जैसे आरती उठी रेखा बस अपनी तिरछी नज़र से आरती को देख रही थी. हमारे शरीर टकराने लगे. रेखा की गीली छूट के अंदर मेरे लंड की रग़ाद, उसकी आहह आ की आहों के साथ छाप-छाप की आवाज़ गूँज रही थी.
रेखा को पता नही क्या हुआ. उसका शरीर अचानक पूरा अकड़ सा गया, और उसने आँखें मूंद ली और शरीर काँपने लगा. और उसने मुझे जाकड़ लिया.
वो भैया श श ऊऊ करने लगी. तभी आरती तुरंत रेखा को पकड़ के सहलाने लगी. कुछ भी हो, वो बेहन थी उसकी.
मुझे देर नही हुई समझने में, की रेखा का पहला ऑर्गॅज़म मेरे लंड से मिला था, और मैं खुश हो रहा था. रस्स उसकी छूट से निकलता हुआ मैं अपने लंड पे महसूस कर रहा था.
जब रेखा नॉर्मल हुई, तो उसको मेरी तरफ लंड पे लगा उसका रस्स गीला चमकता दिखा. और फिर वो मुझको देख के बोली-
रेखा: ई लोवे योउ भैया.
आरती बस कभी रेखा को तो कभी मुझे देख रही थी. उसकी चूत से निकल रही रस्स की खुश्बू पुर रूम को मदहोश कर रही थी.
आरती: ये तुम दोनो कब से कर रहे हो?
रेखा: दीदी आप भोली ना बनो.
आरती: पर तुझे ये नही करना था.
रेखा: क्यू नही! आज नही करती तो ये एहसास नही मिलता. वैसे भी, जो खुशी आप नही दे पाई, वो मैने दी है भैया को छुड़वा कर (ये शब्द ख़तरनाक था).
बस कुछ नही बोल पा रही थी. फिर रेखा नंगी गोरे बदन के साथ उठी, और मुझे चूमते हुए बोली-
रेखा: दीदी, आपको भी करना चाहिए. भैया ने आपके लिए बहुत मेहनत और इंतेज़ार किया है.
फिर आरती ने मेरे गीले लंड को अपने हाथ से गुस्से से पकड़ा, और बोली-
आरती: इधर आ बहनचोड़, आज तुझे बताती हू.
और वही अपने उपर खींच लिया. उसके ज़ोर से पकड़ने से दर्द हुआ मुझे, और उसके हाथ पे पूरा रस्स चिपक गया.
आरती: बहनचोड़, तुझसे कितना प्यार किया, और तूने मुझे धोखा दिया.
मैं: उसकी छूट पे मेरा लंड रखा, आँख मिलते हुए धक्का दिया. धोखा कभी नही दिया तुम्हे.
आरती: तू ये कब बोला, इस रंडी बहनचोड़ की बच्ची को छोड़ा है(उसके अंदर का ज्वालामुखी बाहर निकल रहा था, और रेखा भी इसमे थोड़ी मुस्कुराते हुए मज़ा ले रही थी. वो टांगे खोल आरती के बिल्कुल बाजू में लेट गयी, और मुझे आँख मारी)?
मैं: ऐसा नही है, वो तो अचानक ही हो गया था. बस लंड घुसा था, छोड़ा नही था. आज छोड़ा है उसको भी.
आरती: अछा! अभी क्यू रुका है बहनचोड़? (और उसने रेखा को देखते हुए मेरे गाल पे थप्पड़ लगा दिया)
एक सेकेंड के लिए तारे दिखे मुझे. उसकी छूट पूरी सख़्त हो गयी थी, और मेरा लंड नही जेया रहा था.
आरती: नल्ला पद गया क्या? क्या हुआ?
वो इस समय बस ज़हर उगल रही थी, ज्वालामुखी फटत चुका था. मैने रेखा की छूट में से लंड गीला किया.
आरती: अब इसको फिरसे छोड़ेगा बहनचोड़?
फिर वो मेरा सर खींच के पकड़ के बोली: इधर आ छूतिए, अब मेरी चुदाई कर.
वो काबू से बाहर थी.
मैं शांति से उसके पास गया. आरती की छूट पे लंड रखा तो गीली थी उसकी छूट. मैने धीरे से लंड घुसाया, तो वो दर्द सहन करने लगी.
बस एक लंबी उम्म्म निकली, और आधा अंदर जाने के बाद एक ज़ोर का झटका दिया, तो वो चिल्ला उठी आ. तभी रेखा ने उसका मूह पकड़ लिया.
रेखा (धीमी आवाज़ में): दीदी बहनचोड़ बनने के लिए सहना पड़ता है, ऐसे नही बनते हाहाहा.
