विधवा की जवानी

मेरा नाम इन्द्रा है. उमर २५ साल की लेकीन आज मैं एक विधवा हूँ.आज में मेरी जिंदगी का एक सेक्रेट आपको बयां कर रही हूँ.

मेरी शादी हुए २ साल बीत गए और मेरे पती मेरी शादी के ६ महीने बाद ही गुजर गए. मेरे पापा और मम्मी का देहांत ७ बर्ष पहले एक कार एक्सीडेंट मैं हो गया था. २ साल पहले मेरे दो भाई, सुनील और सुरेश ने बडे धूम-धाम सी मेरी शादी की. दोनो भाई मुझसे ७ और ५ साल बडे है. दोनो की शादियाँ हो चुकी है.

शादी तो बडे धूम-धाम सी हुयी लेकीन सुहाग रात सी ही मैं अपने आप को तघी हुयी महसूस करने लगी. मेरा पती रोहन बड़ा ही Sexy आदमी था. शुहाग रात की रात वह शराब के नशे मैं झूमता हुआ आया और मेरे साथ कोई बातें ना करके सिर्फ अपनी हवास मिटाने की कोशिश करने लगा. मेरे कपडे उसने खींच कर मुझेसे अलग कर दीये. मेरे नंगे जिस्म को देखकर उसकी आंखें चमक ने लगी.

आखीर क्यों नही चमकती. मेरे हुस्न है ही ऐसा. मेरी उफनती हुयी जवानी को देखकर कई घायल हो चुके है. गोरा-चिट्टा बदन और उस पर ऊपर वाले की मेहरबानी सी एकदम परफेक्ट उतार और चढाव. बड़ी आँखों के अलावा मेरे पतले और नाज़ुक होंठ. तरासे हुए मेरे मुम्मे और पतली कमर. गोल-गोल चुताड और गद्रायी हुयी जन्घें. कपडे पहने होने के बावजूद राह चलते हुए लोग आहें भरते थे फीर यहाँ तो मेरा जिस्म एक दम बेपर्दा मेरे पती की आँखों के सामने था.

रोहन ने झट सी अपने कपडे उतारे और झूमता हुआ मुझे अपनी बाँहों मैं लेकर बेदर्दी सी मेरे गाल और मेरे दोनो मुम्मो को मसलने लगा. अपने दांतों सी मुझे काट कर मेरे मुम्मो पर अपने निशान दे डाले. फीर अपने लंड को हाथ मैं लेकर मेरी टांगो को चौडा कीया और मुझ पर टूट पड़ा. उसका लंड दिखने मैं एक मज़बूत लंड धिकायी पड रह था. मुझे लगा की यह मुझे बुरी तरह सी रौंद डालेगा.

उसने मेरे दोनो होठों पर अपने होठ रखते हुए एक करारा शोट मेरी चूत पर दे मारा. मैं चीख सी बिल्बिलाई लेकीन मेरे होठ उसके होठो सी चिपके हुए थे. आवाज नही निकली लेकीन आँखों सी दर्द के अंशु बह निकले. फीर वह मुझे चोद्ता गया लेकीन ५ मिनट मैं ही मुझ पर से उतर कर बगल मैं सो गया. उसके लंड सी निकला वीर्य मेरी चूत और मेरी झंघो पर चिपचिपाहट पैदा कर रह था. मेरे जिस्म अभी तक तयार ही नही हुआ था की उसका रुस नीकल गया. मैंने सिसकते हुए सारी रात गुजारी.

फीर यह सिस्सला रोज होने लगा. अब मुझे रोहन के बारे मैं सब कुछ पता चल चूका था. वह बचपन से ही ऐयाशी करता आ रह था. उसकी कई औरतों से संबंध थे. इसी वजह से उसके घर वालो ने उसकी शादी कर दी की शादी के बाद सुधर जाएगा. लेकीन उसकी जवानी खतम हो चुकी थी. रोज मेरे बदन मैं आग लगा कर खुद चैन की नींद सोता और मैं रात भर कर्वातें बदलते हुए सारी रात निकाल देती. कभी-कभी ब्लू फिल्म्स की CD लाकर रुम के CD प्लेयर मैं मुझे फिल्म
दिखता.

Un फिल्म्स को देखकर मैं तो सुलगती रहती लेकीन रोहन ५-७ मिनट के मजे लेकर उनको रात भर देखता रहता. In फिल्मो की तरह ही कभी- कभी मेरी गांड भी मार देता. मुख से उसके लंड को ३-४ din मैं चूसना ही पड़ता. जीस din उसका लंड मेरे मुहं मैं जाता उस din मेरी चूत को सकूं रहता था. लेकीन धीरे-धीरे उसका कमजोर जिस्म और कमजोर पड़ता गया और शादी के ६ माह बाद इस दुनिया से गुजर गया.

मेरे दोनो भाई मुझे अपने साथ ही अपने घर ले आये. हालांकि दोनो अब अलग-अलग रहने लगे थे. दोनो के घर पास-पास ही थे. दो-Teen महीने तो जैसे-तैसे गुजर गए लेकीन अब मेरे अन्दर की वासना की आग मुझे जलाने लगी. हेर रात को भाभियों को भैया के साथ हंसी- मजाक करते देख मेरा मन भी छट-पटाने लगता. मेरी दोनो भाभिया है भी Sexy नातुरे की और मेरे दोनो भाइयो को अपने कंट्रोल मैं रखती थी. लेकीन ना जाने क्या हुआ की दोनो भाभियाँ मुझसे नाराज़ रहने लगी. उन्हें लगता
था की मैं उनकी CID करती हूँ. एक दीन मुझे लेकर घर मैं बड़ा हंगामा हुआ. फीर फैसला हुआ की मेरे नाम १० लाख की फिक्सड डिपॉजिट कर मुझे हमारे पुराने घर मैं रहना होगा. मैं बड़ी दुखी हुयी. ससुराल तो छुटा ही था अब मैका भी छुट रह है.

