दीदी तेरा देवर दीवाना

रजनी दीदी कितनी बदल गयी इन दिनों. मुझे तो यकीन ही नही हो पा रहा था की शादी के तीन साल बाद दीदी को इतने मॉडर्न आउटफिट मे देखूँगी. कहाँ हम दोनो बहने छत्तीसगढ के दुर्ग मे रहने वाली सीधी सादी लड़कियाँ कहाँ आज वेस्टर्न आउटफिट मे बात-बात मे “ओह कहने वाली मेरे
से 2 साल बड़ी रजनी दीदी. कपड़े भी क्या थे. छोटा स्कर्ट जिसमे से उसकी जांघें ऊपर तक दिख रही थी. सामने वाले को उसकी पेंटी के दर्शन करने मे शायद ही कोई तकलीफ़ हो. साथ ही टॉप ऐसा की उसके दोनो बोब्स के बीच की घाटी दूर तक जाती हुई दिखाई पड़ रही थी. सामने वाला आदमी तो भोचक्का हुए दीदी को ऊपर से नीचे तक देखता रहे।
मुझे याद है जब रजनी दीदी की शादी मुंबई के उदय शाह के साथ तय हुई थी. रजनी दीदी का रूप ही ऐसा था की हर कुंवारे मर्दो मे होड़ बनी रहती की कैसे इसे पाया जाए. लेकिन मेरे दूर के एक रिश्तेदार ने दीदी की शादी उदय से फिक्स करवा दी. उदय तो दीदी को देखते ही फिदा हो गया और शादी के लिए तुरंत हां कर दी. विवाह 2 महीने बाद होना था. उस समय मैं B.A. के लास्ट इयर मे पढ़ रही थी. वैसे खूबसूरती मैं भी कम नही हूँ. मेरा गोरा बदन और मेरा साँचे मे ढला जिस्म कइयो को रात भर तड़पाता है. ऐसा मेरा नही मेरे बॉय-फ्रेंड राकेश का कहना है. जहाँ दीदी का किसी से प्यार नही था वहाँ मेरा राकेश के साथ अफेर्स एक साल से चल रहा है. हम दोनो के शारीरिक संबंध भी बन गये. मैं दीदी के मुकाबले काफ़ी फास्ट-फॉर्वर्ड हूँ. लेकिन यहाँ आज दीदी को देखकर पता चला की मैं फास्ट-फॉर्वर्ड नही बल्कि स्लो मोशन हूँ।
शादी की दो साल बाद जब जीजाजी उदय ने शेर मार्केट से काफ़ी पैसा बना लिया तो उन्होने यह 3 बेडरूम हॉल का फ्लॅट मुंबई के प्रभादेवी इलाक़े मे खरीदा जो कि यहाँ का काफ़ी पॉश एरिया माना जाता है. दीदी के साथ उसका देवर राकेश भी रहता है. संजोग से मेरे बॉय-फ्रेंड और दीदी के देवर का नाम एक जेसा ही है. मैने दीदी से चहकते हुए पुछा, “दीदी, जीजाजी ने पैसा कमाते हुए तुझे भी कोहिनूर का हीरा जैसा बना दिया… क्या बात है..”तब दीदी ने मुझे सब तसल्ली से बताया की जीजाजी को दीदी का मॉडर्न रूप ही पसंद है।
अब उँची सोसाइटी वालों के साथ उठना बैठना हो गया तो रोज किसी ना किसी पार्टी या क्लब मे जाना पड़ता है.. वहाँ पर सभी वेस्टर्न आउटफिट्स पहने हुए नाचते गाते हुए सारी रात मस्ती करते है और देर रात बाद घर वापस आते है… दीदी ने कहा, “कल्पना, तेरे जीजाजी को यह सब ही पसंद है… अब मुझे भी यही सब अच्छा लगने लगा..” तभी मुझे जीजाजी और उनके भाई राकेश का ध्यान आया. मैने तुरंत ही पूछ लिया, “दीदी, जीजाजी और राकेश नही दिखाई दे रहे है.. कहाँ गये हुए है?” दीदी ने कहा, “तेरे जीजाजी और राकेश बिजनेस के सिलसिले मे कोलकाता गये हुए है… कल दोपहर तक आ जाएँगे… अब तू आराम कर और नहा ले.. काफ़ी थक गयी होगी..” मैं फिर नहाने चली गयी और तेयार होकर फिर से दीदी के बेडरूम मे आ गयी।
फ्लॅट के तीन रूम मे से एक दीदी का बेडरूम, एक मे राकेश और तीसरा गेस्ट रूम है जिसमे अभी मेरा समान पड़ा है. जैसे ही मैं दीदी के रूम घुसी दीदी ने कहा, “मुंबई आई है तो ऐसी ड्रेस तो छोड़ दे… यहाँ तो वेस्टर्न आउटफिट्स पहन कर मजा ले… दुर्ग मे तो तुझे पहनने का मौका मिलेगा नही..” मैं हंसते हुई बोली, “सलवार कमीज़ ठीक नही है क्या?” दीदी ने कहा, “नही.. यह बात नही… यहाँ हम लोग जब पार्टियों मे जाते है तो वेस्टर्न आउटफिट ही पहनते है.. तू भी वही सब पहन…” मैने कहा, “मेरे पास तो वो सब कुछ नही है…” दीदी ने कहा, “तो मेरे वाले पहन ले… एक सी ही फिटिंग है हम दोनो की… कोई तकलीफ़ नही होगी..” मेरा भी वेस्टर्न आउटफिट पहनने का सौक था लेकिन दुर्ग मे नही चलता था।
तभी दीदी ने अपनी अलमारी से अपनी ढेर सारी ड्रेस निकाली और मुझे दे दी और बोली, “जो पसंद है उससे पहन ले.. साथ ही 5-7 ड्रेस और निकाल ले ताकि रोज-रोज मेरी अलमारी से निकालना ना पड़े..” मैने अपनी पसंद की ड्रेस निकाल ली… ज़्यादातर स्कर्ट और ब्लाउज ही थे. इनमे से एक ड्रेस मैने अपने कमरे में जाकर पहनी. ड्रेस पहने के बाद जब मैने आईने मे देखा तो शरमा गयी. मेरा रूप कुछ ज़्यादा ही खिल पड़ा. साथ ही मेरी शरीर के दर्शन भी कुछ ज़्यादा ही हो गया. मेरी पतली जांघें स्कर्ट के नीचे से अपना पूरा जलवा दिखा रही थी. मेरी नाभि और मेरा पेट शॉर्ट स्कर्ट और शॉर्ट टॉप के बीच चमक रहा था. लो कट टॉप के कारण मेरे बोब्स खिल उठे. मेरे हाथ ने बरबस ही मेरे दोनो बोब्स को थाम लिया. मैं चहक उठी. उफ मेरा सेक्सी बदन… फिर हम दोनो बैठ कर गप-शप करने लगे. लंच और डिनर हम दोनो ने भरपूर बातें करते हुए ही लिया।
रात कब हुई पता ही नही चला. ज़्यादातर मैं ही बोलती रही. दुर्ग की बातों को याद करते रहे. फिर हम दोनो कपड़े चेंज करके सो गये. सुबह उठने के बाद, दीदी तो कहीं चली गयी. मैं घर मे अकेली ही थी. दोपहर के बाद वापस आई तो हम दोनो ने साथ ही लंच लिया. थोड़ी देर बाद जीजाजी और उनका भाई राकेश भी कोलकाता से वापस आ गये. जीजाजी मुझे देखते ही अपनी बाहों मे ले लिया.” कब आई मेरी सालीजी,” जीजाजी ने पूछा.” कल से आई हूँ लेकिन हमारे जीजाजी को फुर्सत ही कहाँ,” मैने बनावटी गुस्सा जताते हुए कहा और हम सब हंस पड़े. तभी दीदी ने अपने देवर राकेश से मिलाया. मैने कहा, “हेल्लो…” राकेश बोला, “ऐसे नही.. अपने जीजाजी से जैसे मिली वैसे ही हमारी बाहों मे..” मैने शरमा गयी और बोली, “धत्त्त..”सब हंस पड़े।
मैने राकेश को अपने जिस्म पर घूरते हुए कई बार पाया. ऐसी मिनी ड्रेस कयामत ही धाती है मर्दो पर. मुझे भी लड़को को सताने मे बड़ा मजा आता है. मेरा साँचे मे ढला जिस्म राकेश का ध्यान मेरी और बार-बार खींच रहा था. तभी जीजाजी दीदी से मुस्कराते हुए बोले, “रजनी आज रात को मिस्स. & मिस्टर. अग्रवाल आ रहे है. रात को उनके यहाँ पार्टी है. वहा जाना पड़ेगा..” यह सुनते ही दीदी का चेहरा खिल उठा. दीदी बोली, “ठीक है मैं रात को 10 बज़े तक तैयार हो जांउगी..” मैने जीजाजी से शिकायत करते हुए कहा, “क्या जीजाजी? हम तो आए है और बाहर रहने की बात करते है.” जीजाजी ने कहा, “एक दो दिन की ही बात है. फिर फ़ुर्सत से तुम्हारे साथ ही रहेंगे.” दीदी ने अपने देवर से कहा, “राकेश, क्यों न तुम कल्पना को यहाँ खुले हुए नये मल्टिप्लेक्स में मूवी दिखा देते. फिर रात को किसी क्लब मे ले चलना. बोर नही होगी.” राकेश बोला, “ठीक है.. अभी 4 बजे है. कल्पना तुम ठीक 6 बजे रेडी रहना. फिर क्लब चलेंगे…”
