हैल्लो दोस्तों, मेरा नाम मिहिर शाह और घर पर सभी लोग मुझे प्यार से मेरू कहते है। में एक अच्छा दिखने वाला 5 फीट का गोरा थोड़ा अच्छा लड़का हूँ और में पिछले कुछ समय से सेक्सी कहानियाँ पढ़ने लगा और धीरे धीरे यह सब करना मुझे बहुत अच्छा लगने लगा। मैंने बहुत सारी कहानियाँ पढ़कर उनके पूरे पूरे मज़े लिए जिसकी वजह से मुझे सेक्स करना बहुत अच्छा लगने लगा। मेरी बहुत इच्छा होने लगी, लेकिन मुझे बिल्कुल भी पता नहीं था कि कभी में भी अपनी कोई घटना को लिखकर आप लोगों तक पहुंचा सकता, लेकिन एक महीने पहले मैंने जो भी देखा और किया उसने मुझे यह कहानी लिखने के लायक बना दिया और आज में अपनी यह घटना आप लोगों को सुनाने यहाँ तक आ पहुंचा और अब आगे की कहानी सुनिए।
दोस्तों मेरे 12th के पेपर देने के बाद एक महीने की स्कूल में छुट्टी थी, इसलिए में कुछ दिन अपने घर पर रहा, लेकिन उसके बाद मुझे बहुत बोर सा लगने लगा और एक दिन में अपने घर पर सुबह टीवी देख रहा था कि उसी समय मेरे सबसे बड़े चाचा की सबसे बड़ी लड़की नीलम दीदी मेरे घर पर आ गई और वो मेरी मम्मी के पास किचन में जाकर उनसे बोली, आंटी मुझे कल दोपहर को मुम्बई जाना है और अब नीलू के पापा उनके कोई जरूरी काम की वजह से मेरे साथ कल मुम्बई नहीं आ सकते है और मेरा वहां पर जाना भी बहुत जरूरी है और मेरे पास दो टिकट है तो क्यों ना अगर आप कहे तो में मेरू को अपने साथ मुम्बई ले जाऊँ?
फिर मम्मी ने बिना मुझसे पूछे उनको तुरंत हाँ कर दिया, क्योंकि मम्मी जानती थी कि में पिछले दो साल से मुम्बई जाना चाहता हूँ और उन दिनों मेरी छुट्टियाँ भी चल रही थी। दोस्तों नीलू दीदी एक स्कूल में टीचर है उनकी उम्र 35 साल है वो एक शादीशुदा है और उनकी एक 12 साल की लड़की है जिसका नाम नीलू है, लेकिन वो पहले से ही अपनी छुट्टियों की वजह से अपने स्कूल के दोस्तों के साथ माउंटआबू मज़े घूमने फिरने चली गयी थी और नीलू दीदी का कोई लड़का नहीं था, इसलिए दीदी मुझे सबसे ज्यादा पसंद करती थी और मुझे भी वो अच्छी लगती थी। उनका व्यहवार मेरे लिए बहुत अच्छा था वो हमेशा मुझसे हंसी मजाक मस्ती किया करती थी और में भी हमेशा उनके साथ बहुत खुश रहता था यह बात मेरे घर में सभी को पता थी। दोस्तों नीलू दीदी का रंग बिल्कुल दूध जैसा सफेद और उनका कद मुझसे थोड़ा ज़्यादा और उनकी भूरे रंग की आंखे लंबे काले बाल थोड़ी सी मोटी और वो करीब मेरी मम्मी से उम्र में चार साल छोटी थी। अब में और नीलू दीदी गुजरात के एक छोटे से गाँव से मुम्बई में रहने वाले नीलू दीदी से एक साल बड़े भाई निकुंज के घर पर जाने वाले थे हमारा वो सफर करीब 15 घंटे का था और मैंने अपने कपड़े उसी दिन रात को मम्मी के कहने पर पेक कर लिए थे और मेरी मम्मी ने मुझे साथ में 1000 रूपये भी दे दिए। में उस दिन बहुत उत्साहित था, क्योंकि मुझे मुम्बई जो जाना था। फिर दूसरे दिन दोपहर को जीजाजी मुझे और नीलू दीदी को बस स्टेंड तक