प्राकृतिक आपदा – 1

मेरा नाम समिति है और मैं गोरी सफेद देखने में काफी सुन्दर हूं, परन्तु थोड़ी सी मोटी दिखती हूं. एक तो मेरा चेहरा काफी भारी दिखता है, दूसरा मेरी हिप जोकि 38+ होगी. मेरी बूबस का नाप 36बी और मेरी कमर का नाप 32 है. कद भी मेरा लम्बा पांच फुट आठ इंच के करीव होने नाते मैं देखने में एक भारी भरकम औरत दिखती हूं. मैं बचपन से ही अपने भाई के साथ सोती थी, और जब मैंने होश सम्भाला तब से ही मेरा बड़ा भाई मुझे चोद रहा है. उसके बाद तो एक दिन मेरे ताऊ के लडके ने हमें करते हुए देख लिया और तब से वो भी मुझे करने लगा. इस तरह से मेरे ताऊ के दोनों लडके और मेरा भाई मुझे चोदने लगे, और कई बार तो उन सब ने मिल कर भी मुझे चोदा,

और फिर तो वीर्य से सने हुए लंड भी मुझे चुसवाने लगे. एक दो वार मुझे थोड़ी घिन आई और उसके बाद तो मैं बड़े मज़े से उनके चूस देती हूं. जिसके बदले में वो मेरे बूबस चूस देते और मुझे उनसे करवा कर बहुत मज़ा आता. फिर एक दिन मेरे भाई मनोज ने अपने एक दोस्त पूरन से भी मुझे चुद्वा दिया, उस समय मैं कॉलज में पढ़ती थी. मैंने भी अलग से अपने दो दोस्तों को अपनी चूत का खूब भोग लगवाया. आप् कह सकते हैं, कि तेईस की उम्र तक मैं आठ लंड का स्वाद देख चुकी थी, और शादी होने तक मैं अपने भाई मनोज के साथ उसी के बेड पर ही सोती थी. करते करते मैं छब्बीस की हो गई, और मेरी शादी में अड़चन आने लगी. मेरी चुदाई की भूख तो शांत हुए जा रही थी, परन्तु मेरी माँ की चिन्ता बढती जा रही थी. पता नहीं क्यों मैं इतने लोगों से करवाने के बाद भी कभी भी पेट से न हुई थी. फिर एक हमारी रिश्तेदारी में ही एक होलसेल सब्जी विक्रेता के इकलौते बेटे रमन से मेरी शादी फिक्स कर दी गई, जो कि बहुत ही मोटा और गोल मटोल था,

और शक्ल सूरत से भी ठीक ठाक ही था. मजबूरी में मुझे भी हाँ कहनी पडी, और मेरी शादी हो गई और मैं ससुराल आ गई. सब साथी छूट गए. मनोज और मेरे ताऊ के लडके तो आते थे, परन्तु मैं ससुराल घर में उनसे करवाने का सोच भी न सकती थी. यदि कभी मौका भी बन पाता था, तो जल्दी जल्दी में करवाने पर मुझे संतुष्टि न मिलती. कहाँ मैं उनके साथ सारी रात सोती थी, और तीन चार लंड एक ही रात में ले लेती थी. मुझे पहली रात से ही रमन से कोई मज़ा ना आया था. उसका मामूली सा लिंग मेरी चूत में सिर्फ खुजली ही कर पाता था, सन्तुष्ट करना तो बहुत दूर की बात थी. पहले हमारे घर के नीचे भी एक बड़ी सी सब्जी की दूकान थी, जो बाद में मंडी में काम की अधिकता होने नाते बन्द कर दी गई, और वहाँ का सारा सामान मंडी के पास एक गोदाम में शिफ्ट कर दिया गया. मेरी सास ज्यादातर बीमार रहती, उसे उठने में समय लगता. शरीर की अपने पति और बेटे की तरह बहुत भारी होने नाते वो बहुत धीरे धीरे चलती. हम सब उपर के ही पोर्शन में रहते थे, जब भी सासू जी को नीचे उतारना होता तो दो आदमी उसे पकड़ कर बहुत धीरे धीरे नीचे लाते और कार में बिठाते. खाली हुई बड़ी सी दूकान को एक कमरे के सेट में तब्दील करके उसे एक किरायेदार को अच्छे खासे किराए पर उठा दिया गया. उस किरायेदार का पूरा नाम तो कुछ और था,