फीर मैं अपने भैया लोगो को दुखी नही करना चाहती थी. अपने पुराने मकान मैं आ गयी. यह मकान मेरे मम्मी पापा ने लीया था. १ बेडरूम और १ हॉल का कोतटेज था. कॉलेज के पास था. दीन भर तो चहल पहल रहती लेकीन शाम होने के बाद एक्का-दुक्का आदमी ही रोड पर नज़र आता. मैं अकेली उस घर मैं रहने लगी. जब दीन मैं मन नही लगता तो कॉलेज काम्पुस मैं चली जाती. आजकल के नौज़वान छोरे और छोकरियों को देखा करती थी. हालांकि मुझे कॉलेज छोड हुए ५ साल ही बीतें है लेकीन टब मैं और अब मैं काफी फरक आ चूका है.

इस कॉलेज के पास ही एक पहाडी है और सुनसान जंगल नुमा जगह है. बड़ा जंगल तो नही है लेकीन सुनसान रहता है. कॉलेज के लड़के-लड़की वहाँ अपने प्यार का इजहार करने चले जाते है. दोपहर मैं घूमने जाती तो ७-८ जोड़े मुझे मील ही जाते. आपस मैं खोये हुए. एक दुसरे की बाँहों मैं छुपे हुए. कई चुम्बन लेते हुए मील जाते. दूर कहीं घनी झाडियों मैं एक दुसरे के बदन को सहलाते हुए भी मिलते थे. मैं इनको देखते हुए आगे बढ़ जाती लेकीन मेरे जिस्म मैं एक सरसराहट
शुरू हो जाती. कितनी बार मेरा मन बेकाबू हो जाता लेकीन क्या करती मैं. काफी बार कीसी लड़के को लड़की के मुम्मे को चूसते हुए देखा और कितनी ही बार कीसी लड़की को अपने प्यारे के लंड से खेलते हुए देखा है मैंने. दील मैं हलचल मची हुयी रहती.

घर आ कर ठंडे पानी से नहा कर अपने जिस्म को ठंडा करने की कोशिश करती लेकीन सब बेकार था. फीर एक दीन मार्केट से गज़र ले आई और अपनी चूत मैं दाल कर अपनी आग को ठंडा करने की कोशिश की. इस से थोडी राहत मीली. अब यह मेरी रोज की आदत हो गयी.

फ़िर एक दिन मेरे ननिहाल के घर के पास से एक आदमी आया. जीसे देखते ही मैं पहचान गयी. कमल नाम है उसका. मुझसे ४ साल बड़ा. मेरा ननिहाल यहाँ से ६० किलोमीटर की दुरी पर एक छोटे से गाँव मैं है. ७-८ साल पहले गयी थी. टब मेरे नानाजी जीन्दा थे. अब मौजूद नही है. वही मेरी जान-पहचान कमल से हुयी थी. कमल एक graduate था और वह एक छोटी सी दुकान चलाता है. गाँव का अल्हड़ नौज़वन जीसे मानो कीसी की फिक्र नही हो. मनचले किस्म का है लेकीन बदमाश नही.

मैंने उसे देखते ही पूछा, “अरे कमल, यहाँ कैसे?”

कमल मुझे देखते ही कहा, “कैसी हो इन्द्रा. तुम्हारे बारे मैं पता चला तो मीलने आ गया. तुम्हारे ससुराल गया था लेकीन मालूम पड़ा तुम यहाँ रहती हो.”

मैं बोली, “हाँ अब तकदीर को जो मंज़ूर वही…”

कमल बोला, “सुन कर बड़ा दुःख हुआ.”

मैं बोली, “कोई बात नही. टब बताओ कैसे हो. शादी की या नही?”

कमल, “आरे इतनी जल्दी क्या है? जीसे देखो मेरी शादी के पीछे पड़ा रहता है.”

मैं कहा, “तो नाराज़ क्यों होते हो. जब शादी के लायक उमर हो तभी तो सब जाने पूछते है ना.”

“कर लेंगे शादी भी और जब करेंगे तो सब को बता कर ही करेंगे,” कहकर कमल हंसने लगा.

फीर हम लोगो मैं नयी-पुरानी बातें होने लगी. बातों से ही पता चला की कमल हर १५-२० दिनों से शहर आता था अपनी दुकान के लिए खरीद-दरी करने. २-३ दीन रुकता फीर गाँव चला जाता. रात को कीसी होटल या कीसी गेस्थौसे मैं रुकता और दीन भर बाज़ार मैं घूमता purchasing के लिए.

तभी मैंने कह दीया, “होटल या गेस्थौसे मैं क्यो रुकते हो. यह घर किस काम आएगा.”

कमल थोडा सकपका कर बोला, “लेकीन तुम तो यहाँ अकेली रहती हो.”

मैंने उससे कहा, “अरे तुम कोई ग़ैर थोडे ही हो. अपने वालो को नही बोलू तो क्या कीसी ग़ैर इंसानों को बोलू. तुम एक-आध दीन रहोगे तो मेरा मन भी बहल जाएगा. वैसे भी यह सुनसान घर काटने को दौड़ता है.”

कमल ने हाँ भरी और बोला, “ठीक है. आज तो मैं वापस गाँव जा रह हूँ लेकीन अबकी बार अओंगा तो तुम्हारे इधर ही रुकुंगा.” और यह कहकर कमल चला गया.

मेरी दिनचर्या जैसी चलती थी चलने लगी. दोपहर मैं कॉलेज के लड़के-लड़कियों की रासलीला देखती और रात मैं गज़र से अपनी चूत की भूख मिटाने लगती. फीर २० दीनो बाद कमल मेरे दवाजे पर खड़ा था.

मैं खुश हो कर बोली, “वह, मुझे लगा था तुम केवल बोल कर ही चले गए. अब नही आओगे.”

कमल, “कैसे नही आता. अब Pure Teen दीन रुकुंगा मैं यह. पहले खाना तो बना कर खिलाओ बड़ी भूख लगी है.”