रेखा अपनी बेहन की चूचियाँ दबाने लगी.
आरती थोड़ी देर वैसे रुकी, रेखा का हाथ हटाया, और मुझे बोली: अब धक्के दे, इसको बताना है कों ज़्यादा प्यार करता है, और कों बड़ी प्यासी चुड़क्कड़ है तेरे लंड की. ये बोलते हुए वो रेखा को देख रही थी. बहुत प्यारी लग रही थी उसकी स्वीट सी आवाज़.
मैं उसको धक्के देने लगा. तभी याद आया की कॉंडम लाया था, और शायद बीच में झार भू सकता था.
आरती: मुझे छोड़ते समय इसको सब याद आता है. यहा इंतेज़ार में छूट की मा भी चुड गयी.
मैं: ओये कमीनी, ज़ुबान संभाल के हाहाहा.
मैं कॉंडम पहना, लाइट्स ओं की, तो उसकी छूट से खून सॉफ दिखा. फिर उसने छूट सॉफ कर ली. वो पावं से मुझे धक्का देते हुए मेरे लंड पे बैठ कर कमर हिलने लगी. उन दोनो का गोरा बदन और चूचियाँ चमक रही थी.
वो तो पागल हो गयी थी, और मैं भी इन सब से पागल हो रहा था. दोनो बहने आँखें मिलाए एक-दूसरे को देख गंदी बातें कर रही थी. रेखा गंदी बातों में जीत गयी.
आरती: रेखा और देख आह आ उम्म देख मेरी प्यारी बेहन देख. ऐसे छूट का मज़ा देते है.
रेखा चुदाई और आरती की बातों से गरम हो गयी थी. वो लंड को अंदर-बाहर जाते देख रही थी, और अपनी छूट में उंगली करके बोली-
रेखा: आ आ, और ज़ोर से छुड़वा बहनचोड़, ज़ोर से छुड़वा. कितनी बड़ी चुड़क्कड़ है तू भी दीदी.
मुझे ये सब देख और सुन के दुगना मज़ा आ रहा था. दोनो मुझे भूल कर एक-दूसरे की आँखों ही आँखों में चुदाई की लड़ाई लड़ रही थी. फिर तभी मेरे मूह पर रेखा ने अपनी छूट रखी, और अपनी बेहन के बालो को पकड़ लिया.
रेखा: भैया, ज़रा इस बेहन की रंडी को देखो कैसे उछाल रही है.
और वो काई गालियाँ बोलने लगी. मैं आरती को नीचे से लंड पर उछाल रहा था, और रेखा की गांद पकड़ के छूट के अंदर जीभ डाल के चूस और उंगली कर रहा था.
रेखा की गांद में मैने अंगूठा गीला करके घुसा दिया, तो वो पीछे मुस्कुराते हुए पलटी.
रेखा: भाई छूट तो थी ही, अब गांद क्यू?
पूरा कमरा पसीने और हमारी आवाज़ गूँज रहा था. छूट का रस्स मिल के पूरा रूम महक रहा था. दोनो की पायल की च्चन-च्चन मदहोश कर रही थी.
कमरे में इनकी ही आवाज़ आह आह एस भैया, छोड़ो हमे, आ उम्म, बोल मज़ा आ रहा है ना दीदी ह्म.
छाप-छाप आवाज़े कमरे में गूँज रही थी, की तभी आरती ने एक लंबी आ अहह के साथ अपना रस्स निकाल दिया, और थोड़ी देर में मैं और रेखा भी झाड़ गये. आरती और रेखा एक-दूसरे को चूमने लगी, तो मैं रेखा की चूचियाँ दबाने लगा. रेखा साइड पे मेरे कंधे पे गिरी, और आरती मेरे उपर लेट गयी.
आरती: अब पूरी शांत हुई.
उसने अपनी बेहन को देखा, और माफी और शुक्रिया दोनो कहा.
आरती: मैं तुझसे बड़ी हू, और हम ये साथ में नही कर सकते, ठीक है? आज जो हुआ भूल जाओ.
रेखा: क्यू, नही?
आरती: कही इससे हम दोनो के बीच नफ़रत ना पैदा हो.
रेखा: दीदी आपके लिए हमेशा इज़्ज़त और प्यार है, कभी नफ़रत नही होगी.
आरती ने हम दोनो को चूमा और बोला: बिना सेफ्टी के नही करेंगे आज से, ठीक है? पर पहले मुझे बिना कॉंडम के इस प्यारे बहनचोड़ भाई से चुड़वणी है.
और सब हस्स दिए.
आरती: एक और बात, इसकी कोई डेट्स नही है. ये हमारा प्लान था.
मैं: क्या?
आरती: मैने तो तुमसे आज चूड़ने के लिए इसको समझा के तैयार किया. पर ये पहले छुड़वा गयी.
