मेरा नाम दिव्या है, और मैं आप सब के साथ अपनी ज़िंदगी का एक सच शेर करना चाहती हू. इसको पढ़ने के बाद मुझे अपनी फीडबॅक ज़रूर दे, की मैने सही किया या ग़लत. ये कहानी 6 महीने पहले की है, तो चलिए सीधे कहानी पर चलते है.
मेरी उमर 35 साल है, और मेरा एक बेटा है 4 साल का. मेरे पति का देहांत डेढ़ साल पहले हो चुका है, और मैं एक विधवा हू. नॉर्मली बेटे के मरने के बाद उसके मा-बाप अपनी बहू को उसके घर भेज देते है. लेकिन मेरे ससुराल वालो ने ऐसा नही किया. उन्होने मेरे पति की डेत के बाद भी मुझे वही इज़्ज़त और अधिकार दिए, जो पहले दिए थे. सीधे-सीधे काहु, तो अब मैं अपने ससुराल में एक बेटी बन कर रह रही थी.
लेकिन ये भी एक सच है की ससुराल वालो या घर वालो का प्यार पति के प्यार की कमी को पूरी नही कर सकता. अब मेरी वासना बढ़ने लगी थी. मुझे अपने पति के साथ बिताए वो सारे कामुक पल सताने लगे थे. रोज़ रात को यही सोचते-सोचते मैं तड़पने लगी थी.
अब मेरा हाथ अपने आप ही मेरी छूट पर चला जाता, और मैं अपनी छूट को सहलाने लगी थी. धीरे-धीरे ये सहलाना छूट को मसालने और उसमे उंगली करने में बदल गया. अब मैं ज़ोर-ज़ोर से अपनी छूट को मसालती थी, और उसमे उंगली करती थी. मैं तब तक उंगली करती थी, जब तक की मेरी चूत पानी ना छ्चोढ़ दे.
धीरे-धीरे मेरे बदन की आग बढ़ती गयी, और ये चीज़े काम करना छ्चोढ़ गयी. अब उंगली करते-करते मेरा हाथ तक जाता था, लेकिन मेरी छूट पानी नही छ्चोढती थी. इससे मैं बहुत तड़पने लगी. मुझे अब एक बड़ा लंड चाहिए था. फिर मैने सोचा एक डिल्डो मंगवा लेती हू.
मैने एक डिल्डो माँगाया, और उसको अपनी छूट में डाल कर मज़ा लेना चाहा. लेकिन वो मुझे कुछ अजीब सा लगा. असली लंड असली ही होता है. तो डिल्डो मुझे किसी काम का नही लगा. वासना से भारी मैं हर मर्द के लंड की तरफ देखने लगी. अब मुझे समझ नही आ रहा था की मैं अपनी छूट के बारे में सोचु, या परिवार की इज़्ज़त के बारे में.
फिर एक दिन मैं अपने ससुर के बड़े भाई के घर गयी. उन्हे मैं टाइया जी बुलाती थी. मेरी सास को अपनी जेठानी, यानी टाई जी से कुछ काम था, तो वो मुझे साथ ले गयी. उनका घर पास ही था, तो हम पैदल चल कर वाहा पहुँच गये.
फिर टाई जी ने हमे बिताया, और अपने नौकर को छाई बनाने को कहा. उन्होने एक 20 साल के लड़के को नौकर रखा हुआ था. आक्च्युयली वो लड़का उनको 10 साल की उमर में मिला था. उसके मा-बाप नही थे, तो उन्होने उसको अपने घर में रख लिया था. वो पढ़ाई नही करता था तो घर के काम करने लग गया.
उस लड़के का नाम सूरज था, और वो 5’9″ हाइट वाला था. दिखने में वो ठीक-ताक था. उसको जिम जाने का शौंक था, लेकिन उसने घर पे ही रह कर अछा शरीर बनाया हुआ था. उस वक़्त तक मेरे दिमाग़ में उसके लिए ऐसी कोई फीलिंग नही थी. लेकिन थोड़ी देर में ही ये फीलिंग बदल गयी.
