समधन की दबी हुई चिंगारी भड़की

तो दोस्तों आपने पिछले पार्ट में पढ़ा कैसे मेरे समधी जी मेरा नंबर चुरा के मेरे साथ दोस्ती करने की कोशिश करने लगे, और मुझे बहला-फुसला कर नज़दीकियाँ बढ़ने लगे. मैं भी साज-धज कर उनके घर पूजा में जाने के लिए निकल गयी.

जब हम बेटे के ससुराल पहुँचे, तो समधी जी मेरी बहू शरुष्टि से पूछने ही वाले थे की तेरे घर से और कोई, तब मैं उनके सामने आई. वो मुझे देख कर थोड़ी देर के लिए कही खो गये. जब शरुष्टि ने पूछा क्या हुआ तब वो कुछ नही बोले और मुझे नमस्ते की.

मैने भी उन्हे स्माइल के साथ नमस्ते की. मेरे बेटे के ससुर की खुशी का कोई ठिकाना नही था. अक्सर आदमी अपनी पसंदीदा औरत को देख कर तोड़ा पागल हो जाता है. ऐसा ही हाल मेरे समधी जी का था. मैने एक बात नोटीस की, की मेरे समधी जी में बहुत से चेंजस आए थे, लीके उनकी ड्रेसिंग, बात-चीत करने का तरीका.

शॉर्ट में काहु तो उन्होने अपनी पर्सनॅलिटी डेवेलप की थी. काफ़ी हद तक अपने मोटापे को कंट्रोल करके स्लिम बॉडी की थी.

मैने भी उनको देख कर अप्रीशियेट किया. जब पूजा चालू हुई तब पूजा के दौरान उनका ध्यान भगवान से ज़्यादा मेरी और था. मुझे भी ये बात पता चल गयी थी की किशन जी मुझे देख कर बहुत उत्सुक थे. हम फिर ईव्निंग को घर पर चले आए.

मुझे समधी जी पर बहुत ही गुस्सा आ रहा था. कुछ दिन ऐसे ही निकल गये, और उनका एक दिन कॉल आया जब मैं आराम कर रही थी. अब हमारी वीक में एक बार बात होने लगी. मेरे समधी जी कभी मुझसे डबल मीनिंग बात भी बोल लेते, मैं वो अनसुना कर लेती.

कभी मुझे कुछ पर्सनल बात भी पूच लेते थे, और मैं उसका जवाब नही देती. फिर भी पता नही अब मैं उनसे क्यूँ इतनी बात करने लगी थी. ऐसे ही कुछ दिन निकल गये.

एक दिन ऐसा हुआ की मेरे बेटे की सास की तबीयत खराब हुई, और उसको अड्मिट करना पड़ा. हॉस्पिटल हमारे घर से कुछ 20 केयेम की दूरी पर था. तो मेरा बेटा सेटुल और बहू शरुष्टि हेल्प करने पहुँच गये. वाहा जेया कर पता चला की उनको 6-7 दिन और वही रखना पड़ेगा.

पहली रात तो समधी जी ने वाहा निकाल दी. दूसरी नाइट बेटे ने निकाल दी, और समधी जी को उनके घर पर तोड़ा काम था तो भेज दिया. अब शरुष्टि और मेरे समधी जी पुर दिन हॉस्पिटल रुकते और रात को बेटा उनके लिए तिफ्फ़िं लेकर जाता.

एक दिन शरुष्टि को तोड़ा फीवर था तो रात को मैं मेरे बेटे के साथ गयी. क्यूंकी 2-3 दिन से वो अड्मिट थी, और मैं देखने नही जाती तो अछा भी नही लगता. मुझे देख कर मेरे समधी जी को काफ़ी अछा फील हो रहा था.

