मेरी दीदी के कारनामे

मेरा नाम अनिल है, और मेरी उमर 24 साल। मेरा जन्म उत्तरप्रदेश के एक छोटे से गाँव में हुआ जहाँ से शहर का रास्ता कम से कम 2 घंटे की दूरी पर था।

यह कहानी मेरी बड़ी बहन समीरा के कारनामों की है, जिनका रंग आप आने हिसाब से तय कर सकते हैं। वो शुरू से ही थोड़े भरे बदन वाली रही… छोटी उमर से ही उसके मोम्मे आगे भागने लगे, और गांड गहराती, चूतड़ उभरते चले गए। मुझे लगता है कि उसे इस बात का बाखूबी एहसास था, क्योंकि वो हमेशा कसी हुई पजामी पहनती थी जिससे उसकी जाँघों का नजारा देख, सारे मर्द आह आह करने लगें।

उसकी शादी के वक़्त जब मैं गाँव गया तब तक मैं औरतों को किसी और नजर से भी देखने लग गया था और जब मैंने उसे दुल्हन के जोड़े में देखा, या अल्लाह ! बला की जामा-जेब^ लग रही थी। बीच में एक बार अनजाने उसके मोम्मों से उसी चुन्नी सरक गई तो मेरे तोते ही उड़ गए, उनका आकार देख कर। मैं तभी से सोचने लगा कि इसने ऐसा क्या खाया है गाँव में कि जवानी कपड़े फाड़ कर निकली जा रही है। आज पता चला उसकी इतनी पुष्ट खुराक का राज।

खैर अब कहानी पर आता हूँ। यह बात पिछली गर्मियों की है। हम सभी छुट्टियाँ मनाने गाँव गए थे। उस समय वहाँ समीरा दीदी भी आई हुई थी, और उनके दोनों बच्चे भी।

दीदी की शादी को अब 14 साल हो चुके थे.. लेकिन आज भी दीदी का बदन उतना ही कसा हुआ था। इस बार की छुट्टियों में भाई और पापा को कुछ काम अटक गया था इसलिए मैं और मम्मी ही गाँव आये थे।

घर पहुँचते ही सब एक दूसरे से मिल कर बहुत खुश हुए। उस वक़्त घर में ज़्यादा लोग नहीं थे। बस मैं, मम्मी, दीदी, दादी, दादा और एक चाची। खैर 2-3 दिन ऐसे ही बीत गये। एक दिन दोपहर में संदीप आया, संदीप हमारे पड़ोस वाले चाचा जी का लड़का है। समीरा दीदी से 3 साल बड़ा, मैं तो भैया ही बुलाता हूँ।

उस वक़्त घर में बस मैं दीदी और चाची थे। चाची और दीदी बैठ कर संदीप से बातें करने लगे और मैं वहीं सामने के रूम में जाकर फेसबुक पर अपने दोस्तों से चैटिंग करने लगा। मैं जहाँ बैठा था, वहाँ से मुझे संदीप की बस पीठ दिख रही थी और दीदी एवं चची का खजाना।

तीनों में काफ़ी मज़ाक हो रहा था। ख़ास तौर से चाची के साथ तो भैया द्वीअर्थी मज़ाक कर रहे थे। मुझे लगा देवर भाभी का रिश्ता है, तो ये सब चलता होगा। थोड़ी देर बाद चाची अपने मुन्ने को नहलाने चली गईं और अब भैया और दीदी रूम में अकेले थे,

दोनों में बात नहीं हो रही थी।

करीब 2-3 मिनट तक सन्नाटा था.. मुझे लगा कि कुछ बात तो है वरना.. चाची के रहते सब सामान्य वार्तालाप कर रहे थे, अभी ये चुप क्यूं हैं?

बस मेरे शातिर दिमाग ने अपनी खुराफात चालू की।

मैंने अपने 25″ मॉनिटर की पावर बंद कर दी और उसका फेस उस तरफ कर दिया जिधर वे दोनों बैठे थे, और अपने लौड़े को ऊपर से सहलाता उनकी तरफ पीठ कर के बैठ गया।

अब पूछो कि इस बेवकूफी से क्या फ़ायदा हुआ?

तो दोस्तो, मेरे कमरे में काफी कम रोशनी थी, और वे दोनों खुले में थे, तो बस मॉनिटर मेरे लिए होम थिएटर में बदल गया, उसमें मुझे वो सब परछाई में दिख रहा था जो उस कमरे में घटित हो रहा था। मेरी इस तीसरी आँख के बारे में उनमें से किसी को नहीं पता था और तभी बिल्ली के भागों जैसे छींका फ़ूटा।

मैंने देखा भैया दीदी को कुछ इशारे कर रहे थे और दीदी बार बार मेरी तरफ़ देख रही थी, लेकिन, उस्ताद तो मैं ही था न, पहले से ही हाथ पैर सब रुके, केवल आँखें चौकस। दीदी ने निश्चिन्त हो कर भैया को स्माइल दी। भैया ने अपना हाथ आगे बढ़ा कर सीधे दीदी की बाईं चूची दबोच ली और धीरे धीरे मसलने लगे। दीदी का पूरा ध्यान पहले तो मेरी तरफ़ और चाची के आने में था, लेकिन जैसे जैसे मसलन की गर्मी ऊपर चढ़ने लगी, दीदी पर खुमारी चढ़ने लगी।

ये सब देखते देखते कब मेरी पैंट में तम्बू खड़ा होने लगा, मेरी तो हालत ख़राब हो गई।

तभी भैया ने दीदी को कुछ इशारा किया। दीदी शर्मा गईं और ना में सर हिल दिया, लेकिन उनके गाल जैसे जैसे लाल हो रहे थे, मैं समझ गया कि ये मान ही जायेंगी, बस ऊपर से इनकार है।

एक दो बार और बोलने पर दीदी ने मेरी तरफ देख कर चेक किया और धीरे धीरे अपने घुटने मोड़ कर बैठ गईं। तभी संदीप भैया ने मौके का फायदा उठाते हुए धीरे धीरे दीदी की साड़ी को पैरों की तरफ से उठाना शुरू किया और जेम्स बांड ने समझ लिया कि अब तो दीदी की चूत की घिसाई होगी। पहले तो लगा कि शोर कर के सबको बुलाऊं, लेकिन, तभी लगा कि अरे ये तो पहले से सेटिंग होगी, चलो थोड़े मजे लेते हैं, अपने को मुफ्त में मोर्निंग शो देखने मिल रहा है।

उस पर से पाजामे में बना टेंट, कुछ भी छूटना नहीं चाहिए !

समीरा दीदी की गोरी गोरी मखमली टाँगे दिख रही थीं, और चिकनी टांगों को देख लग रहा था कि अब फव्वारा छूट जाएगा।

संदीप ने साड़ी को घुटने के ऊपर तक उठा दिया था और उजली पैंटी देखते ही – उम्म्म्म्म्म्म !

गोरी जाँघें, गोरा बदन, गोरी पैंटी, और उस गर्मी से मदहोश होती दीदी की नीली आँखें, उफ़्फ़्फ़ !

