मेरी दीदी की ननद की चुदाई कहानी – 2

didi ke nanad ki chudai kahani हम दोनो काफ़ी उत्तेजित हो गये थे. उस ने आँखें बंद कर दी थी. मुझे यहाँ तक याद है की अपनी बाहें लंबी कर उस ने मुझे अपने बदन पर खींच लिया था, इस के बाद क्या हुआ और कैसे हुआ वो मुझे याद नहीं. वो जब चीख पड़ी तब मुझे होश आया की मैं उस के उपर लेटा था और मेरा लंड झिल्ली तोड़ कर आधा चूत में घुस गया था. वो मुझे धकेल कर कहती थी : उतर जाओ, उतर जाओ, बहुत दर्द होता हैमैने उस के होठ चूमे और कहा : ज़रा धीरज धर , अभी दर्द कम हो जाएगा.वो बोली : तू क्या कर रहा है ?

मुझे चोद रहा है ?मैं : ना, हम एक दूजे को चोद रहें हें.पारो : मुझे गर्भ लग जाएगा तो ?मैं : कब आई थी तेरी माहवारी ?पारो : आज कल में आनी चाहिए.मैं : तब तो डर ने की कोई बात नहीं है कैसा है अब दर्द ?पारो : कम हो गया हैमैं : बाक़ी रहा लंड डाल दूं अब ?वो घबड़ा कर बोली : अभी बाक़ी है ? फिर से दुखेगा ?मैं : नहीं दुखेगा. तू सर उठा कर देख, मैं होले होले डाल उंगा.मैं हाथों के बल अध्धर हुआ. वो हमारे पेट बीच देखने लगी हलका दबाव से मैने पूरा लंड उस की चूत में उतार दिया.अब हुआ क्या की मेरी एक्सात्मेंट बहुत बढ़ गयी थी. दीदी के घर आ कर मुठ मार ने का मौक़ा मिला नहीं था. बड़ी मुश्किल से मैं अपने आप को झड़ ने से रोक रहा था.

ऐसे में पारो ने चूत सिकोडी. मेरा लंड डब गया. फिर क्या कहना ? धना धन धक्के शुरू हो गये मैं रोक नहीं पाया. पारो की परवाह किए बिना मैं चोद ने लगा और आठ दस धक्के में झड़ पड़ा.उस ने पाँव लंबे किया और मैं उतरा. उस ने भोस पर पेंटी दबा दी. चूत से ख़ून के साथ मिला हुआ ढेर सारा वीर्य निकल पड़ा. बाथरूम में जा कर हम ने सफ़ाई कर लीवो रो ने लगी मैने उसे बाहों में भर लिया, मुँह चूमा और गाल पर हाथ फ़िरया. वो मुज़ से लिपट कर रोती रही.मैं : क्यूं रोती हो ? अफ़सोस है मुझ सेचुदाई की इस बात का ?मेरे चहेरे पर हाथ फिरा कर बोली : ना , ऐसा नहीं हैमैं : बहुत दर्द हुआ ? अभी भी है ?पारो : अभी नहीं है उस वक़्त बहुत दर्द हुआ. मुझे लगा की मेरी —- मेरी —— चूत फटी जा रही है लेकिन तू इतनी जल्दी में क्यूं था ?

तेरा बदन अकड गया था और तू ने मुझे भिंस डाला था. और — तेरा ये — ये — लंड कितना मोटा हो गया था ? क्या हुआ था तुझे ?मैं : इसे ओर्गाझम कहते हें, जिस वक़्त आदमी सब कुछ भूल जाता है और अदभुत आनंद मेहसूस करता हैपारो : लड़कियों को ओर्गाझम नहीं होता ?में : क्यूं नहीं. तुझे मझा ना आया ?पारो : तू चोद ने लगा तब भोस में गुदगुदी होने चली थी, लेकिन तू रुक गया.मैं : अगली बार चोदेन्गे तब मैं तुझे ओर्गाझम करवा उंगा.पारो : अभी करो ना. देखो तेरा ये फिर से खड़ा होने लगा हैमैं : हाँ लेकिन तेरी चूत का घाव अभी हरा है मिट ने तक राह देखेंगे, वरना फिर से दर्द होगा और ख़ून निकलेगा.मेरा लंड फिर टन गया था. पारो ने उसे मुट्ठि में थाम लिया और बोली : होने दो जो हॉवे सो. मुझे ये चाहिए ——मैं ना कैसे कहूँ भला ? मुझे भी चोद ना था.