परन्तु सब उसे विक्रम कहते. वो कहीं पर नौकरी करता था, और पंजाब से था. जिस दिन सासू जी को हस्पताल या कहीं लेकर जाना होता, वो दिन हमेशा शनि या रविवार होता, और विक्रम ही हमारी फारचुनर गाडी चला कर लेकर जाता और हमारी मंडी के दो नौकर भी साथ रहते, और साथ में पापा या मेरे पति जाते. हमारी वो वाली गाडी ज्यादातर विक्रम ही चलाता. मेरे पति को गाडी चलानी न आती थी, और मेरे ससुर चलाना न चाहते थे, य कह लो डरते थे. कंजूस इतने थे, कि ड्राइवर भी न रखते थे. जब कहीं मुझे भी अपने मायके देहरादून जाना होता, तो विक्रम को ही मैं और मेरा पति लेकर जाते थे, जिसके एवज में उसे भी जब चाहे गाडी लेकर जाने की इजाजत थी. हाँ गाडी का तेल हमारा ही लगता था. विक्रम कभी कभार ही गाडी लेकर जाता था, इसलिए दुखता न था. देखने में विक्रम एक लंबे कद का गोरा स्मार्ट और एथलेटिक बदन का मालिक करीव पच्चीस छबीस साल का था. मैं जब भी उसे देखती मेरी चूत में खुजली होने लगती थी, परन्तु विक्रम ध्यान ही न देता था, या वो ध्यान देना न चाहता था. मैंने भी कभी उसे सीदे तौर पर कोई घास न डाली थी, और सच्चाई तो यह थी, कि मैं अपने ससुराल में डरती भी थी.

मेरी शादी को आठ महीने होने को आये थे, कि अचानक चमोली में मेरी सगी इकलौती बुआ के लडके की मौत हो गई. उसके मरने पे तो न जा सके थे, परन्तु किर्या पर पिताजी ने जरूर आने को कहा था. मैंने अपने पति से वात की तो उसने अपने माँ बाप को पूछा, तो तय हुया, कि इसे गाडी में विक्रम के साथ भेज दिया जाए. मेरे ससुर ने कहीं अपनी रिश्तेदारी में जरूरी जाना था, और मेरे पति को काम देखना था, तो विक्रम से कहा गया. मैं आजतक विक्रम के साथ अकेली कभी न गई थी. विक्रम ने साफ़ कह दिया, कि मैं नहीं जा सकता, वरसात के दिन हैं, और परसों को मेरा एक जरूरी एक्जाम है, जिस की उसने बहुत तैयारी की हुई थी. मेरे ससुर और पति ने उसे मना कर कि आज वाद दोपहर जाना है, और कल दोपहर तक वापिस आ जाना, गाडी में छे सात घंटे लगने थे. पहली बार थी कि विक्रम न मान रहा था. उसने तो यहाँ तक कह दिया था, कि मैं कोई ड्राइवर ढूँढ देता हूं, परन्तु उस पर मेरे पति और ससुर को मुझे अकेले भेजने में परेशानी हो रही थी.