तभी संदीप ने अपना हाथ बढ़ाया और सीधा दीदी की चूत को पकड़ने, दबाने, सहलाने लगा। दीदी की शक्ल भी बदली, और अचानक लगने लगा कि वो तो आमंत्रण की देवी बन गई हैं।

संदीप का हाथ अन्दर पता नहीं क्या कर रहा था लेकिन दीदी के चेहरे की गर्मी और उस पर का सुकून तो बस दोस्तों वही समझ सकता है जिसने खुद ये ताश के पत्ते फेंटे हों।

मेरा तो इतना बुरा हाल हो गया था कि लग रहा था किसी भी समय पिचकारी छूट जायेगी, लेकिन, तभी कुछ आवाज हुई और दोनों अलग हो गए।

संदीप के चेहरे को देख कर लगा रहा था कि बस मलाई खानी रह गई थी, और दीदी को तो पूरे 2 मिनट लग गए साँसों की धौंकनी शांत करने में।

तभी वहाँ चाची वापिस आ गई। दीदी और भैया के हावभाव बदले देख चाची बोली- लगता है मुझे थोड़ी देर में आना चाहिए था।

ऑश.. ये क्या .. क्या चाची को इन सब के बारे में मालूम था.. या वो बस चुटकी ले रही थी।

मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था। बस इतना मालूम था कि आज तो बहुत बार मूठ मारने के बाद भी शायद नींद नहीं आने वाली थी।

उस दिन के बाद मैं हर वक़्त दीदी पर नज़र रखता था ताकि मुझे कुछ और पता चले कि आख़िर हमारे घर में चल क्या रहा है? मुझे हर वक़्त यही लगता था कि दीदी अब उस संदीप से चुद रही होगी और हमेशा दीदी और संदीप की ब्लू फिल्म चल रही होती।

मेरा मन अब बहुत बेचैन होने लगा था क्योंकि एक तो मेरी खुद की बहन चुदास निकली और दूसरा मैं इस खीर को अभी तक क्यों नहीं खा पाया।

भई, अपना भी लंड किसी गाँव के गबरू से कम थोड़े न है, शहर की कितनी लड़कियाँ आज भी कहती हैं- क्या राजा, तुम तो आते नहीं, किसी और से पूरा पड़ता नहीं, कभी तो आ जाया करो।

एक दिन की बात है, दादा, दादी और मम्मी तीनों किसी की शादी में गये थे। मेरी तबीयत खराब थी इसीलिए मैं रुक गया और चाची और दीदी अपने बच्चों की वजह से नहीं गये। मैं अपने कमरे में लेटा आराम कर रहा था कि मुझे बाहर से चाची और दीदी के बात करने की आवाज़ आई और मेरे कान खड़े हो गए, क्योंकि बात आमों की हो रही थी।

दीदी : चाची, मैं थोड़ि देर के लिए आम के बगीचे में जा रही हूँ..

चाची : अभी, दोपहर के 1 बजे? इतना सन्नाटा होगा वहाँ और गर्मी भी। शाम को जाना।

दीदी : नहीं मुझे अभी आम खाने हैं, मैं जा रही हूँ, एक बोरी दो, थोड़े आम भी ले आऊँगी आते हुए।

चाची कुछ चिढ़ते हुए : ये बहाने मार कर जाने की जरूरत क्या है तुझे, तेरी इन्हीं हरकतों की वजह से तेरी शादी इतनी जल्दी करनी पड़ी। शर्म लाज तो है ही नहीं तेरे अन्दर अब।

दीदी : अब चाची मेरा सिर मत खाओ, मेरा मुँह खुल गया तो तुम्हें इस घर से धक्के मार कर बाहर निकाल देंगे सब।

यह सुनते ही चाची चुप हो गईं। मैं अपने कमरे से बाहर आ कर देखने लगा। दीदी आम लाने के लिए एक बहुत बड़ी बोरी ले रही थी। मैं समझ चुका था कि आज दीदी की चुदाई पक्की है। मैं फटाफट घर से निकल लिया और बोल कर गया कि मैं शाम तक आऊँगा।हमारा आम का बाग़ घर से कुछ दि किलोमीटर दूर है और 20-25 आम के पेड़ हैं वहाँ, बिल्कुल सन्नाटा रहता है गर्मियों की दोपहर में वहाँ। मैंने जल्दी जल्दी वहाँ पहुँच कर अपने छुपने के लिए जगह ढूंढी जहाँ से अधिकतर बाग दिख रहा था।

करीब आधे घंटे बाद मैंने देखा कि दीदी बाग़ की तरफ अकेले ही आ रही हैं। आज मैं उन्हें एक औरत की नज़र से देख रहा था। क्या क़यामत सी माल थी वो !

हल्के गुलाबी रंग की सिल्क साड़ी जिसका पल्लू हमेशा उनकी चूची के ऊपर से फिसल जाता और दुनिया को उनके 36 इंच की बिना ब्रा, ब्लाउज में क़ैद चूचियों के दर्शन हो जाते थे। हल्की पतली कमर, जिस पर थोड़ा सा पेट निकल गया है, बस उतना ही जो उनके कोमल दूध जैसे साफ़ शरीर को और कामुक बनाता है। उनका चलना तो एक पेशेवर रंडी से कम नहीं, मोटी 38 इंच की उभरी हुई गांड, साड़ी के अंदर एक बार इधर गांड मटकती तो दूसरी बार उधर। कसम खा कर कहता हूँ, शायद ही दुनिया में कोई ऐसा मर्द हो जो उन्हें देख कर चोदने की इच्छा ना करे।

दीदी आकर एक पेड़ के नीचे बोरी रखकर इधर उधर देखने लगी। फिर अपना साड़ी का पल्लू हाथ में लिया और और अपनी कमर में लपेट के पेटीकोट में फंसा दिया।

ओह… क्या नज़ारा है मेरे सामने.. कयामत ! कमर से ऊपर के बदन पर नाम मात्र का एक छोटा सा ब्लाउज, जिसके बीच के हुक्स के बीच से दीदी की गोरी गोरी चूचियों का कुछ हिस्सा दिख रहा था।

ये सब अब मेरी बरदाश्त से बाहर हो रहा था। मैंने अपनी पैंट खोली और अपने लंड को बाहर निकाल सहलाने लगा। थोड़ी देर तक दीदी ने पेड़ों से गिरे हुए आम इकट्ठे किए। तभी दूर से एक काफ़ी हट्टा कट्टा आदमी आता हुआ दिखाई दिया।

अरे यह तो हमारे गाँव का दर्जी है।

मुझे तो लगा था कि संदीप आकर दीदी को चोदेगा, लेकिन, ये क्या?

वो दर्जी करीब 6’3″ लंबा और काफ़ी बलवान लग रहा था। उसे देखते ही दीदी की शक्ल पर एक खुशी की लहर दौड़ उठी। वो दीदी के पास आकर कुछ बात करने लगा। मुझे कुछ सुनाई नहीं दे रहा था, मगर देख पा रहा था।

दीदी उस दानव के आगे एक छोटी सी बच्ची लग रही थी। एक बार तो मुझे लगा कि यह शैतान तो मेरी दीदी की चूत का भोसड़ा बना देगा। तभी वो दोनों बोरी उठाकर मेरी तरफ आने लगे। डर के मारे मेरा तो पोपट हो गया। मैं बाग के सबसे घने हिस्से में था,जिसके आगे खेतों में अरहर की फसल उगी हुई थी और शायद उसी में चुदाई का कार्यक्रम होना था।

वो दोनों अपनी मस्ती में मुझसे थोड़ी दूर पर से उन खेतों के किनारे ही रुक गये और बोरी बिछा ली।

मेरी धड़कनें रुकने लगी थीं, क्या मैं सपना देख रहा हूँ? या सच में मेरी माल बहन चुदने जा रही है। एक एक पल मुझ पर और मेरे लंड पर कयामत ढा रहा थ। वो दोनो उस झाड़ की तरफ गये और जाते ही धर्मेश(दर्ज़ी) ने दीदी को बाहों में ले लिया और उसके होठों को बेरहमी से चूसने लगा। दोनों एक दूसरे में इतना खो गये थे कि अगर वहाँ कोई आ भी जाता तो शायद उन्हें पता नहीं चलता।

दीदी ने उससे अलग होकर जल्दी से बोरी बिछाई और उस पर लेट गईं टाँगें चौड़ी करके- जैसे उसे आमन्त्रित कर रही हो।

दीदी के कामुक बदन पर अब साड़ी की हालत और बुरी हो गई थी। ब्लाउज के 2 बटन धर्मेश ने खोल दिए थे जिससे दीदी की जवानी के रस से भरे चूचे आधे बाहर आकर मचल रहे थे और नीचे लेट जाने की वजह से उनकी साड़ी भी अब थोड़ी ऊपर हो गई थी। जिससे उनके गोरे गोरे पैर एवं मांसल जाँघों का सुन्दर नजारा मेरी आँखों के सामने था।