मैं खाना बनने kitchen मैं चली गयी और कमल हॉल मैं आराम करने लगा. हम दोनो ने साथ ही खाना खाया और फीर कमल बाज़ार चला गया. मैं उससे शाम के आते वक़्त सुब्जी लाने को कहा और गज़र लाने को भी कहा. शाम ७-७.३० बजे कमल वापस आया. मैंने उसके आते ही बाथरूम मैं पानी रख कर उससे कहा की तुम तयार हो जाओ तब तक मैं खाना बना देती हूँ. खाना खाने के बाद हम लोग बातें करने लगे. फीर मैं अपने कमरे मैं चली गयी सोने और कमल हॉल मैं ही सो गया.

रात के वक़्त जब बेचैनी होने लगी तो मैं उठकर kitchen मैं गयी और अपनी प्यारी गज़र को उठा लायी. आज बैचैनी की वजह थी. एक लड़का आज अपनी जानेमन की जंगल मैं चुदाई कर रह था. मैंने साँसे रोके हुए यह नज़ारा देखा. आधे घटे तक चली चुदाई ने मेरे होश उड़ दीये थे. मैं उस सीन को सोच-सोच कर अभी भी हम्फ रही थी. मेरा जिस्म ऐंठने लगा था. हालांकी शाम मैं कमल आने के बाद थोडी देर के लिए ही यह नज़ारा भूली थी लेकीन तन्हाई मैं फीर से मेरी नज़रों के सामने वह चुदाई का सीन घूमने लगा. और गज़र को तेज-तेज अपनी चूत के अन्दर बाहर कर अपनी बेचैनी को शांत करने लगी. जब चूत से पानी नीकल गया तब जाकर राहत महसूस की.

सुबह नहाने-धोने के बाद खाना बनाया और कमल जब जाने लगा तब उसे शाम के लिए सब्जी लाने को बोल दी और फिरसे अपनी प्यारी गज़र के लिए भी बोल दी. कमल के आने का इंतज़ार करने लगी. अब अकेले मैं फीर से वह कल वाला सीन आँखों के सामने घूमने लगा और अपने आप को रोक नही पायी. चल पड़ी कॉलेज के पीछे की पहाडी वाले जंगल की तरफ.

आज वैसा नज़ारा तो नही दिखाई पड़ा लेकीन एक झाडी की ओत मैं एक लड़की को दो लड़को के बीच पाया. लड़की दोनो की पन्त की चैन खोले उनके लंड को शाहला रही थी. उफ्फ्फ़… मैं फीर से पागल होने लगी. वह लड़की बारी-बारी से उनके लंड को अपने होठ मैं दबाती और चूसने लगती. जिसका लंड मुहं मैं नही होता उसके लंड को वह अपने हाथ से हिला-हिला कर मजे दे रही थी. एक बार तो मैं उनके सामने जा ही रही थी की यहाँ एक लड़की दो-दो लंड और मुझे एक भी लंड नसीब मैं नही लेकीन जैसे-तैसे अपने आपको रोका.

वापस आई तो बड़ी बेचैन थी और सीधे सो गयी. शाम के समय तक बेसुध सोयी पड़ी रही. नींद तभी खुली जब दरवाजे पर जोर-जोर से पिटने की आवाज़ आई. दरवाजा खोला तो सामने कमल खड़ा था.

“क्या बात है? बड़ी देर कर दी दरवाजा खोलने मैं. मैं कितनी देर से दरवाजा खड़-खड़ा रह हूँ,” कमल ने आते ही पूछा.

मैंने अलसाई सी बोली, “हाँ. थोडी आँख लग गयी थी. मालूम ही नही पड़ा.”

फीर उसके हाथ से सौब्जी का थैला ले लीया और kitchen मैं आकर बोली, “तयार हो जाओ. अभी थोडी देर मैं ही खाना बना देती हूँ.”

खाना खाने के बाद हम लोग बात-चीत करते रहे फीर मैं उठकर अपने कमरे मैं सोने चली आई. सोने से पहले kitchen से गज़र ले आई थी. गज़र हाथ मैं आते ही दीन वाला सीन नज़रों के सामने घूमने लगा. kitchen मैं खडे-खडे जी अपनी निघ्टी के ऊपर से ही गज़र को चूत पर रगड़ने लगी. फीर अचानक याद आया की कमल भी घर पर ही है. लेकीन चूत की आग ने मुझे अंधी कर दीया और गज़र को रगड़ते हुए ही अपने कमरे की और चल पड़ी.

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बिस्टर पर लेटने के साथ ही दीन वाला सीन को याद करके निघ्टी को ऊपर कर गज़र को चूत मैं फंसा दीया और करने लगी अन्दर-बाहर. आज बड़ा मज़ा आ रह था. शायद दो-दो लंड का नज़ारा ब्लू फिल्म के अलावा पहली बार देखा था इसलिए. मैंने पहले आपको बताया था की मेरा हुस्बंद ब्लू फिल्म’s की CD लाकर मुझे दिखता था.

गज़र चूत मैं डालने से मुझे बड़ा शकून मीलने लगा और मेरे मुहं से सिसकारी निकलने लगी. जब पानी नीकल गया तो बड़ी राहत महसूस की. निघ्टी नीचे कर सोने लगी तो मैंने एक सहाय दरवाजे के पास से जाते देखा. ओह्ह… आज दरवाजा बंद करना भूल गयी थी मैं. शायद कमल ने देख लीया हो. लेकीन मन मैं फीर आया शायद यह मेरा वहम हो. खैर.

सुबह उठी तो रात वाली बात भूल चुकी थी मैं. रात को मुझे सबसे ज्यादा मज़ा आया था. इसलिए पुरा बदन हल्का-हल्का महसूस कर रही थी मैं. लेकीन मुझे कमल की नज़रों मैं फरक महसूस नज़र आया. लेकीन मुझे क्या? खाना बनने के बाद कमल को खाने के लिए आवाज़ दी और दो थाली मैं खाना दाल कर हॉल मैं हम दोनो बैठ गए. कमल नहाने के बाद लुंगी पहने हुए मेरे सामने बैठ गया और चुप-चाप खाना खाने लगा.

खाने खाने के बाद कमल से मैंने पूछ लीया, “अभी रुकोगे या गाँव जा रहे हो?”