शाम 6 बजे मैं और राकेश मूवी देखने पहुँचे. ओंकारा. देशी गालियो से भरी हुई मूवी ले..” आ “रग़ड डाल साली को..” जैसे कॉमेंट धीरे-धीरे पास कर रहा था. एक तो मूवी की गालियाँ और दूसरे राकेश के कमेंट्स फिल्म देखने का मेरा मजा दुगुना कर रहे थे. तभी इंटरवेल हो गया. इंटरवेल मे राकेश पॉपकॉर्न का बड़ा पेक ले आया. वापस आया तो हॉल की हल्की लाइट के बीच मेरे सामने खड़ा हो गया. मैने उसकी नज़रों को अपने दोनो बोब्स की घाटी के बीच पाया. मैने महसूस किया की उसकी पेंट चैन के हिस्से से उठ चुकी थी. वो काफ़ी तनाव मे था. मैं हल्के-हल्के मुस्कुरा उठी।
तभी मैने जान बुझ कर अपने सिर को आगे किया और उसके तने हुए लंड पर टच कर दिया और बोली, “लो आगे निकलो और बैठो.” लंड पर मेरे सर का टच होते ही उसने अपनी आँखें बंद कर ली. मानो उसको बड़ी रिलीफ मिली हो. मैं जानती थी की यह रिलीफ नही बल्कि उसके लंड को और बेचैन कर देगा. और वही हुआ. हम दोनो पॉपकॉर्न खाने लगे. पॉपकॉर्न का बास्केट राकेश ने अपनी पेंट पर रख रखा था और शायद अपने हाथ से अपने लंड को दबा रहा था. उसके हाथ की हरकत मुझे यह महसूस करवा रही थी. लेकिन उसके मन मे तो कुछ और ही चल रहा था. अंधेरे मे पॉपकॉर्न खाने के मेरे हाथ बार-बार उसकी पेंट से टकरा रहा था और इससे उसकी उत्तेजना बढ़ती जा रही थी. उसके कमेंट्स आने बंद हो चुके थे. तभी मैने महसूस किया की मेरे हाथ मे यह गर्म-गर्म क्या लग रहा है. अंधेरे मे पॉपकॉर्न के लिए मैं अपना हाथ उसकी पेंट के ऊपर घुमा रही थी. एक कड़क और मोटी लंबी सलाख मेरे हाथ मे आ गयी. यह तो राकेश का लंड था. उसने अपना लंड अपनी पेंट की चैन खोल कर निकाल लिया था और मेरा हाथ जैसे ही वहाँ पहुँचा उसने पॉपकॉर्न के पॅकेट की जगह अपना लंड खड़ा कर रखा था।
मैं चोंक गयी. मुझे गुस्सा भी आ रहा था और मजा भी. गुस्सा इसलिए की उसने मुझे क्या समझ रखा है. एक रांड़. जिसे जब चाहो अपना खिलोना दे दो. मजा इसलिए आ रहा था की कोई लड़का मेरी जवानी के लिए तरस रहा था. लेकिन मैने गुस्से से लेकिन धीरे से कहा, “कोई तमीज नही है तुम मे..?” फिर मुहँ घुमा कर चुप-चाप बैठ गयी. थियेटर मे मैं कोई तमाशा खड़ा करना नही चाहती थी. बाकी की फिल्म हम-दोनो चुप- चाप देखते रहे. जैसे ही मूवी खत्म हुई मैं झट से उठी और बाहर निकालने लगी. बाहर आते ही राकेश बोला, “ i m सॉरी… प्लीज़ माफ़ कर दो…” मैने गुस्से मे बोली, “क्यों माफ़ कर दू ? तुम किसी भी लड़की के साथ ऐसी हरकत कैसे कर सकते हो?”
राकेश ने नज़रें झुकाए बोला, “मैं अपने आपे मे नही रहा… प्लीज़ माफ़ कर दो ना..” मैने तमाशा ना खड़े करते हुए कहा, “ठीक है.. माफ़ किया.. लेकिन आगे से मेरे साथ ऐसा नही करोगे.. समझे..” फिर हम दोनो बगैर क्लब गये घर पर आ गये. डिनर भी नही ले पाए. घर पहुँचा तो पाया दीदी और जीजाजी जा चुके थे. एक्सट्रा चाबी राकेश के पास थी. मैं सीधे अपने रूम मे चली गयी और गुस्से मे बगैर ड्रेस चेंज किए सीधे बिस्तर पर लेट गयी. राकेश हॉल मे बैठा टीवी देख रहा था. टीवी की आवाज़ कुछ देर तो सुनाई दी फिर मुझे नींद आ गयी. भूखी सोई थी।
अचानक उठ बैठी. घड़ी देखी. घड़ी मे सुबह के 4बजे थे. कितना सोई मे वो भी बगैर ड्रेस चेंज किए. उठकर पानी पिया और किचन की तरफ गयी शायद कोई बिस्किट्स वगेरह मिल जाए. हॉल की लाइट जल रही थी. राकेश वही सोफे पर ही सोया हुआ था. उसने कपड़े ज़रूर चेंज कर लिए थे. इस समय उसने केवल बॉक्सर पहन रखा था. बनियान या टी -शर्ट नही पहने हुए था.
राकेश का शरीर बड़ा ही दिलकश दिखाई दे रहा था. चेहरे पर हल्की मुस्कान. सीना नंगा और उस पर काले- काले गहरे बाल. मज़बूत फूली हुए बाहें. हाथ अपने बॉक्सर पर. बॉक्सर का आगे का हिस्सा फुला हुआ. शायद मुझे ही सपने मे देख रहा हो इसीलिए उसका लंड अकड़ा हुआ लग रहा था. अब मेरा ध्यान उसके बॉक्सर पर ही टिक गया. थियेटर मे जब उसने अपना लंड पॉपकॉर्न की जगह मुझे पकड़ाया था वो सब अब मुझे ध्यान आने लगा. उसका लंड बहुत ही गर्म था. काफ़ी लंबा और मोटा लंड था उसका. मैने ध्यान दिया की मेरा हाथ उसको पूरी तरह से पकड़ नही पाया था कारण की उसका लंड काफ़ी मोटा था. पॉपकॉर्न की तलाश मे मैने उसका पूरा लंड नाप लिया था. काफ़ी लंबा भी था. उसको सोचते ही मैं अब उसके एक दम करीब आकर बॉक्सर को देखने लगी. वाकई मे काफ़ी लंबा और मोटा लंड था उसका. मैने अपने बॉयफ्रेंड का लंड अपने मुहँ और चूत मे लिया था लेकिन राकेश का लंड काफ़ी बड़ा लग रहा था।
मेरी मुहँ से एक सिसकारी निकल पड़ी. फिर मैं किचन की तरफ गयी मगर मुझे कुछ नही मिला. दीदी शायद कहीं और रखती थी स्नॅक्स. लेकिन कहाँ यह मुझे नही मालूम. एक बार सोचा राकेश को उठा कर पुछु मगर मैने इस वक़्त उसे उठाना मुनासिब नही समझा. पेट मे चूहे दौड़ रहे थे लेकिन क्या करती. वापस अपने रूम की तरफ आने लगी. फिर से राकेश के बॉक्सर की तरफ नज़र गयी. राकेश मस्ती मे सोया हुआ था अपने तने हुए लंड को अपने हाथ से पकड़े हुए. मेरी चूत मे इसको देखकर पानी आने लगा. बेकार मे ही उस से गुस्सा कर बैठी. भूखी भी रही और एक मतवाले दिलवाले सांड़ को छोड़ कर सो गयी मैं. रूम की तरफ जब बढ़ने लगी तो दीदी के बेडरूम का दरवाज़ा बहुत ही हल्का खुला हुआ दिखा. रूम मे लाइट जल रही थी. मेने सोचा शायद जीजाजी और दीदी वापस आ गये है. या शायद अभी ही आए है. यह सोचकर की दरवाज़ा लॉक नही है तो उसे लॉक कर दू. शायद दीदी लॉक करना भूल गयी हो. जब बेडरूम के दरवाजे के पास पहुँची तो मुझे अजीब आवाज़ें सुनाई दी. यह आवाज़ें मुझे हॉल मे नही सुनाई दी थी। दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा

क्रमशः …………………………………………

मैं उत्सुकता के कारण दरवाजे के पास खड़ी हो गयी और दरवाज़े के करीब अपना कान लगा दिया. यह क्या? उम्म्म.. हाआअँ… उफफफ्फ़… जैसी सिसकारियाँ सुनाई दे रही थी. यह लोग क्या टीवी पर ब्लू फिल्म देख रहे है? सोचते ही मन मे और
देखने की तमन्ना जाग उठी. दीदी के बेडरूम का टीवी रूम के दरवाजे से सॉफ दिखता था. मैं भी क्यों ना इस ब्लू फिल्म को देखु यह सोचकर दरवाजे को थोडा और खोल दिया. देखते ही मैं सकते मे आ गयी. यहाँ टीवी पर ब्लू फिल्म नही बल्कि लाइव टेलीकास्ट चल रहा था. बेड पर दो नही बल्कि चार जने थे. ग्रूप चुदाई चल रही थी. क्या है यह सब? कौन है यह लोग? दिल मे कई प्रश्न थे. गौर से देखा तो मालूम पड़ा की नीचे कोई एक मर्द लेटा हुआ अपने ऊपर रजनी दीदी को लेटा रखा था और अपना लंड दीदी की चूत मे डाल रखा था. दीदी की पीठ पर जीजाजी सोए हुए थे और अपना लंड दीदी की गांड मे डाल रखा था।

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तीनो के सामने एक लड़की पलंग के ऊपर बैठी हुई थी. उसकी चूत को नीचे सोया हुआ आदमी अपनी जीभ से चाट रहा था और दीदी उसके एक बोब्स को अपने मुहँ मे ले रखा था. दूसरा बोब्स लड़की ने आँखे बंद किए हुए पकड़ रखा था. मेरे जीजाजी दीदी की गांड, मारते हुए उस लड़की का होंठ और चेहरा चूम रहे थे. उफ़फ्फ़! दीदी और जीजाजी ऐसी हालत मे. मेरा दिमाग ही घूमने लगा. मेरी आँखें ही बंद होने लगी. दीदी इतनी मॉडर्न हो गयी. कल तक की एक छोटे शहर की सीधी-सादी लड़की आज ब्लू फ़िल्मो की हिरोईन्स को भी मात दे रही थी. वाकई मे कोई कितना जल्दी बदल जाता है. अब मैने फिर से आँखें खोली और उनको हैरत से देखती रही. एक धक्का नीचे से लगा रहा था तभी दूसरा धक्का ऊपर से जीजाजी गांड मे मार रहे थे. आवाजे अब साफ सुनाई दे रही थी।