दोनों एक दूसरे को बुरी तरह चूम रहे थे। इस वक़्त तो मेरी दीदी पूरी छिनाल की तरह उस शैतान आदमी को चूम रही थी। वो बड़ी बेरहमी से दीदी की चूचियाँ मसल रहा था और दीदी आनन्दित हुई जा रही थी। उनकी शक्ल पर उस एहसास का सुख साफ़ साफ़ दिख रहा था।

तभी उसने एक चूची बाहर निकलनी चाही तो दीदी ने मना कर दिया और जल्दी चोदने का इशारा किया।

बस फिर क्या था, धर्मेश ने फटाफट दीदी की साड़ी को ऊपर कर कमर तक चढ़ा दिया।

आआअहह, क्या नज़ारा था। मैं अपनी ही सग़ी बहन को दस कदम दूर रंडियों की तरह बेशर्मी से चुदते देख रहा था और मेरा तम्बू और ऊपर उठ रहा था। दीदी ने पैंटी नहीं पहनी थी, सोचिये, दूध जैसी गोरी जाँघें और गुल गुल उभरी हुई गान्ड।

भगवान ने पूरी काम की देवी बनाकर भेजा है दीदी को। मैं तो तसल्ली से उनके सुंदर और कामुक शरीर का आनन्द लेना चाहता था मगर शायद उन दोनों के पास ज़्यादा वक़्त नहीं था।

इसीलिए बिना और वक़्त ख़राब किये धर्मेश ने अपना पाजामा और अंडरवियर नीचे करके अपना लंड बाहर निकाला। जैसा शरीर था वैसा ही शैतानी लंड था उसके पास। मेरी कलाई जितना मोटा और अंदाज़न करीब 7 इंच लंबा और बिल्कुल काला, बिल्कुल तन्ना कर खड़ा था !

उसने अपने लंड पर थूक लगाया और दीदी की चूत पर टिका कर एक धक्का मारा।

दीदी थोड़ा मचल उठी, मगर उनकी शक्ल पर कोई दर्द का भाव नहीं था। धीरे धीरे उसके कुछ ही धक्कों के बाद पूरा लंड दीदी की चूत में समा गया और चल निकला वो घमासान युद्ध जिसमें जीत शायद आदम या शायद हव्वा की होती है, या दोनों की।

करीब 20 मिनट तक लगातार चुदाई के बाद जब आस पास का महौल दीदी के रस की खुशबू में भीगने लगा, दीदी के मुंह से सिसकारियाँ निकलनी शुरू हो गईं, और मेरा भी बोलो राम होने को आया।

एम्म… ह…. आह… म्*म्म्मम.. करो..आह.. तेजज… ऑश अहह….!

दीदी ने अपनी दोनों टाँगें उठा कर धर्मेश की कमर पर कस दी, जैसे इनकी चूत हमेशा के लिए धर्मेश का लंड अपने में कैद कर लेना चाहती है। थोड़ी देर बाद धर्मेश ने एक लंबा शॉट मारा और दीदी के ऊपर ही लेट गया, उसका सारा रस दीदी की चूत ने पी लिया।

दो मिनट बाद वो उठ कर खड़ा हुआ और कपड़े पहन कर चला गया, दीदी अभी भी वैसे ही लेटी हुई थी, दोनों टाँगे अभी भी खुली हुई थीं, चूत का मुँह थोड़ा खुला हुआ था और धर्मेश का वीर्य धीरे धीरे बाहर रिस रहा था।

बड़ा ही मोहक दृश्य था !

फिर दीदी भी उठकर अपने कपड़े ठीक करने लगी, और मेरी भी बारिश हो गई।

मुझे अब वहाँ रुकना ठीक नहीं लगा, सोचा इससे पहले वो निकले, मैं निकल लेता हूँ और मैं वहाँ से चला आया।

पर रास्ते में कुछ बातें मुझे परेशान करती रहीं :

संदीप भैया घर में और यहाँ यह दर्ज़ी, और कितने?

जिस तरह दीदी ने चूत में वीर्य डलवाया, क्या ये दोनों बेटे उनके पति के ही हैं?

दीदी चाची को किस बारे में ब्लैकमेल कर रहीं थीं?

उस दिन दीदी को उस दर्ज़ी से चुदते देख कर मैं यह तो समझ ही गया था कि मेरी यह सीधी और बहुत शरीफ बनने वाली बहन अंदर से बहुत बड़ी छीनाल है।

घर आने के बाद मैंने कई बार मुठ मारी लेकिन मेरा लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था, मैं बहुत बेचैन हो गया था, मेरे आने के करीब 2 घंटे बाद दीदी वापिस आई ! यह देख मुझे लगा कि लगता है दीदी कई बार चुदी है आज !

दीदी की शक्ल पर आज अलग ही खुशी छलक रही थी।

खैर तीन दिनों बाद दीदी अपने घर चली गई और क्यूंकि मेरे पास कोई इंपॉर्टेंट काम नहीं था तो मैं कुछ और दिन के लिए गाँव में रुकने का फ़ैसला किया। और तभी मैंने कुछ सोचा और अपनी दीदी के घर (शहर में) जाने का फ़ैसला किया..

अब तक मैं यह तो समझ गया था कि मेरी दीदी यहाँ 5 दिन बिना चुदे नहीं रह पाई तो अपनी ससुराल में भी कई लंड पटा रखे होंगे।

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तो मैं चल दिया अपनी रंडी बहन के राज खोलने..

अपने लंड पकड़ लो दोस्तो इस बार जो सुनने वाला हूँ उससे आपकी चूत से नदियाँ बहेंगी और लंड फट पड़ेंगे..

अगली सुबह 11 बजे मैं दीदी के घर पहुँच गया। दीदी मुझसे देखते ही कुछ चौंकी और अचानक मेरे आने के बारे में पूछा तो मैंने बोला कि शादी में आपसे मिल ही नहीं पाया अच्छे से तो सोचा कुछ समय आपके घर पर बिता कर वापिस घर जाऊँ।

दीदी के चेहरा थोड़ा सा उतरा मेरी बात सुनकर, लेकिन वो खुशी जाहिर कर रही थी ऊपर से।

अरे मैं तो यह बताना ही भूल गया कि जब मैं घर में घुसा तो दीदी को देखकर मेरा पप्पू पैंट के अंदर ही कूदने लगा.. क्या बला की खूबसूरत लग रही थी मेरी दीदी !

दीदी गुलाबी रंग की साड़ी में थी, पेट के काफ़ी नीचे बाँधी हुई थी साड़ी ! ओह ! हल्का भूरा…एकदम पतला सा पेट, मुलायम, उस पर दीदी का कसा हुआ ब्लाऊज, बहुत सेक्सी लग रहा था..

जब दीदी ने मेरे लिए पानी लाकर रखा तो क्या साइड का नज़ारा देखा..

मेरा अपना ही लंड अपनी बहन के कामुक शरीर को भोगने की चाहत पालने लगा था।

उसका चाय रखना, घर में इधर उधर चलना, पूरी काम की देवी लग रही थी !

आज दीदी बहुत ज़्यादा सजी संवरी लग रही थी। मुझे कुछ हैरानी तो हुई कि क्या दीदी हर दिन इतनी चिकनी चमेली बनी रहती हैं?

या आज कुछ स्पेशल होने वाला है !

मेरे मन में लड्डू फूटने लगे.. ऐसा लगा कि आते ही लॉटरी लग गई।

अब थोड़ा घर के बारे में बता दूँ.. दीदी एक शहर में किराए की मकान में रहती थी, 2 कमरों का घर था। जीजाजी दूर एक फ़ैक्टरी में सुपरवाइज़र थे, तो सुबह 7 बजे निकलना और रात में देर 10 बजे तक आते थे। यह मुझे वहाँ रहने के बाद पता चला।

मैं अब आराम करने के लिए बगल वाले कमरे में चला गया और यही सोचता रहा कि मेरी बहन आज इतना सजी संवरी क्यूँ है.. कहीं आज कुछ होने वाला है क्या ! अजीब अजीब ख्याल आ रहे थे..

और ख्यालों में मेरी बहन एक बड़े शरीर वाले आदमी के नीचे मचल मचल कर चुद रही थी.. और चुदते वक़्त उसके चेहरे के भाव ! ओह ! कितने कामुक भाव दिखा रही थी.. मैं तो ये सब सोच कर ही झड़ने को हो रहा था..