कमल ने मुझे घूरते हुए पूछा, “क्यों? मेरा यहाँ रहना अच्छा नही लग रह है?”

मैंने डपट-ते हुए कहा, “कैसी बातें कर रहे हो? मुझे क्यों बुरा लगेगा. मैंने इसलिए पूछा की अगर शाम को अगर रूक रहे हो तो सुब्जी लेकर आजना.”

कमल ने मेरी आँखों मैं झांकते हुए कहा, “और गज़र भी.”

गज़र का नाम उसके मुहं से सुनते ही मैं चोंक पड़ी. और मेरे मुहं से कुछ भी निकलते नही बना.

लेकीन कमल ने वापस पूछा, “रोज जो मैं गज़र लाता हूँ उसका आखीर तुम करती क्या हो?”

मैं आंखें नीचे किये हुए चुप-चाप बैठी रही. यानी मेरा रात को वह साया देखना वहम नही था बल्की हकीकत थी.

कमल ने फीर पूछा, “क्यों करती हो यह सब? जब तुम्हारे पास यह मोजुअद है तब तुम्हे गज़र की क्या जरुरत.”

यह कहकर कमल ने अपनी लुंगी के बीच मैं से अपना फुन्फंनाता हुआ अपना मूसल लंड बाहर निकाला. मैं फटी आँखों से उसके मूसल लंड को देखती रही.

मुझे चुप-चाप देखकर कमल ने मेरा हाथ पकडा और मेरी हथेली मैं अपना लंड थमा कर बोला, “इन्द्रा रानी, देखो कैसे तुम्हारे लिए तदाफ़ रह है. इसे प्यार करो.”

उसका गरमा-गरम लाल लाव्दा मेरे हाथ मैं आते ही उछल-कूद मचने लगा. मैंने जब हाथ हटाना चाह तो उसने मेरे हाथ को कसकर पकड़ लीया और मेरी हथेली से अपने लंड को हिलाने लगा. उसका लंड और तन गया. फीर उसने मुझे अपनी बाँहों के घेरे मैं ले लीया और मेरे चेहरे को ऊपर उठाते हुए मेरे होठों को चूम लीया. उसके तपते हुए होठ मेरे नरम-मुलायम होठों को चूसने लगे. मैं बेशुद्ध होने लगी. कई देर तक मेरे होठो को चूसने के बाद कमल ने मेरे होठ आज़ाद कर दीये और मेरे चेहरे को देखने लगा.

मैंने कुछ बोलने की कोशिश की लेकीन उसने मुझे अपनी बाँहों मैं उठाया और मेरे होठो पर अपने होठ रखते हुए मुझे अपनी बाँहों मैं झुलाते हुए बेडरूम मैं ले आया और बिस्टर पर मुझे लिटा कर मेरे ऊपर लेट गया. मैं उसके जिस्म के नीचे दबी हुयी बड़ी रहत महसूस कर रही थी. उसके वज़न से मेरे दबता हुआ यौवन मुझे शकुन दे रह था. कमल मेरे होठो का रुस पीता रह, पीता रह और पीता रह. जब मुझे सांस लेने मैं तकलीफ होने लगी तब मैंने उसे अपने ऊपर से धकेला.

फीर बोली, “नही कमल नही. नही करो यह सब.”

लेकीन कमल कहाँ मानने वाला था. वह बेद के नीचे बैठकर मेरे एक टांग को पकडा और लगा उसे चूमने. वह पहले मेरी पैरों की अंगुलियों को चूमा फीर मेरे टांगो पर बढ़ता हुआ मेरे घुटनों तक चूमता हुआ चला आया. मेरे पूरे बदन मैं अक अजीब सी गुदगुदी होने लगी. मेरा बदन जलने लगा. फीर उसने उस टांग को छोड़ कर मेरी दूसरी टांग को पकडा और चूमता हुआ मेरी सारी को ऊपर करता हुआ मेरी जन्घो तक चूमता हुआ आ गया. अब मेरे होश उड़ने लगे. मुझ पर नशा सवार होने लगा. मैं अब कीसी तरह का विरोध नही कर पा रही थी.

कमल मेरी सारी को और ऊपर करता हुआ मेरी दोनो जाँघों को चाटने और चूमने लगा. मेरे दोनो हाथ उसके सीर पर चले गए. शायद मैं यह चाहने लगी थी और उसके सीर पर हाथ रखकर मैंने अपना इशारा दे दीया. कमल ने मेरी दोनो जांघों को चौडा कीया और मेरे Panty के नीचे तक मुझे चूमने लगा. मेरी चूत मैं रुस निकलने लगा. बाहर तो नही आया लेकीन मैं चाह रही थी की कमल और आगे बढे और मेरी चूत को दबोच ले.

कमल ने कोई जल्दीबाजी नही दिखाते हुए मेरी जाँघों पर से अपना सीर हटाया और मेरे चेहरे की तरफ देखने लगा. अब मैं और कमल दोनो एक दुसरे की आँखों मैं झाँकने लगे. अपने-अपने प्यार का इजहार करने लगे. एक दुसरे को समझने लगे. फीर कमल ने अपना मुहं आगे बढाया और मुझे अपनी बाँहों मैं लेते हुए मेरे गदराये हुए रसीले होठ को फीर अपने होठ की गिरफ्त मैं ले लीया. अब हम दोनो लगे चुम्बन पर चुम्बन लेने. हमारी जीभ एक दुसरे के मुहं बगैर वीसा लिए आ रही और जा रही थी. कीसी पासपोर्ट की जरुरत नही थी. दोनो जाने एक दुसरे के रस को पी रहे थे.

फीर कमल ने मेरी सारी के पल्लुह को हटा कर मेरे दोनो मुम्मो को अपने हाथो मैं जकड लीया और लगा उन्हें दबाने. मेरे मुहं से सिसकारी नीकल रही थी. उसने मेरे होठ को छोड़कर अब अपना मुहं मेरे मुम्मो पर दे दीया. ब्लौसे के ऊपर से ही मेरे मुम्मो को चूमने और काटने लगा. मेरा पुरा ब्लौसे उसके थूक से गीला हो गया.