छोड़ने आए। बस वहीं खड़ी हुई थी तो उसमे लगभग सभी लोग बैठे हुए थे। फिर मैंने दीदी से टिकट ले ली और दो बड़े बेग के साथ में बस में चड़ गया और अपनी पीछे वाली सीट मैंने खोज ली और मैंने हमारा सामान ऊपर की सेल्फ़ में रख दिया और फिर दीदी मेरे पीछे पीछे जीजू को बाय बाय करते हुए बस में आ गई और मैंने उनको अंदर की तरफ जिस तरफ खिड़की होती है उस सीट पर बैठा दिया और में बाहर की सीट पर बैठ गया।
नीलू दीदी ने उस दिन गुलाबी कलर की साड़ी और हल्के गुलाबी रंग का ब्लाउज पहना हुआ था और मैंने चमकदार आरामदायक पेंट और पूरी बाँह की टीशर्ट पहनी हुई थी। फिर मैंने बस की खिड़की की तरफ देखा तो बाहर थोड़ी थोड़ी बारिश की बूंदे गिरना शुरू हो चुकी थी और खिड़की के बाहर बस का ड्राइवर खड़ा हुआ था तो नीलू दीदी ने ड्राइवर से पूछा भैया अब तो चार बज चुके है, यह बस कब चलेगी? तो ड्राइवर हंसकर बोला बस अभी चलती है और फिर पांच मिनट के बाद बस चल पड़ी और रोड पर आ गई बाहर का मौसम बड़ा ठंडा था, जिसकी वजह से कुछ ही देर बाद नीलू दीदी अब थोड़ा थोड़ा कांप रही थी। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था और दीदी के बदन से क्रीम की बहुत अच्छी खुश्बू आ रही थी। अब में और दीदी मुम्बई जाकर कैसे कैसे मज़े करेंगे, उसके बारे में बातें करने लगे और बस को चलते हुए करीब दो घंटे हो चुके थे। बाहर थोड़ा अंधेरा ज्यादा और ठंड भी ज़्यादा बढ़ने लगी थी। फिर उसी समय दीदी ने मेरे कान में कहा कि मुझे ज़ोर से पेशाब आ रहा है तो तुम ड्राइवर के पास जाकर बस को रूकवा दो, इसलिए में तुरंत उठकर बस ड्राइवर के केबिन के पास चला गया और ड्राइवर ने मुझसे एक मिनट कहते हुए बस को रोड से बिल्कुल नीचे लेकर एक साइड में खड़ा कर दिया। फिर मैंने दरवाजा खोला तो दीदी ठंड से कांपती हुई बस से नीचे उतरते हुए वो मुझसे भी नीचे उतरने के लिए बोली। मैंने नीचे उतरकर देखा तो चारो तरफ पेड़ पौधे थे और हल्की सी बारिश भी हो रही थी। नीलू दीदी थोड़ी सी डरती हुई बस के पीछे की तरफ जा रही थी और में उस समय दीदी से पांच फीट पीछे था और अचानक से मैंने देखा कि जैसे ही बस का पीछे का हिस्सा ख़त्म हुआ वहीं पर दीदी रुक गयी और वो अपने दोनों हाथ नीचे ले जाकर अपनी गुलाबी साड़ी और हल्के गुलाबी रंग के पेटीकोट को पकड़कर दीदी ने अपनी जांघो से ऊपर ले लिया तब मैंने देखा कि दीदी की जांघे बिल्कुल गोरी और गोलगॉल मोटी सी थी, उनके नीचे पीछे की कुछ मोटी सी रेखाए उनके पैरों के दोनों हिस्सो को अलग करती हुई दिखाई दे रही थी फिर नीलू दीदी ने अपने दोनों पैरों को मोड़कर अपने गोरे गोरे बड़े आकार के कूल्हों को नीचे ले जाते हुए बैठकर मूतना शूरू कर दिया।