मुझे उनके चेहरे से टेन्षन ख़तम होती दिख रही थी. मैं तब समझ गयी की उनके जीवन में मेरी इंपॉर्टेन्स कितनी थी. समधी जी मेरे से एमोशनली अटॅच्ड हो गये थे. हम सब साथ में बैठ कर बातें कर रहे थे. तब सिस्टर ने मेडिसिन की लिस्ट दी.

बेटे ने वो लिस्ट ली, और कहा: मैं लेकर आता हू.

फिर सिस्टर से पूछा तो उसने कहा: एमर्जेन्सी नही है. अभी तो हमने हमारे स्टॉक से सब दिया है. आप आराम से हमे ये सब ला कर देना. बेटे ने कहा-

मेरा बेटा ( सेटुल): मम्मी आप यहा बैठो. मैं मेडिसिन्स लेकर आता हू. मुझे भूख भी लगी है तो मैं कुछ खा कर आता हू. आपको कुछ चाहिए तो मुझे कॉल करना, आते टाइम लेकर अवँगा.

मैने कहा: ठीक है बेटा, तुम आराम से जाओ. मैं किशन जी के साथ बैठी हू.

रात का टाइम था तो हॉस्पिटल में हमारे फ्लोर पर कोई नही था. मैं और समधी जी अकेले वाहा पर थे. मुझे तोड़ा दर्र भी लग रहा था. मैं फिर किशन जी से हंसा जी की तबीयत के बारे में पूछने लगी. वो काफ़ी खुश लग रहे थे. उनको मेरा वाहा होना काफ़ी सुकून दे रहा था. मुझे भी अब उनसे सहानुभूति थी. थोड़ी देर हमने इधर-उधर की बात की. फिर समधी जी ने कहा-

किशन जी: आप बुरा ना मानो तो एक बात कहना चाहता हू.

मैं: हा आप बोलिए क्या बात है.

किशन जी: क्या हम पक्के दोस्त बन सकते है? मुझे आप बहुत आचे लगते हो. आपके साथ बात करना अछा लगता है. आपके बिना मुझे कुछ अछा नही लगता. मैं आपको बहुत याद करता हू.

मैं: किशन जी आप कैसी बातें कर रहे हो? ऐसा नही हो सकता, आप क्यूँ ज़िद कर रहे हो?

किशन जी: अर्रे सुमन जी आप सोच रहे है इतना मुस्किल नही है. हमारी बात हमारे बीच रहेगी, तो किसी को क्या ही पता चलेगा?

मैं: अर्रे पर आप समझ नही रहे हो. आप जो बोल रहे हो वो पासिबल नही है. किसी को पता चलेगा तो क्या सोचेगा? और मैं आपकी संधान हू. हमे अपनी लिमिट्स क्रॉस नही करनी चाहिए.

समधी जी: मैने आज तक आपको कभी किसी चीज़ के लिए परेशन किया है? मैं जानता हू की हमारी दोस्ती से हमारे बच्चो पर बुरा असर हो सकता है. पर आप मेरी भावना को नही समझ रहे. मेरे जीवन में कोई नही है, जो आपकी तरह मुझे समझे.

मैं: आप बातें ना बनाए तो अछा है. आपका भी परिवार है, उनके साथ समय निकाले. आपको सब समझ जाएँगे.

समधी जी: क्या आपको आपके परिवार वाले समाज रहे है? कभी किसी ने आप से आपको क्या तकलीफ़ है ऐसा पूछा है? आपके साथ कों बात करता है?

सुमन जी आप कुछ बोल क्यूँ नही रही है?

मैं: मुझे अभी आपसे बहस करना ठीक नही लग रहा. आप अभी हंसा जी की तबीयत का ख़याल करे. और मुझे लग रहा है की अब मैं आपको ज़्यादा परेशन करने लगी हू. तो अब हमे बात करना भी बंद कर देना चाहिए.

किशन जी: नही.. नही.. आप ऐसा नही करना. आप जैसा बोलॉगे वैसा ही होगा. मैने आपको परेशन नही करूँगा. अब से सब कुछ आपकी मर्ज़ी से होगा.