सब लोग उफ़फ्फ़..हाइईइ.. ह.. करते हुए सिसकारियाँ ले रहे थे. आवाज़ें धड़ल्ले से आ रही थी. तभी दीदी बोली, “अग्रवाल.. स्टॉप…” अब मुझे समझ मे आया की यह कौन है. दोपहर मे जब जीजाजी ने कहा की मिस्स. & मिस्टर. अग्रवाल आ रहे है और दीदी का चेहरा खिल उठा था. यानी यह ग्रूप मे चुदाई के लिए एकत्रित हुए थे. उनकी चुदाई देखते हुए मैं मस्त हो गयी. मेरा हाथ मेरी मिनी स्कर्ट के अंदर चला गया और भीगी हुई चूत को सहलाने लगा. दूसरा हाथ मेरे टॉप के ऊपर से ही अपने बोब्स को दबाने लगा. मेरे मुहँ से सिसकारियाँ निकल रही रही थी. बेड रूम मे से कोई बाहर आने वाला नही था. सिवाय अग्रवाल के किसी की नज़र मुझ पर नही पड़नी थी. और मिस्स. अग्रवाल का चेहरा जीजाजी ने ढ्ख रखा था उसका चुंबन लेने के लिए।

मैं बेकौफ़ होकर अपनी चूत मे पेंटी को साइड कर अपनी अंगुली डाल दी. लाइव टेलीकास्ट के साथ मैं भी चुदसी हो गयी. कोई मुझे भी अपनी बाहों मे ले. कोई मेरे भी बोब्स चूसे. कोई मुझे भी चोदे. मैं आँखें बंद किए हुए अपनी चूत को अपनी अंगुली से रग़ड और छोड़ रही थी. मेरी सिसकारियों की आवाज़ तेज हो रही थी की अचानक किसी ने मुझे अपनी बाहों मे ले लिया. और मेरे होंठो को चूमने लगा. मैं घबरा कर अपनी आँख खोली. यह तो राकेश था. मैने उस से अपने से अलग करना चाहा और कुछ बोलने लगी ही थी की राकेश ने अपने होंठ पर एक अंगुली रख कर मुझे चुप रहने का इशारा किया. फिर मुझे उसने अपनी बाहों मे उठा लिया.

मैं विरोध करने की परिस्थिति मे नही थी. मेरे पूरे बदन मे सामूहिक चुदाई को देखते हुए वासना की लहरें उठ रही थी. मेरी साँसे गर्म हो चुकी थी. मेरे बोब्स उन गहरी सांसो के साथ काफ़ी ऊपर-नीचे हो रहे थे. राकेश के नंगे सीने पर हाथ रख कर मैं और मतवाली हो गयी. तभी राकेश ने मुझे कोई विरोध ना करते हुए देख मुझे बाहों मे लिए मेरे होंठो पर अपने होंठ रख दिए. मैं तड़प उठी. उसकी बाहों मेरा तन-बदन मचल उठा. उसने अपनी गिरफ़्त बढ़ा दी और अपनी जीभ मेरे मुहँ मे डाल दी. राकेश के बेडरूम मे पहुँचते ही मैं उसकी बाहों से उतर गयी लेकिन राकेश ने मुझे अपनी बाहों से आज़ाद नही किया और ना ही मेरे सुलगते होंठो को छोड़ा. उसने अपने आलिग्न मे मुझे कस कर जकड़ लिया और मेरे सुर्ख गुलाबी होंठो को चूमता जा रहा था. मुझे ऐसी दीवानगी ही पसंद थी।

मैं चाह भी रही थी की राकेश मेरे होंठो का सारा रस पी ले. तभी राकेश ने मुझे बिस्तर पर लेटा दिया और मेरे बदन पर चढ़ गया. उसने अपने बदन से मेरे बदन को मसलते हुए मेरे गाल, मेरे कान और मेरी गर्दन को चूमता रहा. अपने गरमा-गर्म चुंबनो की छाप छोड़ता रहा. मैं सुलग उठी. मुझ से रहा नही जा रहा था. अब मैं भी उसके चुंबनो का जवाब अपने गर्माते चुंबनो से देने लगी. उसके कान और उसकी गर्दन बेतहासा चूमने लगी. उसे चूमते हुए मेरा दिल धड़क रहा था. और मन मे ही यह शायरी आ गयी: चूम लू होंठ तेरे, दिल की यह ख्वाइश है! यह ख्वाइश हमारी नही, यह तो दिल की फरमाइश है! काफ़ी देर की चुम्मा चाटी के बाद हम दोनो की साँसे उखड़ने लगी थी. तभी राकेश खड़ा हो गया और मुझे फिर अपनी बाहों मे उठा कर बाथरूम की और ले चला. बाथरूम मे पहुँचते ही उसने शावर चालू कर दिया. मैं और राकेश आपस मे चिपके हुए शावर के नीचे भीगने लगे।

सुबह-सुबह का ठंडा पानी पड़ते ही मैं और राकेश दोनो काँपने लगे. लेकिन दोनो के चिपके हुए जिस्म आपस मे एक दूसरे को गर्मी भी दे रहे थे. मेरे टॉप मे से अब मेरी ब्रा झाँकने लगी. राकेश ने अपने मुहँ को मेरी गर्दन से नीचे लाते हुए मेरे दोनो बोब्स के बीच की घाटी मे अपनी जीभ डालने लगा. उसने अपने दांतो से मेरे टॉप के बटन को खोलने लगा. दो-तीन मिनट की कोशिश के अंदर ही मेरा टॉप नीचे उतर गया. अब मेरी ब्रा मे से मेरे बोब्स की गोलाई और निप्पल का कलर दिखाई पढ़ रहा था. राकेश ने अपने हाथ आगे बढाते हुए मेरे दोनो बोब्स को चोली के साथ ही थाम लिया और अपनी अंगुलियों से दबाने लगा. मैं सिहर उठी. उत्तेजना के मारे मुहँ से सिसकारियाँ निकल रही थी।

मैने राकेश की कमर को कश कर जकड़ लिया और उसकी जांघों के बीच अपनी जांघें घुसाने लगी. इधर राकेश ने मेरी चोली के ऊपर से ही मेरे दोनो बोब्स को बारी-बारी से अपने गाल से रगड़ने लगा. अब मुझ से रहा नही जा रहा था. मैने सिसकारी भरते हुए कहा, “राकेश.. निकाल फेंको मेरी चोली को और मेरे दोनो क़ैद कबूतरो को आज़ाद कर दो… इनको अपने मुहँ मे लेकर चाटो… राकेश..” मेरी बात को सुनकर राकेश ने अपने हाथ से मुझे दीवार की और धकेल दिया और मुझे पलट दिया. अब मेरी पीठ राकेश के सामने थी. राकेश ने अपनी जीभ से मेरी पूरी पीठ को चाटने लगा. जिससे मेरे पूरे जिस्म मे वासना की लहरे और ज़ोर मारने लगी. मैं काँप रही थी. इस बार पानी के ठण्डेपन से नही बल्कि उसकी हरकतो के कारण।

