सब्ज़ी वाली को चुदाई के लिए मनाया

अब तो मौसी मुझे किसी हेरोयिन से कम नही लग रही थी. बस उनकी छूट में मेरा लॉडा कैसे जाएगा यही ख़याल आने लगा था. वो 2 मिनिट मेरी कांवासना में जलने लगी, लेकिन मेरी हिम्मत नही हो रही थी की मौसी से कुछ काहु या बोलू. मौसी समझ चुकी थी की मेरे दिमाग़ में क्या चल रहा था.

मौसी: अब तो नेहा को जल्द से जल्द बुलाना ही पड़ेगा वरना…

ये कह कर वो रुक गयी.

मैं: वरना क्या मौसी?

मौसी: कुछ नही, जाओ घर जाओ, और तोड़ा आराम कर लो.

मैं: अब आराम कहाँ से मिलेगा मुझे. अब तो भूख और बढ़ गयी है.

मौसी: बाबू आप घर पर जाओ. मैं खाना भिजवती हू. शायद उससे तुम्हारी भूख मिट जाए.

मैं: अब क्या पता खाने से भूख माइट या ना माइट, लेकिन जो भी हो, अब तो भूख बहुत ज़ोरो की लग गयी है.

ये कह कर मैं अपने घर चला गया. आधे घंटे बाद मेरे दरवाज़े की घंटी बाजी. मुझे लगा मौसी का लड़का खाना लेकर आया होगा. मैं बड़े उदास मॅन से दरवाज़ा खोलने चला गया. लेकिन दरवाज़ा खोलते ही साक्षात मौसी के दर्शन हुए, वो भी पूरी भीगी हुई, हाथ में तिफ्फ़िं लेकर मुस्कुराते हुए सामने खड़ी थी.

मौसी: बड़ी देर लगा दी दरवाज़ा खोलने में. कही बिज़ी थे क्या?

मैं: नही-नही, मैं कही बिज़ी नही था. बस लेता पड़ा था अपने बिस्तर पर.

मौसी: मुझे लगा बाबू को भूख लगी होगी, तो अपने हाथो से ही कुछ कर रहा होगा. मेरा मतलब अपने हाथो से कुछ बना कर खा रहा होगा.

ये कह कर वो ज़ोर-ज़ोर से हासणे लगी, और अंदर आ कर किचन में तिफ्फ़िं रख दिया. मैने दरवाज़ा बंद किया और किचन में चला गया. मौसी पूरी तरीके से भीगी होने की वजह से उनके सारी से होते हुए पानी मेरे फ्लोर पर गिर रहा था.

एक बात ये भी मेरी समझ में आ गयी थी, की मौसी भी डबल मीनिंग में बात करके मेरे मज़े ले रही थी. तब मैने भी तोड़ा खुल कर बात करना शुरू कर दिया.

मैं: जब किसी चीज़ का जुगाड़ ना हो, तब हाथो से ही काम चलना पड़ता है. आपको क्या, आपका जुगाड़ तो आपके पास हमेशा ही रहता है. लेकिन मेरा जुगाड़ उसके माइके गया है.

मौसी: ज़रूरी नही है की जुगाड़ आस-पास हो तो काम चल जाता है. मेरा जुगाड़ मेरे पास हो कर भी पिछले 12-15 सालों से किसी काम का नही है.

मैं: तो फिर आप क्या गाजर मूली से अपना काम चला लेते हो?

और ये कह कर मैं ज़ोर-ज़ोर से हासणे लगा. मौसी तोड़ा सा शर्मा गयी, और मुझे मारने दौड़ पड़ी. मैं मौसी को चिढ़ते हुए अपने बेडरूम तक चला गया.

मैं: अर्रे मौसी आप तो पूरी तरीके से भीगी हो, और आपकी सारी से जो पानी तपाक रहा है, उससे पूरा फ्लोर गीला हो रहा है.

मौसी: बाबू, अब तुम क्या चाहते है के मैं अपनी सारी खोल कर निकाल डू, ताकि तेरा फ्लोर गीला ना हो?

मैं: हा, तो उसमे क्या हुआ? मैने कों सी ग़लत बात कर दी?

मौसी: तू क्या बोल रहा है बाबू, तुझे समझ में आ रहा है क्या? मैं किसी पराए मर्द के सामने अपनी सारी कैसे खोल सकते हू?

फिर मैं बोला: तो क्या हुआ? मैं कों सा आपको सारी सुखाते हुए देखने वाला हू. बस मैं इसलिए कह रहा था की बाहर बारिश बहुत ज़ोरदार हो रही है, और वापस भीगते हुए घर जाना अछा नही होगा. इस उमर में कही बीमार ना पद जाओ आप.

ये कह कर मैं एक आँख मार कर हासणे लगा.

मौसी: ना रे बाबा ना, ऐसा मैं नही कर सकती.

मैं (हेस्ट हुए): टेन्षन मत लो मौसी, मैं कुछ नही देखुगा, और कुछ करूँगा भी नही. आख़िर आपकी उमर का भी तो ख़याल रखना है मुझे.

