पूरा लंड।
मैं समझ गया मां दुबारा झड़ने वाली थी। मैं भी तेज धक्के लगाता हुआ बोला-
मैं:
मादरचोद तो बन गया, अब बहनचोद बनूंगा|
मां: बन जाना बेटा। चोद अपनी मां को।
और हम दोनों झड़ने लगे। मैं मां के ऊपर लेट गया। कुछ मिनट बाद मां के ऊपर से उठा, और मां की चुदी बुर देखने लगा। मेरा काम रस मां की बुर से निकल कर बह रहा था। मैंने झुक कर मां की बुर का तिल चूम लिया।
मां: आजा मेरे बच्चे, तूने खुश कर दिया अपनी मां को।
मैं: तुम्हें मजा आया मां?
मां: हां बहुत।
मैं: तुम गुस्सा तो नहीं हो?
मां: किस बात का?
मैं: वो मैं बहुत गंदी-गंदी बाते बोल रहा था।
मां: तू अपने पापा पर गया है।
मैं: मतलब!?
मां: वो भी चोदते समय मां बहन एक कर देते थे। वैसे अपनी बहन को मत चोदना, वो अभी छोटी है।
मैं: आपकी बुर के आगे उसकी बुर कहा!
मां: तूने देखी है?
मैं: हां मां, बिल्कुल सील पैक है।
फिर हम दोनों हसने लगे।
दोस्तों ये मेरी पहली चुदाई थी। आगे की दास्तान और बहन की चुदाई पर फिर कभी बात करेंगे। तब तक के लिए जहां भी प्यार से बुर मिले चोद दीजिए।