रेखा: दीदी भैया से बहुत प्यार करती हू.
और उसने पूरी स्टोरी बताई.
ये सब सुन के आरती की आँखें खुली रह गयी, और वो बोली: अछा तो मेरी वजह से ये सब हुआ.
रेखा: नही, मैं खुद मौका ढूँढ रही थी.
उस रात गरज-दार चुदाई के बाद हम तक गये थे. तो तीनो एक साथ नंगे सो गये. फिर सुबा जब रेखा सोई हुई थी, तब आरती को बातरूम में स्नान करते हुए बिना कॉंडम के छोड़ा, और बाहर आके चाची को फोन किया.
चाची: हा आरती बेटा.
मैं: कब आ रहे हो?
चाची: शाम को, बताओ क्या है?
मैं: अछा फोन करना आते हुए.
चाची: हा बेटा तुम मज़े करो, और शूरक्षा का ख़याल रकना.
फोन लाउड स्पीकर में था, तो लगा चाची ये पहले भी बोल चुकी थी मुझे. मैं सोच में पद गया. मैने दोनो की शाम तक 2 और बार चुदाई कर चुका था, के तभी बेल बाजी.
हमने कपड़े पहन लिए, और देखा तो चाची के साथ सेतु भाभी थी.
रेखा: मा आ गये?
चाची: हम इसका कुछ समान रखने आए है. तोड़ा आराम करके जाते है. काम है वाहा.
सेतु भाभी पहली बार आई थी, तो हॉल में थी. और चाची कमरे में समान रख कर इधर-उधर देखने लगी, और बाहर आके घूर्ने लगी हमे.
थोड़ी देर बाद लोकन भैया खुद सेतु भाभी को ले गये, और चाची मा और चाचा को फोन करके बोली वो आज घर पे रहेंगी.
शाम के करीब 8:30 बजे सब खाना खा लिए. चाची साथ हमने वॉकिंग करी, और वो बोली-
चाची: तुम तीनो रूम में चलो.
हम तीनो कमरे के अंदर घुस गये. चाची ने बेड के कोने से कॉंडम का डिब्बा और चुदाई किया कॉंडम निकाला.
फिर चाची घूर के बोली: ये क्या है मुझे सच बताओ? क्या हो रहा है यहा?
हम सब दर्र के एक-दूसरे का मूह देखने लगे, और सर अपने आप झुक गये.
चाची (गुस्से से): जवाब दो आरती, राज, रेखा.
आरती: मा पता नही ये क्या है.
मैं: हा चाची.
चाची: पता नही?
और उन्होने थप्पड़ लगा दिया. उन्होने मेरा सर पकड़ा, और रेखा का कान मरोड़ के पूछा-
चाची: पूरा सच बोलो.
हम नही बताए, तो हमारे घर के बाहर से केबल वाइयर लाई, और हमे साथ बिता के खिड़की से बाँध कर वही बिता दिया. फिर वो स्केल ले आई, और तोड़ा मारने लगी. वो दोनो रोने लगी थी. रेखा और आरती का फ्रॉक कमर तक उठ गया था.
चाची: तुम्हारे दोनो के पापा को बतौँगी तो क्या होगा पता है ना? बताओ मुझे आरती.
आरती को पता नही क्या हुआ अचानक.
आरती: मैं भी पापा को तुम्हारे कांड बता दूँगी.
चाची चौंक गयी और बोली: नालयक!
और आरती को एक थप्पड़ लगा दिया.
आरती: तुम्हे क्या लगता है मुझे नही पता गाओं में क्या करती थी उस बगल वाले खेत के बुड्ढे के साथ, जब पापा यहा नही थे?यहा आके कोई नही मिला पापा की वजह से, वरना यहा भी शुरू हो जाती.
चाची की हाइट कम थी, पर बिल्कुल गोरी और मोटी चूचियाँ थी. रेखा और आरती इंपे गयी थी, और बड़ी गांद थी उनकी. तीनो मा-बेटी एक साथ बेहन लगती थी. बस सारी, चैन, और सिंदूर की वजह से चाची अलग लगती थी.
मैं और रेखा इनकी बातें सुन के एक-दूसरे को देख हैरान हो रहे थे. चाची अब जाके तोड़ा काबू में आई, और गुस्से वाली हल्की आवाज़ मैं बोली-
चाची: तुझे इतना फ्री छ्चोढा वही ग़लती है. तुझे क्या लगा मुझे पता नही तू और ये राज क्या करते हो रात में कंबल के अंदर? आज पकड़ा है.
इसके आयेज की स्टोरी अगले पार्ट में. अगर स्टोरी पसंद आई हो, तो लीके और कॉमेंट कर देना.