मैने उस दिन वाइट लेगैंग्स के साथ ऑरेंज कुरती पहनी थी. कुरती स्लीव्ले थी, और उसका गला डीप था. इतना डीप की झुकने से बूब्स लटकते हुए दिख जाए. फिर सूरज छाई लेके आया, उसने छाई टेबल पर रखी. मैं जब कप उठाने आयेज को झुकी, तो मेरे बूब्स दिखने लगे.
तभी मेरी नज़र सूरज पर पड़ी, जो टकटकी लगाए मेरे बूब्स देख रहा था. वो इतना ध्यान-मगन होके मेरे बूब्स देख रहा था, की उसको पता ही नही चला की मैने उसको देख लिया था. पता नही क्यूँ जब वो मेरे बूब्स देख रहा था, तो मुझे अछा लग रहा था. मेरे जिस्म में एक अजीब सी सनसनी होने लगी थी.
शायद इतने वक़्त से जिस वासना से मैं लॅड रही थी, वो मुझे अछा फील करवा रही थी. मेरा मॅन उसको और दिखाने का कर रहा था. फिर मैं जान-बूझ कर आयेज होके बैठ गयी, जिससे मेरी क्लीवेज उसको दिख जाए. वो ऐसे मेरी क्लीवेज को देख रहा था जैसे मौका मिलने पर उसको खा ही जाएगा.
उधर मैं छाई पी रही थी, और इधर मेरे लिए सूरज की हवस देख कर मेरी छूट गीली हो रही थी. फिर मैं सीधी हो गयी, और सूरज का ध्यान मुझसे हॅट गया. तभी उसने मेरी तरफ देखा, और मैने उसको एक स्माइल पास कर दी. फिर हम वाहा से आ गये.
उस रात भी रोज़ रात की तरह मैं अपनी छूट ठंडी करने की कोशिश कर रही थी. मेरी आँखें बंद थी, और मैं पनटी में अपना हाथ डाले हुए थी. बंद आँखों में मैं अपने हज़्बेंड को देख रही थी. लेकिन तभी मुझे सूरज का ख्याल आने लगा.
उसके बारे में सोचते हुए मेरे हाथ की स्पीड अपने आप तेज़ हो गयी. मैं बड़ी ज़ोर-ज़ोर से अपनी छूट में उंगली करने लगी, और फाइनली मेरी छूट ने पानी की ज़बरदस्त पिचकारी छ्चोड़ी. आज बहुत दीनो बाद मुझे ऐसा सुकून भरा मज़ा मिला था. ऐसा लग रहा था की मेरे पति की जगह अब सूरज आ चुका था मेरे मॅन में.
फिर मैं ऐसे ही सोचते-सोचते सो गयी. सुबा नहाते हुए मैने सोचा की अगर मैं कुछ नही करूँगी, तो मेरी जवानी ऐसे ही तड़प्ते हुए निकल जाएगी. ये सोच कर मैने डिसाइड कर लिया, की अब मैं सूरज से ही अपनी छूट की गर्मी को ठंडा कार्ओौनगी. लेकिन इसके लिए सूरज को भी पता होना चाहिए था, की मैं उससे क्या करवाना चाहती थी.
फिर मैं सोचने लगी की किस बहाने से सूरज से बात करू, और उसको कैसे बतौ की मैं उससे चूड़ना चाहती थी. मैं चाहती थी की वो मेरी छूट की आग को ठंडा करे. मैं ये भी चाहती थी की पहल सूरज की तरफ से हो, ताकि कल वो ये ना कहे की मैं उसके पास गयी थी.
तभी मेरे दिमाग़ में एक आइडिया आया, जिसको सोच कर मैं खुश हो गयी.
वो आइडिया क्या था, और कैसे उसका इस्तेमाल करके मैं अपनी छूट की आग सूरज से बुझवाने में कामयाब हुई. ये सब आपको कहानी के अगले पार्ट में पता चलेगा. अगर आपको कहानी का मज़ा आया हो, तो इसको शेर ज़रूर करे.