कविता बोली- ये तो तेरा पानी है डार्लिंग.. उसे मेरी बुर में ही निकालना.. मैं भी झड़ने वाली हूँ.. आह्ह्ह आह्ह्ह.. इस्स्स्स.. उम्म्मम्म..
बस थोड़ी देर बाद मेरे लंड से पिचकारी निकल गई और मैंने कविता की बुर को भर दिया। कविता भी एकदम से तड़प उठी और मुझे अपने सीने से भींच लिया।
उसकी बुर का दबाव मेरे लंड पर बढ़ गया.. जैसे वो मुझे निचोड़ रही हो।
दो मिनट के इस तूफान के बाद हम दोनों शांत हो गए और एक-दूसरे पर निढाल हो कर लेट गए।
मेरी पहली चुदाई के अनुभव के बाद मुझमें इतनी भी ताकत नहीं बची थी कि मैं उठ सकूँ।
हम दोनों वैस ही नंगे एक-दूसरे से लिपट कर सो गए। एक घंटे बाद कविता उठी और अपने कपड़े पहनने लगी। मेरा मूड फिर से चुदाई का होने लगा.. तो उसने मना कर दिया।
वो बोली- अभी तो पूरा हफ्ता बाकी है डार्लिंग.. इतनी जल्दीबाज़ी मत करो.. मैं तुमको बहुत मज़ा दूँगी..
फिर पूरे हफ्ते हम दोनों ने अलग-अलग तरीके से चुदाई का खेल खेला..
यह कहानी आपको कैसे लगी ये मुझे ज़रूर बताएँ.. मेरा मेल आइडी है।