मैने किताब निकली. इन में एक फ़ोटू ऐसा था जिस में आदमी नीचे लेटा था और औरत उस की जांघें पर बैठी थी. मैने ये फ़ोटू दिखा कर कहा : तू ऐसा बैठ सकोगी ?पारो : हाँ , लेकिन इस में आदमी का वो कहाँ है ?मैं : वो औरत की चूत में पूरा घुसा है इस लिए दखाई नहीं देता. आ जा.मैं चित लेट गया. अपने पाँव चौड़े कर वो मेरी जांघें पर बैठ गयी मैने लंड सीधा पकड़ रक्खा, उस ने चूत लंड पर टिकाई. आगे सीखा ने की ज़रूरत ना थी. कुले गिरा कर उस ने लंड चूत में ले लिया. लंड और चूत दोनो गिले थे इस लिए कोई दिक्कत ना हुई. पूरा लंड घुस जाने पर वो रुकी. लंड ने ठुमका लगाया. उस ने चूत सिकोडी. नितंब उठा गिरा कर वो चोद ने लगीचौड़े किए गये भोस के होठ और बीच में टटार क्लैटोरिस मैं देख सकता था. मैने अंगूठा लगा कर क्लैटोरिस सहलाई.

आठ दस धक्के में वो थक गयी और मुझ पर ढल पड़ी.लंड को चूत में दबाए रख कर मैने उसे बाहों में भर लिया और पलट कर उपर आ गया. तुरंत उस ने जांघें पसारी और उपर उठा ली. दो तीन धक्के मार कर मैने पूछा : दर्द होता है ?पारो ने ना कही. मैं धीरे गहरे धक्के से चोद ने लगा. पूरा लंड निकाल ता था और घकच से डाल देता था. पारो अपने नितंब हिला ने लगी और मुँह से सी सी सी कर ने लगी योनी में फटाके होने लगे. मैने धके की रफ़्तार बढ़ाई.वो बोली : उसस उसस मुझे कुछ हो रहा है रोहित, ज़ोर से चोदो मुझे.मैं घचा घच्छ, घचा घच्छ धक्के से उसे चोद ने लगा.अचानक उसे ओर्गाझम हो गया. ओर्गाझम दौरान मैं रुका नहीं, धके देता चला. वो बेहोश सी हो गयी ओर्गाझम शांत होने पर उस की चूत की पकड़ क़म हुई. मैने अब धीरे से पाँच सात गहरे धके लगाए और अंत में लंड को चूत की गहराई में पेल कर ज़ोर से झरा.

एक दूजे से लिपट कर हम थोड़ी देर पड़े रहे. इतने में दीदी और जीजू आ गये फटा फट हम ने ताश की बाज़ी टेबल पर लगा दी. जब जीजू ने पूछा की हम ने क्या किया तब पारो ने फिर मुँह माचकोड़ा — हून्ह — कहते हुए. मैने कहा : हम ताश खेलते थे, पारो एक बार भी जीती नहीं.रात का खाना खा कर सब सो गये आज पहली बार पारूल अपने भैया से अलग कमरे में सोई. मैं बिस्तर पड़ा लेकिन नींद नहीं आई. सोच ने लगा, क्या मैने पारो को चोदा था या कोई सपना था ? उस की चूत याद आते ही नर्म लोडा उठाने लग ता था और उस में हल्का सा मीठा दर्द होता था. दर्द से फिर लोडा नर्म पड़ जाता था. इन से तसल्ली हुई की वाकई मैने पारो को चोदा ही था.और दीदी और जीजू सारा दिन कहाँ गये थे ? वापस आने पर दीदी इतनी ख़ुश क्यूं दिखाई देती थी,