तभी घर की घंटी बजी.. और मेरे दिल का घंटा बजा.. कौन आया होगा.. कहीं दीदी का कोई यार तो नहीं?

क्या करूँ? कमरे से बाहर निकलूँ या नहीं… फिर सोचा.. अब मैं घर में हूँ तो दीदी वैसे भी कुछ करने वाली तो है नहीं, तो बाहर निकल कर ही देख लूँ कि कौन आया है।

जैसे ही मैंने अपने कमरे का दरवाजा खोल कर बाहर देखा कि एक बड़ा ही खूबसूरत रईस दिखने वाला आदमी खड़ा है.. उमर होगी तकरीबन 30 साल के आस-पास.. गले में सोने की चैन, हाथ में कार की चाभी.. देखते ही लगा मानो बड़ा पैसे वाला है..

मैंने सोचा इतना पैसा वाला आदमी दीदी के घर में क्या कर रहा है !

मुझे देखते ही दीदी बोली- नमस्कार भाई साहब, आप अचानक? कैसे आना हुआ? ओह, किराया लेने आए होंगे महीने पर.. अरे भाई साहब ! यह मेरे छोटा भाई है विकी ! मुझसे मिलने आया है.. और कुछ दिन यहीं रहेगा,

दीदी ने इतना सब एक साँस में बोल दिया..

मुझे क्या निप्पल चूसता बच्चा समझा था जो मैं यह ना समझ पाया कि दीदी उस आदमी को क्यों बता रही थी कि मैं कौन हूँ और कब तक रहूँगा..

मुझे अब पूरा यकीन हो चला था कि ज़रूर यहाँ भी कुछ चल रहा है..

तभी दीदी बोली- अरे विकी, नमस्ते करो भाई साहब को !

मैंने नमस्ते की और उस आदमी को शक भरी नज़र से देखने लगा.. वो मुझसे नज़र नहीं मिला रहा था..

तभी दीदी फिर से बोली- अरे विकी, ये हमारे मकान मलिक हैं.. बहुत अच्छे आदमी हैं.. तुम्हारे जीजा तो पूरे दिन नौकरी पर रहते हैं.. तो ज़रूर काम होता है तो इनको फोन कर देती हूँ ! आज भी ये शायद किराया लेने आए हैं.. है ना भाईसाहब..?

वो आदमी तुरंत दीदी की हाँ में हाँ मिला रहा था…

खैर मैं अभी इस खेल का मज़ा ले रहा था…

दीदी फिर बोली- भाई साहब आज तो पैसे है नहीं, शाम को ये आएँगे तो किराया माँग कर कल आपके घर देने आ जाऊँगी..

जैसे ही मैंने यह सुना, मेरा तो दिमाग़ खराब हो गया.. यह क्या? कल दीदी इसके घर जाएगी.. पक्का चुदेगी और मुझे देखने को भी नहीं मिलेगा.. इससे अच्छा तो यही होगा कि इसी घर में चुदे, शायद कोई उम्मीद बन जाए देखने की..

मैं तपाक से बोला- अरे दीदी, आप जाओगी तो घर पर मैं अकेले बोर हो जाऊँगा.. मैं भी चलूँगा साथ !

दीदी और उस आदमी की शक्ल देखने लायक थी.. ऐसा लग रहा था जैसे मेरे बात सुनते ही दोनों की छाती पर साँप रेंगने लग गये..

तभी भाई साहब बोले- आप दोनों क्यूँ परेशान होते हो.. किराया ही तो है.. कभी भी ले लूँगा आकर मैं ! क्यूँ समीरा..!

दीदी बोली- हाँ भाई साहब.. आपका ही घर है. कभी भी आ जाओ !

मुझे थोड़ी राहत की साँस आई.. चलो एक काम तो हुआ.. अब आगे का काम बाकी था

मैंने रात भर पूरे घर का जायज़ा लिया लेकिन मुझे ऐसे कोई जगह नहीं मिली जहाँ से मैं उन दोनों को देख सकूँ। यह सब मैंने कहानियों में पढ़ा था.. दरवाज़ों में छेद होता है.. खिड़की बंद नहीं होती ! लेकिन यहाँ ऐसा कुछ नहीं था..

मैं निराश हुआ लेकिन तभी एक आइडिया आया.. मैंने अपना आई-पॉड निकाला.. और उसको दीदी के कमरे में फिट करने का प्लान बनाया.. रात भर मैं उसकी टेस्टिंग करता रहा.. और यह पता लगा की यह लगातार 90 मिनट तक रेकॉर्डिंग कर सकता है.. फिर बैटरी भी ख़त्म और मेमरी भी !

अगली सुबह जब मैं उठा तो दीदी रसोई में काम कर रही थी नाइटी पहन कर.. कसम बनाने वाले की.. दिल कर रहा था कि वहीं रसोई में नाइटी उठाकर दीदी को चोद दूँ।

खैर मैंने अपनी योजना पर कम करना शुरू किया..

मैं बोला- दीदी, इसी शहर में मेरा एक दोस्त पढ़ता है.. कल मैं उससे मिलने जाऊँगा.. 2 घंटे में आ जाऊँगा.. यही रहता है 10 किलोमीटर दूर..

दीदी ने बोला- ठीक है लेकिन ध्यान से आना-जाना !

मैं बोला- ठीक है दीदी ! और आपको अगर जाना हो तो आप भी किराया दे आना उनके घर जाकर !

दीदी ने अचानक से मेरी तरफ घूर कर देखा… मैंने बड़ा मासूम सा चेहरा बनाया…

फिर वो भी बोली- वो भाई साहब खुद आ जाएँगे लेने जब लेना होगा उन्हें किराया !

मैंने मन में बोला- मेरी बहना, मैंने तो तेरे दिमाग़ में अपना प्लान डाल दिया.. अब तू खुद बुलाएगी अपने यार को कल चुदने के लिए…

अगली सुबह हुई और ठीक उस दिन की तरह दीदी आज बड़ी सज रही थी, मैंने पूछा तो बोली- पड़ोस में जाना है, कुछ काम है..

खैर जैसे ही मौका मिला मैंने आई-पोड चालू किया और तुरंत दीदी को बोल कर घर से निकल गया..

और घर से दूर मैं रोड के पास एक चाय वाले की दुकान पर बैठ गया.. 5-10 मिनट बीत गए, वो कार नहीं दिखी आती हुई… मुझे अब अपना प्लान डूबता नज़र आ रहा था.. तभी वही कार वहा से निकली.. मेरी तो खुशी का ठिकाना नहीं रहा..

अब किसी तरह मैंने 3 घंटे बाहर बिताए.. फिर घर चला गया.. घंटी बजाई तो दीदी ने दरवाजा खोला..

वो इस वक़्त नाइटी में थी.. मैंने दीदी से मज़े लेते हुए पूछा- अरे दीदी, सुबह साड़ी में थी.. अब नाइटी..? आप दिन में तो नाइटी नहीं पहनती?

दीदी का चहरा सफेद पड़ गया 2 सेकेंड के लिए.. और मैं मन ही मन खुश हो रहा था..

खैर मुझे अब वो वीडियो देखनी थी.. मैंने दीदी के कमरे से वो आइपोड उठाया और अपने कमरे में आकर देखने लगा..

आगे का किस्सा दीदी और मकान मलिक के बीच का..

वीडियो जब शुरु हुई तो उस वक़्त कमरे में कोई नहीं था.. करीब 15 मिनट बाद घंटी की आवाज़ हुई.. और फिर दीदी और उस आदमी की बातें सुनाई देने लगी।

दीदी- आ गये आप भाई साहब ! आइए, अंदर आइए ना.. आईई, ये कर कर रहे हो ! आहह ! कुछ तो शरम करो ! दरवाजा अभी खुला हुआ है.. ओइइ माआआआ ! दर्द होता है..

ये आवाज़ें सुनते ही मेरे लंड फड़फड़ाने लगा और ख्यालों में दीदी को उस जानवर के हाथों मसलते देख रहा था..