विक्रम तो देखा भाला आदमी था, नया आदमी कैसा होगा पता नहीं. बहुत मिन्नत करके विक्रम को मनाया गया और कहा गया, कि तुम्हें कोई परेशानी न होने दी जायेगी, तुम कल दोपहर तक आ जाना. आखिर विक्रम मान गया. हम उसी दिन शाम को निकल पड़े और शाम तक चमोली पहुंच गए. अगले दिन किर्या हो गई, और हम ने वापिस चलना था, सो चल पड़े. रास्ते में मुख्य सड़क से हटकर करीव वीस किलोमीटर पर एक छोटा सा कस्बा था, यहाँ पर मेरे ताऊ का लड़का नौकरी करता था. उसका लंड मेरे सभी भाइयों में लम्बा था, और उससे मुझे काफी आनन्द आता था. आज सुबह से ही मेरी चूत में बहुत मचली हो रही थी, और मैं चुदना चाहती थी. मैंने विक्रम से कहा, कि हम थोड़ा सा घूम कर उस कस्बे से हो कर चलते हैं. पहले तो माना नहीं परन्तु मेरे बहुत बार विनती करने पर मान गया, और हम उस तरफ को चल पड़े. मैंने अपने मोबाइल से अपने ताऊ के लडके को संपर्क करने की बहुत कोशिश की, परन्तु उससे संपर्क न कर सकी. उस कस्बे में पहुंच कर पता चला कि वो देल्ही गया हुया है, मेरा बहुत मन खराब हुया. इस वीच तीन घंटे का समय बर्बाद हो चुका था, और हम उसी रास्ते से आगे होते हुए शोर्टकट से आने लगे.

मेरे उकसाने पर ही विक्रम ने मुख्य सड़क को छोड़ कर उस रास्ते को अपनाया था. करीव पचास किलोमीटर चलने पर हमें मालूम हुया कि हम अपने घर नहीं अपितु पहाड़ों के अन्दर उपर को जा रहे थे. जल्दी ही रात हो गई, और हम एक गाँव में फंस कर रह गए. आगे घना जंगल होने कारण लोगों ने हमें आगे या पीछे उस समय जाने का मना कर दिया. रात घिर आई थी, मैं कई घरों में रात विताने का पूछने गई, परन्तु किसी ने भी मुझे आसरा देने का न माना. वरसात का मौसम होने नाते वारिश तेज होने लग गई. विक्रम को मेरे उपर बहुत गुस्सा आ रहा था, और वो गन्दी गन्दी गालियां भी देने लग गया था. उसे कल होने वाले अपने एक्जाम की बहुत फिकर थी, और कल हम किसी भी हालत में एक्जाम के लिए नहीं पहुंच सकते थे. अब कोई चारा न देख विक्रम ने गाडी को पेड़ों के वीच में फंसा कर लगा दिया और सीटें खोल कर लेटने का जुगाड कर लिया. गर्मी का मौसम होने नाते मैंने तो कोई गर्म कपड़ा न लिया था, हाँ विक्रम ने अपना एक कम्बल रख लिया था, जिसे वो ओड़ कर मेरे साथ नाराज़ हो कर सो गया. जल्दी ही मेरे को ठण्ड लगने लग गई, तो मैं भी उसके कम्बल में घुस गई. कम्बल में घुसते ही मुझे उसके सख्त लंड का एहसास हुया. उसका लंड शायद तना हुया था, और मैंने चुपचाप उसकी तरफ अपनी पीठ करके अपने चूतड़ उसके लंड पर चिपका दिए.

यह कहानी भी पड़े  मंगलोरे वाली चाँदनी भाभी की चुदाई

वो थोड़ा पीछे खिसक गया तो मैं और पीछे सरकी, और मैंने अपने चूतड़ उसके लंड पर फिर से चिपका दिए. विक्रम ने मुझे गन्दी सी फिर गाली दी, और मेरे चूतडों पर एक जोर से हाथ मारता हुया मुझे दूसरी तरफ होने को बोला. मेरी चूत तो सुबह से ही किसी कड़क से लंड के लिए पागल थी, तो मैंने विक्रम के लंड को पकड़ कर कहा, प्लीज विक्रम मुझे अपने साथ सोने दो. उसने फिर गाली दी और कहा, तेरी बजह से मेरा इतना नुकसान हो गया है. मैंने उसे बहुत ही प्यार से कहा, अब मेरी बजह से नुकसान हुया है, तो पूरा भी मैं ही कर दूँगी. उसने कहा, कैसे, तो मैंने कहा, मुझे अपनी बना लो और अपने सारे नुकसान पूरे करलो. परन्तु वो मर्द का बच्चा फिर भी टस से मस न हुया. वाहर जोरदार वारिश हो रही थी, और इधर मेरी चूत में मूसलाधार हो रही थी. मैं बेशर्मी पर उतर आई थी, तो मैंने खुद ही अपनी सलवार खोल कर निकाल दी और उसके पेंट की ज़िप गिरा कर लंड निकालना चाहा तो उसने मुझे धक्का देकर दूर धकेल दिया.

