भाभी का मूत और कामवासना

दोस्तों भाभी सेक्स स्टोरी के पिछले पार्ट में आपने पढ़ा, की मुझे शादी में सुधा भाभी मिली, जो मुझे आचे से जानती थी. फिर हमारे बीच काफ़ी बातें हुई, और माहौल गरम गया. उसके बाद मैं उसको घूमने लेके गया. अब आयेज-

जामनगर में देखने लायक बहुत जगह है. लेकिन तालाब जो शहर के बीचो-बीच है, वहाँ बहुत अछा है. तो हम भी वहीं गये, और अंदर जेया कर एक मधुलि (मतलब तालाब की दीवार पर बैठने के लिए चार पिल्लर और सिर्फ़ च्चत बनाए हुए होते है, जिसे हम मधुलि बोलते हे) में बैठ जाते है.

वहाँ पर कुछ ज़्यादा ही ठंडी हवा चल रही होती है. तो सुधा तोड़ा मेरे नज़दीक आके बैठ जाती है. तभी वहाँ से एक छाई वाला गुज़रा तो सुधा बोल पड़ी-

सुधा: ओये देवर जी, अभी भाभी को थोड़ी छाई पीला दो. बहुत ठंड लग रही है. बदन में थोड़ी गर्मी आ जाएगी.

मैं भाभी की डबल मीनिंग वाली बात को तुरंत पकड़ लिया, और बोल दिया-

मौलिक: क्या खाली छाई पीने से बदन में गर्मी आ जाएगी? (और धीरे से बोला) लगता है आपको भी पनिशमेंट की ज़रूरत है?

सुधा: क्या बोला तूने?

मौलिक: कुछ नही, कुछ नही, मैं कहाँ कुछ बोला. लगता है आपके कान बाज रहे है.

सुधा: सब जानती हू मैं तू क्या बोला. सुन लिया है मैने, और पनिशमेंट देने वाला डंडा भी देख लिया है मैने.

तब मेरा लंड तोड़ा खड़ा हो गया था, क्यूंकी भाभी तोड़ा मुझसे सतत के बैठी थी ठंड की वजह से. अब मैं तोड़ा शर्मिंदा फील करने लगा. तब भाभी ने सामने से बोला-

सुधा: चलो अब यहाँ से कहीं और चलते है. मुझे फ्रेश होना है.

तो मैं बोला: अब क्या पार्टी प्लॉट लेलू, या मेरे घर पे?

तालाब से पार्टी प्लॉट से मेरा घर तोड़ा नज़दीक था, तो भाभी बोली: जी नज़दीक हो वही लेले. अब रुका नही जेया रहा, थोड़ी ज़ोर से लगी है.

फिर मैने भी मज़ाक में बोल दिया: इतनी ज़ोर से लगी है तो ढक्कन बंद कर डू?

भाभी ने मुझे पीठ पर एक थप्पड़ मारा और बोली: चल जल्दी.

फिर हम पार्किंग में गये, जहाँ पर मैने बिके रखी थी. मैं बैठा ड्राइविंग सीट पर, तो भाभी बोली-

सुधा: रुक, अब मुझे चलाने दे. आज मैं बिके चलौंगी. मुझे बड़ा शौंक है बिके चलाने का.

फिर भाभी आगे बैठी, और मैं उसके कंधो पर हाथ रख के पीछे बैठा. तब बैठते टाइम मैने उसके कंधो को कस्स के दबाया, और झटका मार के उसके पीछे बैठ गया चिपक के. अब भाभी धीरे-धीरे बिके चलाने लगी.

रास्ते में गड्ढे और स्पीड ब्रेकर के टाइम जब झटका लगता, तो मैं भाभी की नाज़ुक कमर को ज़ोर से पकड़ लेता. मेरा खड़ा लंड उसके मुलायम कुल्हो पर रग़ाद खा जाता. अब भाभी भी धीरे-धीरे गरम होती जेया रही थी, क्यूंकी जब भी गड्ढा या स्पीड ब्रेकर आता, तो सुधा जान-बूझ कर तोड़ा उछाल के मेरे लंड पे अपना दबाव बढ़ने लगी थी.

अब मेरा लंड बस फटने को हो रहा था, उतना कड़क हो गया था. जैसे-तैसे हम घर पहुँचे, जहाँ पर कोई नही था. अब सुधा गाड़ी पार्क करके सीधा बातरूम में घुस गयी. मैं गाते खोलने लगा. गाते के बाजू में ही बातरूम होने की वजह से मुझे उसके मूतने की सीटी सस्स्स्स्स्स्स्शह (जब चूड़ी चुदाई लॅडीस मूट-ती है, तो छूट में से सीटी जैसी आवाज़ आती है), ऐसी आवाज़ सुनाई दी.

