अकेले में साली की पलंग-तोड़ चुदाई की स्टोरी

दोस्तो मेरी लास्ट स्टोरी को 5 दिन में 12 हज़ार लोगों ने पढ़ा. इसके लिए मैं आप सब का बहुत-बहुत आभारी हू. आज की स्टोरी में आपको बतौँगा की अगली सुबह कैसे हमने मौके का फ़ायदा उठा के बातरूम रंगीन कर दिया.

तो पिछली रात की चुदाई के बाद हम दोनो अपने-अपने रूम में चले गये. पर नींद कहा आ रही थी. नूवर और मुझे दोनो का पता था की हम कल अपने-अपने रास्ते चल पड़ेंगे. यही सोचते-सोचते मैं सो गया. अगली सुबह मेरी आँख खुली तकरीबन 8 बजे, जब मेरी सास मुझे जगाने आई और बोली-

सास: हम गुरुद्वारा जेया रहे है, और 9-9:30 तक आएँगे. मैने हा में सिर हिलाया और लेट गया. फिर अचानक मेरा माता तनका, और मेरा दिल धड़क उठा की यही तो सही मौका था. क्यूंकी वो नूवर को खुद मेरे बिस्तर पर छ्चोढ़ के जाएँगे. मैं फिर उठा, और नूवर के रूम की तरफ भागा.

देखा तो रूम खुला था, पर नूवर बेड पर नही थी. फिर इधर-उधर देखा तो बातरूम के बाहर उसकी चप्पल पड़ी हुई थी. मैने बातरूम का दरवाज़ा खटखटाया.

आवाज़ आई: रूको मम्मी, आती हू.

मैने बोला: पागल मैं हू. कल रात का साथी.

नूवर बोली: दो मिनिट, बाहर आ रही हू.

मेरे से रुका नही गया, तो मैं चिल्लाया: जल्दी खोलो, कुछ एमर्जेन्सी है.

नूवर ने दरवाज़ा खोला और घबराते हुए बोली: क्या हुआ? चिल्लाए क्यूँ? बच्चू (उसका लड़का) रो रहा है क्या?

मैं बोला: बच्चू नही, मैं रो रहा हू.

नूवर हैरानी में बोली: अब तुम्हे क्या हो गया?

मैने कहा: तुम चुप-छाप अकेले नहा रही हो. बुरा तो लगेगा ना.

नूवर बोली: पागल मत बनो, नीचे मम्मी-पापा है.

मैने उत्साह में जवाब दिया: बेवकूफ़, मैदान खाली है.

उसने सोचा और बोली: तो फिर?

मैं: बोला: फिर कुछ बही. जाता हू, और उनके आने की वेट करता हू. जब वो आ जाएँगे, तो मैं तुम्हारे रूम में अवँगा, और कहूँगा की अंदर मत आना.

ये सुन के वो हस्स पड़ी. मैने दरवाज़े को धक्का दिया, और बातरूम में घुस गया. मैने अपने कपड़े उतारे, और नूवर का भी लपेटा हुआ टवल उतार के टाँग दिया. हम दोनो एक-दूसरे के सामने नंगे खड़े थे. मैने इतना खूबसूरत जिस्म सिर्फ़ फ़िल्मो में देखा था.

नूवर सामने खड़ी शर्मा रही थी, पर मेरी आँखों में आँखें डाल के देख रही थी. मैं भी उसे अपनी पॅल्को में उतार लेना चाहता था. पर शायद उसका हुस्न मेरी आँखें झेल नही पा रही थी. मैं जी भर के उसे निहार रहा था. मैं हौले से उसके पास गया, और और उसे सामने दीवार से लगा दिया.

हमने एक-दूसरे के हाथो में हाथ डाले, और एक-दूसरे के होंठ कुछ यू चूसने लगे, जैसे बरसो से प्यासे हो, और बरसो से बिछड़े हो. मैने नूवर का चेहरा हाथो में लेके उसके रसीले लाल होंठो को मॅन भर जाने तक चूसा. पर मॅन तो मेरा शायद भरा ही नही था. मुझे भूख भी बहुत थी, और दावत उड़ाने के लिए पकवान भी बहुत.

बस कमी थी तो वक़्त की. मैं धीरे-धीरे नीचे जाना चाहता था. मैं बातरूम सीट पर बैठा और नूवर को अपनी तरफ खींच लिया. अब बारी थी उसके दूध की दावत उड़ाने की. मैने नूवर केड दोनो दूध हाथ में लिए, और बारी-बारी चूस्टे हुए उनमे खो गया.

मेरा एक हाथ नूवर के पुर जिस्म को सहला रहा था. दूध पीते-पीते मेरा हाथ उसके बालों को सहलाते हुए उसकी पीठ और जांघों से हो कर उसकी गांद पर आ कर रुक गया. नूवर का जिस्म शादी-शुदा और एक मा होते हुए भी बहुत नाज़ुक था, और बॉडी शेप किसी 19-20 साल की लड़की जितनी थी. बूब्स और गांद बस इतने की हाथो में समा जाए.

बहुत देर तक चूसने के बाद मुझे उसकी छूट का ख़याल आया. मैं दीवार से लग के नीचे बैठा, और नूवर को मेरे मूह के सामने ले आया. मैने उसकी टाँग उठा के कंधे पर रखी, और छूट के शहद का घूँट भरने लगा. क्या खुश्बू थी उसकी. मैं सिर्फ़ छूट चाटने में वक़्त बिता देना चाहता था. छूट की सिसकियाँ इतनी भारी थी, की मैने शवर ओं कर दिया के कही बच्चा बाहर सुन ना ले.

