ज़ोर का झटका धीरे से

मैं जब कॉलेज मे पढ़ती थी, तो हमारा सात लड़कियों का ग्रूप था. लेकिन उन सब मे पल्लवी मेरी खास सहेली थी. वो एक छ्होटे गाओं से आई थी. इस शहर मे पेयिंग गेस्ट बन के रहती थी. ऊम्र के हिसाब से हमको भी रोमॅन्स और सेक्स की बातें अच्च्ची लगती थी. हम लड़कों को देखते थे थे और उनके बारे मे बात किया करते थे. दिन मस्ती से गुज़र रहे थे. लेकिन हमेशा समय एक सा नही रहता.

जब हमारा कॉलेज का पहला साल पूरा हो रहा था, तो पल्लवी के पिताजी का अचानक देहांत हो गया. वैसे भी वो लोग ग़रीब थे. अब तो कॉलेज की पढ़ाई करना तो दूर रहा, घर चलना मुश्किल हो गया. उसके छ्होटे भाई बहन भी थे. मैं भी सहेली होने के नाते चिंतित थी, पर उसे पैसों की मदद करनेकी स्थिति हमारी ही नही थी. मुझे लगा, हमारा साथ च्छुत जाएगा. वो पढ़ नही पाएगी. लेकिन भाग्या को कुछ और मंज़ूर था. उसकी परिस्थिति से वाकिफ़ किसी दलाल ने उसे संपर्क किया और वो कॉल गर्ल बन गयी. उसकी मा को पता था. पर वो भी क्या करती ?

वो दिन मे कॉलेज अटेंड करती और रात को अपना काम करती. फिर तो वो अपने तरह तरह के अनुभव हमे सुनती थी. शुरू मे उसके दिल मे ग़लत काम का डंख रहता था, पर बाद मे वो सब निकल गया. उल्टा उसे मज़ा आने लगा. वो इतने रोचक ढंग से अपने अनुभव मुझे सुनती की मुझे भी उसकी तरह कॉल गर्ल बनने का जी कर जाता था. पर मैं ऐसा ना कर पाई. मुझे लगता था मैं जीवन की उन खुशियों को मिस कर रही हूँ, जिसे पल्लवी पा रही है. इसी तरह हमने पढ़ाई पूरी कर दी. सब बिखर गये. पल्लवी मुंबई चली गयी. वहाँ ज़्यादा स्कोप था उसके लिए.

मेरी मँगनी हो गयी. वो दूसरे गाओं से थे. तो मँगनी के बाद मुलाकात कम हुई. हां, हम लव लेटर और मैल से संपर्क मे थे.

शादी तय हो जाती है तो लड़कियों को सहेलियाँ ज़्यादा याद आती है. मुझे भी पल्लवी याद आई. अब कॉलेज को ही एक अरसा हो गया था. मैने मुंबई आने का फ़ैसला किया और पिताजी से रज़ा ले कर निकल पड़ी.

लंबे समय के बाद मैं आज उसे मिल रही थी. दोनो ने बहोट बाते की. दिनभर हम बात करते थे. रात होते वो अपने धंधे पर चली जाती थी. उसके चार एजेंट थे, जो उसके लिए बुकिंग किया करते थे. अब तो वो अलग अपना फ्लॅट ले कर रहती थी.

एक शाम हम बातें कर रहे थे की एक फोन आया. फोन पर बात कर के वो चिंतित हो गयी.

मैने पुचछा ; “क्या हुआ ? कोई समस्या ?”

उसके चेहरे पर उलज़ान नज़र आई. फिर उसने कहा ; “हां, समस्या तो है. लेकिन तू कुछ नही कर सकती.”

यह कहानी भी पड़े  भाई की साली ने मजा दिया

मैने कहा ; “फिर भी, बता तो सही.”

वो बोली ; “मेरा आज रात का होटेल गौरव का बुकिंग था. उसका 5000 नक्की हुआ है. लेकिन अभी जो फोन आया, वो दूसरे एजेंट का था. वो फुल नाइट, तीन आदमी का ऑफर लाया है.”

मैने कहा ; “तू अगर तीन आदमी पूरी रात नही सह सकती तो ना कर दे उसे. इस मे क्या उलज़ान है ?”

वो मुझ पर बिगड़ी ; “अर्रे तू कुछ समज़ाती नही है. पैसे मिलते हो तो मैं तीन क्या पाँच को भी ज़ेल लूँ. और यहाँ तो 25000 मिल रहे है.”

अब मुझे उलझन हुई, मैने कहा ; “तो स्वीकार कर ले.”

वो मूह नाचते मेरी नकल करते बोली ; “वा वा, स्वीकार कर ले, अच्च्ची सलाह दी. फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?”

अब मैं बात समझी. इनके धंधे मे हां करनेके बाद ना नही कर सकते. नही तो वो एजेंट साथ छ्चोड़ देगा. पल्लवी को यह 25000 चाहिए थे, लेकिन 5000 वाला काम ले कर फाँसी थी.

पर उसके आखरी सवाल – “फिर वहाँ गौरव मे कौन जाएगी ? तू ?” – से मैं चौंकी ? उसने तो गुस्से मे ही कह दिया था. मगर मुझे कॉलेज के वो दिन याद आ गये जब उसके रोचक अनुभव सुन के मेरा भी कॉल गर्ल बनाने का जी करता था. आज मौका पाते ही वो पुरानी इच्च्छा प्रबल हो उठी, और मैने कह दिया ; “ हां, मैं जौंगी वहाँ, बस?”

