सफेद लिबास मे सुंदर लड़की

safed libas mai sundar ladki “रास्ता भूल गये हैं क्या साहिब” आवाज़ सुनकर मैं पलटा

वो एक छ्होटे से कद की लड़की थी, मुश्किल से 5 फुट, रंग सावला और आम सी शकल सूरत. देखने में उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी जो एक लड़के को पसंद आए. उसने एक सफेद रंग की सलवार कमीज़ पहेन रखी थी.

मुझे अपनी तरफ ऐसे देखते पाया तो हँस पड़ी.

“मैने यहीं रहती हूँ, वो वहाँ पर मेरा घर है” हाथ से उसने पहाड़ के ढलान पर बने एक घर की तरफ इशारा किया “अक्सर शहर से लोग आते हैं और यहाँ रास्ता भूल जाया करते हैं. गेस्ट हाउस जाना है ना आपने?”

“हां पर यहाँ सब रास्ते एक जैसे ही लग रहे हैं. समझ ही नही आता के कौन से पहाड़ पर चढ़ु और किस से नीचे उतर जाऊं” मैने भी हँसी में उसका साथ देते हुए कहा.

मैं देल्ही से सरकारी काम से आया था. पेशे से मैं एक फोटोग्राफर हूँ और काई दिन से अफवाह सुनने में आ रही थी के यहाँ जंगल में एक 10 फुट का कोब्रा देखा गया है. इतना बड़ा कोब्रा हो सकता है इस बात पर यकीन करना ही ज़रा मुश्किल था पर जब बार बार कई लोगों ने ऐसा कहा तो मॅगज़ीन वालो ने मुझे यहाँ भेज दिया था के मैं आकर पता करूँ और अगर ऐसा साँप है तो उसकी तस्वीरें निकालु.

उत्तरकाशी तक मेरी ट्रिप काफ़ी आसान रही. देल्ही से मैं अपनी गाड़ी में आया था जो मैने उत्तरकाशी छ्चोड़ दी थी क्यूंकी वान्हा से उस गाओं तक जहाँ साँप देखा गया था, का रास्ता पैदल था. कोई सड़क नही थी, बस एक ट्रॅक थी जिसपर पैदल ही चलना था. मुझे बताया गया था के वहाँ पर एक सरकारी गेस्ट हाउस भी है क्यूंकी कुच्छ सरकारी ऑफिसर्स वहाँ अक्सर छुट्टियाँ मनाने आया करते थे.

मैं गाओं पहुँचा तो गाओं के नाम पर बस 10-15 घर ही दिखाई दिए और वो भी इतनी दूर दूर के एक घर से दूसरे घर तक जाने का मातब एक पहाड़ से उतरकर दूसरे पहाड़ पर चढ़ना. ऐसे में मैं गेस्ट हाउस ढूंढता फिर ही रहा था के मुझे वो लड़की मिल गयी.

यूँ तो उसमें कोई भी ख़ास बात नही थी पर फिर भी कुच्छ ऐसा था जो फ़ौरन उसकी तरफ आकर्षित करता था.

उसके सफेद रंग के कपड़े गंदे थे, बाल उलझे हुए, और देख कर लगता था के वो शायद कई दिन से नहाई भी नही थी.

“आइए मैं आपको गेस्ट हाउस तक छ्चोड़ दूं”

और तब मैने पहली बार उसकी आँखो में देखा. नीले रंग की बेहद खूबसूरत आँखें. ऐसी के इंसान एक पल आँखों में आँखें डालकर देख ले तो बस वहीं खोकर रह जाए.

वो मेरे आगे आगे चल पड़ी. शाम ढल रही थी और दूर हिमालय के पहाड़ों पर सूरज की लाली फेल रही थी.

चारों तरफ पहाड़, नीचे वादियों में उतरे बदल, आसमान में हल्की लाली, लगता था कि अगर जन्नत कहीं है तो बस यहीं हैं.

“ये है गेस्ट हाउस” कुच्छ दूर तक उसके पिछे चलने के बाद वो मुझे एक पुराने बड़े से बंगलो तक ले आई.

“थॅंक यू” कहकर मैने अपना पर्स निकाला और उसे कुच्छ पैसे देने चाहे. वो देखने में ही काफ़ी ग़रीब सी लग रही थी और मुझे लगा के वो शायद कुच्छ पैसो के लिए मुझे रास्ता दिखा रही थी.