मैं फुसफुसाई, “पहले कपडे तो खोल दो.”

कमल ने झट से मेरे ब्लौसे के बटन खोले शुरू कर दीये. ब्लौसे के हटने के साथ ही मेरे मुम्मे जोकी अभी भी चोली के नीचे थे उसके सामने आ गए. मेरी चोली के कप मैं पूरे समाये हुए नही थे इसीलिए बाहर की और झलक रहे थे. जीसे देखकर कमल का धैर्य जवाब दे दीया और मेरी चोली के साथ ही मेरे मुम्मो को चूसना शुरू कर दीया. उसकी दीवानगी देख कर मैं कांप उठी. उसका लंड मेरी जांघों पर गद रह था. वह मेरे ऊपर लेटा हुआ मेरे दोनो मुम्मो को चोली के साथ ही मसल रह था और चूस रह था.

अब मैंने अपना हाथ नीचे कीया और उसके लंड को कास कर अपनी मुठी मैं पकड़ने लगी. लेकीन उसका साइज़ इतना था की मेरी मुठी मैं आ ही नही पाया. बहुत मोटा था उसका लाव्दा. मुझे लगा जैसे मैंने कोई अंगारा अपने हाथ मैं ले लीया हो. रात भर से जो सुलग रह था. अपने हाथ से उसके लंड की चमडी को ऊपर-नीचे करने लगी. लम्बी भी बहुत ज्यादा थी उसके लाव्दे की. हाथ से नापा तो जान की मेरी हथेली से भी बड़ा है.

अब कमल अपने हाथ मेरी पीठ पर ले गया और मेरी चोली के हूक को खोलने लगा. जैसे ही मेरी चोली के हूक खुले मेरे दोनो मुम्मी अज्ज़द हो कर उछल पड़े. मेरे मुम्मी मसले जाने के लिए बेताब थे. जरुरत थी दो मज़बूत हाथो की जो मेरे सामने अब कमल के रुप मैं मौजूद थे. कमल ने झट से मेरे दोनो नारान्गियों को पकड़ लीया और लगा उनका रस पीने. कमल ने अपने दांत, होठ और जीभ से मेरे दोनो मुम्मी की बारी-बारी से खूब धुनाई की. मैं निहाल हो उठी. मेरे मुहं से सिस्कारियां नीकल पड़ी.

कमल ने अब मेरे होठो फीर से अपनी गिरफ्त मैं ले लीया और अपने हाथों से मेरे मुम्मी और मेरी पीठ को सहला रह था. मेरा बदन थार-थाराने लगा. मैंने कमल के सीर के बाल पकडे और अपने होठों पर उसके होठों का दवाब बढ़ा दीया. कमल मेरी जीभ को चूसने लगा. मेरे नाज़ुक होठों से रस की हेर बूँद को चूस रह था. मैंने भी कमल के लाव्दे का जकड लीया और लगी हिलाने.

कमल का सख्त लोहे जैसा लंड एकदम गरम था. मैं उसकी गरम आंच मैं सुलग रही थी. मेरी चूत रस से भर चुकी थी. मैं अपनी जांघों को दबा कर अपनी चूत को रगड़ रही थी. इससे मेरे जिस्म की आग और भड़क गयी. अब मुझसे सहन नही हो पा रह था.

मैंने कमल से कहा, “कमल. अब सहन नही हो पा रह है. अब तुम अपने इस लंड को मेरी चूत मैं दाल कर मेरी आग को बुझाओ.”

लेकीन कमल मेरे मुम्मो को मसलते हुए बोला, “थोडी आग और भड़कने दो. फीर देखना मैं कैसी चुदाई करता हूँ तुम्हारी. तुम अबसे जिन्दगी भर के लिए कोई गज़र अपनी चूत मैं डालना भूल जयोगी.”

मैंने अपने मुम्मो पर मीठे-मीठे दर्द का अनुभव करते हुए बोली, “हाँ कमल. आज तुम मेरी ऐसी ही चुदाई करो की मुझे कभी भी कीसी गज़र की जरुरत नही पड़े. अब जल्दी से मुझे चोदों.”

कमल ने कहा, “जल्दीबाजी नही, मेरी रानी. अभी पहले मेरे लंड को चाटो. मेरे लाव्दे को चूसो. मेरे इस हथियार को प्यार करो जानेमन.”

यह कहकर कमल ने मेरे सीर पर अपने हाथ का दवाब बढाया और मेरा सीर उसके लाव्दे की तरफ झुकता चला गया. अब उसका लंड मेरे चेहरे के सामने था. हल्का लाल और कालापन लीये उसका सुपारा एकदम गुलाबी था. लग रह था जैसे शराब पिए हुए नशे मैं झूम रह हो. मैंने उसके मूसल लंड को अपने दोनो हाथो की हथेली के बीच ले लीया और लगने लगी उसको मथने. एकदम सख्त लंड था उसका. जरा भी नही दब रह था. फीर मैंने अपनी जीभ बाहर निकाली और उसके लंड के टीप पर अपनी जीभ सता दी.

कमल मेरी जीभ के छूते ही उफ्फ्फ़ कर बैठा. मुझे भी लगा जैसे मैंने कोई जलती हुयी कोई चीज़ अपनी जीभ से लगा दी हो. फीर मैंने उसके लंड को ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर की और चाटने लगी. अपने थूक से उस गरम लंड को थोडा ठंडा करने लगी. थूक से भर दीया उसको. तभी कमल ने मेरे सीर को जोर से पकडा और अपने लंड को मेरे मुहं के अन्दर जबरदस्ती डालने लगा.

मैंने कहा, “लेटी हूँ बाबा. ज़रा रुको तो सही. पहले मुझे इससे खेलने तो दो.”

लेकीन कमल कहाँ मानने वाला था. वो तो बहुत बेसब्र था. उसने फीर मेरे सीर को पकड़ कर लंड को मेरे होठों से सता दीया और बोला, “अब सब्र नही हो रह है. एक बार मेरे लंड को अपने मुहं मैं लेकर चूसो.”