मैं फिर से उसके उपर कूद गई, और उसको पागलों की तरह चूमते हुए उसके लंड को पेंट के अन्दर ही मसलने लग गई. जब जब मेरा हाथ उसके लंड को लगता तो मैं उसके लंड की सख्ती से मस्त जाती. रात का शायद अभी दस का ही समय होगा. विक्रम ने मुझे फिर से परे धकेल कर गाली दी और बोला, हरामखोर कुतिया, तेरी आज सुबह से ही नियत खराब थी, कौन यार था तेरा जिसके पास इधर आई थी. जिसके न मिलने से तू पगला गई है. मेरी हालत बहुत खराब हो चुकी थी, तो मैं उसके पैर पकड़ कर गिडगिडाते हुए बोली, प्लीज विक्रम एक बार मेरे अन्दर आ जायो, फिर जो चाहे पूछ लेना. उसको थोड़ा सा नरम होते देख मैंने खुद ही अपनी कमीज और ब्रा भी उतार फेंकी और अब मैं बिलकुल नंगी रंडी की तरह उसके पैरों में पड़ी हुई मुझे चोद लेने को कह रही थी. दूर दूर तक कोई दिखाई ने दे रहा था, घुप अन्धेरा था, सिर्फ हमारे साँसों की ही आवाज थी. विक्रम ने गाडी के अन्दर की माध्यम सी लाईट जला कर मेरे नंगे बदन को देखा और मुझे अच्छी तरह से देखते हुए बोला, समिति तू इतनी प्यासी थी, मुझे कभी पता ही न चला. अच्छा बता मेरा नुकसान कैसे पूरा करेगी.

मैंने कहा, एक बार मुझे शांत करलो फिर जो पूछना है, पूछना. उसने मुझे वालों से पकड़ कर खींच कर अपने पास किया और एक गहरा लम्बा चुम्बन मेरे होंठों का लेते हुए मेरे एक स्तन को जोर से मसल दिया. मैं चिहुंकी तो फिर से गाली देकर बोला, अब मादरचोद नखरे करने लगी. उसने अपने पास करके मुझे सीट पर उलटा लिटा दिया और मेरे गोरे गदराए चूतडों पर हाथ फिराते हुए मेरी चूत में ऊँगली दे दी. मैं उसकी ऊँगली अन्दर जाते ही फरफरा गई, और मेरा काफी पानी निकल गया. उसने खुद अपनी पेंट उतार कर मुझे लंड को चूसने को कहा. यह मेरे लिए पहली वार नहीं थी, मैंने कई लंड चूसे थे, उसके कहने पर मैं चूसने लगी. गंदा तो था, परन्तु मैं चुपचाप चूसती रही. उसका लंड काफी लम्बा और मोटाई लिए हुए था, जिससे मेरे होंठ दुखने लग गए तो मैंने लंड छोड़ कर कहा अब मेरे अन्दर डाल दो न, क्यों तरसा रहे हो. उसने मेरे को अपने नीचे लिटा कर लंड मेरी चूत पर रख कर एक ही प्रहार ऐसा किया, कि उसका आधे से ज्यादा लंड मेरे अन्दर था.