तभी उस मकान मालिक की आवाज़ आई..

इतने दिन से तड़पा रखा है तूने डार्लिंग.. अब आई औययईई कर रही है…

दीदी- अम्म ! अर्रे, ममम !!!

ऐसा लगा कि दीदी कुछ बोलना चाह रही थी लेकिन उसने दीदी को बोलने नहीं दिया और दीदी के गद्देदार लाल लिपस्टिक वाले होंठ चूस रहा होगा..

दीदी के गूँ गूँ करने की आवाज़ आ रही थी और चूड़ियाँ भी बहुत जोरो से खनक रही थी.. और यहाँ मैं यह सुन कर मदहोश होता जा रहा था..

दीदी- आहह ! बहुत बदमाश हो गये आप भाई साहब… थोड़ा तो इंतज़ार करो ! चेंज तो करने दो…

मकान मालिक- आज तो ये कपड़े फट कर ही अलग होंगे जानेमन…

दीदी- अरे पागल हो गये हो क्या तुम.. उफफ्फ़ साड़ी छोड़ो मेरी.. नाईए… औहह..

दोनों के हंसने की आवाज़ आती.. और तभी दीदी भागती हुई कमरे में आती दिखी..

कसम बनाने वाले की.. बस पेटीकोट ब्लाउज में थी मेरी बहन.. खुले हुए बाल.. होंठों के आसपास लिपस्टिक फैली हुई नज़र आ रही थी.. और तभी पीछे से मकान मलिक भी भागता हुआ अंदर आया.. और अंदर आते ही दीदी को दबोच लिया और दीदी को दीवार के सहारे लगा कर मसलने लगा..

दीदी बहुत कामुक आवाज़ें निकाल रही थी.. आआअहह ! भागी नहीं जा रही मैं.. आराम से करो मेरी जान.. उफफ्फ़… म्*म्म्मम..

दीदी अपने होंठ अपने दातों से काट रही थी.. और उसके सिर पर हाथ फिरा रही थी..

तभी उसने दीदी को बेड पर झुका दिया और पीछे से दीदी की नंगी पीठ को चाटने लगा.. और अचानक से दीदी के ब्लाउज को ज़ोर से खींचा.. ब्लाउज के हुक टूट गए ! यूँ उसने दीदी की ब्रा भी उतार कर उन्हें नंगा कर दिया..

कुछ ज़्यादा ही गर्म आदमी था वो..

दीदी की कराहने की आवाज़ मेरा लंड झड़ने के लिए काफ़ी थी…

अहह ! और मैं एक बार पैंट में ही झड़ गया..

इधर उसने दीदी का पेटिकोट ऊपर करके अपने मुँह को दीदी की गाण्ड में घुसा दिया था और पीछे से उनकी गाण्ड का छेद और चूत चाट रहा था… और मेरी बहन एक गरम कुतिया की तरह रंभा रही थी.. आ आआ आआआ आअहह… ऑश माआ आआआअ

अपने होंठ दांतों से काट रही थी.. तभी दीदी का शरीर अकड़ा और फिर वो ढीली पड़ गई.. और खुद ही बेड पर लेट गई..

उस आदमी ने खड़े होकर अपने कपड़े उतार दिए.. 6-7 इंच का लंड लगा उसका ! ज़्यादा मोटा भी नहीं.. लेकिन एकदम डण्डे की तरह खड़ा था… वो दीदी की टाँगों के बीच आया और अपना लंड दीदी की चूत पर लगा कर अंदर घुसा दिया।

दोनों के मुँह से कामुक कराह निकली- आआहह !

उसके बाद उसने जोर-जोर से चोदना शुरू कर दिया, थोड़ी देर में दीदी फिर से गरम होकर चीखने लगी- अहह ! आय माआ आ.. ज़ोर से और ज़ोर से… ओह… बहुत अच्छा लग रहा है… अम्*म्म्म..

कुछ देर तक ज़ोरदार चुदाई करने के बाद वो आदमी जोर से गुर्राया- आआहह… झड़ रहा हूँ…

और दीदी की कोख में अपना सारा बीज डाल दिया।

कुछ देर ऐसे ही लेटे रहने बाद दीदी उसे फिर से चूमने लगी और बड़ी इठला कर बोली- देखो ना.. तुमने मेरा यह ब्लाउज भी फाड़ दिया.. अब मैं नई साड़ी कहाँ से लूँगी..

आदमी बोला- क्यूँ परेशान होती हो मेरी जान.. कैसी साड़ी चाहिए, बोलो.. चलो तुम्हें दो साड़ियाँ लाकर दूँगा..

इतना सुनते ही मेरी दीदी खुश हो जाती है और एक हाथ से उसका लंड सहलाने लगती है.. उसकी आँखें बंद होने लगती हैं..

दीदी फिर बड़े कामुक अंदाज में इठला कर बोली- आप मुझे प्यार नहीं करते, बस जब ठरक होती है तो चोदने आ जाते हो…

वो बोला- नहीं मेरी जान, तुम मेरी जान हो, ऐसा मत सोचो..

और वो दीदी को होंठों को चूमने के लिए आगे हुआ.. दीदी ने मुँह फेर लिया..

दीदी- अगर प्यार करते तो यह 500 रुपये की साड़ी देकर रंडी की तरह मुझे ना चोदते.. प्यार तो अनमोल होता है और तुमने मुझे आज तक कुछ नहीं दिया.. कैसा प्यार करते हो..

वो- क्या चाहिए तुम्हें? बोलो..

दीदी- कुछ नहीं चाहिए !

और दीदी मुँह लटका कर उदास बैठ गई..

वो पास आकर दीदी नंगी चूचियाँ दबाते हुए बोला- बोलो ना जानू ! क्या दिक्कत है.. मैं हूँ ना.. बताओगी नहीं तो कैसे करूँगा मैं कुछ..

दीदी- कुछ नहीं.. बस इनकी सैलरी ही इतनी कम है कि ! मेरे सजने संवरने का सामान तक नहीं खरीद पाती..

और दीदी झूठ मूठ का रोने लगी..

यह देखते ही उस आदमी ने अपने पर्स में से एक एटीएम कार्ड निकाल कर दीदी को दे दिया और बोला- लो, आज से यह एटीएम तुम्हारा ! जो सामान खरीदना हो, खरीद लेना.. लेकिन मेरी जान ! अपने आशिक के सामने रोकर उसे दुखी ना करना !

एटीएम देखते ही दीदी की आँखें चमक गई.. और वो दोनों फिर एक जोरदार चुदाई में लग गये..

बात है उस समय की जब मैं रक्षाबन्धन के लिए दीदी के घर जा रहा था।

पुरानी बातों को काफ़ी समय बीत चुका था और अब मैं चूत का स्वाद चख चुका था, पूरे रास्ते मैं दीदी के गदराये बदन को याद कर रहा था और मेरा लंड ऐंठा जा रहा था। वो दीदी की मटकती भारी गाण्ड और वो गोरे गोरे पेट का सारी की बगल से दिखना, वो दीदी के गोरे गोरे चाँद से चेहरे पर लाल रंग की रसीली लिपस्टिक, वो छोटे से ब्लाउज़ में से गोरी गोरी चूचियों का बाहर झांकना..

मुझे अभी भी याद है उन कुछ दिनों की जब दीदी को मैंने मकान मलिक से चुदते हुए देखा था, रोज़ जब वो नहा कर बस पेटिकोट और ब्लाउज़ में बाहर आती थी। वो पूरे बदन पर हल्की छोटी छोटी पानी की बूंदें, वो पानी से गीले होने के वजह से दीदी के ब्लाउज का पारदर्शी होना और उसमें से निप्पल की झलक मात्र से मेरा रोम रोम मचल उठता था, वो गीले पेटिकोट का दीदी के चूतड़ों की दरार में घुस कर उनके चूतड़ों का आकार दर्शा जाना… और उसके बाद जब दीदी अपनी जवानी का जलवा गिराते हुए मचल कर चलती थी..