मेरे हाथ में पैसे देख कर उसको शायद बुरा लगा.

“मैने ये पैसे के लिए नही किया था”

और वो खूबसूरत नीली सी आँखें उदास हो गयी. ऐसा लगा जैसे मेरे चारो तरफ की पूरी क़ायनात उदास हो गयी थी.

“आइ आम सॉरी” मैने फ़ौरन पैसे वापिस अपनी जेब में रखे “मुझे लगा था के…..”

“कोई बात नही” उसने मुस्कुरा कर मेरी बात काट दी.

मैने गेस्ट हाउस में दाखिल हुआ. मैने अंदर खड़ा देख ही रहा था के वहाँ के बुड्ढ़ा केर टेकर एक कमरे से बाहर निकला.

“मेहरा साहब?” उसने मुझे देख कर सवालिया अंदाज़ में मेरा नाम पुकारा

“जी हान” मैने आगे बढ़कर उससे हाथ मिलाया “आपसे फोन पर बात हुई थी”

“जी बिल्कुल” उसने मेरा हाथ गरम जोशी से मिलाया “मैने आपका कमरा तैय्यार कर रखा है”

उसने मेरे हाथ से मेरा बॅग लिया और एक गेस्ट हाउस से बाहर आकर एक गार्डेन की तरफ चल पड़ा. वो लड़की भी हम दोनो के साथ साथ हमारे पिछे चल पड़ी.
“तुमने घर नही जाना” मैने उसको आते देखा तो पुछा उसने इनकार में गर्दन हिला दी.

“मुझसे कुच्छ कहा साहिब” केर्टेकर ने आगे चलते चलते मुझसे पुछा

“नही इनसे बात कर रहा था” मैने लड़की की तरफ इशारा किया

हम तीनो चलते हुए गार्डेन के बीच बने एक कॉटेज तक पहुँचे. मुझे लगा था के एक पुराना सा गेस्ट और एक पुराना सा रूम होगा अपर जो सामने आया वो उम्मीद से कहीं ज़्यादा था. गेस्ट हाउस से अलग बना एक छ्होटा सा
कॉटेज जो पहाड़ के एकदम किनारे पर था. दूसरी तरफ एक गहरी वादी और सामने डूबता हुआ सूरज.

“कोब्रा मिले या ना मिले” मैं दिल ही दिल में सोचा “पर मैं यहाँ बार बार आता रहूँगा”

“आप आराम करिए साहब” केर्टेकर ने मेरे कॉटेज का दरवाज़ा खोला और समान अंदर रखते हुए कहा “वैसे तो यहाँ हर चीज़ का इंटेज़ाम है, बाकी और कुच्छ चाहिए हो तो मुझे बताईएएगा”

कहकर उसने हाथ जोड़े और वापिस गेस्ट हाउस की तरफ चला गया. पर वो लड़की वहीं खड़ी रही.

मैं कॉटेज के अंदर आया तो वो भी मेरे साथ साथ ही अंदर आ गयी.

“क्या हुआ?” मैने उसको यूँ अंदर आते देखा तो पुछा

जवाब में उसने सिर्फ़ कॉटेज का दरवाज़ा बंद कर दिया और पलटकर मेरी तरफ देखा. इससे पहले की मैं कुच्छ और समझ पाता, उसने अपने गले से दुपट्टा निकाल कर एक तरफ फेंक दिया.

“ओहो हो हो ” मैं उसकी इस हरकत पर एकदम घबरा कर पिछे को हट गया “क्या कर रही हो?”

तभी मुझे केर्टेकर की 2 मिनट पहले कही बात याद आई के यूँ तो यहाँ सब इंटेज़ाम है, पर कुच्छ और चाहिए हो तो मैं उसको बता दूं.

“देखो अपना दुपट्टा प्लीज़ उठा लो. मेरी इस तरह की कोई ज़रूरत नही है. अगर तुम पैसो के लिए ये सब कर रही हो तो वो मैं तुम्हें ऐसे ही दे दूँगा”

वो मेरे सामने एक सफेद रंग की कमीज़ में बिना दुपट्टे के खड़ी थी. कमीज़ के पिछे से सफेद ब्रा ब्रा की स्ट्रॅप्स नज़र आ रही थी. जैसे ही मैने फिर पैसे की बात की, उसकी वो नीली आँखें फिर से उदास हो चली.