सुधा ज़ोर-ज़ोर से साँस ले रही थी, वो भी सुनाई दिया. फिर मैं हासणे लगा और गाते खोल के अंदर गया और सोफे पर बैठ गया. अब थोड़ी देर बाद जब सुधा भाभी आई, तो मैं मुस्कुरा रहा था. फिर वो पूछने लगी-

सिद्धा: क्या हस्स रहा है तू?

मौलिक: लगता है भैया आपकी सीटी आचे से सॉफ करते है. तभी तो इतनी ज़ोर से बाज रही है (और हासणे लगा).

तभी सुधा बोल पड़ी-

सुधा: अर्रे नही रे, तेरे भैया 2-2.5 महीने से रात को खेतों में पानी देने जेया रहे है. इतनी ज़ालिम ठंडी में भी अकेले सोना पद रहा है.

मौलिक: ऊओ ऐसी बात है?

सुधा बोली: ह्म…

फिर सुधा भाभी ने अपने हाथ उपर उठा के एक अंगड़ाई ली, जिससे उसके बोबे उपर की तरफ उठ गये, और उसका पूरा सफेद पेट और गहरी नाभि मैने देख ली. मेरा लंड तो अभी भी खड़ा ही था. फिर भाभी सोफे पर मेरे बाजू में आके बैठी, और मैं खड़ा हो गया. मैने उसकी तरफ देख के बोला-

मौलिक: आप बैठो, मैं अब बातरूम जेया कर आता हू.

अब मेरा लोड्‍ा जीन्स में भी उभरा हुआ दिखाई दे रहा था, और सुधा उसको देख कर मुस्कुरा रही थी और बोली-

सुधा: हा जेया-जेया फटाफट आ. फिर हम चलते है. अब हमारे बच्चे भी हमारी राह देख रहे होंगे.

फिर मैं बातरूम में गया, और वहीं खड़े-खड़े भाभी के नामे की मूठ मारने लगा. तोड़ा ज़्यादा वक़्त लगने पर भाभी खुद बातरूम के पास आई. मैं लंड बाहर निकाल के मूठ मार रहा था, तो मेरा हाथ मेरे कपड़ों पर घिस रहा था, जिसकी आवाज़ बाहर तक आ रही थी.

मैं नही जानता था. लेकिन रात के सन्नाटे में मेरे मूठ मारने की आवाज़ सुधा तक पहुँच रही थी.

फिर सुधा बोल पड़ी: आबे अब कितना टाइम लगाएगा मूतने में, जल्दी कर?

फिर मैने मूठ बीच में ही छ्चोढ़ दी और अपने खड़े लंड को पंत में डाल कर चैन बंद कर रहा था. तभी हल्की सी ज़िप मेरे लंड पे लग गयी, तो मेरे मूह से आ निकल गयी. अब मैने दरवाज़े की कुण्डी तो खोल दी थी, लेकिन दरवाज़ा खोला नही था. तभी सुधा अंदर घुस गयी, और मेरी तरफ देख के पूछने लगी-

सुधा: क्या हुआ चिल्ला क्यूँ रहा है?

तो मैने इशारा किया की चैन फ़ासस गयी और हल्की खरॉच लग गयी थी. तब भाभी ने नीचे देखा तो मेरे लंड पे चैन की वजह से चींटी कटती हो, ऐसा लग रहा था.

भाभी बोली: चल अंदर आजा, मैं कुछ रास्ता कर देती हू.

फिर मैं चैन खुली छ्चोढ़ कर ही अंदर सोफे पर बैठा. तभी भाभी मेरे बगल में बैठी, और उसने अपने कोमल हाथो से मेरी पंत की क्लिप खोली. उसने मेरा लंड बाहर निकाला जो 6.2 इंच का हो चक्का था. फिर भाभी ने उसे अपने हाथ में पकड़ा और देखने लगी की कितनी चोट लगी थी.

लंड की साइड में एक जगह पे थोड़ी खरॉच थी. फिर भाभी ने मेरी तरफ देखा और मैने भी भाभी की तरफ देखा. हम दोनो की आँखें एक-दूसरे को देख रही थी, और नीचे भाभी का हाथ मेरे लंड को पकड़ के रखी थी. अब रात के सन्नाटे में सिर्फ़ हमारी सांसो की आवाज़ ही थी कमरे में.

फिर मैने एक हाथ सुधा के पीछे ले जेया कर उसके बालों को पकड़ा. फिर मैने उसका मूह मेरे मूह की तरफ खींचा, और उसके होंठ बिल्कुल मेरे होंठो के पास रखे. मैने देखा तो सुधा ने अपनी आँखें बंद कर ली, और होंठ थोड़े खोल दिए. उसने नीचे मेरे लंड पर अपनी मुट्ठी का दबाव बढ़ाया. मैं समझ गया अब ये चूड़ने के लिए तैयार थी.

इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको कहानी के अगले पार्ट में पता चलेगा.

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