उस के चहेरे पर निखार क्यूं आ गया था ? जीजू भी कुछ गुनगुना रहे थे. और आज की रात जब पारो बीच में नहीं है तब जीजू दीदी को चोदे बिना छोड़ेंगे नहीं. मुझे पारो की भोस याद आ गयी दीदी की भी ऐसी ही थी ना ? जीजू का लंड कैसा होगा ? पारो को चोद ने का मौक़ा कब मिलेगा ? विचारों की धारा के साथ मेरा हाथ भी लंड पर चलता रहा. दीदी की और पारो की चुदाई सोचते सोचते में झड़ पड़ा. नींद कब आई उस का पता ना चला.दूसरे दिन जीजू को तीन दिन वास्ते बाहर गाँव जाना हुआ. मैने दीदी से पूछा की वो लोग कहाँ गये थे.मुस्कुराती वो बोली : रोहित, ये सब तेरी वजह से हो सका. तू था तो पारो ने हमें अकले जाने दिया. हम गाये थे अहमदाबाद, एक अच्छी सी होटेल में. सारा दिन ख़ाया पिया इधर उधर घुमे और —-

यह कहानी भी पड़े  ननद और भाभी की चुदाई

मैं : —- और जो भी किया, चुदाई की या नही ?जवाब में उस ने चोली नीची कर के आधे स्तन दिखाए. चोट लगी हो वैसे धब्बे पड़े हुए थे. जीजू ने बेरहमी से स्तन मसल डाले थे.मैं : कितनी बार चोदा जीजू ने ?दीदी मुज़ से बड़ी थी फिर भी शरमाई और बोली : तुज़े क्या ? तूने क्या किया सारा दिन ?मैने सब आहेवाल दे दिया. पारो को मैने चोदा जान कर वो इतनी ख़ुश हुई की मुझ से लिपट गयी और गाल पैर किस कर ने लगी मैने पूछा क्यूं वो पारो को अपनी चुदाई देखने ना कहती थी.वो बोली : तेरे जीजू अपनी बहन से शरमाते हें, कहते हें की वो देखती होगी तो उन का वो खड़ा नहीं हो पाएगामैने इस उलझन का रास्ता निकाल ना था. सब से पहले मैने जा कर दीदी का बेडरूम देखा. कमरा बड़ा था. एक ओर बड़ा पलंग था, दुसरी ओर चौड़ी सिटी थी.

पलंग के सामने वाली दीवार में एक बंद दरवाज़ा था. दरवाज़े पर अक बड़ा आईना लगा हुआ था. आईने की वजह साफ़ थी. सिटी के सामने बड़ा स्क्रीन वाला टीवी था, वीडीयो प्लेयर और सीडी प्लेयर के साथ. एक कोने में बाथरूम का दरवाज़ा था.मैने मकान की टूर लगाई बेडरूम की बगल में एक छोटी सी कोटरी पाई . कोटरी में फालतू सामान भरा था. एक दूसरा बंद दरवाज़ा था जो मेरे ख़याल से बेडरूम में खुल ता था. मैने चाकू निकाला और बंद दरवाज़े की पेनल में एक सुराख बना दिया. दरवाज़ा पुराना हो ने से कोई देर ना लगी सुराख से मैने झाँखा तो दीदी का बेडरूम साफ़ दिखाई दिया. मेरा काम हो गया.मैं अब जीजू के लौट आने की राह देख ने लगा. दरमियान मैने वो किताब ठीक से पढ़ ली. काफ़ी जानकारी मिली.

बारह साल की कच्ची कँवारी को चोद ने के लिए कैसे गरम किया जाय वहाँ से ले कर तीन बच्चों क शादी शुजा मा को कैसे ओर्गाझम करवाया जाय वो सब पिक्चर्स के साथ उस में लिखा था. किताब पढ़ कर रोज़ मैं हस्त मैथुन कर ता रहा क्यूं की पारो मुझ से दूर रहती थी.एक दिन पारो को एकांत में पा कर किस कर के मैने कहा : चल कुछ दिखा उन. हाथ पकड़ कर मैं उसे कोटरी में ले गया और सुराख दिखाई. उस ने आँख लगा कर देखा तो दंग रह गयीमैने कहा : जीजू आएँगे उसी दिन दीदी को चोदेन्गे. . तू रात को यहाँ आ जाना चुदाई देखने मिलेगी. मैं दीदी से कहूँगा की वो रोशनी बंद ना करे,मेरे गाल पैर चिकोटी काट कर वो बोली : बड़ा शैतान है तू.मैं किस कर ने गया तब ठेंगा दिखा कर वो भाग गयीजीजू शुक्रवार को आए. दूसरे दिन शनिवार था. जीजू सिनेमा के लास्ट शो की टिकटें ले आए.

