Bonus Me Chut Ke Sath Das Crore Bhi

‘बस ऐसे ही.. अब बेबी की कोई बहन या भाभी तो है नहीं.. जो आपसे खुल कर बात कर सके.. लड़की बसानी है तो सौ तरह की ऊँच-नीच सहनी पड़ती है।’
‘अरे नहीं नहीं.. आप ऐसा ना सोचें..’ यह कहते हुए मैंने उनके दोनों कन्धों पर हाथ रख दिए।

यह शुरुआत थी।

दस करोड़ की जायदाद का सवाल था। चुदाई की प्यासी वो भी होगी.. इसमें कोई शक ना था.. पर जल्दबाज़ी नुकसान पहुँचा सकती थी। तीन महीने की मशक्क्त के बाद मैंने उसे अपने साथ रहने के लिए मना ही लिया।

बहाना था सेवा का और देखभाल करने का। मैं बेबी के साथ चंडीगढ़ शिफ्ट हो गया और वहाँ के दो कमरे के फ्लैट में अब तीन लोग रहने लगे थे.. मैं.. बेबी और राखी..

उधर प्रॉपर्टी का धंधा ज़ोरों पर था और मैंने बेबी व उसकी माँ को कुछ ज़मीन बेच कर प्रॉपर्टी के धंधे में पैसा लगाने के लिए राजी कर लिया। जिस दिन बेची हुई ज़मीन की रजिस्ट्री होनी थी.. उस दिन मैं सासू आंटी को कार में बिठा कर पटियाला ले गया। उन दिनों बेबी पेट से थी.. तो उसको घर पर छोड़ कर जाने का अच्छा बहाना था।

हम दोनों 11 बजे तहसील पहुँच गए। खरीददार पार्टी ने सारे कागज़-पत्र तैयार करवा रखे थे। हमको तो बस पैसा और ड्राफ्ट लेकर रजिस्ट्री पर दस्तखत करने थे। तहसीलदार दोपहर बाद यह काम निपटाता था।

मैं आराम करने के बहाने सासू आंटी को एक बड़े होटल ले आया।
मेरे पास मिशन-चुदाई को पूरा करने के लिए तीन-चार घंटे थे।

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हम दोनों उस होटल के कमरा नंबर 106 में पहुँच गए। सासू को इधर-उधर की बातें करके उनको गर्म करने में एक घंटा लग गया था। एक घंटे बाद मैं अपना लण्ड निकाल कर उसके सामने खड़ा था, वो रिश्ते की दुहाई दे रही थीं।
मुझे पता था कि यह सिर्फ दिखावा है.. अन्दर से वो भी अपने जमाई राजा की रखैल बनने के लिए तैयार हो चुकी थीं।

वो चुदास के चलते छटपटा रही थीं और मेरे चंगुल से निकलने की झूठ-मूठ कोशिश भी कर रही थीं। मैंने उनकी सलवार उतार दी.. गज़ब का गोरा और चिकना बदन था.. मोटी-मोटी जांघें.. मस्त उठी हुई गाण्ड और सालों से अनचुदी चूत।

उनकी कमीज़ निकालते ही उन्होंने अपने आपको मुझे सौंप दिया।

बस अगले पांच मिनट बाद हम दोनों नंगे थे.. अल्फ नंगे। मैं उनके मस्त मम्मे चूस रहा था और वो मेरा लण्ड को हाथ में ले कर मसल रही थीं। उनके होंठ.. गरदन.. पेट को चूम-चूम कर मैंने उन्हें पूरी तरह से गर्म कर दिया।

उनके हाथ का दबाव मेरे लण्ड पर लगातार बढ़ रहा था। जब लोहा पूरा गर्म लगा.. तो मैंने उन्हें बिस्तर पर लिटा दिया। टांगें उठा कर कन्धों पर रख लीं और लण्ड अपने चिर-परिचित अंदाज़ में चूत में समा गया।

‘आह.. आह.. मैं मर गई.. क्या कर दिया आपने.. आह.. ओह्ह..’
‘मेरी जान.. मत रोक मुझे.. चोद लेने दे.. बहुत तड़पा हूँ इस दिन के लिए!’

‘हाय बेबी.. तुझसे अपना खसम नहीं सम्भलता.. आह अई.. तेरी माँ को चुदना पड़ रहा है.. हाय मेरे चोदू राजा.. चोद दे.. पर धीरे-धीरे चोद.. बहुत दिनों से प्यासी थी।’

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‘राखी रानी.. आज न रोक.. बहुत तड़पा हूँ तेरा मस्त बदन देख-देख कर.. ले.. ले.. खा.. अपने आशिक का लण्ड..’

पता नहीं क्या-क्या आवाजें हम दोनों के मुँह से निकल रही थीं.. पूरा कमरा सिसकारियों से भर गया था। दस मिनट की चुदाई के बाद हम दोनों एक-दूसरे की बाँहों में पड़े निढाल थे।
चुदाई का मिशन कामयाब रहा और मैं दोनों काम फतह करके उस दिन घर लौटा।

फिर तो यह रूटीन बन गया.. रात को बेबी और सुबह उसकी माँ.. दोनों को कोई एतराज़ भी नहीं था और मेरी तो जैसे लाटरी लग गई थी।

जायदाद भी मिल गई.. और बीवी भी और साथ में एक बोनस में सास की चूत भी थी.. मतलब एक के साथ एक फ्री थी और मुँह में सोने का चम्मच भी था।

आपके बहुमूल्य विचारों के लिए ईमेल पर इन्तजार कर रहा हूँ।

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