गाडी बन्द न होती तो शायद सारा गाँव मेरी चीख सुन लेता. विक्रम ने दुसरे प्रहार से पूरा लंड मेरे अन्दर पहुँचा कर रुक गया, तो मैं फिर चीखते हुए तेज दर्द से बेहाल हो गई. विक्रम के दो ही पुश ने मेरे शरीर को झिंझोड दिया था. मेरी आँखों से आंसू निकल गए, तो विक्रम ने मेरे गाल कर जोरसे तमाचा लगा कर कहा, हरामजादी फिर नखरे. मैं जल्दी से चुप हो गई और उसके मोटे लंबे लंड के पुश सहने लगी. शायद पांच मिनट में मैं दोबारा से फरफरा कर झड़ी तो लंड का सुखद एहसास होने लगा. वो मेरे को धीरे धीरे धक्के मार रहा था, तो दो तीन मिनट के बाद मैंने नीचे से अपने गदराए भारी चूतडों को उसके लंड से ताल मिलाने को लगा दिया. अब उसका धक्का तो थोड़ा नरम होता, परन्तु नीचे से मैं जोरदार उछाल देती हुई शायद पांच सात मिनट में तीसरी वार फरफराई, तो दम फूल गया और मैं हांफने लगी. विक्रम अब पूरे यौवन से मुझे चोद रहा था, और उसके धक्के भारी से भारी होते जा रहे थे. मेरे तीसरी वार झड़ने के बाद उसने मुझे करीव वीस मिनट और चोदा और मेरी चूत की गहराई में जैसे ही उसने अपने वीर्य का पहला मोती फेंका, मैं तो जैसे आसमानों में विचरती हुई फिर से जोरदार झड़ने लगी.

उधर मेरी चूत झड रही थी, और उधर उसके गर्म गर्म वीर्य के मोती मेरे खेत को सींचने जा रहे थे. मैंने नीचे से ही उसे अपनी बाहों और टांगों में जकड कर उसके साथ चिपक गई. मुझे इतना अच्छा लगा था, कि मैं उसे छोड़ न पा रही थी. बन्द गाडी में मैं और वो पसीने से पूरे भीग चुके थे. काफी अंतर के बाद वो उठा और मेरी पानी की बोतल को मुंह लगा कर पानी पी कर बोतल मेरी तरफ बढ़ा दी. मैंने भी उसका झूठा किया हुया पानी पीया, और फिर से लेट गई. उसने गाडी का एक शीशा खोल दिया तो हमारे बदन थोड़े ठन्डे हुए. इतनी ही देर में एक जोरदार धमाका हुया और सामने वाला घर भरभरा कर गिर गया. हमारी गाडी भी नीचे ढलान की तरफ थोड़ी सी खिसक गई. परन्तु पेड़ों में फंसी होने कारण ज्यादा न खिसक पाई. हम दोनों ने कपड़े पहन लिए, और जल्दी से जा कर देखा, एक लड़की और एक औरत हमें मलवे में दिखाई दी. विक्रम ने जल्दी जल्दी उन्हें बाहर निकाल लिया तो उस औरत ने अपने पति का बताया. परन्तु साधन न होने कारण उन्हें ढूंडा न जा सका. सारी रात वारिश होती रही, और वो लड़की और औरत भी हमारे साथ गाडी में आ गए.

दिन निकल आया, तो हम क्या देखते हैं, आधा गाँव के घर गिरे हुए हैं, और निकलने का कोई रास्ता न बचा था. विक्रम ने अब गाँव को छोड़ा और मुझे साथ लेकर पहाड़ के उपर की तरफ गाडी चढ़ाने लग गया. हम उस गाँव से करीव दस किलोमीटर तक उपर आ चुके थे, तो वहाँ पर भी विक्रम ने पेडों के वीच फंसा कर गाडी पार्क करी, और नीचे उतरे तो पता चला कि केदारनाथ में कोई बड़ी घटना हो गई है, और गंगा, अलकनंदा और मंदाकिनी ने हमें चारों और से घेर लिया है, निकल भागने या गाडी लेकर निकलने का कोई भी रास्ता नहीं बचा है. बहुत से लोग मर गए हैं, और सभी नदियाँ उफान पर है. वारिश लगातार जारी थी. मैंने मोबाइल से फोन करके अपने घर बता दिया. विक्रम ने काफी समझदारी से काम लिया था और उस गाँव में पहुंचने से पहले एक बड़ी दूकान से ब्रेड, बट्टर, जाम, और कोक खरीद कर गाडी में भर लिया था. शायद उसके पास और पैसे होते तो और भी खरीद लेता. फिर एक जगह से उसने केले और संतरे भी खरीदे थे.