क्या बताएँ दोस्तो, लंड सब कुछ फाड़ कर बस दीदी की चूत में घुस जाना चाहता था।

खैर इन्हीं यादों के चलते मुझे ट्रेन में दो बार मूठ मारनी पड़ी और इस तरह मैं अपनी दीदी के घर रक्षाबन्धन मनाने पहुँच गया।

जैसे ही दरवाजा खुला मेरी दीदी मेरे सामने खड़ी थी… उन्हें देखते ही मेरा दिल एक बार तो बहुत ज़ोर से धड़का, इस पूरे एक साल में दीदी और भी सेक्सी ही गई थी, कुछ ही देर में मुझे एहसास हो गया कि दीदी की चूचियाँ और कूल्हे दोनों ही पहले से बड़े और मस्त हो गये हैं.. क्या मादक गाण्ड थी दीदी की.. मन कर रहा कि वहीं उन्हें सोफे पर झुका कर पीछे साड़ी उठाकर उनकी गाण्ड में घुस जाऊँ और जी भर कर रस पी जाऊँ..

लेकिन मेरी किस्मत में बस देखना ही लिखा था।

चलिए अब आपको अपनी बहन के नया कारनामा बताता हूँ..

मेरे जीजाजी की नौकरी अब दूसरी जगह लग गई थी और कुछ ही दिन पहले उनकी नाइट शिफ्ट लगी थी.. तो पूरे दिन मैं दीदी और जीजा जी बात करता रहा, शाम होते ही जीजाजी अपनी जॉब पर चले गए।

फिर मैं छत पर अपने भान्जे से साथ खेलने लगा, तभी वहाँ बाजू की छत से एक आदमी हमारी छत पर आ गया, उसकी छत हमसे एक मंज़िल नीची थी, फिर भी वो सीढ़ी लगा कर हमारी छत पर आया.. यह मुझे थोड़ा अजीब लगा..

मेरे भान्जे ने उसे नमस्ते किया और फिर उस आदमी ने मुझे मेरे बारे में पूछा।

थोड़ी बातचीत होने पर पता लगा कि वो बाजू का पूरा घर उसका है और वो खुद पुलिस में किसी बड़े पद पर काम करता है। देखने में भी वो काफ़ी बड़े शरीर वाला लग रहा था, करीब 6’5″ कद, काफ़ी मजबूत पूरे शरीर पर बाल !

किसी अखाड़े के पहलवान जैसे सेहत और आवाज़ में काफ़ी रुआब ! उसे देख कर तो मुझे भी डर लग रहा था।

तभी उसने मेरे भान्जे से मेरी दीदी के बारे में पूछा।

मैं बोला- वो नीचे खाना बना रही है।

वो बोला- मुझे ज़रा बिजली ठीक करने वाले का नंबर लेना है, मैं अभी आता हूँ।

अब अपनी दीदी को तो मैं अच्छी तरह जानता था, मुझे लगा कि देखना तो पड़ेगा कहीं कुछ नज़ारा ही देखने को मिल जाए..

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वो नीचे जाकर सीधा रसोई में घुस गया और मैं चुपचाप नीचे उतर कर आया और अंदर की बातें सुनने की कोशिश करने लगा।

“इशह ! क्या करते हो? ऊई माँ ! अह्ह्ह ! आहह… ओइंआ ! मान भी जाओ ना .. आहह !”

फिर दीदी की गुस्से में आवाज़ आई- जाओ यहां से ! मुझे नहीं बात करने तुमसे..

फिर बहुत धीरे बातें करने की आवाज़ें आने लगी और तभी रसभरे चुंबन की आवाज़ें आने लगी जैसे कोई बेहताशा किसी को चूस रहा हो, चाट रहा हो..

दीदी की मादक आवाज़ गूँ गूँ में लिपट कर मुझे अपने मन में अंदर के मादक नज़ारे की बनाने के लिए मजबूर कर रही थी..

मुझसे रहा ना गया तो मैंने एक बार अंदर झाँक कर देखने की कोशिश की..

मैंने देखा कि दीदी की बगल मेरी तरफ है.. और वो आदमी दीदी की जीभ को अपने मुँह में भर कर चूस रहा है..

दीदी की एकदम लाल जीभ और उस पर चमकता राल, और वो उसे अपने होंठों में भर भर कर चूस रहा था मानो जैसे आज दीदी की जीभ तो पूरी खा ही लेगा.. दीदी के होंठ के आसपास सब राल से गीला होकर चमक रहा था..

कितना मादक था यह नजारा ! बता नहीं सकता दोस्तो.. शब्द कम पड़ रहे हैं..

और उधर वो दोनों हाथों से दीदी के मोटे चूतड़ों को साड़ी के ऊपर से मसल रहा है..

तभी मेरी नज़र उसके पाजामे पर पड़ी, दीदी का हाथ उसके पाजामे के अंदर था और उसके लंड की सहला रही थी… क्यूँकि दीदी को एहसास नहीं था मेरे होने का ! उन्होंने उसके लंड की पकड़ कर पाजामे से बाहर निकाल लिया।

हे भगवान ! क्या लंड था उस आदमी का.. ! किसी सेक्स मूवी की तरह एक फुट लंबा और इतना मोटा, ऐसा कुछ नहीं था..

लेकिन मेरे अंदाज़ से वो आधा खड़ा लंड ही 6-7 इंच का होगा।

लेकिन हैरान करने वाली तो उनके लंड की मोटाई थी.. देखने से ऐसा लग रहा था कि शायद उसकी गोलाई दीदी के हाथ में नहीं समा पा रही थी, कम से कम मेरी कलाई जितना मोटा लंड था… एक बार तो मेरा गला सुख गया.. और मैं डर के मारे वहाँ से वापिस जाने ही वाला था कि मेरी नज़र ऊपर उठी तो देखा कि वो आदमी मुझे ही देख रहा है.. और उसे देख कर लगा मानो वो बहुत गुस्से में है…

बस मैं तो तुरंत वहाँ से भाग कर छत पर आ गया..

कुछ देर बाद वो छत पर आया.. उसे अपनी तरफ आते देख तो मेरी गाण्ड फट गई.. और फटे भी क्यूँ ना ! मैं कहाँ एक मासूम 18 साल का लड़का और वो 35-40 साल का एक पहलवान..

वो एकदम भारी आवाज़ में मुझसे बोला- तुम नीचे क्यूँ आए थे.. क्या देखा तुमने?

डरा तो मैं पहले से हुआ था, उसकी भारी आवाज़ सुन कर और डर गया.. काम्पती आवाज़ में मैं बोला- कुछ नहीं, प्यास लगी थी तो पानी पीने आया था.. मैंने कुछ नहीं देखा..

वो बोला- देख रे, अगर तूने यह बात किसी को भी बताई तो झूठ केस में जेल में डाल कर पूरी रात तेरी गाण्ड में मिर्च का डंडा घुसा दूँगा.. समझ आया?

मैं बोला- हाँ !

मेरी तो आवाज़ ही नहीं निकल रही थी.. वो हल्का सा मुस्कुराया और बोला- तू समझदार लगता है मुझे इन मामलों में, अगर कुछ नहीं बोलेगा तो तुझे भी बहुत मज़ा आएगा।

मैं बोला- वो क्या?

उसने अपने लंड पर हाथ फिराते हुए बोला- तेरी बहन बहुत बड़ी रंडी है, कसम से बिना चोदे रात नहीं बीतती मेरी… आज रात भी चोदूँगा उसे.. तुझे देखना है तो बता?

मैं अजीब भी असमंजस में था, देखना भी चाहता था मगर कहूँ कैसे?

मैंने बस सिर नीचे कर लिया।

वो फिर बोला- अगर देखना हो रात में एक बजे छत पर आ जाना चुपचाप… लेकिन हाँ, अगर कुछ हरकत करने की कोशिश की तो यह मत भूलना कि मैं पुलिस में बहुत बड़ा अफ़सर हूँ, गाण्ड में डंडा डाल कर मुँह से निकाल लूँगा.. वो तुमने देख लिया, इसीलिए जितना मज़ा दिला रहा हूँ, ले लो ! वरना यह भी कोई ना करता..