मैंने अपना मुहं थोडा खोला. कमल ने झट से अपना लंड मेरे मुहं मैं डालने की कोशिश की. लेकीन कैसे जाता उसका लंड मेरे मुहं के अन्दर. कितना मोटा और मूसल था उसका लंड. लंड मेरे दांतों से टकरा कर ही रह गया. फीर मैंने अपना पुरा मुहं खोला और उसके लंड को ¼ ही ले पायी. मेरा मुहं पुरा भर गया. अन्दर तो पुरा नही गया था लेकीन मोटे होने की वजह से अन्दर लेने मैं तकलीफ होने लगी. कमल अपना जोर मार रह था और मैं भी मेरे मुहं को और खोलने की कोशिश कर रही थी. आखीर उसका ½ लंड मेरे मुहं मैं चला गया.

अब मैंने अपना सीर हिला-हिला कर उसके लंड को चूसना शुरू कर दीया. मुझे बड़ा मज़ा आने लगा. मज़ा तो कमल को भी आ रह था. इसीलिए उसके मुहं से सिस्कारियां नीकल रही थी. वो अपने चुताड हीला-हीला कर अपने लंड को मेरे मुहं के अन्दर बाहर कर रह था और मैं भी उसकी ताल मैं ताल मीलते हुए उसका साथ दे रही थी. मुझे लगने लगा की उसका लंड और फूल गया. तभी कमल ने जोर-जोर से शोट मारने शुरू कर दीये तब मैंने अपना मुहं हटा लीया.

कमल ने पूछा, “क्यों निकाली मेरा लंड?”

मैंने कहा, “कैसे जोर से मेरे अन्दर डाल रहे हो? मेरा मुहं दुखने लगा ऐसे तो.”

कमल ने कहा, “बड़ा मज़ा आ रह था तुम्हारे चूसने से. अच्छा अब धीरे-धीरे ही हिलौंगा. लो वापस से मुहं के अन्दर और अब तुम जोर- जोर से चूसो.”

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मैंने फीर से उसके लंड को गुप्प से अपने मुहं मैं ले लीया. अबकी बार उसका लंड ¾ तक अन्दर चला गया. मैं अब जोर-जोर से मुहं हिला कर उसके लंड को चूसने लगी. इस तरह की चुसी से कमल बेकाबू हो गया. वो फीर से जोर के झटके देने लगा. लेकीन मैंने अब कोई परवाह किये बगैर उसके लंड को चुस्ती रही.

तभी कमल चीख पड़ा, “हीई. चूसो… मेरे लंड को… इन्द्रा रानी… चूसो मेरे लाव्दे को…. बड़ा मज़ा दे रही हो तुम… चूसने मैं एकदम एक्सपर्ट… ऐसे ही चूसो… मैं झाड़ जाऊँगा… चूसो… मेरे लंड को…”

मैंने भी उसका लंड बाहर नही निकाला. मैं भी चाहती थी की उसका एक बार रस नीकल जाये. फीर चुदवाने मैं मुझे बड़ा मज़ा आएगा. मैं चुस्ती रही उसके लंड को और तभी मैंने महसूस कीया मेरे गले मैं अन्दर की और कुछ खट्टी और चिप-छिपी बूंदे. तभी एक धार और निकली और सीधे हलक से उतर गयी. फीर तो ढेर सारी पिचकारी छूटी और मैं गताकती गयी उसके रस को.

उधर कमल अपने रस को निकालते हुए बोल रह था, “उफ्फ्फ़… क्या चूसी हो मेरे लंड को… लो पियो मेरे रस को… लो यह लो… और लो… पियो मेरे रस को…. बड़ा मज़ा आ रह है…. जानेमन … तुम तो एक्सपर्ट हो लंड से खेलने की…”

धीरे-धीरे उसका जोश कम होता गया. मेरा मुहं पुरा उसके वीर्य से भर गया. मैंने उसके लंड को अपने मुहं से बाहर निकला. लेकीन यह क्या एक और धार उसके लंड से निकली. अबकी बार मेरे गले पर पड़ी. फीर मैंने हाथ से हीला कर उसकी आखरी बूँद तक रस निकाल दीया और फीर से उसके लंड को चूसने लगी. अब उसका लंड ढीला पड़ने लगा. लेकीन अब वो लंड मेरे मुहं मैं बराबर आ रह था. मुझे उसके मुरझाते लंड को चूसने मैं मज़ा आ रह था.

५-७ मिनट तक चुस्ती रही. तभी फीर से उसका लंड कड़क होने लगा. कमल बडे मेज़ लेकर चुस्वा रह था अपने लाव्दे को. उसका लंड फीर एकदम से कड़क हो गया. उसकी ताक़त फीर से उसके लंड मैं समाने लगी. उसके फूलते हुए लंड को देखकर मेरी चूत मैं आग लग गयी. अब मैंने उसके लंड को बाहर निकाल दीया और बिस्टर पर लेट कर उसके सीर को पकड़ कर अपनी चूत की तरफ ले गयी.

फीर उससे बोली, “अब अपने लंड की प्यास तो बुझा ली. अब तुम भी मेरी चूत को चाटो और मेरी चूत को अपनी जीभ से चोदों.”

कमल मेरी चूत के ऊपर के हलके मुलायम झान्तो से खेलता हुआ बोला, “ऐसे थोडे ही लंड की प्यास बुझती है. जब तक मेरा लंड तेरी चूत मैं अन्दर तक जा कर नही चोदेगा तब तक मेरे लंड की थोडी प्यास बुझेगी.”

फीर कमल मेरी चूत और झान्तो को अंगुली से सहलाता रह. अपने अंगूठे से मेरी चूत के दाने को खोजने लगा. मेरी चूत का दाना मेरी चूत के दोनो लिप्स के बीच उभर हुआ था. एक दम लाल और फूल चूका था. कमल ने मेरे दाने को अंगूठे से मसला. मसलते ही मेरे मुहं से सिसकारी नीकल पड़ी. फीर मेरे दाने को रगड़ने लगा. थोडी देर के बाद कमल ने अपनी एक अंगुली मेरी चूत के अन्दर डाल दी. चूत रसीली हो चुकी थी. अंगुली धड़ से अन्दर चली गयी. फीर धीरे-धीरे मेरी चूत मैं अंगुली अन्दर-बाहर करके छोड़ने लगा.

