ही गाइस, इस स्टोरी का नामे र्टी इसलिए है, की वो 3 लत्तेर्स इस स्टोरी की 3 मैं हेरोइनस के नामे है (रहना, तमन्ना और इशिका ). और र्टी एक घटना से भी जुड़ा है, जिसके चलते ये पूरी कहानी बनी है, जो हम आयेज देखेंगे. सो एंजाय थे स्टोरी, आंड दो कॉमेंट्स बिलो.
ही रीडर्स, मेरा नामे सुहैल (22य) है. मैं अपनी फॅमिली के बारे में बता डू, तो फिलहाल हम 4 लोग रहते है. मों (रहना बेगम, 47य), बड़ा भाई (रमीज़, 25य), और उसकी वाइफ (तमन्ना, 23य). कहने को तो हम 4 है, पर देखा जाए तो इस तरफ मैं अकेला हू, और उस तरफ मों, भैया और भाभी.
नही समझे? उसके लिए मैं आपको तोड़ा फ्लॅशबॅक में ले चलता हू. क्यूंकी कहानी के जो मैं कॅरेक्टर्स है, उनके और उनके हालातों के बारे में जानना बहुत ज़रूरी है.
स्टार्टिंग से बतौ तो हम टोटल 5 लोग थे. पापा, मम्मी और 3 भाई बेहन. जिसमे सबसे पहले भाई, फिर मैं, और उसके बाद लास्ट में मुझसे छ्होटी बेहन शबनम (20). पापा बॅंक में जॉब करते थे, और मों क्लर्क थी टेक्सटाइल कंपनी में. भैया का की पढ़ाई करते थे और मैं और शबू (शबनम को प्यार से शबू बुलाते थे) कॉलेज में थे.
भैया और बेहन पढ़ने में पहले से आचे थे, और मैं आवरेज. इसलिए मुझे मों से अक्सर दाँत पड़ती रहती थी, और भैया उसे सपोर्ट करते. पापा को मुझसे तोड़ा ज़्यादा लगाव था. इसलिए मान लो की जैसे दो ग्रूप हो चुके थे. एक भाई और मों, और दूसरा मैं और पापा. और रही बात शबू की, तो वो हम 2 ग्रूप्स के बीच कामन खड़ी थी. वो हमारे झगड़े वग़ैरा को सूलजा देती थी, और उसकी बात कोई नही टालता था.
कॉलेज के बाद मैं देल्ही चला गया अपने फ्रेंड्स के साथ. उनकी वाहा नौकरी लग गयी थी, और मैं यहा-वाहा काम कर लेता था. घर पे पापा सब को तो ये बोल के आया था की सिविल सर्वीसज़ की प्रेपरेशन करूँगा. पर वैसा कुछ नही था. मैं तो बस यहा पे लाइफ को आचे से एंजाय करने आता था, और दूसरा ये की मुझे बस मों और भैया वाले इस माहौल से निकालने का था.
कुछ टाइम बीतने के बाद खबर मिली की भैया की एंगेज्मेंट होने वाली थी. पर मुझे इस बात में कोई इंटेरेस्ट नही था. सो मैने उस बात पे उतना ध्यान नही दिया. साथ में जब पता चला की पापा की तबीयत थोड़ी खराब रहने लगी थी, तो मुझे चिंता होने लगी. पर पापा से बात की तो उन्होने बोला की वो ठीक थे.
थोड़े टाइम बाद मों की कॉल आई की भैया की शादी फिक्स कर दी थी, और नेक्स्ट वीक मुझे घर बुलाया था. मैने उनको उतना कुछ रेस्पॉन्स नही दिया, क्यूंकी भाई से उतना ज़्यादा लगाव ही नही था. फिर शबनम की कॉल आई और उसने बताया की पापा की तबीयत कुछ ज़्यादा ही खराब रहती थी, इसलिए शादी को जल्दी करने का सेट किया था. फिर क्या, अब तो जाना ही था.
