मेरा नाम आर्चीस है. मेरी उमर 20 साल है. मैं एक गाओं में रहता हू. यहा मैं अपने परिवार के साथ रहता हू. हमारी खानदानी किराने की दुकान है, जो मैं अपने पिता के साथ मिल कर कभी-कभी चलता हू.
एक रोज़ मैं अपने दोस्तों के साथ जंगल में झील के पास घूमने गया था. हम सारे दोस्त अभी-अभी जवान हुए थे. तो हम सब में थोड़ी तारक थी. जंगल में झील के पास सुबा हम सब दोस्त नहाने जाते थे. और सब मिल कर नहा कर वापस आते. दोपहर को हम वापस उसी झील के पास कुछ पत्थरों के पीछे च्छूप जाते.
क्यूंकी गाओं की कुछ लड़कियाँ और औरतें अपने घर के काम निपटा कर वाहा नहाने आती थी. और हम सेयेल तर्की लौंदे पीछे च्चिप के उन्हे नहाते हुए देखते. दोस्त तो तर्की थे ही, तो उन्हे अढेढ़ उमर की औरतों में भी मज़ा आता. पर मुझे नयी-नयी कुवारि लड़कियों को नहाते देख मज़ा आता.
वाहा एक दिन मैने सुषमा को देखा. उसकी उमर 19 साल थी, और वो पहली बार अपने दोस्तों के साथ नहाने आई थी. उसके उपर मेरी नज़र टिक गयी. वो झील में उतरी और अपने कपड़े निकालने लगी. उसने अपने उपर के सारे कपड़े उतारे, और वो ब्रा में खड़ी हो गयी.
वो झील में पानी के अंदर थी, तब उसने अपनी सलवार और पनटी भी उतार दी. उसने जैसे ही अपनी सलवार उतार के झील के किनारे रखी, मेरी आँखें बड़ी हो गयी. फिर उसने जैसे ही अपनी पनटी उतार के झील के किनारे रखी, मेरा लंड एक-दूं खड़ा हो गया. मेरी ज़ुबान सूख गयी. हलकी झील के अंदर होने के कारण उसे नंगा देखना नसीब नही हुआ.
उसने मेरी और पीठ की हुई थी. उसने अपने घने बालों को खुला छ्चोढा, और अपने बालों को पीछे से आयेज अपने बूब्स पर रख दिया. फिर उसने पीछे से अपनी ब्रा की हुक खोली, और ब्रा को साइड में किनारे फेंक दिया. जैसे ही उसकी ब्रा उसके स्टान्नो से अलग हुई, वैसे ही मेरा लंड और ज़ोर से खड़ा हो गया.
लंड में से पानी की बूँद निकल कर मेरी चड्डी में गिर गयी. मेरा लंड ऐसे खड़ा हुआ मानो अभी चुदाई कर देगा किसी की. मैने झट से अपने हाथो से उसे पकड़ा, और नीचे की और दबाया. ये सब गौरव, जो की मेरा दोस्त था, उसने देखा. वो मुझे देख मुस्कुराया. पर मेरी आँखें सुषमा से हॅट ही नही रही थी.
सुषमा को मैने पूरा नहाते देखा. मैं इसी पल का इंतेज़ार करता रहा की वो मेरी और मुड़े, या फिर उसके बालों के पीछे से उसकी चुचियाँ मुझे बस एक बार दिख जाए. पर मौका नही मिला. उसके बाद उसका नहाना पूरा हुआ तो लगा की वो बाहर आएगी, और उसके नंगे जिस्म के दर्शन हो जाएँगे.
पर उसने पहले ही टवल से अपने आप को धक लिया और फिर बाहर आई. एक पेड़ के पीछे जेया कर उसने कपड़े पहने, और वाहा से वो चली गयी. उसके जाते ही मैं और मेरे दोस्त अपने घर की और निकल गये. घर जेया कर मैं अपने कमरे में चला गया.
अकेले में बैठा-बैठा आज जो कुछ देखा वो सोच रहा था. सुषमा को चाह कर भी भुला नही पाया. और सुषमा को नंगा इमॅजिन करके मैने मूठ मार दी. शाम को हम दोस्त छाई की तपरी पर मिले.
गौरव ने एक साइड मुझे ले जेया कर कहा: क्यूँ आर्चीस, लगता है तूने घर जेया कर सुषमा के नाम की मूठ मार ही ली.
ये सुन के मेरी आँखें बड़ी हो गयी, और मैं चौंक गया.
मैने हकलाते हुए पूछा: तुझे कैसे पता मदारचोड़?