अब तो मुझे दीदी के कूल्हे साफ साफ दिख रहे थे, जिसको देखकर मेरी आखें बिल्कुल चकित हो चुकी थी वो सब बहुत रोचक था और फिर कुछ देर बाद दीदी का पूरा पेशाब उनके दोनों पैरों के बीच के उस छेद से बाहर निकल चुका था और दीदी अपना सर आगे की तरफ नीचे झुकाती हुई अपनी चूत को एक बार देखने के बाद उन्होंने अपनी पेंटी को खड़े होते हुए अपनी उंगलीयों के सहारे से ऊपर करके जांघो के ऊपर से कमर तक पहुंचा दिया और उन्होंने अपनी चूत को उससे ढक लिया और अब वो अपनी साड़ी और पेटीकोट को हल्के से नीचे छोड़ती हुई मेरी तरफ मुड़ गई। अब दीदी मुझे देखती उसके पहले में अपने आप बस के आगे की तरफ चलने लगा और में बस में चड़कर अपनी सीट पर जाकर बैठ गया और मेरे पीछे पीछे नीलू दीदी भी अपनी सीट पर आकर बैठ गयी और हमारी बस एक बार फिर से चल पड़ी और मैंने अब उनके चेहरे से एक बात पर गौर किया कि नीलू दीदी मुझे अब तक बिल्कुल नासमझ बच्चा समझती थी, लेकिन अब यहाँ मेरी हालत कुछ और थी और मेरे लंड पहली बार इतना बड़ा कड़क होकर उसके अंदर से अपना पानी निकाल रहा था तो दो घंटे के सफ़र के बाद हमारी बस एक बार फिर से रुक गयी और अब सभी लोग बस से नीचे उतरने लगे और में भी अपनी दीदी को बस के अंदर छोड़कर में बस से नीचे उतर गया और फिर मैंने देखा कि आगे बहुत सारा ट्रॅफिक जाम लगा हुआ था और कुछ देर बाद हमारे सुनने में आया कि आगे ज्यादा बारिश होने की वजह से नदी के ऊपर बना पूल टूट गया है और वो कल सुबह दस बजे से पहले ठीक नहीं हो सकता। फिर तुरंत ही ड्राइवर ने हम सभी को बस में चढ़ाते हुए बताया कि यहाँ से आगे जाने के लिए पीछे से और किसी भी साइड से कोई रोड नहीं है इसलिए हमें शायद सुबह दस बजे तक यहाँ से पीछे कुछ दूरी पर चलने के बाद एक होटल के पास आज रात बितानी पड़ेगी और वहां पर नहाने और सोने के लिए किराए पर कमरा भी हम ले सकते है और हाँ सब लोग चाहे तो अच्छा खाना भी वहां पर खा सकते है। फिर हम सभी लोग उसकी सारी बातें सुनकर बस में अपनी अपनी सीट पर जाकर दोबारा बैठ गये। उसके बाद हमारी बस उस होटल की तरफ चल पड़ी जहाँ पर हमे अपनी रात बितानी थी।
फिर मैंने अपनी दीदी को भी वो सब कुछ बता दिया जो मैंने देखा और सुना था। हमारी बस एक पुराने होटल पर जाकर जैसे ही रूकी तब और तेज़ी से हवा के साथ बारिश शुरू हो गई और मैंने दीदी से पूछा बोलो अब क्या करेंगे? तो दीदी ने कहा कि बाहर बारिश हो रही है और मुझे बहुत ठंड भी लग रही है चलो पहले हम दोनों खाना खा लेते है उसके बाद हम कोई रूम लेते है। फिर दीदी ने अपना एक बेग खोला उसमे से एक बेग निकाला जिसमें एक टावल और कुछ कपड़े भी थे। उसमे मैंने अपनी टी-शर्ट को भी रखा। उसके बाद में और नीलू दीदी बारिश में भीगते हुए होटल में चले गए और हम दोनों ने वहीं पर खाना खा लिया। फिर हमारे खाना खा लेने के बाद दीदी ने खाने के पैसे देने के बाद हम दोनों ने एक सिंगल कमरे की चाबी ली और सीधे रूम में चले गये। अंदर जाकर देखा उस रूम में एक छोटा सा पुराना पलंग लगा हुआ था और उस पर एक तकिया और एक कंबल रखा हुआ था और उस कमरे में एक छोटा सा बाथरूम भी था।
