भाभी ने भाभीचोद बनाया

उर्मि भाभी, प्रभात भैया और मैं प्रशांत, मुम्बई में रहते थे। मैं उस समय लॉ की पढ़ाई कर रहा था। भैया अपने बिजनेस में मस्त रहते थे और खूब कमाते थे। मुझे तब जवानी चढ़ी ही थी, मुझ तो सारी दुनिया ही रंगीली नजर आती थी। जरा जरा सी बात पर लण्ड खड़ा हो जाता था। छुप छुप कर इन्टरनेट पर नंगी तस्वीरे देखता था और अश्लील पुस्तकें पढ़ कर मुठ मारता था। घर में बस भाभी ही थी, जिन्हें आजकल मैं बड़ी वासना भरी नजर से देखता था। उनके शरीर को अपनी गंदी नजर से निहारता था, भले ही वो मेरी भाभी क्यो ना हो, लगती तो एक नम्बर की मस्त थी।

क्या मस्त जवान थी, बड़ी-बड़ी हिलती हुई चूंचियां ! मुझे लगता था जैसे मेरे लिये ही हिल रही हों। उसके मटकते हुये सुन्दर कसे हुये गोल चूतड़ मेरा लण्ड एक पल में खड़ा कर देते थे।

ये सब मन की बातें हैं, वैसे भाभी सामने हों तो मेरी नजरें भी नहीं उठती हैं। बस उन्हें देख कर चूतियों की तरह लण्ड पकड़ कर मुठ मार लेता था।

एक रात को मैं इन्टर्नेट पर लड़कियों की नंगी तस्वीरे देख कर लेटा हुआ लण्ड को दबा रहा था। मुझे इसी में आनन्द आ रहा था। मुझे अचानक लगा कि दरवाजे से कोई झांक रहा है, मैं तुरन्त उठ बैठा, मैंने चैन की सांस ली।

भाभी थी.

“प्रशांत भैया, चाय पियेगा क्या?” भाभी ने दरवाजे से ही पूछा।

“अभी रात को दस बजे.?”

“तेरे भैया के लिये बना रही हूँ … अभी आये हैं ना…”

“अच्छा बना दो … !” भाभी मुस्कराई और चली गई।
मुझे अब शक हो गया कि कहीं भाभी ने देख तो नहीं लिया। फिर सोचा कि मुस्करा कर गई है तो फिर ठीक है, कोई सीरियस बात नहीं है।

कुछ ही देर में भाभी चाय लेकर आ गई और सामने बैठ गईं।

“इन्टरनेट देख लिया मजा आया.?” भाभी ने कुरेदा।

मैं उछल पड़ा, तो भाभी को सब पता है, तो फिर मुठ मारने भी पता होगा।

“हां अ… अह्ह्ह हां भाभी, पर आप ?”

“बस चुप हो जा चाय पी” मैं बेचैन सा हो गया था कि अब क्या करूँ । सच पूछो तो मेरी गाण्ड फ़टने लगी थी, कहीं भैया को ना कह दें।

“भाभी, भैया को ना कहना कुछ भी!”

“क्या नहीं कहना, वो बिस्तर वाली बात ?चल चाय तो खत्म कर, तेरे भैया मेरी राह देख रहे होंगे !”

खिलखिला कर हंसते हुए उन्होंने अपने हाथ उठा अंगड़ाई ली तो मेरे दिल में कई तीर एक साथ चल गये।

“डरपोक, बुद्धू! ” उसने मुझे ताना मारा, तो मैं और उलझ गया। वो चाय का प्याला ले कर चली गई। दरवाजा बंद करते हुये बोली,”अब फिर इन्टर्नेट चालू कर लो गुड नाईट.!”

मेरे चेहरे पर पसीना छलक आया… यह तो पक्का है कि भाभी कुछ जानती हैं।

दूसरे दिन मैं दिन को कॉलेज से आया और खाना खा कर बिस्तर पर लेट गया। आज भाभी के तेवर ठीक नहीं लग रहे थे। बिना ब्रा का ब्लाऊज, शायद पैंटी भी नहीं पहनी थी। कपड़े भी अस्त-व्यस्त से पहन रखे थे। खाना परोसते समय उनके झूलते हुये स्तन कयामत ढा रहे थे। पेटीकोट से भी उनके अन्दर के चूतड़ और दूसरे अंग झलक रहे थे। यही सोच सोच कर मेरा लण्ड तना रहा था और मैं उसे दबा दबा कर नीचे बैठा रहा था। पर जितना दबाता था वो उतना ही फ़ुफ़कार उठता था। मैंने सिर्फ़ एक ढीली सी, छोटी सी चड्डी पहन रखी थी। मेरी इसी हालत में भाभी ने कमरे में प्रवेश किया, मैं हड़बड़ा उठा। वो मुस्कराते हुये सीधे मेरे बिस्तर के पास आ गई और मेरे पास में बैठ गई और मेरा हाथ लण्ड से हटा दिया।