“आपको लगता है ये मैं पैसे के लिए कर रही हूँ? किस तरह की लड़की समझ रहे हैं आप मुझे?”

कहते हुए उसकी आँखों में पानी भर आया. मेरा दिल अचानक ऐसे उदास हुआ जैसे मेरा जाने क्या खो गया हो, दिल किया के छाती पीटकर, दहाड़े मारकर रो पडू, अपने कपड़े फाड़ दूं, इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दूं.

“नही मेरा वो मतलब नही था” मैने फ़ौरन बात संभालते हुए कहा “मुझे समझ नही आया के तुम ऐसा क्यूँ कर रही हो. मेरा मतल्ब…..”

मैं कह ही रहा था के वो धीरे धीरे चलती मेरे नज़दीक आ गयी.

“ष्ह्ह्ह्ह्ह” कहते हुए उसने अपनी अंगुली मेरे होंठों पर रख दी “यूँ कहिए के ये मैं सिर्फ़ इसलिए कर रही हूँ क्यूंकी आप पसंद हैं मुझे”

बाहर हल्का हल्का अंधेरा हो चला था. कमरे के अंदर भी कोई लाइट नही थी. उस हल्के अंधेरे में मैने एक नज़र उस पर डाली तो मुझे एहसास हुआ के वो गंदी सी दिखने वाली लड़की असल में कितनी सुंदर थी.

वो दुनिया की सबसे सुंदर लड़की थी.

मैने बेधड़क होकर अपने होंठ आगे किए और उसके होंठों पर रख दिए. उन होंठों की नर्माहट जैसे मेरे होंठों से होती मेरे जिस्म के रोम रोम में उतर गयी. हम दोनो दीवाना-सार एक दूसरे को चूम रहे थे. वो कभी मेरे
चेहरे को सहलाती तो कभी मेरे बालों में उंगलियाँ फिराती. कद में मुझसे काफ़ी छ्होटी होने के कारण उसको शायद मुझे चूमने के लिए अपने पंजों पर उठना पड़ रहा था और मुझको काफ़ी नीचे झुकना पड़ रहा था. अपने
हाथों से मैने उसकी कमर को पकड़ रखा था और उसको उपेर की तरफ उठा रहा था.

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और तब मुझे एहसास हुआ के उसको चूमते चूमते अब मैं पूरी तरह सीधा खड़ा था. उसका चेहरा अब बिल्कुल मेरे चेहरे के सामने था और उसकी बाहें मेरे गले में थी. मैने हैरत में एक नज़र उसके पैरों की तरफ डाली तो
पता चला के मैने उसको कमर से पकड़ कर उपेर को उठा लिया था और उसकी पावं हवा में झूल रहे थे.

वो किसी फूल की तरह हल्की थी. मुझे एहसास ही नही हो रहा था के मैने एक जवान लड़की को यूँ अपने हाथों के बल हवा में पकड़ रखा है. ज़रा भी थकान नही. अगर वो उस वक़्त ना बोलती तो पता नही मैं कब तक उसको यूँ ही हवा में उठाए चूमता रहता.

“बिस्तर” उसने मुझे चूमते चूमते अपने होंठ पल भर के लिए अलग किए और उखड़ती साँसों के बीच बोली.

इशारा समझ कर मैं फ़ौरन उसको यूँ उठाए उठाए रूम के एक कोने में बने बेड तक लाया और उसको नीचे लेटाकार खुद उसके उपेर आ गया.

मैं इससे पहले भी कई बार कई अलग अलग लड़कियों के साथ बिस्तर पर जा चुका था इसलिए अंजान खिलाड़ी तो नही था. जानता था के क्या करना है पर उस वक़्त जैसे दिमाग़ ने काम करना ही बंद कर दिया था. जितना मज़ा मुझे उस वक़्त उसको चूमने में आ रहा था उठा तो कभी किसी लड़की को छोड़ कर भी नही आया था.

“एक मिनट” मैं एक पल के लिए अलग होता हुआ बोला “किस हद तक तुम्हारे लिए ठीक है”

आख़िर वो एक छ्होटे से गाओं की लड़की थी. पहली बार में सब कुच्छ शायद उसको ठीक ना लगे.

