तो जैसे की मेरी सेक्स स्टोरी के पिछले पार्ट्स में आपने पढ़ा होगा की मुझे पता चला की सिद्धि और उसके हज़्बेंड में कोई एमोशनल अटॅचमेंट नही थी, क्यूंकी सिद्धि को बेटा नही बेटी हुई थी. पर उसके हज़्बेंड को बेटा चाहिए था.
तभी से मुझे सिद्धि पर तरस आने लगा, और मैं ज़्यादा से ज़्यादा उसका ख़याल रखने को चाहने लगा. अब जब भी ऑफीस से लौट कर आता, और वो मिल जाती, तो उसका हाल-चाल पूछता, उससे खड़े हो कर 5-10 मिनिट बात करता. शिखा का हाल लेता उससे.
मैं जब कभी वर्क फ्रॉम होमे करता, तो उनके फ्लॅट पर भी चला जाता उन्हे सर्प्राइज़ करने, कुछ खाने को ले जेया कर, या कुछ भी. मैने नोटीस किया की सिद्धि दे बाइ दे मुरझती जेया रही थी, और अब वो वॉक करने भी अकेले जाने लगी थी तुफफी को लेकर.
मैने सोचा की शिखा को पूचु, पर फिर लगा की वो पता नही क्या सोचेगी की मैं उसकी मा में इतना इंट्रेस्टेड क्यूँ हो रहा था. हलकी इंट्रेस्टेड तो मैं हो रहा था सिद्धि में, ना चाहते हुए भी.
अब मैं कोई ना कोई बहाना ढूँढने लगता था उसे मिलने को, और किसी दिन उससे मुलाक़ात ना हो तो बेचैन हो जाता था.
मैने बहुत समझाया खुद को की यार वो शिखा की मा है विवेक, उसे नही छोड़ सकता पागल. शिखा को पता चल गया तो लॉड लगा देगी. एक चूड़ी-चुदाई छूट जिससे एक बाकची निकल चुकी है, उसमे क्या ही मज़ा आएगा? और इस तारक के चक्कर में कहीं शिखा की छूट भी ना निकल जाए हाथ से. पर ये बहनचोड़ लंड जब माने तब ना. फिर एक दिन तो मैं शॉक्ड हो गया सिद्धि का कॉल आया रात को.
सिद्धि: विवेक फ्री है क्या तू अभी?
विवेक: हा-हा दी, फ्री हू, बोलो क्या बात है?
सिद्धि: अछा तो पार्क में मिल आ कर मुझे जल्दी.
मुझे लगा आज किस्मत खुल सकती थी. आज पार्क में मिलने बुलाया था. कुछ उसको फील हुआ क्या? क्या बात हो गयी यार? मैं फ़ौरन ही कपड़े चेंज करके पार्क पहुँचा.
सिद्धि: क्या बात है? तू तो एक-दूं फ्रेश लग रहा है.
विवेक: हा बस अभी जिम से आया हू दी. नहा कर चेंज करके ही बैठा था, की आपका कॉल आ गया. बताओ क्या बात है?
सिद्धि: समझ नही आ रहा है विवेक की तुझसे ये बात कैसे काहु? कभी तुझसे इतनी ओपन नही हुई.
मैं मॅन ही मॅन खुश होने लगा, की विवेक निकल पड़ी तेरी तो. ये फ़ासस गयी तेरे चक्कर में. मिल गयी तुझे इसकी छूट. अब तो मा और बेटी दोनो एक ही बेड पर पेलुँगा साथ में किसी दिन.
विवेक: अर्रे क्या बात है दी, बोलो बिना झिझक के आप तो.
सिद्धि ने लंबी साँस ली, और फिर स्माइल करने लगी.
सिद्धि: तुझे मेरी फ्रेंड रोहिणी तो मालूम ही होगी ना?
विवेक: कों वो पार्लर वाली भाभी?
सिद्धि: हा, वहीं पार्लर वाली. कैसी लगती है तुझे?
विवेक: पता नही, कभी गौर नही किया दी क्यूँ क्या हुआ?
सिद्धि: अर्रे वो विडो है ना. 3 साल पहले हज़्बेंड एक्सपाइर हो गये थे उसके.
विवेक: ओक, तो आप मुझे क्यूँ बता रही हो?
सिद्धि: आबे भोलू राम, वो लीके करती है तुझे. मुझे पूच रही थी की विवेक सिंगल है. क्या मेरा ब्फ बनेगा क्या?