फिर में पलंग पर जाकर एक साइड पर लेटते हुए दीदी से बातें करने लगा। तभी कुछ देर बाद दीदी पलंग के पास आ गई और वो मुझसे कहने लगी कि अरे यार मेरी साड़ी तो पूरी भीग चुकी है चलो में अब इसको यहीं पर सुखा देती हूँ और इतना बोलकर नीलू दीदी ने अपनी साड़ी का पल्लू अपने कंधे से उतारकर पलंग पर रख दिया और उनकी इस हरकत को देखकर मुझे एक बात अब बिल्कुल पक्की लगी कि नीलू दीदी मुझे अब तक बिल्कुल नासमझ छोटा बच्चा समझ रही थी, इसलिए वो यह सब मेरे सामने कर रही थी। अब दीदी अपने पेटीकोट में फंसी अपनी साड़ी को हल्के से घूमते हुए निकालने लगी और मुझे दीदी के एकदम गोल बूब्स उनके उस टाइट ब्लाउस से थोड़े से नीचे लटके हुए दिख रहे थे और दीदी की वो सफेद रंग की पतली सी ढीली ब्रा मुझे पूरी तरह से उनके हल्के गुलाबी रंग के ब्लाउज से दिख रही थी। अब दीदी ने अपनी पूरी साड़ी को उतारकर पलंग पर निकालकर रख दिया जिसकी वजह से दीदी अब सिर्फ़ हल्के गुलाबी रंग के पेटीकोट और ब्लाउज में कमर से नीचे झुककर पलंग पर रखी हुई अपनी साड़ी को वो लपेट रही थी, जिसकी वजह से दीदी के गोरे गोरे बूब्स उनके ब्लाउज के ऊपर के खुले हुए हिस्से से एक दूसरे के साथ मस्ती करते हुए मुझे दिखाई दे रहे थे और दीदी के पेटीकोट से ऊपर क्रीम जैसा सफेद पेट पर एक हल्का सा निशान दिख रहा था और दीदी के पेटीकोट के नाड़े के नीचे एक जगह से कमर के ऊपर मुझे दीदी की पेंटी दिखाई दे रही थी।
फिर दीदी कुछ देर बाद उठकर बाथरूम में चली गयी और फिर मैंने भी उनके चले जाने के बाद अपनी टीशर्ट और अंडरवियर को उतारकर में सिर्फ़ पेंट पहनकर पलंग के एक कोने में कंबल को अपने ऊपर खोलकर तकिए पर मैंने अपना सर रखा और में लेट गया। मेरे लेटने के कुछ देर बाद मेरी दीदी बाथरूम से वापस बाहर आ गई और वो पलंग के दूसरे हिस्से में अपने कूल्हों को तकिए से चिपकाकर बैठकर अपने बाल सवारने लगी, फिर मैंने अपना चेहरा दीदी की तरफ घुमाया तो अचानक मैंने देखा कि दीदी के पेटीकोट के नाड़े के नीचे पेट की तरफ जेब की तरह कुछ हिस्सा खुला हुआ था जिससे दिखाई दे रहा था कि दीदी ने अपनी पेंटी को निकाल दिया था और अब उनकी अंदर की गोरी चमड़ी पर थोड़े से लंबे काले बाल मुझे दिख रहे थे और फिर दीदी अपने पैरों को पलंग पर रखते हुए बोली क्यों बहुत ठंड है ना मेरू? और अपने आप को मेरी तरफ करके कंबल को साइड से ऊपर करके मेरी तरफ मुस्कुराकर दीदी ने अपनी एक जांघ को मेरी कमर पर रख दिया अपने एक हाथ को सीधा करके मेरे बदन के ऊपर रखा और अपना दूसरा हाथ बिल्कुल छोटा बच्चा समझकर मेरी कमर पर पकड़ बनाते हुए अपनी गरम गरम सांसो को मेरे चेहरे पर छोड़ते हुए उन्होंने अपनी दोनों आखों को बंद कर लिया। फिर मैंने महसूस किया कि उस समय नीलू दीदी की मोटी मोटी गरम जांघे मेरी जांघो से एकदम चिपकी हुई थी।