“मैं पूरी तरह से आपकी हूँ” उसने हल्की सी आवाज़ में कहा और फिर मुझे अपने उपेर खींच लिया.

कमरे में अब पूरी तरह अंधेरा था. बस हम दोनो के चूमने की आवाज़, कपड़ो की सरसराहट और भारी साँसों के अलावा और कोई आवाज़ नही थी.

पहाड़ों में शाम ढल जाने के बाद एक अजीब सा सन्नाटा फेल जाता है. दूर दूर तक सिर्फ़ हवा और किसी जानवर के चिल्लाने की आवाज़ को छ्चोड़कर और कुच्छ सुनाई नही पड़ता. कुच्छ को ये सन्नाटा बड़ा आरामदेह लगता है और कुच्छ को
ये सन्नाटा रुलाने की ताक़त भी रखता है. उस वक़्त भी यही आलम था. बाहर पूरी तरह अजीब सी खामोशी थी.

जैसे पूरी क़ायनत खामोश खड़ी हम दोनो के मिलन की गवाह बन रही हो. दिल की धड़कन इस तरह तेज़ हो चली थी के मुझे लग रहा था के कहीं कोई शोर ना सुन ले.

मेरा दिमाग़ कुन्द पड़ चुका था. आगे बढ़ने का ख्याल भी मेरे दिमाग़ में नही आ रहा था. उस पर चढ़ा बस उसको चूमे जा रहा था.

तभी उसने मेरा एक हाथ पकड़ा और अपने गले से हटाते हुए धीरे से नीचे लाई और अपनी एक छाती पर रख दिया.

एक बड़ा सा नरम गुदाज़ अंग मेरी हथेली में आ गया.

“इतने बड़े” ये पहला ख्याल था जो मेरे दिमाग़ में आया था. उसको पहली बार देख कर ये अंदाज़ा हो ही नही सकता था के उसकी चूचियाँ इतनी बड़ी बड़ी हैं.

“बड़ी पसंद है ना आपको?” उसने धीरे से मेरी कान में कहा.

और ये सच भी था. अपनी लाइफ में काई ऐसी लड़कियाँ जो मुझपर फिदा थी उनको मैने इसलिए रिजेक्ट किया था क्यूंकी उनकी चूचियाँ बड़ी बड़ी नही थी. मेरे हिसाब से एक औरत की सबसे पहली पहचान थी उसकी चूचियाँ और अगर वो ही औरत होने की गवाही ना दें तो फिर क्या फायडा.

“हां” मैने हाँफती हुई आवाज़ में कहा और अपने हाथ में आए उस बड़े से अंग को धीरे धीरे दबाने लगा. तब भी मेरे दिमाग़ में ये नही आया के दूसरी चूची भी पकड़ लूँ और वो जैसे मेरा दिमाग़ पढ़ रही थी. उसने मेरा दूसरा हाथ भी पकड़ा और अपनी दूसरी चूची पर रख दिया.

“ज़ोर ज़ोर से दबाओ. मसल डालो”

और मेरे लिए शायद इतना इशारा ही काफ़ी था. मैने उसकी चूचियों को जानवर की तरह मसलना शुरू कर दिया और उसके गले पर बेतहाशा चूमने लगा. कोई और लड़की होती तो शायद इस तरह चूची दबाए जाने पर दर्द से बिलबिला पड़ती पर उसने चूं तक नही करी.

जब उसने देखा के मैं बस उसकी गले पर चूम रहा हूँ तो उसने मेरा सर पकड़ा और अपनी चूचियों की तरफ धकेला.

दबाए जाने के कारण दोनो चूचियो का काफ़ी हिस्सा कमीज़ के उपेर से बाहर को निकल रहा था और मेरे होंठ सीधा वहीं जाकर रुके. मैने नीचे से चूचियों को उपेर की ओर दबाया ताकि वो और कमीज़ के बाहर आएँ और उनके उपेर अपने होंठ और अपनी जीभ फिराने लगा.

उसको इस बात का एहसास हो चुका था के मैं दबा दबा कर उसकी कमीज़ के गले से उसकी चूचियाँ जितनी हो सकें बाहर निकलना चाह रहा हूँ.

“चाहिए?” उसने पुछा

“हां?” मैने चौंकते हुए पुछा

“ये चाहिए?”