नूवर सामने दीवार पर दोनो हाथ लगा के मेरे मूह में अपनी छूट धकेलने लग गयी. मैने जोश-जोश में दो-टीन बार छूट के दाने पर काट दिया जिससे उसकी दर्द से आ निकल गयी. फिर वो पीछे हटी, और मेरे सामने घुटनो पर आके मेरे लंड को सहला-सहला के चूसने लग गयी. नूवर पुर जोश में थी, और उसके अंदर की हवस अब जाग चुकी थी.

नूवर ने चूस-चूस के मेरे लंड का पत्थर बना दिया था. मुझसे अब रहा नही जेया रहा था. मैने नूवर का मूह हाथो में लेके उसको रोका. हमारी नज़रे आपस में मिली, और हम एक-दूसरे को गंभीर प्यार भरे भाव से देख रहे थे. मैं उठा और नूवर को अपनी बाहों में भर लिया.

शवर के नीचे ठंडे पानी में हमारे गरम जिस्म कहर ढा रहे थे. हम दोनो एक-दूसरे की धड़कनो को महसूस कर रहे थे. मैने नूवर का मूह उपर करके एक किस किया, और आयेज के आक्षन के लिए आँखों ही आँखों में सहमति माँगी, तो नूवर ने सिर झुका लिया.

मैं समझ गया की बंदी तयार थी. मैने नूवर की दोनो बाहों को दीवार से लगा के पीछे से उसकी एक टाँग उठाई, और लंड छूट के दरवाज़े पे दस्तक दे रहा था. धीरे से जब अंदर डालना शुरू किया तो छूट तो मलाई सी भारी हुई थी. वक़्त की कमी को महसूस करते हुए मैने ज़्यादा वक़्त गवाना नही चाहा, और लंड नूवर की रस्स मलाई छूट में डाल दिया.

नूवर की इस्शह निकल गयी, पर नूवर चूड़ने को इतनी बेताब थी की उसने खुद मोर्चा संभाल लिया, और टाँग नीचे करवा के खुद लंड के उपर नाचने लगी. दोनो हाथो का सहारा लेके नूवर खुद चूतड़ आयेज-पीछे करके घोड़ी बन के छुड़वा रही थी.

नूवर की गहरी और लंबी सांसो में आ आ आ उफ़फ्फ़ सी बातरूम गूँज उठा था. उसकी आवाज़ को दबाने के लिए मैने अपनी दो उंगलियाँ छूट में डाली, और फिर उसके मूह में डाल दी. नूवर उंगलियों पे लगा छूट का पानी अम्म उम्म करके चाट रही थी, पर आवाज़ कुछ कम थी अब.

फिर मैं बातरूम की सीट पर बैठ गया, और नूवर मेरे उपर आके लंड पर बैठ गयी. अब इस पोज़ में लंड पूरा अंदर जेया रहा था, और नूवर का मज़ा भी दुगना हो गया. उसने मेरे गले में हाथ डाले, और लंड को रगड़ते हुए पीछे को झुकते हुए लंड अंदर-बाहर करने लगी.

इससे शायद उसका ग-स्पॉट हिल गया, और बस 5 मिनिट्स में नूवर ने अपना पानी निकाल दिया. मेरा भी ज़्यादा वक़्त नही था. अब मेरा भी लंड किसी भी वक़्त उबाल सकता था. मैने नूवर को नीचे बिताया, और लंड उसके मूह में डाल दिया. नूवर को बोला के ज़्यादा टाइम नही बस फटाफट इसको खाली करो.

नूवर ने लंड मूह में लिया, और लंबा-लंबा चूसने लगी. मेरा लंड तो शायद झड़ने को तैयार ही नही था. मैने नूवर को कहा तोड़ा और टाइट चूसो, तो बेचारी ने और ज़ोर लगाया, और ज़ोर से चूसने लगी. सच काहु तो मेरा उसकी छूट से मॅन अभी भरा नही था. मैने नूवर को वॉशबेसिन स्लॅब पे बिता के उसके सामने खड़ा हो गया.

नूवर ने टांगे फैलाई, और मेरे लंड के लिए राह खुल गया. मैने ज़ोर-ज़ोर से झटके लगाने शुरू किए नूवर अफ अफ करके बस साथ दे रही थी, की मैं किसी तरह झाड़ जौ. नूवर की आवाज़ो से बातरूम गूँज उठा था, पर मैने भी इस बार परवाह नही की, और मामला जारी रखा. मैं बॅस झड़ने ही वाला था, की वो बोली-

नूवर: बस करो, बाद में कर लेना.

पर मैं रुका नही, और उसके मूह पे हाथ रख के झटके मारता रहा, और वो उम्म उम्म करके लाचार पड़ी रही. फिर मैं उसके अंदर ही झाड़ गया. हम उसी पोज़िशन में कुछ देर एक-दूसरे को चिपके रहे. नूवर ने फिर मुझे धक्का मार के हटाया, और बोली-

नूवर: चल हॅट जानवर कही का.

अगली चुदाई हमने दोपहर को की, जिसकी कहानी अगली बार बतौँगा. सो दोस्तों हम दोनो की दास्तान अब यू ही चल रही है, और महीने मेी कोई ना कोई चान्स मिल ही जाता है, जब हम चुदाई का बोझ हल्का कर लेते है. अपने अपने विचार मुझे मैल करके बताए.

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