उस बेचारे क्या कसूर, कड़क तो था ही, हाथ हटते ही वो तो तन्ना कर खड़ा हो गया।

“बदमाश! तू तो हरामी है एक नम्बर का!” भाभी ने मुझे गालियाँ दी।

“भाभी., ये गाली क्यूँ दी मुझे?” मैं गालियाँ सुनते ही चौंक गया।

” इतना कड़क, और मोटा लण्ड लिये हुये मुठ मारता है?” उसने मेरा सात इन्च लम्बा लण्ड हाथ में भर लिया।

“भाभी ये क्या कर रही आप… !” मैंने उनक हाथ हटाने की भरकस कोशिश की। पर भाभी के हाथों में ताकत थी। मेरा कड़क लण्ड को उन्होंने मसल डाला, फिर मेरा लण्ड छोड़ दिया और मेरी बांहों को जकड़ लिया। मुझे लगा भाभी में बहुत ताकत है। मैंने थोड़ी सी बेचैनी दर्शाई। पर भाभी मेरे ऊपर चढ़ बैठी।

“अकेला मुठ मार सकता है, ले उर्मि की चूत.! भाभी तो साली चूतिया है! जो देखती ही रहेगी! भाभी नजर नहीं आई?”
भाभी वासना में कांप रही थी। मेरा लण्ड मेरी ढीली चड्डी की एक साईड से निकाल लिया। अचानक भाभी ने भी अपना पेटिकोट ऊंचा कर लिया। और मेरा लण्ड अपनी चूत में लगा दिया।

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“चल प्रशांत लल्लू घुसा दे अपना लण्ड. बोल मेरी चूत मारेगा ना.?” भाभी की छाती धौंकनी की तरह चलने लगी। इतनी देर में मेरे लण्ड में मिठास भर उठी। मेरी घबराहट अब कुछ कम हो गई थी। मैंने भाभी की चूंचियाँ दबाते हुये कहा,”रुको तो सही !मेरा बलात्कार करोगी क्या, भैया को मालूम होगा तो वो कितने नाराज होंगे !”

भाभी नरम होते हुए बोली,” उनके रुपयों को मैं क्या चूत में घुसेड़ूगी? भईया तुम्हारे आकर पलट के सो जाते है, पहले तो खूब चोदते थे अब मुझे देखते ही करवट बदल कर सो जाता है। क्या मेरी चूत क्या मोहल्ले वाले आकर चोदेंगे? अब ना तो वो मेरी गाण्ड मारते है और ना ही मेरी चूत.रूपया कमाने में लगे है !”

“भाभी इतना गुस्सा मत करो, मैं हूँ ना आपकी चूत और गाण्ड चोदने के लिये। आओ मेरे लण्ड को चूस लो !”

भाभी एक दम सामान्य नजर आने लग गई थी अब, उनके मन की भड़ास निकल चुकी थी। मेरा तन्नाया हुआ लण्ड देख कर वो भूखी शेरनी की तरह लपक ली। उसका चूसना ही क्या कमाल का था। मेरा लण्ड फ़ूल उठा। उसका मुख बहुत कसावट के साथ मेरे लौड़े को चूस रहा था। मेरे लण्ड को कोई लड़की पहली बार चूस रही थी। वो लण्ड को काट भी लेती थी। कुछ ही समय में मेरा शरीर अकड़ गया और मैंने कहा,”भाभी, मत चूसो ! मेरा माल निकलने वाला है !”