मैने सिसकारी लेते हुए अपना चेहरा ऊपर उठाया और शवर के पानी को अपने चेहरे पर पड़ने दिया. तभी राकेश ने अपने दाँत से मेरी चोली का हुक खोल दिया और मुझे पलट कर अपनी बाहों मे जकड़ लिया. अब मेरे दोनो कबूतर चोली से आज़ाद होकर राकेश के सीने से सट गये. मैं सेक्स के हिलोरे लेते हुए अपने दोनो बोब्स को उसके सख़्त सीने से रगड़ने लगी. ऐसा करते देख राकेश ने मेरे होंठो को फिर अपने होंठो की गिरफ़्त मे ले लिया और लगा मेरे मादक होंठो का रस पीने. मुझसे रहा नही जा रहा था. मैने राकेश के दोनो हाथो को पकड़ा और अपने दोनो बोब्स उसकी हथेली की गिरफ़्त मे दे दिए. और बोली, “राकेश.. अब रहा नही जा रहा है. पकड़ के रग़ड दो इन शैतानो को… मुझे अपनी बाहों मे लेकर मेरे दोनो बोब्स (बोब्स) को मसल दो. इन्हे अपने मुहँ मे लेकर चूसो राकेश.. “राकेश ने अब अपने दोनो हाथो से मेरे भरे हुए सख़्त बोब्स को जकड़ लिया और लगा उन्हे मसलने।

मसलने के साथ ही मेरी सिसकारियाँ बढ़ गयी. मैं झूम उठी. मैं पानी से भीगते हुए राकेश की हरकतो का मजा ले रही थी. राकेश मेरे दोनो कबूतरो को मसलते हुए चूम रहा था. मेरे दोनो निपल्स उसके मुहँ मे बारी- बारी से जा रहे थे. साथ ही मैं उसके सिर को पकड़ कर मेरे सीने पर ज़्यादा से ज़्यादा दबाने मे लगी हुई थी. अब राकेश ने अपने एक हाथ से मेरी स्कर्ट की ज़िप खोल दी. मेरे स्कर्ट मेरे टागो से चिपकती हुई नीचे गिरने लगी।

राकेश ने अपने मुहँ को और नीचे किया और मेरी नाभि का चाटने लगा. यह सब मेरे बर्दाश्त से बाहर हो रहा था. मैं आँखें बंद किए शावर के ठंडे पानी से भीगती हुई ज़ोर-ज़ोर से साँसें ले रही थी. राकेश ने अपनी एक हथेली मेरी पेंटी पर रख दी और…मेरी चूत को रगड़ने लगा. हाईईईई… मेरी तो जान ही अटक गयी. एक तो राकेश की थियेटर की हरकत और दूसरी दीदी के रूम मे चल रही सामूहिक चुदाई ने मुझे वासना से भर कर रख दिया था. अब राकेश की भरपूर हरकतो ने मुझे उतावला कर दिया. राकेश ने अपने दूसरे हाथ से मेरी पेंटी को नीचे उतार दिया और मैं एकदम मर्दजात नंगी उसके सामने भीगती हुई खड़ी थी. राकेश अब थोड़ी दूर होकर मुझे निहारने लगा. मेरे जिस्म की शराब को अपनी आँखों से पीने लगा. तभी तो किसी शायर ने क्या खूब कहा है:.”हुस्न पर जब मस्ती छाती है, शायरी पर बहार आती है.., पी कर महबूब के बदन की शराब, जिंदगी झूम-झूम जाती है…” ऐसा ही हाल उसके लंड का था जो बॉक्सर के अंदर झूम रहा था।

मेरे बदन की शराब का नशा मैं उसके लंड पर देख रही थी जोकि बॉक्सर के बटन के बीच अटका हुआ था. उसका लंड मेरे हुस्न का दीदार करने को उतावला हो चुका था. यह कमीना बॉक्सर ही उसके आड़े आ रहा था. उसका लंड बॉक्सर के बटन्स के बीच से चीख-चीख कर कह रहा था: पलट के देख ज़ालिम, तमन्ना हम भी रखते हैं, हुस्न तुम रखती हो तो जवानी हम भी रखते हैं.. गहराई तुम रखती हो तो लंबाई हम भी रखते हैं… अब मुझसे रहा नही जा रहा था. दिल तड़फ़ रहा था लाइट के उजाले उसे भरपूर देखने के लिए।
आगे . . . मैं जैसे ही नीचे झुक कर उसे आज़ाद करने के लिए झुकी राकेश ने मुझे रोक दिया और मेरे होंठो का चुंबन लेते हुआ बोला, “रूको हुस्न की देवी.. ज़रा अपने सेक्सी ज़िस्म का दीदार तो करने दो…” और उसने मुझे बाथरूम की दीवार से सटा कर खड़ा
कर दिया और मुझे ऊपर से नीचे देखते हुए बोला, “उफ क्या जवानी है कल्पना तुम्हारी.. तभी तो मैं थियेटर मे बेचैन हो गया था. उफ यह हसीन चेहरा, गहरी आँखें, भीगे होंठ, चिकने गाल तुम्हारे, तराशि हुई लंबी गर्दन, पूरी हुस्न की देवी लग रही हो…अब मेरे लंड का क्या कसूर जो तुम्हे देख कर मेरी पेंट से बाहर आ गया था… तुम्हारे पॉपकॉर्न को ढूँढते हाथ मेरे लंड को दीवाना बना रहे थे…”