मेरे दोनों हाथ मेरी और दीदी की छाती के बीच दबे हुए थे और मेरा पेट दीदी के मुलायम पेट के साथ चिपका हुए था और मेरा मोटे आकार का लंड अब कड़क होकर दीदी के बदन को छू रहा था। अब मैंने अपने आप को एक बच्चे की तरह अपना एक हाथ ऊपर निकालकर अपनी उँगलियों को खोलकर नीलू दीदी के उभरे हुए बूब्स पर अपनी हल्की पकड़ बनाते हुए अपने चेहरे को दीदी के बूब्स पर रखकर अपने मोटे आकार के बिल्कुल कड़क लंड को दीदी की चूत के ऊपर सेट करके अपने आप को दीदी की तरफ धकेलते हुए में लेट गया और अब मेरे होंठ थोड़े से खुले हुए दीदी के बूब्स पर दब रहे थे और दीदी के गीले ब्लाउज का स्वाद मेरे मुहं में आ रहा था, जो मुझे धीरे धीरे बहुत गरम कर रहा था। अब मेरा लंड को दीदी के शरीर की गरमी उनके पेटीकोट के अंदर से महसूस हो रही थी और दीदी की मुलायम और गरम मोटी चूत अब मेरे लंड से पेटीकोट के अंदर से दब रही थी और अब मेरे लंड से बहुत सारा पानी निकल रहा था। फिर तभी अचानक से मेरे लंड को एक करंट सा लगा और में एकदम ठंडा होकर दीदी से चिपके हुए कब सो गया, मुझे इस बात का बिल्कुल भी पता नहीं चला।
फिर जब मेरी आंख खुली उस समय सुबह के 6 बज चुके थे और रूम के अंदर रोशनी भी आ चुकी थी। फिर मैंने अपने आप को दीदी की तरफ किया तो में क्या देख रहा हूँ कि अब दीदी का वो पेटीकोट उनकी कमर से ढीला होकर आधा नीचे सरककर उनकी गोरी जांघे और एक बड़ी सुंदर चूत को दिखा रहा था और हमारा वो कंबल कमर से नीचे चला गया था और दीदी इस बार मेरे बहुत करीब थी। में उनका यह नया रूप देखकर बहुत जोश में आ चुका था इसलिए मैंने जैसे ही अपना हाथ दीदी की नंगी चूत को छूते हुए सहलाता जा रहा था और मुझे यह सब करना बहुत अच्छा लग रहा था, क्योंकि यह मेरा पहला अनुभव था जिसके में पूरे पूरे मज़े अपनी सेक्सी दीदी के साथ लेना चाहता था कि तभी कुछ देर अचानक से दीदी ने अपनी आखें खोली और वो उठकर पलंग पर बैठ गयी। अब दीदी ने नीचे अपने पेटीकोट की तरफ देखा और वो उसको टाइट करती हुई पलंग से नीचे उतर गई।
फिर उसके बाद दीदी ने मेरी तरफ देखा, लेकिन मैंने अपनी दोनों आखें जानबूझ कर बंद कर ली। अब दीदी ने अपने बेग से टावल निकाल लिया और वो बाथरूम में चली गयी और फिर दीदी करीब 15 मिनट तक नहाने के बाद अपने बूब्स से जांघो तक उस टावल को अपने गोरे नंगे बदन से लपेटकर बाहर आ गई और उन्होंने मेरे पास आकर मुझे भी उठा दिया और वो मुझसे बोली कि मेरु चलो, अब जल्दी से उठो और बाथरूम में जाकर नहाकर बाहर आओ। तो में उनके कहने पर पलंग से उठ गया और तब मैंने बोला कि दीदी आप मुझे यह टावल तो दो, दीदी ने मुझसे कहा कि तुम पहले अंदर जाकर नहा लो उसके बाद तुम मुझे आवाज लगा देना, में इसको लेकर चली आउंगी। अब में उनकी बात को सुनकर उनसे हाँ कहते हुए सीधा बाथरूम में चला गया और मुझे बहुत अच्छी तरह से पता था कि अब दीदी अपने कपड़े पहनने वाली है इसलिए मैंने धीरे से बाथरूम का थोड़ा सा दरवाजा खोल दिया, जिसकी वजह से मुझे बाहर का वो सब नजारा दिखाई दे और तभी मैंने देखा कि अब नीलू दीदी बिल्कुल मेरे सामने टावल पहने पलंग