जैसे ही मैं घर पहुँचा, तो हर तरफ शादी का माहौल था. फूल सजे हुए थे, शहनाई बाज रही थी. मैं जब पापा से मिला तो वो पहले जैसे नही लग रहे थे. उनकी सेहत अब उतनी अची नही थी. घर आके पता चला की पापा को रात में एक बार हार्ट अटॅक भी आ चुका था, और उनको स्टेंट भी लगवाया था. पर मेरी पढ़ाई डिस्टर्ब ना हो, इसलिए मुझे कुछ नही बताया था. पर इस शादी के माहॉल से वो बहुत ज़्यादा हॅपी दिख रहे थे.
पापा के अलावा, शबू, भाई, मों सब हॅपी थे. पर पता नही मुझे उतनी कुशी नही मिल रही थी. पर चाहे मेरा रिलेशन्षिप किसी से कैसा भी हो, आख़िर थी तो मेरी फॅमिली ही. तो फिर इन सब को खुश देख कर मैं भी खुश रहने लगा. मैं तो वापस जाना चाहता था, पर जेया नही सकता था. तो फिर घर पे रह कर शादी की ज़िम्मेदारी ले ली.
शबनम ने दुल्हन के बारे में बताया, की वो हमारे समाज की ही थी, और मैं उसे जानते भी था. पर मुझे उसकी बातों में कोई इंटेरेस्ट नही था. मैं तो जल्द यहा से शादी ख़तम करके निकलना चाहता था.
अब शादी का दिन भी करीब आने लगा. सब मेहमान भी आने लगे थे, तो मैं सभी को अब्ज़र्व करने लगा. सभी अपनी ही चला रहे थे. सभी लॅडीस आचे से रेडी हुई थी. उनमे मेरी नज़र जिसपे पड़ी, और मैं हड़बड़ा सा गया, तो मेरी मों को देख कर.
आज से पहले मेरा उनकी तरफ ऐसा ध्यान ही नही गया. पर शायद उन्होने वेट लॉस या कुछ तो किया ही था. पहले उनकी टमी दिखती थी, अब टमी के बदले उनकी चेस्ट ज़्यादा शो हो रही थी. जब वो मेरे सामने से गुज़री तो मैं उनको देखता ही रह गया.
वो मेरे आयेज से गुज़री और मुझे स्माइल देकर चली गयी. मैं उनके पिछवाड़े को ही देखता रहा. उनकी पतली कमर और मोटी सी गांद झटके खा रही थी. कुछ आयेज जेया कर वो रुकी, और वापस आई, बोली-
मों: क्या हुआ, कुछ प्राब्लम है क्या? मैं अची नही लग रही?
मे: नही मों, आप तो बिल्कुल मस्त दिख रही हो. लगता ही नही की आप दूल्हे की मों हो.
मों: थॅंक्स बेटा.
मे: कुछ जिम-वीं करती हो क्या? (आज पता नही की क्यूँ मों को देख कर उनसे बात करने का मान कर रहा था)
मों: अर्रे नही बेटा. वो तो बस घर पे ही एक्सर्साइज़ शुरू की है.
हम कॉलेज के दीनो में जिन आंटीस को ताड़ते है, या फिर जिन पड़ोस की औंतीयों को हम छोड़ने का ख्वाब सजाते है ना, बस आज मों वैसी ही आंटी दिख रही थी. तो फिर मैं भी ओक बोल कर वाहा से खिसक लिया. मों ने पीछे आवाज़ लगाई, पर मैं सुना-अनसुना करके आयेज निकल गया.
जाते हुए मैने मों के मूह से “ये हरामी नही सुधरेगा कभी” सुन लिया, तो फिरसे मेरे मॅन में मों को लेकर अभी जो पॉज़िटिव वाइब्स आए थे, वो वापस नेगेटिव हो गये. मॅन में वही पुराने ख़याल आ गये की मैं मों की कितनी भी हेल्प कर डू, कितनी भी तारीफ कर लू, उनकी नज़र में तो उनका बड़ा बेटा ही सही रहेगा.