मैं अपनी प्रशंसा सुनकर फूली ना समा रही थी. मेरे बॉयफ्रेंड ने भी ऐसी तारीफ नही की थी जैसी राकेश कर रहा था. मैं शावर के पानी से भीगते हुए आँखें बंद किए राकेश को सुन रही थी. फिर राकेश ने मेरे बोब्स पर अपने हाथ फेरते हुए कहने लगा, “कल्पना इन भीगते बोब्स को देख कौन पागल ना होगा… यह बरसता पानी तुम्हारे बोब्स पर पढ़ कर मेरे होंठो पर गिर रहा है मानो अमृत की बूंदे छलक रही है… टप टप गिरती हुई बूंदे तुम्हारी निपल्स से मुझे मदहोश बना रही है.. उफ कयामत ढा रहे है तुम्हारे कड़क गोरे-गोरे बोब्स… और यह ज़ालिम तुम्हारी पतली कमर… इनको जैसे अपनी बाहों मे लपेटे हुए ही पड़ा रहा हूँ तुम्हारे हाथ लगाता हूँ तो लगता है जैसे टूट ना जाए… इतने भारी बोब्स को संभाले हुए कैसे तुम्हारी नाज़ुक कमर खड़ी है… उफ़फ्फ़…”
फिर धीरे से मेरी कमर को अपनी बाहों मे लेकर मेरे बोब्स को चूम लिया और मेरे निपल्स को अपने दांतो से रग़ड दिया. मेरी सिसकारी ज़ोर से निकल गयी. फिर राकेश ने अपने चेहरे को मेरी चूत के सामने लाकर मेरी गोल्डन झांटो को सहलाने लगा. उफ़फ्फ़.. मैं तड़फ़ उठी. मैने अपनी जांघों को भींच लिया. अपनी चूत को अपनी दोनो जाँघो के बीच छुपा लिया. यह मैने कोई शर्म के मारे नही बल्कि चूत मे उफान लेती हुई मस्ती को दबाने के लिए किया. लेकिन राकेश ने अपना हाथ मेरी जाँघो के बीच फँसा दिया. राकेश ने मेरी दोनो जाँघो को अलग करते हुए मेरे चूत को सहलाते हुए बोला, “हाईईइ.. इस जालिम जवानी को ना छुपाओ… हमे इसका लुत्फ़ लेने दो… अपनी चूत की दोनो पंखुड़ियों को खोलो… इसका गुलाबी पंख देखो… इसका जूस निकलते हुए देखो… मेरा लंड तड़फ़ रहा है इससे मिलने के लिए… मेरे होंठ बेकाबू हो रहे है इससे चूमने के लिए…”
यह कहकर उसने अपना सिर मेरी दोनो जाँघो के बीच डाल दिया. मैं काँप उठी. उसके होंठ मेरी चूत के होंठ से जा चिपके. मेरी चूत का रस बरबस निकलता गया और राकेश उससे पीकर मस्ती से झूम रहा था. मैं ज़ोर-ज़ोर से साँसे लेते हुए अपनी मस्ती को चूत के रास्ते उसके मुहँ मे डाल रही थी. मेरे **** थिरक रहे थे. मैं बाथरूम की दीवार से सटी हुई अपनी दोनो टांगो को खोलती जा रही थी. अब मुझसे रहा नही जा रहा था लेकिन राकेश भी मुझे छोड़ नही रहा था. उसका उतावलापन मुझे बेकाबू कर रहा था. मेरे होश उड रहे थे. तभी मेरे मुहँ से निकल गया, “राकेश, अब मुझसे रहा नही जा रहा है.. प्लीज़ अब मेरी चूत को चूसना छोड़ो.. अब मुझे अपनी बाहों मे लेकर मुझे मसल दो… मेरे बदन को रग़ड-रग़ड कर चोदो…” राकेश ने मेरी फरियाद सुन ली।

वो मेरे सामने खड़ा हो गया. मैने देर ना करते हुए उसके बॉक्सर को झट से नीचे की और खींच दिया. आह.. यह क्या.. इतना मोटा! उफ़फ्फ़.. लंबा! यह उसका लंड! लंड है या कुछ और.. मेरे दीमाग पर भूचाल आ गया. अर्रे यह कैसे किसी को चोद सकता है. इतना मोटा और लंबा लंड कैसे कोई लड़की अपनी चूत मे लेगी. मर ना जाएगी.. ना.. बाबा.. मैं नही ले सकती इतना मोटा और लंबा लंड… तभी मेरे दीमाग मे जीजाजी का लंड आ गया. उनका भी लंड शायद इतना ही बड़ा था. हा इतना ही बड़ा था. दो सगे भाई के लंड एक जैसे तो हो ही सकते है. लेकिन दीदी इतने बड़े लंड को कितनी आसानी से अपनी गांड मे ले रही थी. और साथ मे कह भी रही थी की और अंदर डालो. तो राकेश का लंड मैं नही ले सकती. ले लूँगी. अब मुझे वासना की आँधी के सामने अब कुछ भी नही दिखाई दे रहा था।

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मैं बेचैन थी चुदवाने के लिए. मैने राकेश के लंड को थामा और अपनी चूत के नज़दीक खींच लिया. राकेश का गरमा-गर्म लंड मेरी चूत के सामने आते ही ऊपर नीचे होने लगा. उसने अपने लंड को पकड़ा और पास पडा साबुन का तोड़ा सा अपने लंड पर मसला. राकेश को अपने लंड की साइज़ का ख्याल था. वो भी जानता था की कोई लड़की पहली बार मे उसके लंड को सहन नही कर सकती. साबुन लगाने से चिकना लंड मेरी चूत के अंदर घुसने लगा. उसका सुपडा मेरी चूत मे धँसने लगा. मुझे तोड़ा दर्द हुआ. लेकिन राकेश रुका नही. उसने अपने लंड का ज़ोर मेरी चूत पर बढ़ते हुए अंदर घुसने मे कामयाब हो गया. मैं अपने होंठ को बींचते हुए दर्द को सहन करने की कोशिश कर रही थी. लेकिन दर्द बढ़ता ही जा रहा था।

मैने अपने हाथ से उसके सीने पर धक्के मारते हुए कहा, “निकालो राकेश, सहन नही हो रहा है.” राकेश ने कहा, “हां निकालता हूँ..” ऐसा कहकर उसने लंड बाहर निकाला. लेकिन पूरा कमीना था वो. थोडा सा बाहर निकाला और फिर झट से एक करारा धक्का जड़ दिया. मेरी तो साँसे ही अटक गयी. ज़बान से कुछ भी नही निकल रहा था. निकल रहे थे तो मेरे आँसू. राकेश का लंड मेरी चूत की भीतरी दीवार से जा टकराया. उससे मालूम था ऐसा होना है. उसने झट से मेरे होंठ को अपने होंठ की गिरफ़्त मे ले लिया और अपने हाथो से मेरे बोब्स को मसलने लगा. मैं छटपटा रही थी।
लेकिन बोल नही पा रही थी. मैने अपने बदन से उसके बदन को धकेलने की कोशिश की लेकिन उसके सामने मेरा बस नही चला. उसके धक्के रुके हुए थे. मेरे चुंबन लेते हुए मेरे बोब्स को मसल रहा था. फिर उसने धीरे-धीरे धक्के लगाने शुरू किए. मैं अब भी छटपटा रही थी. मेरे होंठो को अपने होंठो से जकड़े हुए मुझे कुछ भी बोलने दे नही रहा था. लेकिन धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा. मुझे अपनी पहली चुदाई ध्यान आ गयी. उस दिन भी इससे कुछ ज़्यादा ही दर्द हुआ था लेकिन बाद मे उस दिन मुझे काफ़ी मजा आया था. जब आप मस्ती मे हो तो दर्द जल्द ही काफूर हो जाता है. यही हुआ मेरा दर्द कम होता गया. मेरे हाथ जो राकेश को धकेलने की कोशिश कर रहे थे अब उससे अपने मे समेटने की कोशिश करने लगे. यह देखकर राकेश ने अपने होंठ मेरे होंठो से हटा लिया।

जैसे ही मेरे होंठ मुक्त हुए मैं ज़ोर-ज़ोर की साँसें लेने लगी. फिर संभालते हुए बोली, “तुमने तो मुझे मार ही दिया था.” राकेश अब अपनी स्पीड बढाते हुए बोला, “लेकिन अब मजे ले रही हो.. ना.” मैं सिसकारी लेते हुए बोली, “हा.. अब धीरे धीरे क्यों… अब तो ज़ोर- ज़ोर के धक्के मारो..” राकेश ने यह सुनते ही अपनी जाँघो की स्पीड बढ़ा दी और मैं दनादन-दनादन आते हुए धक्को का स्वागत अपनी जाँघो को खोलते हुए करने लगी. कुछ ही देर मे मेरे सब्र की सीमा टूट गयी और चीख मारते हुए राकेश से लिपट गयी. मेरी चूत का बाँध खुल गया. उसमे भरा हुआ पानी छुटने लगा. उसका कड़क लंड मेरी चूत की दीवारो पर अब भी शॉट लगाए जा रहा था. वो नही रुक रहा था. अबकी बार मेरी सिसकारियाँ ज़्यादा ज़ोर से निकल रही थी, “उफ़फ्फ़.. … क्या चोद रहे हो तुम.. मेरे चूत दो बार चुद चुकी है.. तुम्हारा लंड मेरी चूत को रौंद कर रख दिया.. अब बस करो.. अब मुझे तोड़ा आराम करने दो..”