थोड़ी देर के बाद डॉक्टर चेकप के लिए आने वाले थे, तो सिस्टर उन्हे बुलाने आई, और मेरे समधी जी वाहा चले गये. थोड़ी देर बाद मेरा बेटा भी आ गया और मैं उसके साथ घर चली गयी.

मैं उस रात घर आ कर बहुत रोई. मैने फिर रात को सोचा की मैं इतनी सीधी-सॅडी औरत थी, और आज तक मुझसे ऐसा नही हुआ था. मैने मेरे पति अशोक के अलावा किसी गैर मर्द से किसी भी प्रकार का रिश्ता नही बनाया था. मेरी लाइफ में क्या चल रहा था, जिससे मैं मेरे समधी जी से दोस्ती जैसा रीलेशन रख रही थी.

पर धीरे-धीरे मुझे पता चला की मैं अंदर से बहुत अकेली पद गयी थी. मेरे साथ ना मेरा बेटा ठीक से बात करता था, ना ही शरुष्टि को इतना टाइम था. मैं अपने मॅन की बात किसी से शेर नही कर सकती थी. पति भी मेरी हर बात को बीच में से काट देते थे. घर में कोई मुझे सुनने वाला नही था.

हमारे घर में सब आचे से ही रहते थे. लेकिन हम सब अपनी-अपनी लाइफ में बिज़ी थे. अब मुझे धीरे-धीरे समझ आया की मुझे मेरे समधी जी का प्रेज़ेन्स अछा लगने लगा था. पर मेरे समधी जी के दिमाग़ में क्या चल रहा था, वो तो मुझे भी नही पता था.

बस दर्र एक बात का था की कही हम दोनो कोई ग़लती ना कर बैठे. क्यूंकी ऐसा होगा तो हमारी समाज और सोसाइटी में बदनामी होगी. उपर से मेरे बेटे और बहू का भी रीलेशन खराब हो सकता था. ऐसे ही सोचते हुए मैं कब सो गयी मुझे पता नही चला.

दूसरे दिन शरुष्टि की तबीयत ठीक थी तो उसने मुझे कहा: मैं हॉस्पिटल जाती हू, और पापा को यहा आराम करने भेज देती हू. सेटुल को ऑफीस में अर्जेंट काम आया है तो वो मुझे हॉस्पिटल ड्रॉप करके सीधा ऑफीस निकल जाएँगे.

मैने उसको ठीक है कहा, पर मुझे अब बहुत दर्र लगने लगा. क्यूंकी अब घर पर मैं अकेली रहूंगी. समधी जी के साथ घर पर अकेली रहना मुझे बेचैन करने लगा. मुझे दर्र तो लग रहा था, पर ना जाने अंदर से खुशी की लेहायर उडद रही थी. मैं क्या करूँगी ये सोच-सोच कर परेशन होने लगी.

जब किसी औरत को पता चलता है कोई मर्द उसको बेहद पसंद करता है, तो वो उसके सामने साज के सॉवॅर कर रहती है. मैने भी उस दिन येल्लो ऑरेंज सारी पहनी. दोफर के 11 बाज रहे थे, और समधी जी हमारे घर पर आ गये. मैने गाते खोला तो मुझे देखते ही रह गये.

वो मेरा जिस्म देख कर बौखला गये थे. मेरा ब्लाउस तोड़ा टाइट था, तो मेरे बूब्स बाहर निकल आए थे. मैने उनको अंदर आने को कहा. जब मैं उनके लिए पानी लेने किचन में गयी, तो वो मेरी सारी में बँधी उभरी हुई गांद को देख रहे थे. मैने उनको मुस्कुरा कर पानी दिया.

मैं: किशन जी छाई पियोगे ना?

किशन जी: नही, आप आराम से बैठिए. क्यूँ आप तकलीफ़ उठा रहे हो?