“उगल दे मुँह में !” उसका कहना भी पूरा नहीं हुआ था कि मेरा लण्ड से वीर्य निकल पड़ा।

“आह मां की लौड़ी… ये ले… आह… पी ले मेरा रस…भाभी !” मेरा वीर्य उसके मुह में भरता चला गया। भाभी ने बड़े ही स्वाद लेकर उसे पूरा पी लिया। फिर भाभी ने साडी से मुँह साफ़ किया और बोला,” क्यों मेरा नाम लेने में शर्म आती है? तब से भाभी भाभी लगाये हुए है!”
भाभी बेशर्मी से अब बिस्तर पर लेट गई और अपनी चूत उघाड़ दी। उसकी भूरी-भूरी सी, गुलाबी सी चूत खिल उठी।
“आजा मेरे भाभी चोद, चूस ले मेरी ,देखकैसे तर हो रही है!” तड़पती हुई सी बोली।
मुझे थोड़ा अजीब सा तो लगा पर यह मेरा पहला अनुभव था सो करना ही था। जैसे ही मुख उसकी चूत के पास लाया, एक विचित्र सी शायद चूत की या उसके स्त्राव की भीनी सी महक आई। जीभ लगाते ही पहले तो उसकी चूत में लगा लसलसापन, चिकना सा लगा, जो मुझे अच्छा नहीं लगा। पर अभी अभी भाभी ने भी मेरा वीर्य पिया था, सो हिम्मत करके एक बार जीभ से चाट लिया। भाभी जैसे उछल पड़ी।
“आह, भैया मजा आ गया ! जरा और कस कर चाट !”
मुझे लगा कि जैसे भाभी तो मजे की खान हैं, मैंने उसे कस-कस कर चाटना आरम्भ कर दिया। भाभी ने मेरे सर के बाल पकड़ कर मेरा मुख अपने दाने पर रख दिया।
” इसे चाटो और हिलाओ !” दाने को चाटते ही जैसे भाभी कांप गई।
“मर गई रे ! हाय मां ! चोद दे हाय चोद दे !भईया अब उर्मि को चोद दे !” और भाभी ने अपनी चूत पर पांव दोहरे कर लिये और अपना पानी छोड़ दिया। ये सब देख कर मेरा मन डोल उठा था। मेरा लण्ड एक बार फिर से भड़क उठा।
भाभी ने ज्योंही मेरा खड़ा लण्ड देखा,” फिर से जोर मार रहा है? आजाओ।”
“उर्मि भाभी, मैंने यह सब पहली बार किया है ना ! मुझे बार-बार आपको चोदने की इच्छा हो रही है !”
“चल रे ये अपना लण्ड देख, पूरा छिला हुआ है और कहता है पहली बार किया है!”
“उर्मि भाभी ये तो मुठ मारने से हुआ है सच !”
“आये हाये ! मुझे तो तुझ पर प्यार आ रहा है सच!!” भाभी ने एक बार फिर से मुझे कठोरता से जकड़ लिया और घोड़ी बन गई। अपनी भूखी प्यासी गाण्ड को मेरे लौड़े पर कस दिया।
“चल लगा जोर ! घुसेड़ दे !” मेरे हर तरफ़ से जोर लगाने पर भी लण्ड अन्दर नहीं जा रहा था।
“थूक लगा दो या फिर तेल लगा दो भईया! तुम तो वाकई अनाड़ी हो!” मैंने थूक निकाल कर जीभ को उसकी गाण्ड पर लगा दी और उसे जीभ से फ़ैलाने लगा। भाभी को जोरदार गुदगुदी हुई।

“जीभ गाण्ड में घुसा दे भईया !हाय हाय हाय रे !और जीभ घुमा !आह्ह्ह रे बड़ा नमकीन है रे तू तो !” उसकी सिसकारियाँ मुझे मस्त किये दे रही थी।
“उर्मि भाभी ये नमकीन क्या?” मैंने पूछा तो वो पहली बार हंस दी और पलट के कोहनी के बल चौपाया बन गयी
मैंने तुरंत अपनी पोजिशन बदली और और उसकी गाण्ड के पीछे चिपक गया और तन्नाया हुआ लण्ड उसकी गाण्ड की छेद पर रख दिया और जोर लगाते ही फ़क से अन्दर उतर गया।
“पेल दे प्रशांत भईया ! चोद दे गाण्ड ! मरी भूखी प्यासी तड़प रही थी.! चोद दे इस को !”