तो गौरव पहले हस्स पड़ा, और फिर उसने कहा: सुबा झील के पास तेरी आँखें सुषमा से हॅट नही रही थी, और तेरे लंड को तू बार-बार सेट कर रहा था. उसी में मैं समझ गया.
मैं: हा यार गौरव. सुषमा को मैं चाहता हू. उसको पकड़ कर छोड़ने को मिल जाए तो मज़ा आ जाए. तू कुछ कर सकता है क्या?
गौरव: तू चिंता मत कर. मैं कुछ चक्कर चलता हू.
उस रात को मैं सो नही पाया. बार-बार सुषमा का चेहरा और उसका जिस्म मेरी आँखों के आयेज आ रहा था. उस रात वापस एक बार सुषमा को याद करके मूठ मारी. मेरा कम तो निकल गया, पर अंदर की आग नही बुझी. मैं समझ गया था की अब ये आग सिर्फ़ सुषमा ही बुझा सकती थी.
दूसरे दिन हम वापस झील पर गये. पर वाहा सुषमा नही थी. और मेरी आँखें सिर्फ़ सुषमा को ढूँढ रही थी. उसी दोपहर गौरव ने अपनी एक दोस्त के साथ मुझे मिलवाया. उसका नाम सविता था. सविता सुषमा की दोस्त थी. सविता के ज़रिए पहली बार मेरी दोस्ती सुषमा से हुई. फिर उसके बाद हम चारों रोज़ किसी ना किसी बहाने से मिलते और बातें करते.
सुषमा और मैं थोड़े करीब आ गये थे. कभी-कभी अकेले में भी मिलना हो जाता था. अब मुझे ऐसा लगने लगा था की मेरे और सुषमा के बीच कुछ हो सकता था. कुछ वक़्त ऐसे ही बीता. मैं और सुषमा अब काफ़ी क्लोज़ आ चुके थे.
सुषमा से मैने अपने दिल की बात कर दी थी, और सुषमा भी अब मुझे चाहने लगी थी. मैं हर रात सुषमा को याद करके मूठ मारता था. पर मेरे अंदर की आग और तारक कम नही हो रही थी. एक दिन मेरे घर के लोग बाहर गाओं शादी में जाने वाले थे. ये एक अची ऑपर्चुनिटी थी. ये सोच कर मैने सुषमा को बहाने से घर बुलाया, और कमरे में ले गया.
सुषमा समझ गयी थी, की मैं उससे क्या चाहता हू. पर वो इसके लिए राज़ी नही थी. पर मैने भी उसे मानने की कोशिश की.
मैं: सुषमा मैं तुमसे प्यार करता हू. जिस दिन से तुम्हे देखा है, मैं सिर्फ़ तुम्हारे नाम की मूठ मारता हू. मेरे अंदर की आग तुम ही बुझा सकती हो.
सुषमा मेरे अंदर की तारक को भाँप गयी. उसने मुझे माना कर दिया. पर पता नही मेरे अंदर एक पागलपन सवार हो गया. फिर मैने सुषमा को बाहों में भर लिया. मैने उसे पहले लिप्स पर, फिर गर्दन पर चूमना शुरू किया. मैने उसे बेड पर पटक दिया, और उसके सामने खड़े हो कर अपनी शर्ट उतारी, और मुस्कुराते हुए अपनी पंत उतार दी.
मैं आधा नंगा हो गया था. चड्डी के उपर से मेरा लंड सॉफ किसी केले की तरह उभरा हुआ था. उसे देख कर सुषमा दर्र गयी, और उसके चेहरे पर दर्र के एक्सप्रेशन सॉफ दिख रहे थे. मैं सुषमा के उपर चढ़ गया, और उसे फ्रेंच किस करने लगा. फिर मैने उसकी गर्दन पे किस और स्मूच करना शुरू किया.
पहले सुषमा ने कुछ कोशिश की मुझे डोर करने की, पर आख़िर में वो मान गयी. उसके बाद उसने भी मुझे पकड़ा, और मेरे होंठो को अपने शरीर पर महसूस करने लगी. कुछ देर बाद मैने उसकी सलवार और पाजामा निकाला. सुषमा अब ब्रा और पनटी में मेरे सामने थी. मैने उसके बूब्स को ब्रा के उपर से दबाया.
फिर उसके पेट को चूमते हुए नीचे की और आया, और उसके पैरों को पकड़ के चूमने लगा. मैं उसकी जांघों पर भी किस करने लगा. उसकी गोरी-गोरी जांघों पर मेरे होंठ और जीभ उसे छाते और काटे बगैर नही रह पाई. फिर मैने उसे गौर से देखा और मुझे वो वक़्त याद आया जब पहली बार उसे झील में नंगा होते देखा था.