यह कहानी भी पड़े  गुलाबी बदन पार्ट -1

पता चल चुका था कि अब हम निकल कर कहीं नहीं जा सकते. विक्रम ने मेरे को बहुत कोसा था, और फिर से गालियां दी थीं, जिसे मेरे पास चुपचाप सुनने के कोई चारा भी न था. हम उस रात भी गाडी में ही सोये और उस रात मेरे कहने पर विक्रम ने तीन वार मेरे को वीर्य से भरा था. मैं तो शायद आठ दस वार झड़ी थी. आज की रात तो विक्रम ने मेरे को इतना चोदा था, कि मेरा शरीर पूरा थक गया था, और मेरी पूरी प्यास बुझ चुकी थी. दूसरी सुबह देखा था, तो वो वाले गाँव के भी कई घर गिर चुके थे, और लोग त्राहिमाम कर रहे थे. वारिश जैसे रुकने का नाम न ले रही थी. यहाँ पर हमारी कार खड़ी थी, उसके पास की पूरी सड़क तवाह हो चुकी थी, और हमारी कार जैसे पेड़ों में फंसी हुई खड़ी थी. लोग गाँव खाली करके जाने लग गए और उपर से भी लोग इस तरफ आ रहे थे. लूटपाट शुरू हो चुकी थी, और लूटने वाले ही लोगों को मारने लग गए थे. मार कर पानी में फेंक देते थे. दुसरे पहाड़ पर से जाने वाले लोगों ने हमें बताया था यह सब, परन्तु हमारे पास तक आने के लिए रास्ता कठिन था. खाने पीने की तंगी हो चुकी थी, परन्तु हमारे पास कोक और ब्रेड थी.

मैं और विक्रम दुसरे पहाड़ पर जा कर निकलने का रास्ता खोजने गए तो वहाँ पर क्या देखते हैं नीचे की तरफ दो बदमाशों ने तीन मर्दों को दात्र से मार कर हमारे सामने ही नदी में फेंक दिया और औरतों के जेवर लूटने लगे तो विक्रम ने उन्हें बंगारा और दूर से पत्थर फेंक फेंक कर उनको भगाया और फिर एक एक करके उनको अपने हाथ में पकड़े बेसबाल से उन्हें मार मार कर भगाना चाहा, तो हडबडाहट में पहले एक और फिर दूसरा भी नदी की धारा में बह कर नजरों से देखते देखते ही ओझल हो गए. अब वो तीन औरतें हमारे ही आसरे पर थीं. उनका सामान पता नहीं कहाँ छूट चुका था, सिर्फ हाथों में अपने लेडिज बैग पकड़े थीं. विक्रम ने तो उनको जाने का कह दिया, तो मैंने कहा, यह वेचारी कहाँ जायेंगी. गईं भी तो दूसरा लूट लेगा और मार भी सकता है. इसलिए अपने साथ ले लेते हैं. विक्रम उनको साथ नहीं लाना चाहता था, मेरे वार वार अनुरोध पर आखिर मान गया. वो तीनों हमारे ही साथ आ गईं. दो तो अभी चौवीस पचीस की थी, और एक शायद तीस के पास होगी. गहनों से लदी हुईं इन्तहा सुन्दर थीं, तीनों ही मेरे से ज्यादा सुन्दर थीं. पूछने पर पता चला एक भाभी है और दो ननदें हैं.