कमरे में पूरा अंधेरा था और मैं उसको बिल्कुल देख नही सकता था, बस उसके जिस्म को महसूस कर सकता था पर फिर भी उसके पुच्छने के अंदाज़ से मैं समझ गया के वो अपनी चूचियों की बात कर रही थी.

इससे पहले के मैं कोई जवाब देता, उसने मुझे पिछे को धकेला और उठकर बैठ गयी. उसके जिस्म की सरसराहट से मैं समझ गया था के वो अपनी कमीज़ उतार रही थी.

जब उसने फिर मेरे हाथ पकड़ कर अपनी चूचियों पर रखे तो इस बार मेरे हाथ को उसके नंगेपन का एहसास हुआ. उसने अपनी ब्रा भी उतार दी थी.

“किस रूप में चाहोगे मुझे?” उसने पुछा

मुझे सवाल समझ नही आया और इस बार भी उसने शायद मेरा दिमाग़ पढ़ लिया. इससे पहले के मैं उससे मतलब पुछ्ता वो खुद ही बोल पड़ी.

“किसे चोदना चाहोगे आज? जो चाहो मैं वही बनने को तैय्यार हूँ”

मुझे अब भी समझ नही आ रहा था.

“कहो तो तुम्हारी पड़ोसन, तुम्हारे दोस्त की बीवी, एक अंजान लड़की”

मुझे अब उसकी बात समझ आ रही थी. शहेर में हम इसे रोल प्लेयिंग कहते थे.

“कहो तो मैं एक रंडी बन जाऊं”

वो बोले जा रही थी.

“या कोई गंदी ख्वाहिश है तुम्हारी. अपनी माँ, या बहेन, या भाभी को चोदने की
ख्वाहिश?”

मैने फ़ौरन उसकी बात काटी.

“मेरी बीवी” पता नही कहा से मेरे दिमाग़ में ये ख्याल आया.

और इसके आगे मुझे कुच्छ कहने की ज़रूरत नही पड़ी.

“मेरे साथ आपकी पहली रात है पातिदेव. आपकी बीवी पूरी तरह आपकी है. जैसे चाहिए मज़ा लीजिए”

कहते हुए उसने मेरी कमीज़ के बटन खोलने शुरू कर दिए. मेरा दिमाग़ अब भी जैसे काम नही कर रहा था. जो कर रही थी, बस वो कर रही थी. लग रहा था जैसे वो मर्द हो और मैं औरत.

धीरे धीरे उसने मेरे सारे कपड़े उतार दिए और उस अंधेरे में उसकी बाहों में मैं पूरी तरह से नंगा हो गया.

“काफ़ी बड़ा है” उसके हाथ मेरे लंड पर थे. वो उसको सहला रही थी.
इस बार जब उसने मुझे अपने उपेर खींचा तो मैं सीधा उसकी टाँगो के बीच आया. उसने अब भी सलवार पहेन रखी थी पर मेरा पूरी तरह से खड़ा हो चुका लंड सलवार के उपेर से ही जैसे उसकी चूत के अंदर घुसता जा रहा था.

एक हाथ से वो अब भी कभी मेरे लंड को सहलाती तो कभी मेरे टट्टो को.

“ओह” मेरे लंड का दबाव चूत पर पड़ते ही वो कराही “चाहिए?”

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फिर वही सवाल.

“बोलो ना. चाहिए? मुझे तो चाहिए”

फिर से एक बार वो उठकर बैठी. अंधेरे में फिर कपड़ो के सरसराने की आवाज़. मैं जानता था के वो सलवार उतार रही है.

“आ जाओ. चोदो मुझे” उस वक़्त उसके मुँह से वो गंदे माने जाने वाले शब्द भी कितने मीठे लग रहे थे.

उसने मुझे अपने उपेर खींच लिया. मैं फिर उसकी टाँगो के बीच था. मेरे अंदाज़ा सही निकला था. उसने अपनी सलवार उतार दी थी और अब नीचे से पूरी नंगी थी. मेरा लंड सीधा उसकी नंगी, भीगी और तपती हुई चूत पर आ पड़ा.

मैं ऐसे बर्ताव कर रहा था जैसे ये मेरा पहली बार हो. अपनी कमर हिलाकर मैं उसकी चूत में लंड घुसाने की कोशिश करने लगा.