और फिर वो चला गया।

फिर रात के खाने के वक़्त दीदी मुझे बहुत घूर रही थी, शायद उन्हें भी मालूम था कि मैं उनकी इन सब रंगरलियों के बारे में सब जानता हूँ.. लेकिन वो कुछ बोली नहीं..

रात को सोने की तैयारी हो रही थी.. दीदी ने अपने ही कमरे में सोने के लिए बोला क्यूँकि जीजा जी तो थे नहीं.. कुछ देर बाद दीदी नहा कर कमरे में आई.. कुछ सिल्की पेटिकोट पहन रखा था और ऊपर एक सफेद ब्लाउज़, दीदी को देखा तो उनके निप्पल मुझे साफ दिख रहे थे और जब वो कमरे से बाहर जा रही थी तो हिलते चूतड़ बता रहे थे कि उन्होंने पैंटी भी नहीं पहनी..

यह सब सोच कर ही मेरा लंड खड़ा हो गया…

तभी दीदी वापिस अंदर आई और थोड़ी कड़क आवाज़ में बोली- सुन छोटे, आजकल मोहल्ले में चोरी बहुत होती हैं, और चोर छत पर से अंदर घुस कर चोरी करते हैं.. इसीलिए हर घर से कोई एक ऊपर छत पर सोता है, तेरे जीजाजी तो है नहीं.. तो मैं छत पर सोने जा रही हूँ.. तू यहीं सोना !

मैं बोला- दीदी मैं नीचे बोर हो जाऊँगा.. मैं भी ऊपर ही बिस्तर लगा लेता हूँ..

दीदी तुरंत गुस्से में बोली- नहीं.. तू यहीं सो ! दो दिन के लिए आया है, आराम कर तू..

कुछ ही देर में दीदी ऊपर चली गई सोने के लिए.. मुझे पूरा यकीन था कि यह चोर वाली बात सब झूठ है, मामला तो वही है जो मैं और आप सभी समझ रहे हैं।

खैर मैं तो एक बजने का इंतजार कर रहा था लेकिन समय बीत ही नहीं रहा था, मैंने सोचा कि क्यूँ ना थोड़ा पहले ही जाकर देखा जाए..

अब ज़रा पहले यह बता दूँ कि दीदी का घर उस मोहल्ले में सबसे ऊँचा है, मतलब दीदी की छत पर और कोई नहीं देख सकता, हाँ, हमारी छत से सबकी छत दिखती है।

तो अब आगे बताता हूँ…

मैंने पहले नीचे से ही सीढ़ियों की बत्ती बंद कर दी और चुपचाप ऊपर चला गया.. सबसे ऊपर आकर कर मैंने चुपचाप छत का दरवाजा धीरे से खोला तो सामने छत पर कुछ ही दूर दीदी एक बड़ी सी खाट पर लेटी हुई थी और फोन पर किसी से बात कर रही थी…

कुछ देर सुनने पर पता लगा वो जीजाजी से सेक्सी बातें कर रही थी… इस वक़्त दीदी कामदेवी लग रही थी..

“नहीं, मैं नहीं बोलूँगी…”

“हटो ना आप ! नहीं आप तो मेरी सौतन के पास ही रहना, घुस जाओ उस छीनाल के भोंसड़े में !”

“क्या राज, तुम तो जानते हो मुझसे गर्मी बर्दाश्त नहीं होती और आपने कितने दिन से नहीं किया है !”

“हाँ हाँ ढूंढ लूँगी आसपास में मुस्टंडा कोई ! लेकिन सच कहूँ राज ! आप चुदाई के मामले में जादूगर हो, मुझे किसी और का ख्याल ही नहीं आता.. आप ही मेरे सब कुछ हो..”

दीदी ने एक तरफ करवट ले रखी थी, उनके चूतड़ मेरी तरफ थे.. जीजाजी से बातें करते करते उन्होंने अपना पेटीकोट ऊपर उठाता और चूत सहलाने लगी… मेरी तरफ से दीदी की मांसल जांघें एकदम चमकती हुई दिख रही थी.. और दीदी की बड़ी भारी गाण्ड.. एकदम गोल गोल.. रूई की तरह मुलायम लग रही थी। बीच बीच में दीदी का बदन हिलता तो उनके कूल्हे कुछ देर तक हिलते रहते..

“आह.. आहह !” क्या मस्त चूतड़ थे दीदी के ! दिल तो कर रहा था कि पूरी जिंदगी दीदी की गाण्ड ही चाटता रहूँ..

मैं वहीं बैठा दीदी को बातें करता देख रहा था और अपना लंड सहला रहा था.. तभी….

क्या मस्त चूतड़ थे दीदी के ! दिल तो कर रहा था कि पूरी जिंदगी दीदी की गाण्ड ही चाटता रहूँ..

मैं वहीं बैठा दीदी को बातें करता देख रहा था और अपना लंड सहला रहा था..तभी छत पर आवाज़ हुई और दीदी ने फोन काट दिया.. सामने से वो हैवान आता दिखाई दिया… सिर्फ़ एक लुँगी लपेट कर आया था..

रात के अंधेरे में छत पर एक लाइट जल रही थी..जिसमे वो दोनों साफ साफ दिख रहे थे..

वो आकर दीदी के बाजू में बैठ गया और किसी फूल की तरह दीदी को उठाकर अपनी गोद में कर लिया.. अब दीदी का सिर उसकी गोद में था..

वो नीचे झुका और दीदी के होंठ पर अपने होंठ रख दिए..फिर दोनों फ्रेंच किस में खो गये। वो दोनों एक दूसरे की जीभ चूस रहे थे, तभी उसने दीदी के निचले होंठ को अपने होंठ के बीच लेकर चूसना शुरू किया और अचानक से उसने दीदी के होंठ काट लिया…

दीदी चिंहुक उठी.. मगर फिर वो और ज़ोर से उस पुलिस वाले के होंठ चूसने लगी..

देखने से लग रहा था कि दोनों के बदन की गर्मी अब तेज़ी से बढ़ती जा रही थी… दोनों की चूमना चूसना बहुत उत्तेजक हो रहा था, पागलों की तरह चूम रहे थे दोनों.. तभी उसका हाथ दीदी के ब्लाउज़ के ऊपर से चूचियों को दबाने लगा..

दीदी के मुँह से एक कामुक आहह निकल गई.. इतनी कामुक कराह थी कि मैं तो झड़ने वाला था…

वो दोनों एक दूसरे को खाने वाले इरादे से चाट रहे थे.. फिर दीदी ने अपना हाथ उसकी लुँगी के अंदर दे दिया.. और तभी उस आदमी के कराहने की आवाज़ आई.. शायद दीदी ने उसके लंड को दबा दिया होगा ज़ोर से..

दोनों के मुँह से कामुक आवाज़ें आ रही थी.. आहह म्*म… ओह्ह…

फिर उसने दीदी के ब्लाउज के हुक खोल दिए और दीदी की दोनों चूचियाँ बाहर आ गई..

दूध सी गोरी चूचियाँ.. मसली जाने की वजह से लाल हो गई थी.. उनकी की घुंडियाँ एकदम भूरी और कड़क हो गई थी.. फिर उसने ज़ोर ज़ोर से चूचियो को मसलना शुरू कर दिया..

अब दीदी के मचलने की बारी थी..

वो बस कसमसा रही थी.. बेचैन हो रही थी.. आहह… ओह्ह्ह… आइ… ई… यई…

और कामुक आवाज़ में कुछ कुछ बोल रही थी… अम्म आह.. और.. आउच हह.. आराम से… एम्म्म… हाँ पियो इन्हे.. दूध निकालो इनमें से.. निचोड़ लो सब कुछ आज.. आअहह…

तभी वो आदमी खड़ा हुआ और अपनी लुँगी खोल दी…

उसका लौड़ा एकदम खड़ा था.. शाम जैसे ही भयानक दिख रहा था.. लंबाई ऐसा लगा मानो एक इंच और बढ़ गया था। बिल्कुल काला.. और सुपाड़ा एकदम लाल.. बल्ब की रोशनी में एकदम चमक रहा था… अब वो वहाँ से उठ कर दीदी के पैरों की तरफ आने लगा और तभी उसकी नज़र मुझ पर पड़ी और वो हल्के से मुस्कुरा दिया..