मेरे तो होश ही उडद गये. बहनचोड़ यहाँ मैं सिद्धि को लंड देने के चक्कर में खुश हो रहा था. पर ये तो कुछ और ही निकला मॅटर. मेरा मूड ऑफ हो गया सारा.
विवेक: अर्रे नही दी. मैं इन सब में इंट्रेस्टेड नही हू यार. मैं ऐसा लड़का लगता हू क्या आपको दी?
सिद्धि को लगा कहीं मैं गुस्सा ना हो जौ, तो बात को संभालने लगी.
सिद्धि: यहीं तो मैने बोला उसको की विवेक बहुत आचे घर का लड़का है. वो ऐसे-वैसे काम नही करता है, और ना किसी को गंदी नज़र से देखता है. मैं उसपे इतना ट्रस्ट करती हू, की शिखा को उसके साथ कहीं भी भेज सकती हू बिना दर्रे.
सिद्धि: पर वो रोहिणी बोली की भाभी उसकी यहीं बात तो मुझे पसंद आ गयी की वो बहुत सीधा है. मुझसे फ्रेंडशिप करेगा तो मुझे भी अपनी फीलिंग्स शेर करने को कोई मिल जाएगा कोई, जिस पर मैं ट्रस्ट कर पौँगी. बस इसलिए मैने उसकी बात तुझे बताई विवेक, वरना मैं जानती हू तुझे तू कितना अच्छा लड़का है. सॉरी अगर तुझे बुरा लगा तो.
विवेक: अर्रे नही-नही दीदी, इसमे बुरा लगने वाली बात नही है. वो बस मेरा दिमाग़ कहीं और था तोड़ा. वर्क प्रेशर है इसलिए. पर ठीक है, मैं मिल लूँगा कभी भाभी से अगर मुझे मॅन हुआ. पर आप उनको बोलना की वो मुझे ब्फ बनाने वाली बात भूल जाए. फ्रेंड्स बन सकते है हम दोनो बस.
सिद्धि: अर्रे छ्चोड़ो इस टॉपिक को अब ख़तम करो. तुम बताओ ऑफीस कैसा चल रहा है, और बाकी घर पर सब बढ़िया?
मैं और सिद्धि ऐसे ही वॉक करते-करते इधर-उधर की बातें करने लगे, और फिर वापस अपने फ्लॅट्स पर चले गये. मेरे दिमाग़ में बस सिद्धि की बड़ी गांद, बड़े-बड़े दूध घूम रहे थे, और उसकी उस दिन की सिसकियाँ जब वो अपने हब्बी से छुड़वा रही थी, शिखा के बर्तडे पर.
अब बस कुछ भी करके सिद्धि को मेरे लंड के नीचे लाना था, और वो सिसकारियाँ सुन्नी थी, जिनमे वो मेरा नाम चिल्लाएगी. आअहह अया विवेक फक मे यार उफ़फ्फ़.
यहीं सब सोचते-सोचते मैं अपना लंड हिलने लगा: एम्म्म एस सिद्धि, तेरी छूट क्या कमाल की है साली, अपनी बेटी से ज़्यादा मज़े दे रही है सिद्धि. तेरी छूट कसम से बहुत मज़े दे रही है.
और मैं हिलाते-हिलाते झाड़ गया, और फिर डिन्नर करके सो गया. नेक्स्ट दे सुबह जब उठा, तो मुझे याद आई सिद्धि की सारी बातें. तो ऑफीस जाते टाइम मैं रोहिणी को देखते हुए गया. आज से पहले कभी गौर ही नही किया था उस पर मैने.
रोहिणी भाभी के बूब्स सिद्धि जीतने बड़े नही थे, पर हा, बड़े तो थे. और गांद तो क़यामत थी. पर थोड़ी टमी भी थी. लेकिन कोई बात नही, छोड़ने में मज़ा आएगा. उसने मुझे खुद को ताड़ते देखा, तो शर्मा कर फ्लॅट में चली गयी.
मैने सोच लिया इसको बहुत जल्दी ही पेलुँगा, शाम में, या कल दिन में ये मेरे लॉड के नीचे होगी मुझसे चूड़ने की भीख माँग रही होगी साली, अपनी फीलिंग्स बता कर मेरी फिज़िकल नीड्स पूरी करेगी कुटिया रंडी.
मॅन में सिद्धि को थॅंक्स बोला की चलो अपनी नही तो किसी की छूट का इंतेज़ां तो कराया, और अब रोहिणी की छूट की वजह से ही मुझे सिद्धि की छूट भी मिलेगी एमाइल अट आर्तिकायर2022@गमाल.कॉम