“रूको मेरे सरताज” वो ऐसे बोली जैसे सही में मेरी बीवी हो “पहले अपनी बीवी को अपने पति का लंड चूसने नही दोगे”

किसी बच्चे की तरह मैं उसकी बात मानता हुआ बिस्तर पर सीधा लेट गया. वो घुटनो के बल उठकर बिस्तर पर बैठ गयी. अंधेरे में मुझे वो बिल्कुल नज़र नही आ रही थी. बल्कि नीचे ज़मीन पर पड़े उसके सफेद कपड़ो की सिवाय कुच्छ भी नही दिख रहा था.

मेरे लंड पर मुझे कुच्छ गीला गीला सा महसूस हुआ और मैं समझ गया के ये उसकी जीभ गयी. वो मेरा लंड चाट रही थी. कभी लंड पर जीभ फिराती तो कभी टट्टो पर. उसके एक हाथ ने जड़ से मेरा लंड पकड़ रखा था और
धीरे धीरे हिला रहा था.

और फिर मुझे वो एहसास हस जो कभी किसी लड़की को चोद्ते हुए नही हुआ था. उसने जब मेरा लंड अपने मुँह में लिया तो वो मज़ा दिया जो किसी लड़की की चूत में भी नही आया था.

बड़ी देर तक वो यूँ ही मेरा लंड चूस्ति रही. कभी चूस्ति, कभी चाटने लगी तो कभी बस यूँ ही बैठी हुई हाथ से हिलाती.

“बस” मैने बड़ी मुश्किल से कहा “मेरा निकल जाएगा”

वो फ़ौरन समझ गयी. अंधेरे में वो हिली, उसका जिस्म मुझे अपने उपेर आते हुए महसूस हुआ और मेरा लंड एक बेहद गरम, बेहद टाइट और बेहद गीली जगह में समा गया.

“चोदो अपनी बीवी को. जैसे चाहो चोदो. लिटाकर चोदो, झुका कर चोदो, कुतिया बनाकर चोदो”

वो और भी जाने क्या क्या बोले जा रही थी और मेरे उपेर बैठी अपनी गांद हिलाती लंड चूत में अंदर बाहर कर रही थी. मुझे समझ नही आ रहा था के ये कोई सपना है या हक़ीकत. पर जो कुच्छ भी था, मेरी ज़िंदगी का सबसे हसीन पल था.

वो यूँ ही मेरे उपेर बैठी हिल रही थी. मेरी आँखें भारी हो चली थी. मैं सोना नही चाहता था. मैं तो उसके साथ पूरी रात प्यार करना चाहता था पर अपने आप पर जैसे मेरे काबू नही रहा. पलके ऐसे भारी हो गयी थी जैसे मैं कब्से सोया नही था और आज की रात मुझे अपनी ज़िंदगी में पहली बार सुकून हासिल हुआ था.

अपनी गांद उपेर नीचे हिलाती वो झुक कर मेरे उपेर लेट गयी. उसकी छातियाँ मेरे सीने से आकर दब गयी. उसके होंठ मेरे कान के पास आए और वो बहुत धीरे से बोली.

फ़ाक़ात एक तेरी याद में सनम,
ना सफ़र के रहे, ना वाटन के रहे,

बिखरी लाश के इस क़दर टुकड़े हैं,
ना क़ाफ़ान के रहे, ना दफ़न के रहे.

और उसकी आवाज़ सुनते ही एक अजीब सी ठंडक और बेचैनी जैसे एक साथ मेरे दिल में उतर गयी. पता नही मैं बेहोश हो गया या नींद के आगोश में चला गया पर उसके बाद कुच्छ याद नही रहा.

अगली सुबह जब मेरी आँख खुली तो वो जा चुकी थी. मैं खामोशी से उठा तो मन अजीब तरह से भारी था.

समझ नही आ रहा था के ये इसलिए था के मैं अपनी बीवी को धोखा देते हुए एक अजनबी लड़की के साथ सोया था जो एक पाप था या इसलिए के वो लड़की अब मेरे साथ नही थी और मैं उसको फिर से देखना चाहता था. फिर वही पाप करना चाहता था.

सिर्फ़ ये एहसास के वो अब मेरे पास नही है जैसे मेरी जान निकल रही थी. पहाड़ों में अब भी अजीब सा सन्नाटा था.