मैं भी अनायास ही मुस्कुरा दिया..

अब वो इस तरफ से दीदी पर चढ़ रहा था.. इस वक़्त उसकी पीठ मेरी तरफ थी और वो दीदी की टाँगों के बीच था..

उसने दीदी के पेटिकोट खोलना चाहा लेकिन दीदी ने मना कर दिया, बोली- आज नहीं अगली बार ! आज ऐसे ही करो…

अब वो समय आने वाला था जिसका मैं बड़ी बेसबरी से इंतजार कर रहा था..

उसने पेटीकोट को ऊपर उठाया, अब दीदी की टांगें एकदम नंगी थी और मैं कुछ फुट दूर से देख रहा था यह सब लेकिन दीदी की चूत नहीं देख पा रहा था.. तभी उसने पीछे मुड़ कर मुझे आगे आने का इशारा किया..

मुझे काफ़ी डर लगा रहा था लेकिन पास से चुदाई देखने के लिए मैं मरा जा रहा था, मेरा पाजामा घुटने तक था और मैं ऐसे ही नंगे हालत में कुत्ते की तरह चुपचाप उनकी तरफ जाने लगा..

आगे जाकर मुझे बात समझ आई कि क्यूंकि यह इतने बड़े शरीर वाला है.. और जब ऊपर से ये दीदी पर आ जाए तो दीदी को कभी नहीं पता चलेगा कि उसके पीछे खाट के नीचे कौन बैठा है।

अब उसने दीदी की टांगों को उठाकर अपने कंधे पर रख लिया और खुद उसके ऊपर चढ़ गया।

सच कहूँ दोस्तो, आज तक इतना कामुक हसीन नज़ारा किसी ने नहीं देखा होगा जो आज मैं देख रहा था।

सिर्फ़ कुछ इंच की दूरी पर मेरी दीदी की पावरोटी जैसे फूली हुई चूत थी.. दोनों फांकों पर हल्के बाल थे.. चूत बहुत पनियाई हुई थी.. और लबलबा रही थी… मानो चीख चीख कर लंड माँग रही हो।

चूत का मुँह बार बार अपने आप खुल रहा था और बंद हो रहा था…

उधर वो पुलिस वाला दीदी पर चढ़ कर उनके होंठ को चूसने लगा, इधर उसका हैवानी लंड दीदी की चूत पर आकर रगड़ने लगा।

दीदी की साँस अब बहुत तेज़ चलने लगी थी- ..आहह..एम्म ! चोदो मुझे.. ! प्लीज़ मुझे चोदो…आह ह्ह्ह्ह.. और मत तड़पाओ…

दीदी की गाण्ड अपने आप ऊपर की तरफ उठ कर लंड को अंदर लेने की कोशिश कर रही थी मगर उस पुलिस वाले को दीदी को तड़पाने में मज़ा आ रहा था..

अब तो दीदी की पनियाई चूत और जोर से बहने लगी और उनका चूतरस उनकी चूत से बहता हुआ उनकी गाण्ड के छेद तक चला गया..

चूत और गाण्ड पर चूतरस लगे होने की वजह से बहुत चमक रही थी ऐसा लग रहा था मानो मेरे आगे जन्नत की सबसे सुंदर चूत और गांड है…

तभी उसने अपना लंड हाथ में पकड़ा और दीदी की चूत के मुहाने पर रख कर चूत और चूत का दाना रगड़ने लगा..

एक ही रगड़ ने दीदी के मुँह से चीख निकलवा दी.. ओइं आह्ह्हह्ह ! आअहह प्लीज़ और मत तड़पाओ मुझे ईईए ! अह.. इस…म्*मम…

साँसें बहुत ज़ोर से चल रही थी दीदी की !

इधर उनकी गाण्ड और जोर से मचल मचल कर लंड को अंदर लेने की कोशिश कर रही थी… और तभी उसने लंड को चूत पर टिका कर एक ज़ोरदार झटका दिया.. और आधा लंड दीदी की पनियाई चूत के अंदर उतार दिया..

“आह ह्ह्ह्ह…” वो आदमी दीदी की चूत की गर्मी का एहसास पाते ही कराह उठा..

उधर दीदी भी दर्द और काम से मचल कर चीख उठी.. …उई माँ …आई ईई ई…

फिर तो उस आदमी ने 2-3 झटके और मारे और पूरा लंड मेरी दीदी की नाज़ुक चूत के अंदर उतार दिया। उस वक़्त तो ऐसा लग रहा था मानो किसी ने ज़बरदस्ती यह लंड चूत में फंसा दिया और अब यह नहीं निकलेगा नहीं।

तभी उसने धीरे से अपने लंड बाहर खींचना शुरू किया।

उसका लंड चूत में इतना कस कर फंसा था कि लंड वापिस खिंचते वक़्त ऐसा लगा रहा था मानो चूत भी ऊपर खींची जा रही है..

तभी दीदी का शरीर अकड़ने लगा और उनके पैर कांपने लगे।

मैं त… त..तो… तो… गा… ग… गाइइ..

और दीदी झड़ गई ! उस हैवानी लंड के बस एक वार ने एक औरत की चूत का पानी निकाल दिया..

उसके बाद उसने फिर से झटके से चूत में लंड घुसा दिया और अब वो चूत में लंड अंदर-बाहर करने लगा- आह… आह… आह… आह उहह… आ… उहह आ…

एक ही मिनट बाद दीदी फिर से अकड़ने लगी.. और तभी फिर से उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया और वो ज़ोर से चीखी- अह ह्हह ..आ… आ..अया…आ गई मैं फिर से…

इधर उसके लंड पर दीदी के चूत का गाड़ा सफेद पानी तेल की तरह लिपट कर चमक रहा था और अब उसका लंड की मशीन की तरह अंदर बाहर हो रहा था..

करीब 10 मिनट की धमाकेदार चुदाई हुई और दीदी करीब 3 बार और झड़ी.. नीचे बिस्तर पर एक बड़ा हिस्सा गीला हो चुका था…

तभी उस आदमी के जोरदार गुर्राहट के साथ उसने दीदी के चूत में अपना वीर्य भरना शुरू किया और यहाँ दीदी की चूत से उनका चूत रस और वीर्य मिलकर बाहर बहने लगा।

उसने अपना लंड दीदी की चूत से बाहर निकाला.. मेरी दीदी की नाज़ुक सी चूत का कचूमर निकल चुका था.. करीब एक इंच छेद बन चुका था.. जो लपलपा रहा था और पूरी तरह से वीर्य से भरा हुआ था।

तभी मुझे इशारे से पीछे जाने के लिए बोला और मैं फिर से अपनी पुरानी जगह वापिस चला गया।

फिर उस रात एक बार और चुदाई हुई, इस बार तो दीदी दर्द से चीखने लगी.. दूसरी चुदाई बहुत लंबी चली करीब 20 मिनट तक..

बीच में उसमें दीदी को को बिस्तर के सहारे झुका कर चोदना चाहा मगर इतनी जोरदार लंड से चुदने के बाद और करीब 8-9 बार झड़ने के बाद उसमें जान नहीं बची थी, उसके बाद वो फिर से दीदी की चूत में अपना वीर्य डाल दिया..

फिर कुछ देर वो वैसे ही पड़े रहे और कुछ होने के आसार नहीं दिखे तो मैं भी नीचे आ गया।

सुबह जब दीदी मुझे जगाने आई तो उनके कटे हुए होंठ को देख कर मेरी लंड ने एक बार फिर ज़ोरदार ठुमका मारा..

दीदी की चेहरे पर एक अलग ही रौनक दिख रही थी..

उस दिन मुझे यह एहसास हुआ कि अगर औरत की चुदाई उसकी संतुष्टि तक हो जाए तो सुबह उसके चेहरे पर रौनक देखते ही बनती है…

खैर अगले दिन रक्षाबन्धन था, और फिर शाम को ही मुझे वहाँ से अपने घर वापिस आना पड़ा मगर यह घटना मैं आज तक नहीं भूला..



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