दीदी ने मुझे नहीं छोड़ा और मैं भी उनकी जुबान को अपने मुँह में लेकर चूसता रहा।
कुछ ही पलों बाद मैंने महसूस किया कि दीदी का एक हाथ मेरे लण्ड पर था।
इसके बाद जो भूचाल आया, उसकी कल्पना मैंने कभी नहीं की थी। हम दोनों के पूरे कपड़े कब हमारे जिस्मों से अलग हो गए और कब हम दोनों के जिस्म एक हो गए.. कुछ मालूम ही नहीं पड़ा।
आधे घन्टे बाद हम दोनों एकदम तृप्त होकर नग्न अवस्था में एक-दूसरे से लिपटे हुए पड़े थे।
मेरी दीदी का पूरा प्यार मुझे मिल चुका था।
आपको मेरी यह सत्य सेक्स कहानी कैसी लगी। मुझे ईमेल कीजिएगा।