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मेरी कमर अब उसे चोदते हुये हिलने लगी थी। मेरा लण्ड तेजी से चलने लगा था। उसकी गाण्ड का छेद अब बन्द नहीं हो रहा था। जैसे ही मैं लण्ड बाहर निकालता, वो खुला का खुला रह जाता। तभी मैं जल्दी से फिर अपना लण्ड घुसेड़ देता। फिर वापस से आहिस्ता आहिस्ता चोदने लगता था। बीच बीच में वो आनन्द के मारे चीख उठती थी। घोड़ी बनी भाभी की चूत भी अब चूने लग गई थी। उसमें से रति-रस बूंद बूंद करके टपकने लगा था। मैंने अपना लन्ड बाहर निकाल कर उसकी चूत में घुसेड़ दिया।
“धीरे से ! मेरी चूत तो अभी तो साल भर से चुदी भी नहीं है! धीरे कर!”
“ना उर्मि भाभी मत रोको चलने दो लौड़ा!”
“हाय रुक जा! नीचे लेट जा, मुझे चोदने दे अब।”
“बात एक ही ना उर्मि भाभी, चुदना तो चूत को ही है !”
“मुझे मेरे हिसाब से चुदने दे प्रशांत, भईया चूत तो मेरी है ना !” उसके स्वर में व्याकुलता थी।
मेरे नीचे लेटते ही वो मुझ पर उछल कर चढ़ गई और खड़े लण्ड पर चूत के पट खोलकर उस पर बैठ गई। चिकनी चूत में लण्ड गुदगुदी करता हुया पूरा अन्दर तक बैठ गया। उसके मुख से एक आह निकल पड़ी। अब उसने मेरा लण्ड थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर जोर लगा कर और भी गहराई में उतारने लगी। हर बार मुझे लण्ड पर एक जोर की मिठास आ जाती थी। उसके मुँह से एक प्रकार की गुर्राहट सी निकल रही थी जैसे कि कोई भूखी शेरनी हो और एक बार में ही पुरा चुद जाना चाहती हो। अब तो अपनी चूत मेरे लण्ड पर पटकने लगी, मेरा लण्ड मिठास की कसक से भर उठा। उसके धक्के बढ़ते गये और मेरी हालत पतली होती गई। मुझे लगा कि मैं बस अब गया, तब गया। पर तभी भाभी ने अपने दांत भींच लिये और मेरे लण्ड को जोर से भीतर रगड़ दिया और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया। चूत की रगड़ खाते ही मेरी जान निकल गई और मेरे लण्ड ने चूत में ही अपना रस छोड़ दिया।

उसकी चूत में जैसे बाढ़ आ गई हो। मेरा तो वीर्य निकले ही जा रहा था और शायद भाभी की चूत ने भी चुदाई के बाद अपना रस जोर से छोड़ दिया था। वो ऊपर चढ़ी अपना रस निकाल रही थी और फिर मेरे ऊपर लेट गई। सब कुछ फिर से एक बार सामान्य हो गया ।
“उर्मि भाभी तुम तो चुदक्कड़ औरत हो”
भाभी ने मेरे मुख पर हाथ रख दिया,”अब नहीं, गालियाँ तो चुदाई में ही भली लगती है,अब अगली चुदाई में प्यारी-प्यारी गालियां देंगे !”
‘सॉरी, भाभी,हां मैं यह पूछ रहा था कि जब आप को मेरे बारे में पता था तब आपने पहल क्यों नहीं की?”
“पता तो तुझे भी था, मैं इशारे करती लेकिन तू इतना लल्लू था की समझता ही नही था! फिर जब मुझे पक्का पता चल गया कि प्रशांत भईया जी मेरे नाम की मुठ मारता है तो फिर मेरे से रहा नहीं गया और तुझ पर चढ़ बैठी और मस्ती से चुदवा लिया।”
“भाभी धन्यवाद आपको ,मतलब अब कब चुदाई करेंगें?”
“आज करे सो अब! चल चोद, भाभी चोद मुझे! ” और भाभी फिर से मुझे नोचने खसोटने के लिये मुझ पर चढ़ बैठी और मुझे नीचे दबा लिया और मुझे गाल पर काटने लगी। मैं सिसक उठा और वो एक बार फिर से मुझ पर छा गई।
मेरा लण्ड तन्ना उठा,मेरा चेहरा उसने थूक से गीला कर दिया और मेरे गालों को काटने लगी। मेरा लण्ड उसकी चूत में फिर से घुस पड़ा।

उस दिन उर्मि भाभी को मैने ३ बार चोदा।शाम को जब भईया गये तब उनका रूप एक दम से बदल गया। भाभी को रात में चोदने का मन किया और उनसे मेरे कमरे में आने को कहा भी लेकिन भाभी ने मुझे घूर के डपट दिया। उर्मि भाभी से मेरी चुदाई तभी होती थी जब भईया शहर के बाहर होते थे या फिर हम दोनों घर में अकेले होते थे।



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