दीदी ने मुझे पारो के साथ बिठाने का प्रयत्न किया लेकिन वो मानी नहीं, मुझे जीजू के साथ बैठना पड़ा. पिक्चर बहुत सेक्सी थी. जीजू एक हाथ से दीदी की जाँघ सहलाते रहे थे. दीदी का हाथ जीजू का लंड टटोल रहा था. शो छूटने के बाद जब घर वापस आए तब रात के बारह बजे थे.सिनेमा देखने से मैं काफ़ी उत्तेजित हो गया था. मुझे ये भी पता था की आज की रात जीजू दीदी को चोदे बिना नहीं छोड़ ने वाले थे. मैं सोचने लगा की वो कैसे चोदेन्गे और मुझ से रहा नहीं गया. मैने किताब निकाली और एक अच्छी फ़ोटू देखते देखते मैने मुठ मार ली.बाद में मैं दबे पाँव कोटरी में पहुँचा. सुराख में से देखा तो बेडरूम में रोशनी जल रही थी. जीजू नंगे बदन पलंग पर बैठे थे और लोडा सहला रहे थे. इतने में बाथरूम से दीदी निकली. उस ने ब्रा और पेंटी पहनी हुई थी.

आ कर वो सीधी जीजू की गोद में बैठ गयी उन की ओर पीठ कर के. जीजू ने आईना की ओर इशारा कर के कान में कुछ कहा. दीदी ने शरमा के अपनी आँखों पर हाथ रख दिए जैसे दीदी के हाथ उपर उठे जीजू ने ब्रा में क़ैद उस के स्तन थाम लिए दीदी उन के पर ढल पड़ी और उंगलियों के बीच से आईना में अपना प्रतिबिंब देख ने लगीजीजू ने हूक खोल कर ब्रा निकाल दी और दीदी के नंगे स्तन सहालाने लगे. दीदी के स्तन इतने बड़े होंगे ये मैने सोचा ना था. जीजू की हथेलियों में समते ना थे. स्तन के सेंटर में बादानी रंग की एरिओला और नीपल थे. आईने में देखते हुए जीजू नीपल मसल रहे थे.

दीदी ने सर घुमा कर जीजू के मुँह से मुँह चिपका दिया. जीजू का एक हाथ दीदी के पेट पर उतर आया दीदी ने ख़ुद जांघें उठाई और चौड़ी कर दी.इतने में पारो आ गयी मैने इशारे से कहा की सुराख से देख. वो आगे आ गयी और आँख लगा कर देख ने लगी मैं उस के पीछे सट के खड़ा हो गया, मैने मेरा सर उस के कंधे पर रख दिया. धीरे से मैने पूछा : दीदी की भोस देखती हो ? तेरे जैसी ही है ना? साइज़ में ज़रा बड़ी होगी. मेरे हाथ पारो की कमर पर थे. होले होले मेरा हाथ पेट पर पहुँचा और वहाँ से स्तन परपारो ने नाईटी पहनी थी, अंदर ब्रा नहीं थी. बड़ी मौसंबी की साइज़ के स्तन मेरी हथेलिओं में समा गये दबाने से दबे नहीं ऐसे कठिन स्तन थे. नाईटी के आरपार कड़ी नीपल्स मेरी हथेलिओं में चुभ रही थी.

वो दीदी की चुदाई देखती रही और में स्तन के साथ खेलता रहा. थोड़ी देर बाद मैने उसे हटाया और नज़र लगाई.दीदी अब पंग पर चित पड़ी थी. उपर उठाई हुई और चौड़ी की हुई उस की जांघें बीच जीजू धक्का दे रहे थे. कुले उछाल कर दीदी जवाब दे रही थी. आईना में देखने के लिए जीजू ने पोज़ीशन बदली. अब दीदी का सर आईना की ओर हुआ. जीजू फिर जांघें बीच गये और दीदी को चोद ने लगे. इस बार चूत में आता जाता उन का लंड साफ़ दिखाई दे रहा था. मैने फिर पारो को देखने दिया.मेरा लंड कब का तस गया था और पारो के कुले बीच दबा जा रहा था. पेट पर से मेरा हाथ उस के पाजामा के अंदर घुसा. पारो ने मेरी कलाई पकड़ कर कहा : यहाँ नहीं, तेरे कमरे में जा कर करेंगे. मैने हाथ निकाल दिया लेकिन पाजामा के उपर से भोस सहालाने लगा.