मौसी: मेरी उमर का इतना ख़याल है तुझे इसलिए नीचे तू मेरे ब्लाउस को घूर-घूर के देख रहा था. वैसे भी नेहा नही है, और तेरा कोई भरोसा भी नही. तू बहुत भूख दिख रहा है, कही तू मुझे ना खा ले.

मैं: अब मुझे इतने दीनो के बाद कुछ अची चीज़ देखने मिल जाए, तो बुरा क्या है?

मौसी: अची चीज़? अभी इस उमर में कहा है अची चीज़ मेरे पास? हा अगर 10 साल पहले की बात होती, तो समझ भी लेती. लेकिन तू भूखा है, तुझे बासी खाना भी दूँगी तो भी खा लेगा.

ये कह कर मौसी ज़ोर-ज़ोर से हासणे लगी.

मैं: ज़रूरी नही है की बासी खाना खराब ही हो. वो भी तो टेस्टी हो सकता है. वैसे भी आप जिस बासी खाने के बारे बोल रही है, वो पिछले 12-15 सालों से ऐसे ही पड़ा है. एक बात बताओ मौसी, कभी किसी ने इतने सालों में टेस्ट भी नही किया आपको?

मौसी: अब जब तू इतना खुल कर बात कर रहा है तो बता देती हू. उस वक़्त ज़िम्मेदारी और घर चलाने के लिए मेरे पास काम के अलावा और कुछ नही था, और इस सेक्स के लिए तो बिल्कुल टाइम नही था. और जब आज टाइम आ गया है, तो उमर निकल गयी.

मैं: मौसी किसने कहा की टाइम और उमर निकल गयी है आपकी? आप आज भी बॉम्ब लगती हो. मौसा कभी पास भी नही लेता क्या (सेक्स का भूत मेरे दिमाग़ में चढ़ा था. इसलिए मैं कुछ भी बक रहा था.)?

मौसी: मौसा की तो बात ही मत कर. जब टाइम था तब नशे में धुत हो कर रहता था, और अब तुझे लगता है उनके खेलने की उमर बची होगी.

मैने मौसी के नज़दीक जेया कर उनके दोनो कंधो पर अपने दोनो हाथ रख कर कहा.

मैं: देखो मौसी अब जब इतनी बात हो गयी है, तो आपको भी समझ में आ गया होगा की मैं कितना भूखा हू, और शायद आप में भी कही भूख बची होगी. तो क्यूँ ना हम एक-दूसरे की भूख मिटाए? लेकिन ये किस्सा सिर्फ़ एक बार का नही होगा. शायद नेहा के आने के बाद आयेज भी चलता रहे (और मैं अब पूरी तरीके से खुल कर बात करने लगा).

मैं: मुझे तो सिर्फ़ छूट चाहिए. फिर वो नेहा की हो या आपकी. अगर आप एक मौका दे, तो मैं आपकी छूट की ऐसी सेवा करूँगा, जो पिछले 15-18 सालों से आपको मिली नही.

ये कह कर मैने मौसी की एक चुचि को दबा दिया. मेरी बातें और इस हरकत की वजह से मौसी तोड़ा सा घबरा गयी, और एक कदम पीछे होते हुए मुझसे कहा-

मौसी: ये ग़लत होगा. अगर ये बात बात-चीत तक थी तो ठीक है. लेकिन हम जो बात कर रहे है, वो सीधे चुदाई की कर रहे है. जो ठीक नही है बाबू. मैं आपका समझ सकती हू, लेकिन मुझे अपने उमर का ख़याल रखना होगा.

मैं: मौसी इसमे क्या ग़लत है? आपकी छूट भी तो लोड के लिए तरस गयी होगी? आपकी छूट भी तो लोड की प्यासी होगी? तो उसकी प्यास बुझा देता हू, और साथ में मेरे लोड को भी नयी छूट मिल जाएगी. एक ही वक़्त में हम दोनो खुश हो जाएँगे और मैं कसम खा कर कहता हू की जब तक आपकी छूट में मेरा लोड्‍ा देने की ताक़त होगी, तब तक आपकी छूट की सेवा करता रहुगा.

मौसी: क्या तू सच में मुझे छोड़ना चाहता है क्या? तू सच में मेरी छूट हमेशा छोड़ते रहेगा क्या? तुझे मेरी उमर से कोई फराक नही पड़ता? मेरी दोनो चुचिया लटक गयी है. मेरी छूट छूट ना हो कर अब भोंसड़ा बन गयी है. क्या तुझे उसमे मज़ा आएगा. नेहा की छूट कहाँ, और मेरा भोंसड़ा कहाँ.

मैं: देखो मौसी छूट हो या भोंसड़ा, लोड को आराम तो उसी में मिलता है. बस अब ज़्यादा सोचो मत, जल्दी से सारी उतार कर आपकी छूट के दर्शन करवा दो.

ये कह कर मैने उनके पल्लू को नीचे उतार दिया, और उनकी दोनो चुचियों को दबाने लग गया. इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको अगले पार्ट में पता चलेगा. मेरा नाम दिलीप है,

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