मैं: अर्रे आपको मैं कंपनी देती हू ना (मैने तोड़ा मुस्कुरा कर कहा).

किशन जी ( स्माइल के साथ): ठीक है.

अब मैं किचन में छाई बनाने लगी. मैने अपना पल्लू सारी में फ़ससा दिया. किशन जी को मेरी कमर दिख रही थी. वो मुझे चोरी-चोरी देख रहे थे. ना जाने मुझे भी ये सब अछा लग रहा था. मेरे सेक्सी कुवर्व्स देख कर किशन जी बेचैन होने लगे थे. मैने उनको झुक कर छाई का कप दिया. तब उनकी नज़र मेरे बूब्स पर अटक गयी.

जब उनकी नज़र मुझसे मिली, तो मैने उनको स्माइल की, और मेरा कप लेकर उनके सामने बैठ गयी. वो छाई की चुस्की साथ मेरे जिस्म को आचे से देख रहे थे. ना वो कुछ बोल रहे थे, ना मैं कुछ बोल रही थी, बस उनकी और देख कर स्माइल कर रही थी. वो लगातार मेरे बूब्स और कमर को घूर रहे थे. मैने चुप्पी तोड़ते हुए उनसे पूछा-

मैं: किशन जी क्या देख रहे हो?

समधी जी ( हड़बड़ा कर): अर्रे कुछ नही.

वो इतने घबरा गये की उनसे थोड़ी छाई नीचे गिरा गयी. मैं पोछा लेकर आई, तब वो फिरसे मेरे बूब्स को देखने लगे. मेरी संधान जी के बूब्स नींबू जैसे थे, तो वो तो पागल हो रहे थे बड़े-बड़े बूब्स देख कर. मेरी धड़कने तेज़ हो गयी थी. मुझे ये सब अछा भी लग रहा था, पर ये सब ठीक नही हो रहा था, वो भी अची तरह पता था.

जब मैं खड़ी हुई तब वो मेरी कमर को देख रहे थे. उनका मूह मेरी कमर के बिल्कुल पास था. वो गहरी साँस लेकर मेरे जिस्म की खुश्बू सूंग रहे थे. उनकी आँखें नशीली हो गयी थी. मेरी बॉडी में भी अजीब सी हलचल मच गयी थी.

पहली बार किसी गैर मर्द को लेकर ये एहसास हुआ था. मैं अब पोछा रखने किचन में जेया रही थी. तब पीछे मूड कर देखा तो वो मेरी गांद को घूर रहे थे. मैं भी उनको स्माइल देकर किचन में चली गयी. मैं किचन में अपना काम ख़तम कर रही थी, पर मेरा मॅन तो समधी जी में था.

अभी जो थोड़े से टाइम में जो महसूस किया था वो याद कर रही थी. किशन जी के साथ घर पर अकेले होना मुझे बहुत अछा लग रहा था. मेरा मॅन तो उसके पास जेया कर बैठने का कर रहा था, तो मैं जैसे-तैसे काम ख़तम करके उनके पास जेया कर बैठ गयी.

किशन जी: हो गया काम ख़तम?

मैं: हा अब हो गया. आप कहे तो खाना लगा देती हू. फिर आप आराम कीजिए.

किशन जी: आपको देख लिया तो मुझे आराम हो गया.

मैं: ओह, चलो ठीक है मुझे देख कर आराम हो गया हो तो खाना तो खा लीजिए.

किशा जी (डबल मीनिंग): मुझे तो कुछ और खाना है.

मैं (शरारत करते हुए): उसके लिए ताक़त लगती है. वो खाना खाने से आती है. चलिए खाना खा लेते है, मुझे भी भूख लगी है.

मेरी बात सुन कर उनकी आँखें चमक गयी. अब उसके आयेज क्या हुआ वो मैं नेक्स्ट पार्ट में बतौँगी. आपको मेरी रियल स्टोरी कैसी लगी वो प्लीज़ मुझे कॉमेंट करके बताना.

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