के पास खड़ी हुई थी। उनको देखकर में बहुत अजीब सा महसूस कर रहा था जिसकी वजह से मेरा लंड भी अब अपना आकार बदलने लगा था और फिर मैंने दीदी को देखते हुए अपने तनकर खड़े लंड को अपने हाथ में पकड़ लिया। तभी दीदी ने धीरे से उस टावल को खोल दिया और उसको अपनी कमर पर बाँध लिया। फिर जैसे ही दीदी ने ऊपर से टावल को खोला तो उनके दो बड़े आकार और एकदम गोरे बूब्स जो थोड़े नीचे लटकते हुए बिल्कुल खुली हवा में दीदी की छाती पर झूल रहे थे और दीदी के भूरे कलर के निप्पल उनके पूरे बूब्स के ऊपर तने हुए खड़े थे। मैंने जब दीदी के निप्पल देखे में बहुत चकित हुआ क्योंकि इससे पहले मुझे उनके बूब्स और उनके इतने बड़े निप्पल होंगे मैंने कभी सोचा भी नहीं था। अब दीदी अपने एक छोटे से बेग से कोल्ड क्रीम निकालने के बाद वो उसको अपने चेहेरे और हाथों पर लगाने लगी और क्रीम लगाते समय दीदी के बड़े आकार के गहरे रंग के निप्पल थोड़े नीचे लटकते और उनके बूब्स नीचे झुकने की वजह से बड़े ज़ोर से हिलते हुए एक दूसरे से टकरा रहे थे जैसे वो एक दूसरे से लड़ाई कर रहे हो। अब मैंने यह सब देखकर जोश में आकर में अपने तनकर खड़े लंड को अपनी मुठ्ठी में पकड़कर मसलने लगा और धीरे धीरे हिलाने लगा। मुझे यह सब करने में बहुत मज़ा आ रहा था। फिर दीदी ने अपने बेग से एक काली कलर की ब्रा और गहरे हरे रंग का ब्लाउज बाहर निकालकर अपने बूब्स और छाती को उससे ढक लिया और उसके बाद दीदी ने अपनी कमर से उस टावल को हटाकर पलंग पर रख दिया और अब दीदी मेरे सामने सिर्फ़ अपने ब्लाउज में खड़ी थी।
फिर मैंने दीदी के दोनों पैरों के बीच देखा तो में अपनी चकित नजरों से वो नजारा देखता ही रह गया वाह क्या मस्त नजारा था वो? मैंने देखा कि दीदी की केले के आकार की उभरी हुई चूत पर बहुत सारे महीनो से ना कटे हुए लंबे काले बाल, दोनों मोटी जांघो के ऊपर और कमर तक पहुंचने से पहले वो अपने दोनों मोटे मोटे चूत के होंठो को छुपा रहे थे और उसी समय वो सब कुछ देखकर मेरे लंड में एक करंट सा आ गया और मेरे लंड से सफेद रंग का गरम गरम चिपचिपा प्रदार्थ सामने की दीवार पर चिपक गया और अब कुछ ही सेकिंड हल्के हल्के दो चार झटके देते हुए मेरा लंड अब एकदम मुलायम होकर नीचे झुक गया जैसे उसकी पूरी जान बाहर निकल गई हो वो देखते ही देखते बिल्कुल मुरझा गया। तो मैंने बाथरूम का दरवाजा धीरे से बंद कर लिया और फिर में नहाने लगा। कुछ देर बाद दीदी ने अपनी साड़ी पहनने के बाद मुझे टावल लाकर दे दिया और फिर उसके बाद में भी जल्दी से अपने कपड़े पहनकर बाथरूम से बाहर आ गया। मैंने देखा कि दीदी हम दोनों के लिए कप के अंदर चाय भर रही थी और चाय को पीते हुए मैंने दीदी का चेहरा देखा तो मुझे ऐसा लगा जैसे कि वो अभी भी मुझे छोटा सा बच्चा समझ रही थी और मेरी नजर उसकी गोरी छाती पर थी और कुछ देर बाद में और नीलू दीदी करीब 9 बजे अपने कमरे से बाहर निकलकर बस की तरफ चल पड़े ।।
धन्यवाद .