फिर मैं मों की नज़रों से बच के इधर-उधर टाइम-पास करने लगा. एक झटका मुझे मों को देख कर लगा था. वैसा ही दूसरा झटका, या सच काहु तो उससे भी बड़ा झटका मुझे दोपहर को लगा, जब शबनम ब्यूटी पार्लर से हो कर वापस आई. क्या ग़ज़ब लग रही थी. उसने जो लाइट मेकप किया था, जैसे कोई मॉडेल हो.
आज पहली बार एहसास हुआ की मेरी छ्होटी शबू अब जवान हो गयी थी. उसके बॉडी के कट्स आज पहली बार गौर से नोटीस करे, क्यूंकी उसके पार्लर वाले डेकोरेशन ने उसे नोटीस करने के लिए मजबूर किया था. और दूसरी बात मैने नोटीस करी की वो हर वक़्त अपने फोन पे लगी रहती थी.
दोपहर का वक़्त था. सब लोग काम में बिज़ी थे. तो मैं भी यहा-वाहा काम में लगा हुआ था. तभी मेरी नज़र मों के उपर पड़ी. वो च्छुपते-च्छूपाते उपर के कमरे में जेया रही थी. मुझे कुछ अजीब सा लग रहा था. मैने फिर उनका पीछा किया, और उस रूम के पास गया जिसमे मों दाखिल हुई थी. वो अंदर से बंद था. पर उधर खिड़की में तोड़ा होल था, तो मैने जो देखा उसपे मानो यकीन नही हो रहा था.
मों, जिसे आज-तक हमने एक आदर्श औरत के ही रूप में देखा था. वो कुर्सी पे बैठ कर पापा का लंड चूस रही थी. जैसे कोई बच्चा लॉलिपोप ले रहा हो, वैसे ही वो उसे चूस रही थी. फिर पापा ने उसे कुछ इशारा किया, पर वो माना करने लगी. पर पापा ने उसे ज़बरदस्ती घोड़ी बनाया, और पीछे से उसे छोड़ने लगे.
कुछ 2 से 4 मिनिट में उनके धक्के बंद हो गये, और मों ने गुस्से की नज़रों से उनकी और देखते हुए अपने कपड़े सही किए. वो बाहर निकलते हुए बड़बड़ा रही थी, “ठीक से तो लंड ज़्यादा देर तक टिकता नही है, और दिन में छोड़ना है. मैने बोला की रात को करते है, पर नही.” और ऐसे ही नाराज़ होके वो वाहा से निकली.
फिर पापा भी अंदर से निकले. थोड़े मायूस लग रहे थे, पर बीमारी की वजह से शायद आचे से सेक्स ना कर पाए हो. पर मों तो अपने ही मिज़ाज में चली जेया रही थी.
उस दिन नाइट को सब तक हार के सो रहे थे, और सोते टाइम मों वाला सीन दिमाग़ से हॅट नही रहा था. जो भी औंतीयाँ मैने आज देखी थी, वो भी सब मों की तरह दिखने लगी.
मुझे पता नही अब मों में मुझे एक औरत नज़र आ रही थी, जो सेक्स के लिए प्यासी थी. मेरे दिमाग़ में ऐसा कुछ ख़याल उस वक़्त नही आया की मों को पत्ता के छोड़ डू, पर हा ये था की उनको अब सिर्फ़ मों के हिसाब से मैं नही देख सकता था.
पिछली सारी पुरानी बातें भूल कर मुझमे मों के लिए अब तोड़ा बहुत अट्रॅक्षन सा होने लगा. मुझे रह-रह कर वो सीन याद आने लगा, की मों के वो बड़े से बूब्स, वो रसीले होंठ, और लंड को मूह में लेकर लॉलिपोप की तरह चूसना. मेरा लंड खड़ा हो गया था ये सब सोच कर. और ऐसे ही सोचते हुए मैं सो गया.
इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको कहानी के अगले पार्ट में पता चलेगा. ये स्टोरी आपको कैसी लगी कॉमेंट्स करके ज़रूर बताईएएगा. आप हमसे गमाल/गूगले छत (लज़्यलीहास@गमाल.कॉम) पे कनेक्ट भी कर सकते है. अगर किसी आंटी/गर्ल को चूड़ना है, तो वो भी कॉंटॅक्ट कर सकती है.