उनके पति तो उनकी नजरों के सामने मार दिए गए थे, तो बहुत ज्यादा डरी हुईं थीं, और लगातार रोये जा रहीं थीं. गाँव में हम फिर से आ गए और गाँव के लोग भी घरों को छोड़ कर खुले में पेड़ों के नीचे तरपाल बाँधे सोने लगे थे. थोड़ी थोड़ी देर में कोई घर गिर रहा था, तो अन्दर घरों में जाने की हिम्मत न हो रही थी. देखते देखते रात गहरा गई, हमारी कार पेड़ों के अन्दर फंसी थी, तो हम उन औरतों को भी साथ लेकर कार में आ गए. रात गहरा चुकी थी, और अन्धेरा छा गया था. सब के कपड़े गीले थे. विक्रम ने मुझे समझाया यदि अब हम ने अपने कपड़े पहने रखे तो इन बेचारियों को पहनने को क्या देंगे. इनके पास तो कोई दूसरा कपड़ा है नहीं, और न ही तुम्हारे पास हैं इनको देने को तो ऐसा करते हैं, गीले कपड़े उतार कर गाडी में ही सूखने को टांग देते हैं, और विना कपड़ों के ही गाडी में कम्बल के अन्दर सोने की कोशिश करते हैं. वात उसकी ठीक थी, मेरे पास तो सिर्फ एक ही सूट फालतू था, और पहना हुया बहुत गीला था.

मुझे उसकी वात ठीक लगी. विक्रम ने गाडी की सब सीटें खोल कर अन्दर समतल कर दिया. सब ने गाडी के पीछे जा कर कपड़े उतार कर निचोड़ लिए. कपड़े टांग कर नंगे ही एक एक करके गाडी में कम्बल में आ गए. विक्रम ने सब को ब्रेड, जाम खिला कर कोक पिलाया. बोतल से ही सब मुंह लगा कर पी रहे थे. विक्रम सब के बाद आया था तो वो वीच में था और एक तरफ मैं थी और दूसरी तरफ भाभी कंगना थी. पैरों की तरफ दोनों ननदें रागिनी और कोकिला थीं. कोई भी पैर लंबे करता तो दुसरे के नंगे शरीर पर होते. हमारे शरीरों की गर्मी से ठण्ड कम हो गई, तो मेरी चूत में मचली होने लगी. मैंने विक्रम के लंड को हाथ लगाया तो पाया, उसका लंड खम्बे की तरह अकडा हुया था, शायद साथ सोई इतनी सुन्दर औरतों के कारण. सब को तो मालूम था, सब नंगे हैं. मैं अपने आप् पर काबू न कर पा रही थी तो मैंने उसे अपने साथ खींच लिया और उसकी तरफ अपने चूतड़ करके टाँगे खोल दीं. विक्रम ने भी तुरन्त लंड मेरी चूत में फंसा कर धक्के लगाने चालू कर दिए. मैं जल्दी से झड गई तो विक्रम ने लंड निकाल लिया, और कुछ देर शान्ति हो गई. दूर दूर होने की तो जगह भी न थी गाडी में.

अभी नींद भी न आई थी, कि कोई कार में चीखा, मैंने हाथ लगा कर देखा विक्रम और कंगना आपस में जुड़े हुए थे, शायद विक्रम का लंड अन्दर जाने पर कंगना चीखी थी. थोड़ी ही देर में कंगना की सिसकारियाँ कार में गूंजने लगीं. उन सब ने मेरी सिसकारियाँ भी तो सुनी होगी. वीस मिनट के करीव कंगना को चोदने के बाद विष्णु अब पूरे जोश में आ चुका था. जगह तंग होने नाते उसने कंगना को अपने नीचे कर लिया और अब उसे जोर जोर से ठोकने लग गया. गाडी पूरी हिल रही थी, और मुझे डर था, कहीं गाडी नीचे न खिसक जाए. कंगना अपने पति और नन्दोइयों की मौत भूल कर काम वासना में आसक्त कामातुर नारी की तरह हाँ हाँ आ आ सी सी करके लंड गटक रही थी. विक्रम ने शायद आधे घंटे के बाद हुमक हुमक कर उसकी चूत में अपना सारा लंड खाली कर दिया, तो दोनों काफी देर तक हाँफते रहे. मुझे कंगना के विक्रम को वार वार चूमने की आवाजें आ रहीं थीं. यदि मैं सुन रही थी, तो रागिनी और कोकिला भी सब सुन ही रहीं होंगी. उनको लाने के समय यह वातें मेरे दिमाग में भी न आईं थीं, कि ऐसी स्थिती भी बन सकती है. कंगना और विक्रम पसीने से तर थे,



error: Content is protected !!