वो आश्चर्या से मेरी और देखती ही रह गयी. उसकी नज़र मे सवाल था. बिना कुछ कहे वो मेरी और प्रश्ना भारी निगाह से देखती रही. मैं क्या जवाब दूं ? खुद मैं भी हैरान थी. वो पुरानी इच्च्छा का बीज इस तरह बड़ा हो के मेरे सामने आएगा, मैने कभी सोचा भी ना था. लेकिन वो भी मेरी अंतरंग सहेली थी. मेरी राग राग से वाकिफ़ थी. मेरे चेहरे पर बदलते रंगो को देख कर बोली ; “ ठीक है, पर बाद मे पचहताएगी तो नही ?” मैने नकार मे सिर हिलाया.

फिर तो उसने मुझे सारी सलाह दी. समय होते उसने एजेंट से कन्फर्मेशन भिजवा दिया की हू समय से पहुँच रही है. मुझे पल्लवी बनकर ही जाना था. ग्राहक नया था, तो वो उसे पहचानता नही था. पल्लवी मुझे होटेल पर छ्चोड़ गयी.

मैं लिफ्ट से रूम पर पहुँची. गाभहारते हुए लॉबी पसार की. रूम खोजा और डोर बेल बजाने जा रही थी की देखा की दरवाज़ा खुला है. मैं हल्के से अंदर दाखिल हुई और दरवाज़ा बाँध कर लिया. अंदर गयी, तो कोई नज़र नही आया… फिर ख़याल आया, बातरूम से आवाज़ आ रहा है, कोई नहा रहा है. मैं सोफा पर बैठी, इंतेज़ार करने के लिए. समय पसार करने के लिए कोई मॅगज़ीन धहोँढने के लिए नज़र दौड़ाई तो सेंटर टेबल पर पड़ी चित्ति पर ध्यान गया, लिखा था , “पल्लवी, ई गॉट कन्फर्मेशन फ्रॉम एजेंट तट योउ अरे रीचिंग इन टाइम. अनड्रेस युवरसेल्फ आंड जाय्न मे इन बात. “ मैं स्तब्ध हो गयी. मैं पल्लवी की जगह आ तो गयी, लेकिन वास्तविकता अब मेरे सामने थी. ये जनाब तो अंदर मेरा इंतेज़ार कर रहे है. मैने हिम्मत बटोरी, और अपने सारे कपड़े निकल दिए. पूरी नंगी हो कर धीरे से मैं ने बाथरूम का दरवाज़ा खोला.

यह कहानी भी पड़े  पड़ोसन के पति से जमकर चुदी

वो नहा रहा था. शवर बाँध था, पर वो उसके नीचे खड़ा था. उसकी पीठ मेरी और थी. पूरे बदन पर साबुन लगा चक्का था. मूह पर भी साबुन था. वो मुझे देख नही पा रहा था. मैने राहत की साँस ली. मैं नज़दीक गयी और उसको पिच्चे से ही लिपट गयी. मेरे बूब्स उसकी पीठ पर टच हुए. दोनो को मानो करेंट लगा. मैने अपने हाथ उसकी च्चती पर फिराए, और उसकी पीठ पर अपने गाल घिसने लगी. (किस करने जैसी तो बिना साबुन की कोई जगह ही नही बची थी) उसने भी अपने हाथ पिच्चे फैलाए और मेरी जाँघो पर फिरने लगा. कोई कुछ बोल नही रहा था. मान-वुमन मॅजिक अपना कम कर रहा था. च्चती पार्स मैने हाथ नीचे सरकए. इन सारे वक्त मेरे बूब्स तो उसकी पीठ पर ही चिपके हुए थे. मेरे हाथ नीचे सरकते उसके कॉक तक पहुँच गये. मैं पहली बार, किसी मर्द के इस भाग को छ्छू रही थी. कॉक कड़क होने लगा. मैं उसे सहलाती रही, दबाती रही. वो “श, श” करने लगा. मैं अब तक जो पीठ पर बूब्स चिपका के गाल घिस रही थी, धीरे से नीचे की और सर्की. मैं बूब्स उसकी पीठ पर घिसते हुए नीचे जा रही थी. उसके हिप्स को अपने बूब्स से दबाती हुई मैं और नीचे उतार गयी. उसके हिप्स पर गाल घिसे. फिर मैं वहाँ से आयेज की और आई और उसका लंड मूह मे लिया. उसके हाथ मेरे सिर पर आ गये थे. मैं ने उसे पानी से साफ करके चूसना और चारों औरसे किस करना शुरू किया. साथ मे मैं उसके बॉल्स से भी खेल रही थी. दोनो के बादन मे आग लग चुकी थी. जब जी भरा तो मैं उपर उठी. अपने बूब्स उसके आयेज के बदन पर घिसती हुई मैं उपर उठी. मैने उसके होठ पर किस करना चाहा. पर वहाँ भी साबुन था. तो मैने शवर चालू किया. फुल फोर्स मे पानी बहना शुरू हुआ. मूह साफ हो गया, उसने आँखे खोली और हम दोनो चौंके……….दोनो के मूह से एक साथ एक ही शब्द निकला, “ तुम ???????? ” वो मेरा मंगेतर था !!!!!!!!!!!!!

दोनो के चेहरे पर एक साथ तरह तरह के भाव ज़लाक रहे थे ; शॉक, डिसबिलीफ, अंगेर, रिपेंटेन्स…..आंड वॉट नोट ?



error: Content is protected !!