मैं मस्त हो हो गयी उसकी अंगुली चुदाई से और बोल उठी, “उफ़… क्या मज़ा आ रह है. कितने दिनों बाद कोई मेरी चूत को छेड़ रह है. हीई… तेज-तेज चोदों अंगुली से… और अन्दर तक डालो… उफ़..”

मेरे ऐसे बोलते ही कमल ने अपनी स्पीड बढ़ा दी और साथ ही अपनी दूसरी अंगुली भी मेरी चूत मैं डाल दी. मेरी हालत बुरी होने लगी. मैं अपने चुताड उठा-उठा कर उसकी अंगुली को और अन्दर लेने लगी. तभी कमल ने अपनी दोनो अंगुलियाँ बाहर निकाल दी और अपनी जीभ मेरे दाने पर रख दी. मैं सिहर उठी. मेरा बदन अकदने लगा. मैंने जोर की सिसकारी मारी. कमल ने अपनी जीभ का जादू दिखाते हुए मेरे दाने को चाटने लगा. फीर उसने अपने होठों के बीच मेरे दाने को छुपा लीया और चूसने लगा.

अब मुझसे सहन नही हो पा रह था. मैं अपने चुताड आस्मां की तरफ उठा दीये. उसके सीर को पकड़ कर पुरा जोर लगा दीया ताकि वो मेरे दाने को और अन्दर तक ले ले. कमल ने अब मेरे दाने को छोड़ अपनी जीभ मेरी चूत के अन्दर डाल दी. मैं पगला गयी. मैं हवा मैं उड़ने लगी. मेरी चूत मेरे जूस से भर उठी. कमल की जीभ तेजी से मेरी चूत के अन्दर जाती और धीरे-धीरे बाहर आती. मैं उसकी जीभ-चोदन का मज़ा ले रही थी.

अब मैंने वासना के गहरे सागर मैं डूब चुकी थी. मैं चीख पड़ी, “उफ्फ्फ़… कमल… और तेज… जीभ को तेजी से अन्दर बाहर करो… मैंने यह सुख कभी नही पाया… मुझे आज जैसा मज़ा कभी नही मिल… काट खाओ मेरी चूत को… अपने दांत रगड़ दो मेरी निगोडी चूत से… अह्ह्ह… खूब मज़ा दे रहे हो मुझे… मैं तराश गयी थी ऐसे मेज़ के लीये… चोदों मुझे अपनी जीभ से..”

कमल और तेज स्पीड से जीभ-चोदन करने लगा. मैंने कमल के बाल कास कर पकड़ लीये. मेरा बदन ऐंठने लगा. मैंने अपनी एक टांग उठा कर कमल के ऊपर रख दी. कमल भी मेरी चूत को अन्दर तक छोड़ रह था. लेकीन मुझसे सहन बिल्कुल नही हो पा रह था. मुझे लगा मेरी चूत अब झड़ने वाली ही ही.

मैंने कमल के सीर को कास कर पकडा और अपने हाथ से उसके सीर को अपनी चूत पर जोर-जोर से रगड़ती हुयी चीखी, “हाँ कमल… ऐसे ही राग्दो और चोदों… मेरा पानी नीकल जाएगा… हाँ ऐसे ही मेरे रजा… चूसो और राग्दो… निकलेगाया मेराया पान्न्न्नीई. … निक्लाआअ… ”

इसके साथ ही मेरा पानी मेरी चूत से निकलने लगा. मैं बेसुध होने लगी. मेरा तन-बदन हवा मैं उड़ता हुआ महसूस होने लगा. धीरे- धीरे मेरी पकड़ ढीली होती गयी और मैं शांत हो गयी. कमल भी मेरी पकड़ ढीली पड़ते ही मेरे बाजू मैं पलट कर सो गया और गहरी- गहरी साँसे लेने लगा. मैं अब एकदम हल्का महसूस करने लगी. फीर धीरे से करवट लेकर कमक के बदन से चिपट कर सो गयी.

थोडी देर बाद कमल ने मेरे मुम्मी और मेरे गाल पर अपने हाथ फिराना शुरू कर दीया. मेरे जिस्म मैं भी हरकत होने लगी. मैंने अपना हाथ बढ़ा कर उसके आधे खडे लंड से खेलने लगी. मेरे हाथ के लगते ही उसका लंड तिघ्त होने लगा. कमल ने अपना सीर थोडा नीचे कीया और मेरे एक मुम्मे को अपने मुहं मैं ले लीया. मेरी निप्प्ले को चूसने लगा. दुसरे हाथ से वो मेरे दुसरे मुम्मे को मसलने लगा. मैं उसके लंड को अपनी हथेली मैं भर कर हिलाने लगी.

जब उसकी हरकतें बढ़ने लगी तो मैंने कमल को चित्त लिटा दीया और उस पर स्वर हो गयी. मैं अपनी चूत को उसके लंड से घिसने लगी. मेरी चूत की रगड़ से उसका लंड एकदम सख्त हो गया. उसके लंड को एकदम कड़क पाकर मैंने अपनी चूत को उसके लंड के निशाने पर लगाया और उसका लंड मेरी चूत मैं जाने लगा. उसका मोटा लंड मेरी चूत मैं धीरे-धीरे जैसे अन्दर जा रह था वैसे ही मुझे जोश आ रह था. मैं अपने चुताड उठा कर एक जोर का झटका मारा और उसका लंड आधे से ज्यादा मेरी चूत मैं घुस गया.