राकेश ने अपने धक्को को बंद किया और अपने तने हुए मोटे लंबे लंड को बाहर निकाल लिया. उसका लंड तो अब ज़्यादा ही बड़ा लग रहा था. मेरे रस से भीगा हुआ लंड मेरी चूत की और ही तना हुआ था. मैं राकेश की बाहों मे समा गयी. राकेश ने मुझे फिर अपनी बाहों मे उठा लिया और हमारे भीगे हुए बदन चल पड़े बेडरूम के बिस्तर की और. उसने मुझे बिस्तर पर लिटा दिया और मेरी बगल मे लेट गया. हम दोनो अपनी उखड़ी हुई सांसो को नियंत्रण मे लेने की कोशिश करने लगे. मैं आँखें बंद कर अब तक की हुई चुदाई का रिप्ले देखने लगी. अब तक मैं निढाल हो चुकी थी. राकेश भी आँखें बंद किए हुए लेटा था.

मैं सोने की कोशिश तो नही कर रही थी लेकिन मेरा बदन टूट रहा था. करीब पंद्रह मिनिट बाद मेरी आँखें खुली. थकान कम हो चुकी थी. मैने देखा राकेश आँखें बंद किए हुए ऐसे ही पड़ा है. मेरा ध्यान उसके बदन पर था. उसका लंड अब एकदम तना हुआ नही था लेकिन एकदम लूज भी नही हुआ था. उसका हल्का लूज लंड अपने पूरे साइज़ से शायद 2-2-1/2 इंच घट चुका था. लेकिन उसका लूज लंड भी कई लोगों के एकदम टाइट लंड के बराबर था. उफ.. जालिम ने स्टॅमिना भी पूरा पाया है. तभी तो इतना चोदने के बाद और आराम करने के बाद भी उसका लंड सिकुडा नही था. मैने करवट बदलते हुए अपनी एक टाँग उसकी टांगो पर रखी और उसके चेहरे को चूमती हुई बोली, “सो गये क्या?” राकेश ने अपनी आँख खोलते हुए बोला, “नही.. तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था..” मैं अब राकेश के लंड को अपने हाथ मे थामते हुए बोली, “तुम्हे पता था की दीदी के रूम क्या चल रहा है..” राकेश बोला, “मैं भैया और भाभी के पर्सनल मेटर्स मे ध्यान नही देता.. उनकी जिंदगी है तो उन्हे अपने तरीके से जीने दो.. अब मैं तुम्हारे साथ हूँ और यह सब भाभी को मालूम पड़े तो तुम्हे कैसा लगेगा.. तुम अपनी जिंदगी जियो और तुम्हारी दीदी को उनकी जिंदगी जीने दो..” मैने कुछ पूछना अब मुनासिब नही समझा।

मैं अपनी जिंदगी भी तो अपने तरीके से ही तो जी रही थी. मैने अपने को झटका देते हुए अपना ध्यान राकेश के लंड पर लगा दिया. राकेश का लंड अब अपने रंग मे रंगने लगा. उसका साइज़ बढ़ता गया. राकेश भी मेरे बोब्स को दबा रहा था और मेरे निपल्स को खींच रहा था. मेरे जिस्म मे अब वासना की लहरे हिलोरे मारने लगी. मैं उठ कर लंड को अपनी मुट्टी मे जकड़ने लगी. लेकिन एक हाथ की मुट्टी मे वो कहाँ आने वाला था. दोनो हाथो मे लेकर उससे हिलाने लगी. फिर कुछ देर हिलाने के बाद अपना मुहँ नीचे किया और उसके लंड को चाटने लगी।

उसके लंड को नीचे से ऊपर तक अपनी जीभ से चाट रही थी. उसके सुपडे को अपने होंठ के बीच दबा कर चूस रही थी. उसका लंड का सबसे मोटा भाग उसका सुपाडा ही था. उसे लेने मे मुझे काफ़ी मुहँ खोलना पड़ा. फिर मैने उसके लंड को अपने मुहँ मे लेने की कोशिश करने लगी. काफ़ी मशक्कत के बाद आधा लंड ही मुहँ मे जा पाया. इस पर भी राकेश को मजा आ रहा था. जब मेरा मुहँ दुखने लगा तो लंड को मैने बाहर निकाल दिया. अब मेरे अंदर चुदने की इच्छा इतनी बढ़ गयी की मैने राकेश को बताए बिना, जो आँखें बंद किया अपने लंड का मजा ले रहा था, उसके ऊपर चढ़ गयी और उसके लंड को अपनी चूत मे लेने की कोशिश करने लगी. यह देखकर राकेश मुस्काराया. मैं समझी नही. मैने पुछा, “क्यों? क्या हुआ?” राकेश ने कहा, “अभी बाथरूम मे तुम मेरे लंड को कहाँ तो बाहर निकालने का प्रयास कर रही थी और अब कहाँ तुम मेरे लंड को अपनी चूत मे लेने को आतुर हो?”

मैने कहा, “अब मुझे इससे प्यारी चीज़ कोई नही लग रही है जिसे मैं अपने अंदर छुपा लू.” राकेश बोला, “पगली यह ऐसे थोड़े ही जाएगा. जा वहाँ ड्रेसिंग टेबल से क्रीम ला और मेरे लंड पर और तेरी चूत मे लगा… तभी यह अंदर जाएगा.. नही तो तू इस पूरे घर को दर्द के मारे उठा लेगी…” मैने वैसा ही किया. उसके लंड को ऊपर से नीचे तक पूरा क्रीम से रग़ड कर चिकना कर दिया और थोड़ी क्रीम मैने अपनी चूत के अंदर मल ली. फिर मैं राकेश के ऊपर बैठ कर उसके लंड को अपनी चूत के मुहँ पर लगा लिया और अपने कुल्ले उठाते हुए उसके लंड पर धक्का मारा।
इस धक्के से उसके लंड का सुपडा अंदर चला गया और निकल पड़ी मेरे मुहँ से चीख. मैं दर्द से बिलबिला उठी. राकेश ज़ोर से हंस पड़ा और बोला, “देखा. बगैर क्रीम मेरे लंड को लेने चली थी..” मैने चिल्लाते हुए कहा, “तुम्हे मजाक सूझ रहा है.. यहाँ मेरा दर्द के मारे बुरा हाल है.. कुछ करो., राकेश.” तब राकेश ने मेरे दोनो बोब्स को अपने हाथो मे लिया और लगा वर्ज़िश करने. जिससे मुझे थोड़ी राहत मिली. मेरे जिस्म मे धक्का मारने की इच्छा बढ़ने लगी. और मैने फिर से एक ज़ोर का धक्का मार दिया. अबकी बार लंड आधे से ज़्यादा घुस गया लेकिन दर्द बढ़ गया. मैने रुआंसी आवाज़ मे राकेश से कहा, “राकेश मेरे दोनो बोब्स को कस- कस कर मसलो… दबा दो इन्हे.. तभी मुझे मजा आएगा…”