उस वक़्त तो देख ना सका, पर आज उसे देखूँगा. ये सोचते ही लंड ने फिर हिचकोले खाए. मैने एक झटके में उसकी ब्रा को उसके बूब्स से डोर किया, और अपना मूह सीधा उसके बूब्स पर रख दिया. कभी हाथो से दबाता, तो कभी अपने मूह में पूरा पों-पों घुसता.
चूस-चूस कर उसके मम्मो को लाल कर चुका था. और यहा सुषमा दर्द सहन नही कर पाई. उसके मूह से लगातार हल्की चीख निकल जाती. मैं जान-बूझ कर उसे दबोचता. फिर मैं सीधा उसकी छूट के पास गया. उसने अपने हाथो से अपनी छूट च्चिपाई. मैने अपने दोनो हाथो से उसके हाथ पकड़े, और छूट से डोर किए.
मैने अपना मूह सीधा उसकी छूट पर रखा, और पनटी के उपर से अपनी नाक अंदर घुसने की कोशिश की. फिर अपने दांतो से पनटी उसकी छूट से हटाई, और पैरों से नीचे खीच कर फेंक दी. उसकी पनटी उसकी छूट के पानी से गीली हो चुकी थी, और वही पानी मेरे मूह पर लगा हुआ था. पर छूट की महक मुझे बावरा बना रही थी.
मैने फिर उसके पैर फैलाए, अपना मूह उसकी छूट पर रखा, उसे सूँघा, और अपनी जीभ उसकी छूट में डाल दी. उसकी छूट को मैं चाटने लगा. मेरी इस हरकत से सुषमा के अंदर की तारक जाग गयी. जो सुषमा मुझे रोक रही थी, वही सुषमा अब मेरा सिर अपने दोनो हाथो से पकड़ कर अपनी छूट में घुसने के लिए धक्का देने लगी. आख़िर वो मान ही गयी.
मुझे और जोश आ गया. मैने कुछ देर तक उसकी छूट छाती, और फिर अपनी चड्डी उतार दी. आख़िर कब तक अपने शेर को क़ैद में रखता? वो बाहर आने के लिए तड़प उठा. मैने फिर अपना लंड हिलाया, और उसकी छूट पर सेट किया. उसकी पनटी उसके मूह में तूसी, और उसके दोनो हाथ उसकी गांद के नीचे दबाए. फिर उसके दोनो पैर मेरे कंधो पर रख दिए, और कुछ धक्के लगाए. उसकी कुवारि छूट आज फटत गयी.
छूट से खून निकालने लगा, और सुषमा रो पड़ी. मेरे अंदर घुसे लंड के सूपदे को वो बाहर निकालने की भीख माँगने लगी. पर मैने भी उसकी एक ना सुनी. मैने भी कुछ देर वैसे ही रखा, और फिर से धक्के लगाए. कुछ धक्को के बाद मेरा पूरा लंड उसकी छूट में था. सुषमा की आँखों से आँसू की नादिया बह रही थी.
मैने उसे किस किया और सहारा दिया. उसके मूह से पनटी उतरी. फिर मैने उसे छोड़ना शुरू किया. पहले धीरे-धीरे छोड़ा, पर बाद में मैने भी अपनी रेल-गाड़ी दौड़ाई. कुछ देर बाद ज़ोर-,ओर से धक्के दे-दे कर उसकी छूट चुदाई करने लगा. करीब 15-20 मिनिट लगातार चुदाई की. जब-जब ऐसे लगा की मेरा माल निकालने वाला था, मैने कंट्रोल किया.
पर आख़िर में उसकी गरम छूट ने मुझे अपना माल निकालने पर मजबूर कर ही दिया. मैं उसके पेट पर अपना माल निकल चुका था. और फिर सुषमा को नंगा ही लिपट गया. सुषमा भी मुझे लिपट कर सो गयी. मैने अपनी पहली चुदाई कर दी थी, और सुषमा की छूट का उतघ्ाटन भी कर दिया था. उस दिन के बाद ना-जाने कहा-कहा, और किस-किस पोज़िशन में सुषमा को मैने छोड़ा है.
सुषमा की छूट का भोंसड़ा बना दिया था मैने. अगर आपको हमारे और दिलचस्प एक्सपीरियेन्स जानने है, तो ये कहानी कैसी लगी वो जवानिकजोश@आउटलुक.कॉम पर ज़रूर बताइए. आपकी ईद सेफ रहेगी.