अब मैं अपने चुताड को हलके-हलके ऊपर उठती और फीर धम्म से नीचे गिरती. ऐसे ७-८ झातको मैं उसका पुरा लंड मेरी चूत मैं चला गया. अब मैं अपने चुताड उठा कर जोर के झटके देने शुरू कर दीये. मेरे मुहं से सिस्कारियां निकलती जा रही थी और मैं झटके देते जा रही थी. कमल ने अपने हाथ बढ़ा कर मेरे दोनो मुम्मो को दबोच लीया और प्यार भरी चुटकी काटने लगा. इससे मेरी स्पीड बढ़ गयी. मैं मेज़ से उसपर सवारी करते हुए चुद्वा रही थी.

जब मज़ा अपने चरम पर पहुँचने लगा तो मैंने झटके देने बंद कर दीये और अपनी जांघों से उसकी जांघों से रगड़ने लगी. इससे मेरे चूत का दाना दबने लगा और मेरा आनंद बढ़ गया. कमल भी मेरे मुम्मो को छोड़ कर अब मेरी कमर को दोनो हाथ से पकड़ लीया और मुझे रगड़ने मैं मेरी सहायता करने लगा. इससे मेरा जोश और मज़ा दुगुना हो गया. साथ ही मेरी स्पीड डबल हो गयी. उसका लंड मेरी चूत के अन्दर तक पहुँचा हुआ था और मेरी चूत उसकी रगड़ से रस छोड़ने लगी.

तभी मैंने महसूस कीया की मेरा पानी निकलने वाला है. मेरी आनंद भरी चीख नीकल पड़ी, “कमल…. अपने हाथ से मेरी कमर को हिलाओ… जोर से हिलाओ… मेरी चूत मैं कुछ हो रह है… मुझे बड़ा मज़ा आ रह है… जोर से राग्दो मुझे… हाँ… ऐसे ही… ऐसे ही….”

इसके साथ ही मेरी कमर और मेरी चूत झटके खाने लगी और मैं झाड़ गयी. उफ्फ्फ़… मेरा पुरा जिस्म अक्दा और ढीला पड गया. मेरी साँसे तेज चलने लगी. मैं हम्फ्ते हुए कमल के सीने से जा लगी और गहरी-गहरी साँसे लेने लगी. अब मेरे बदन का तनाव दूर हो चूका था. लेकीन चाहत और भी थी. मैंने कमल के होंठो को अपने होंठो की गिरफ्त मैं ले लीया और लगी उनको चूसने. मेरे दोनो मुम्मी उसके सीने से छिपते हुए थे. मेरी दोनो जन्घें उसकी दोनो जांघों से मीली हुयी थी. वो मेरी पीठ पर हाथ रखे हुए मेरे चुम्बन का जबाब चुम्बन से दे रह था. उसका लंड मेरी चूत से रगड़ खा रह था. उसका डंडा चुभ रह था.

थोडी देर मैं जब हम दोनो की साँसे नियंत्रण मैं आ गयी तो कमल ने पलती मारी. अब मैं बेद पर चित्त लेटी हुयी थी और कमल मेरे ऊपर छा गया. उसका लंड सीधे मेरी चूत के अन्दर चला गया और और वो अपने चुताड उठा-उठा कर थाप देने लगा. उसका लंड दूर अन्दर तक मेरी चूत मैं समाया हुआ था. मेरी चूत की भीतरी दीवारिएँ उसके लाव्दे का जकड़े हुयी थी. उसके शोट मेरी चूत के अन्दर तक लग रहे थे.

कमल मेरे होठों को चूमता हुआ मुझे चोद रह था. मैं नीचे पड़ी हुयी अपनी टांगें उसकी कमर मैं लपेटे हुयी चुद्वा रही थी. उसके धक्के का जवाब मैं अपने चुताड उठा कर दे रही थी. जैसे ही वो अपने चुताड उठा कर मेरी चूत पर अपने लंड का प्रहार करता मैं अपने चुताड उठा कर उसके लंड का स्वागत करने बेचैन हो उठती. लगभग १५-२० मिनट तक वो मुझे लगातार बगैर थके मेरी चूत की धुनाई करता रह. मैं निहाल हो उठी. मुझे लगने लगा अब मैं टिकने वाली नही हूँ. मेरी चूत अब कभी भी पानी छोड़ सकती है.

तभी कमल छोड़ते-छोड़ते चिल्लाया, “ले मेरी जान, खा मेरे धक्के… बहुत चुदासी है ना तेरी चूत. खा मेरे लंड के धक्के. ले अन्दर तक मेरे लंड को अपनी चूत मैं. ले पी मेरे लंड का पानी. तेरी चूत की प्यास मिटा ले… ले मेरा पानी…”

इसी के साथ ही कमल ने अपनी पिचकारी छोड़ दी. उसकी पिचकारी छूटने के साथ मैंने अपनी टांगें कास कर कमल की कमर के साथ लप्पेट ली और साथ ही मेरी चूत भी अपना पानी छोड़ने लगी. हम दोनो का संगम हो रह था. यह चूत और लंड का मिलन था. दोनो हम्फ रहे थे. दोनो पसीने से तरबतर एक दुसरे से चिपके हुए इस आनंद के कीसी भी पल का छोड़ना नही चाहते थे.

काफी देर तक हम दोनो इसी तरह पड़े रहे. फीर कमल मेरे ऊपर से उठ कर बैठ गया. मैं भी उठ कर कमल की बाँहों मैं समां गयी. हम दोनो फीर चुम्बन लेने लगे. काफी देर तक चुम्मा-छाती के बाद हम दोनो अलग हो गए और दोनो अपने-अपने कपडे पहन लीये.

उसके बाद कमल को वापस अपने गों जान था. मैं बड़ी उदास हो गयी. लेकीन मेरा बस नही चल रह था.

तब कमल ने कहा, “पगली, उदास क्यों हो रही हो? मैं कही हमेशा के लीये थोडे जा रह हूँ. हफ्ते-दस दीन बाद फीर आऊंगा तब तक तेरी चूत मेरे लंड के लीये बेताब हो जायेगी तब चुदवाने मैं बड़ा मज़ा आएगा.”

फीर कमल चला गया. अब कमल हेर हफ्ते-दस दिनों मैं आता है और मेरी चूत की खूब चुदाई करता है. दो-दो दिनों तक मेरी चूत उसके लंड से लगी रहती है.



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