राकेश ने अब अपना एक हाथ हटा लिया और दूसरे हाथ से मेरे एक बोब्स को कस कर मसलना शुरू कर दिया. साथ ही पहले हाथ से मेरी कमर को जकड़ते हुए मुझे अपने लंड पर हिलाने लगा. थोड़ी ही देर मे मेरा दर्द गायब हो गया और मैने उसका दूसरा हाथ भी कमर पर लगा दिया. अब मुझे धक्का नही मारना पढ़ रहा था बल्कि राकेश अपने दोनो हाथो से मेरी कमर को आगे पीछे कर रहा था जिससे मेरी चूत को उसके लंड की रग़ड मिल रही थी और साथ ही उसका लंड धीरे-धीरे मेरे अंदर घुसता जा रहा था. अब मैं भी अपनी कमर को हिलाने लगी. रग़ड लंड और चूत दोनो को मिल रही थी. मुझे बड़ा मजा आ रहा था. उसका लंड और मेरी चूत की रग़ड मेरे जिस्म मे आग पैदा कर रही थी. यह वासना की ज्वाला थी।

यह चुदाई की आग थी. इस आग मे हम दोनो के बदन झुलस रहे थे. इस चुदाई मे हम दोनो खूब मजा ले रहे थे. तभी मेरी चूत बोखला गयी और इस बोखलाहट मे अपना पानी छोड़ दिया. मैं रुकी नही. ना ही राकेश के हाथ की स्पीड को कम होने दिया. इस आग मे मैं पूरी तरह झुलसना चाहती थी. मैं चुदाई जहाँ तक हो सके जारी रखना चाहती थी. फिर कुछ देर और ऐसे ही चुदने के बाद मेरा पानी तिन बार निकल चुका था. राकेश ने अब मेरे बदन को बिस्तर पर लेटा दिया और लंड को चूत मे डालते हुए मुझ पर चढ़ गया. मेरी टांगो पर उसकी टाँग, मेरी जाँघो पर उसकी जाँघ, मेरी चूत मे उसका लंड, मेरे सीने पर उसका सीना और मेरे होंठो पर उसके होंठ. उफ़फ्फ़! अब स्वर्ग का मजा भी कुछ बाकी रह गया था. नही.. बिल्कुल नही.. यही तो था जन्नत का मजा.. ऐसी चुदाई मे और क्या बाकी रह जाता है. राकेश ने अब अपनी स्पीड बढाते हुए मुझे कस-कस कर चोद रहा था. उसकी थाप का जवाब मैं अपने कुल्ले उठा कर दे रही थी. तभी राकेश बड़बड़ाते हुए अपना पानी मेरी चूत मे छोड़ने लगा. मैं निहाल हो गयी. मैने भी इसका जवाब अपनी चूत का पानी छोड़ कर दिया. हम दोनो निढाल हो कर पड़े रहे।

फिर थोड़ी देर बाद राकेश मेरे ऊपर से उतर कर मेरी बगल मे सो गया. मैं राकेश से चिपकी हुई पड़ी रही. थोड़ी देर बाद घड़ी देखी तो सुबह के सात बाज चुके थे. तीन घंटे की चुदाई ने मेरे बदन के पुर्जे-पुर्जे ढीले कर दिए थे. एक घंटे बाद मेरी आँखें खुली तो देखा की राकेश अभी भी सोया हुआ है. उसका लंड अभी भी कड़क था. लगता है सपने मुझे अभी चोद रहा था. मैने उसे झट से जगाया और कहा, “अब जा रही हूँ अपने रूम मे…” राकेश बोला, “अभी कहाँ.. अभी हमे कौन डिस्टर्ब करने वाला है.. यहाँ मेरी बाहों मे सो जाओ..”

मैने कहा, “सुबह की 9 बजने वाली है. दीदी उठ जाएगी.” राकेश बोला, “वो लोग 11 से पहले नही उठने वाले. अभी मुझे एक राउंड और चलना है.” मैने कहा, “हद.. करते हो. मेरे बदन के अस्ति पॅन्ज़र ढीले कर दिए और कहते हो की एक राउंड और चलना है.. ना बाबा ना..” लेकिन उसने मुझे झटके से अपने ऊपर गिरा लिया और लगा मेरे होंठो के फटाफट चुंबन करने. फिर मेरे बोब्स से खेलते हुए मुझे घोड़ी बना दिया और अपने कड़क लंड को मेरी चूत से सटा दिया।
मैने उस से कहा, “रूको.. क्रीम तो लगा लो..” उसने कहा, “अब तुझे क्रीम की नही मेरे लंड की ज़रूरत है.. अब तेरी चूत मेरे लंड को एक दम से कस कर पकड़ कर धक्का खाएगी और खूब हिला-हिला कर चुदवाएगी..” फिर उसने अपना थूक लंड पर लगाया और कस कर धक्का मारते हुए मेरी चूत को चिर दिया. मैने कैसे भी करके अपने दर्द को रोका और लगी चुदाई का मजा लेने. इस बार मुझे छुड़वाने मे बड़ा मजा आ रहा था. 15-20 मिनिट की चुदाई के बाद राकेश के लंड ने पानी छोड़ दिया और तब तक मैं भी 2 बार झड़ चुकी थी।

फिर तोड़ा सुसताने के बाद मैने उसके लंड का चुंबन लिया और अपने कपड़े पहन लिए. तभी राकेश बोला, “रात को ध्यान नही रहा.. दवाई लेकर खा लेना… समझ गयी ना..” मैं समझ गयी. अभी मुझे तो जवानी का खूब मजा लेना था. मैं दीदी के इधर 4 दिन और रही. इन 4 दीनो मे मैने क्या-क्या मजे नही लिए. राकेश के फ्रेंड्स सर्कल के साथ भी रात बिताई. उसके फ्रेंड्स सर्कल मे मुझे मिलाकर 4 लड़किया और 6 लड़के थे. उसकी कहानी फिर कभी.
अभी के लिए अलविदा….



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