पारो खेल देखती हुई नितंब हिला ने लगी थोड़ी देर बाद सुराख से हट कर बोली ; खेल ख़तम. ओह, रोहित मुझे कुछ होता है मुझ से खड़ा नहीं रहा जाता.मैं पारो को वहीं की वहीं चोद सकता था. लेकिन मैने ऐसा नहीं किया. मुझे अब की बार पारो को आराम से चोद ना था. थोड़ी देर पहले ही मैने मुठ मार ली थी इसी लिए मैं अपने आप पैर कंट्रोल रख सका.मैने उस की कमर पकड़ कर सहारा दिया. वो मुझ पर ढल पड़ी. मैने उसे बाहों में उठा लिया और मेरे कमरे में ले गया. पलंग पर बैठ मैने उसे गोद में लिया.मैने कहा : देखी भैया-भाभी की चुदाई ?उस की आँखें बंद थी. अपनी बाहें मेरे गले में डाल कर वो बोली : भैया का वो कितना बड़ा है ? फिर भी पूरा भाभी की चूत में घुस जाता था. है ना ?मैने कहा : तेरी चूत में भी ऐसे ही गया था मेरा लंड, याद है ?पारो : क्यूं नहीं ? इतना दर्द जो हुआ था.

यह कहानी भी पड़े  भाभी की चुदाई दिवाली में

मैं : अब की बार दर्द नहीं होगा. चोद ने देगी ना मुझे ?अपना चहेरा मेरी ओर घुमा कर वो बोली : शैतान, ये भी कोई पूछ ने की बात है ?पारो का चहेरा पकड़ कर मैने होठ से होठ छू लिए उस ने किस करने दिया. मैने अब होठ से होठ दबा दिए उस के कोमल कोमल पतले होठ बहुत मीठे लगते थे. थोड़ी देर कुछ किए बिना होठ चिपकाए रक्खे. बाद मैने जीभ निकाल कर उस के होठ चाटे और चुसे. मेने कहा: ज़रा मुँह खोल.डर ते डर ते उस ने मुँह खोला. मैने उस के होठ चाटे और जीभ उस के मुँह में डाली. तुरंत किस छोड़ कर वो बोली : छी, छी ऐसा गंदा क्यूं कर रहे हो ?मैं : इसे फ़्रेंच किस कहते हें.इस में कुछ गंदा नहीं है ज़रा सब्र कर और देख, मझा आएगा. खोल तो मुँह.अब की बार उस ने मुँह खोला तब मैने जीभ लंड जैसी कड़ी बनाई और उस के मुँह में डाली. अपने होठों से उस ने पकड़ ली. अंदर बाहर कर के जीभ से मैने उस का मुँह चोदा.

मुँह में जा कर मेरी जीभ चारों ओर घूम चुकी. जब मैने मेरी जीभ वापस ली तब उस ने ठीक इसी तरह अपनी जीभ से मेरा मुँह चोदा. मेरा लंड तन गया, उस की साँसे तेज़ चल ने लगीकिस करते हुए मेरे हाथ स्तन पर उतर आए. पाजामा तो हम ने उतार दिया था, कमीज़ बाक़ी थी. देर किए बिना मैने फटा फट हूक्स खोल कर कमीज़ उतार फैंकी. उस ने मेरी कमीज़ के बटन खोल डाले. मैने मेरी कमीज़ उतार दी. अब हम दोनो नंगे हो गये शरम से उस ने एक हाथ से चहेरा ढक दिया, दूसरा भोस पर रख दिया. स्तन खुले थे, मेरे हाथों ने नंगे स्तन थाम लिएक्या स्तन पाए थे उस ने..

बड़ी साइज़ की मौसंबी जैसे गोल गोल पारो के कंवारे स्तन कठिन थे. मुलायम चिकानी त्वचा के नीचे ख़ून की नीली नसेन दिखाई दे रही थी. बराबर सेंटर में एक इंच की एरिओला थी जिस के बीच छोटी सी कोमल नीपल थी. एरिओला और नीपल बदामी कलर के थे और ज़रा सा उभर आए हुए थे. उस का स्तन मेरी हथेली में ऐसे बैठ गया जैसे की मेरे वास्ते ही बनाया हो.स्तन को छूते ही दबोच देने का दिल हुआ लेकिन वो किताब की पढ़ाई याद आई. उंगलियों की नोक से पहले स्तन सहलाया. बाहरी भाग से शुरू कर के स्तन के मध्य में लगी हुई नीपल की ओर उंगलया चलाई. उस के बदन पर रोएँ खड़े हो गये होले से मैने स्तन हथेली में भर लिया और दबाया. रुई के गोले जैसा नर्म हो ने पर भी उस के स्तन दबाए नहीं जाते थे, एक्सात्मेंट से इतने कड़े हो गये थे.