बाहर सूरज अब भी नही निकला था. चारो तरफ बदल फेले हुए थे. मैने उठकर अपने कपड़े पहने और बाहर आकर फिर अंदाज़े से उस जगह की तरफ चल दिया जहाँ मैने उसको पहली बार देखा था. ना कुच्छ खाया, ना मुँह धोया, बस दीवानो की तरह उठा और उसकी तलाश में चल पड़ा.

वो घर जहाँ की उसने बताया था के वो रहती थी अब भी वहीं था. मेरी जान में जान आई. घर के बाहर पहुँच कर मैने कुण्डा खटखटाया.

एक बुद्धि औरत ने दरवाज़ा खोला. हाथ में एक डंडा जिसके सहारे वो झुक कर चल रही थी. दूसरे हाथ में एक माला जिसका वो जाप कर रही थी.

“कहिए” उसने मुझसे पुछा

मैने उसको बताया के मैं एक लड़की को ढूँढ रहा था. हुलिया बताया और तब मुझे एहसास हुआ के मैने कल रात उसका नाम तक नही पुछा था.

“मेरी बेटी आशिया?” बुद्धि औरत ने बोली

मैने बताया के मैं नाम नही जानता पर फिर से लड़की का हुलिया बताया.

“हां मेरी बेटी आशिया. एक साल पहले आते तो शायद मिल लेते”

मैं मतलब नही समझा.

“उसको मरे तो एक साल हो गया”

मैं फिर भी मतलब नही समझा और हैरानी से उस औरत को देखने लगा. उसने मुझे वहीं एक पेड़ की तरफ इशारा किया और दरवाज़ा मेरे मुँह पर बंद कर दिया. मैं किसी बेवकूफ़ की तरफ चलता उस पेड़ तक पहुँचा.

पेड़ के नीचे एक कब्र बनी हुई थी. एक पत्थर पर हिन्दी और उर्दू में लिखा था,

“आशिया”

और नाम के नीचे लिखी थी वो शायरी जो उसने कल रात मुझे सुनाई थी.

फ़ाक़ात एक तेरी याद में सनम,
ना सफ़र के रहे, ना वाटन के रहे,

बिखरी लाश के इस क़दर टुकड़े हैं,
ना क़ाफ़ान के रहे, ना दफ़न के रहे.

मौत की तारीख आज से ठीक एक साल पहले की लिखी हुई थी.

जब मैं वापिस गेस्ट हाउस पहुँचा तो बाहर मुझे केर्टेकर मिला. मैने उसको उस लड़की के बारे में बताया जो कल मेरे साथ आई थी.

“कौन सी लड़की साहब” वो हैरत से मेरी तरफ देखता बोला “आप तो अकेले आए थे”

मैने उसको बताया के वो लड़की जिससे मैं बात कर रहा था.

“मैं तो समझा था के आप वो हनुमान जी से बात कर रहे हैं” उसने मेरे कॉटेज के थोड़ा आगे बनी एक हनुमान जी की मूर्ति की तरफ इशारा किया.

“आप कल अकेले आए थे साहब” वो फिर बोला

हवा में एक अजीब सी खामोशी थी जैसे कहीं कोई मर गया हो और सारे पेड़, सारी वादियाँ, सारे पहाड़ उसका मातम कर रहे हों. मेरी आँखें भर गयी और कलेजा मुँह को आ गया.

मैं रोना चाहता था. दहाड़े मार मार कर रोना चाहता था.

मैं उसको हासिल करना चाहता था. फिर उसको प्यार करना चाहता था. मैं उसके साथ होना चाहता था. फिर वही पाप करना चाहता था.

“उसको तो मरे एक साल हो गया” बुधिया की आवाज़ मेरे कानों में गूँज रही थी.

“आप कल अकेले आए थे साहब” केर्टेकर की आवाज़ दिमाग़ में घंटियाँ बजा रही थी.

मेरा दिल ऐसे उदास था जैसे मेरा जाने क्या खो गया हो, दिल किया के छाती पीटकर, दहाड़े मारकर रो पडू, अपने कपड़े फाड़ दूँ, इस पहाड़ से कूद कर अपनी जान दे दूं.

अपनी जान दे दूं.

और मदहोशी के से आलम में मेरे कदम पहाड़ के कोने की तरफ चल पड़े, खाई की तरफ.
दोस्तो इस दुनियाँ मे कुछ घटनाए इस तरह की भी होती है दोस्तो आपको ये कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त



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