छोटी सी नीपल्स सर उठाए खड़ी हो गयी थी. चिपटि में ले कर मैने दोनो नीपल्स मसल दिया. पारो के मुँह से लंबी आह् निकल पड़ी.मैने उसे लेटा दिया. मैं बगल में लेट गया, वो मुझ से लिपट गयी मैने मेरे होठ नीपल से चिपका दिए उस की उंगलिया मेरे बालों में घूम ने लगी एक एक कर मैने दोनो नीपल्स काई देर तक चुसी. पारो ने मेरी नीपल्स ढूँढ निकली. जब मैने उस की नीपल छोड़ दी तब उस ने मेरी नीपल होठों बीच ले कर चुसी. नीपल से निकाला करंट लंड तक पहॉंच गया. लंड ज़्यादा अकड गया और लार बहाने लगा.मैने उसे चित लेटा दिया. हमारे मुँह फिर फ़्रेंच किस में जुट गये स्तन छोड़ कर मेरा हाथ उस के सपाट पेट पर उतर आया और भोस की ओर चला.

जब माने नाभि को छुआ उस को गुदगुदी हो गयी वो छटपटाई, उस के पाँव उपर उठ गयेमैने उस किताब में पढ़ा था की नयी नवेली किशोरी को लंड से दूर रखना चाहिए ताकि उत्तेजित होने से पहले वो लंड देख कर गभरा ना जाए. पारो तीन बार मेरा लंड ले चुकी थी और अभी उत्तेजित भी हो गयी थी. इसी लिए मैं रुका नहीं. उस का दाहिना हाथ पकड़ कर मैने लंड पर रख दिया.वो डरी नहीं, लंड पकड़ लिया. लेकिन आगे क्या करना उसे पता नहीं था. वो लंड को पकड़े रही, कुछ किए बिना. फिर भी उस की कोमल उंगलिया का स्पर्श मुझे बहुत मीठा लगता था. लंड ज़्यादा कड़ा हो गया, ठुमके लगाने लगा और भर मार लार बहा ने लगा.

मैने उस की कलाई पकड़ कर दिखाया की कैसे मुठ मारी जाती है धीरे धीरे वो मुठ मार ने लगीमुट्ठि से लंड दबोछ कर वो बोली : कितना बड़ा आर मोटा है तेरा ये ? लोहे जैसा कठिन भी है तुझे दर्द नहीं होता ?मैं : कड़ा ना हो तो चूत में घुस कैसे पाए ? मोटा और बड़ा है तेरी चूत के लिएपारो : मुझे तो पकड़ ने से ही ज़ुरज़ुरी हो जाती हैउधर मेरा हाथ भोस पैर पहुँच गया था. मेरी उंगलियाँ भोस की दरार में उतर पड़ी. भोस ने भी भर मार रस बहाया था और चारों ओर गीली गीली हो गयी थी. हलके स्पर्श से मैने भोस सहलाई. पारो ने पाँव उठाए रखे थे, अब उस ने जांघें सिकोड दी. फिर भी मेरी एक उंगली क्लैटोरिस तक जा सकी.

जैसे मैने क्लैटोरिस को छुआ, पारो ने मेरा हाथ पकड़ कर हटा दिया.अब किस छोड़ कर मैं बैठ गया और बोला : पारू, देखने दे तेरी भोस.अपने हाथ से भोस ढकने का प्रयत्न करते हुए वो बोली : ना, रहेने दो, मुझे शर्म आती हैमें : मेरा लंड लेने में शर्म ना आई ? अब शर्म कैसी ? शरम आए तो मेरा लंड पकड़ लेना. चल, पाँव खुले कर.वो नू ना करती रही और मैं उसे पलंग की धार पर ले आया. मैं ज़मीन पैर बैठ गया. जांघें उठा कर चौड़ी की. शरमाते हुए भी उस ने अपने पाँव चौड़े पकड़ रक्खे. किताब में दिखाई थी वैसी ही उस की भोस मेरे सामने आई



error: Content is protected !!