बाप-बेटी ने एक-दूसरे की हवस शांत की

हेलो दोस्तों, नेक्स्ट पार्ट से पहले सभी को बहुत सारा थॅंक्स यार, की आपने मेरी कहानी पढ़ी, और आपको पसंद आई. तो नेक्स्ट पार्ट की तरफ बढ़ने से पहले अगर पहले के पार्ट्स नही पढ़े, तो प्लीज़ आज उन्हे पढ़े. फिर आयेज कंटिन्यू करे.

तो मैं ज़राइना सिडईक्वी, वैसे आपको मेरा नाम अभी तक पता चल ही गया होगा. तो चलिए चलते नेक्स्ट पार्ट की तरफ.

अगले एग्ज़ॅम के लिए 6 दिन का ब्रेक था. लेकिन ये ब्रेक तैयारी करने के लिए बहुत कम था ( क्यूंकी जिसने साल भर नही पढ़ा, वो इनमे क्या ही तीर मार लेगा). लेकिन अची बात ये थी की अगले सब्जेक्ट्स के हाफ चॅप्टर्स मैने तैयार कर रखे थे.

पर बाकी के चॅप्टर में मेरी तबीयत कुछ ठीक नही थी, सो नयी हो पाया. लेकिन मेरे पास अभी भी 6 दिन थे उन्हे कवर करने के लिए.

उनमे से 2 दिन तो सेल्फ़ स्टडी में निकल गये ( बाइ गोद, प्रॉमिस ये सेल्फ़ स्टडी में घंटा पढ़ाई होती है ). इन दो दीनो में मेरी दोस्त ने अपने 4 ब्रेकप की कहानी सुना दी. हालाकी मैं भी सुना सकती थी अपनी चुदाई की कहानी. लेकिन कुछ बातें होती है जो प्राइवेट रहे तो ही सेफ है.

2 दिन की शाम को जब मैं घर पहुँची, तो अम्मी-अब्बू के कपड़े पॅक कर रही थी. मुझे रीज़न नही पता था, इसलिए मैं च्चत पर अब्बू के पास गयी. तो अब्बू फोन में बातें कर रहे थे.

मुझे देख के उन्होने मुझे अपने पास आने का इशारा किया. इशारा पा कर मैं उनके करीब गयी, और उन्होने मुझे अपनी बाहों में भरते हुए अपना एक हाथ मेरी कमर में रखते हुए मेरी गांद सहलाने लगे.

जब उनकी फोन पे बातें ख़तम हुई, तो दूसरा हाथ वो मेरे बूब्स पर रख कर दबाने लगे.

मैं: अब्बू, कही जेया रहे हो क्या? अम्मी आपके कपड़े पॅक कर रही थी.

अब्बू: हा बेटी, तेरे दुबई वाले मामा के पास कुछ काम है. बस 2 हफ्ते में वापस आ जौंगा.

मैं: लेकिन अब्बू, मेरे एग्ज़ॅम्स ख़तम तो होने देते. मैं भी चलती.

( झटके से मुझे अपनी तरफ करीब ला कर मेरे गुलाबी होंठो को चूम कर)

अब्बू: बस 2 हफ़्तो की ही तो बात है. और वैसे भी हर रात को देखे बिना नींद थोड़ी ही आएगी.

फ्लाइट रात की थी, और कपड़े पॅक किए और मुराद भाईजान के साथ गाड़ी में एरपोर्ट के लिए निकल गये. अब्बू के जाने के बाद मेरी तो पूरी रात जैसे काटनी बड़ी मुश्किल तो रही थी. इसलिए दोबारा इयरफोन कानो में लगाए और पॉर्न देखने लगी.

उस रात जितनी दाद-डॉटर सजेशन्स में वीडियो आई, मैं लगभग सब देखती चली गयी. फिर जैसे ही सारे सजेशन्स ख़तम हो गये, स्टेप-ब्रदर और सिस्टर की वीडियो आने लगी थी.

लेकिन मैं उस रात बहुत ज़्यादा लोन्ली फील कर रही थी, और बस लॅपटॉप स्क्रीन के सामने पॉर्न देखे जेया रही थी. और उसी में मेरी आँख लग गयी, और मैं सो गयी.

अगली सुबा सब जैसे नॉर्मल हो गया हो. मैं 8 बजे के करीब उठी, और फ्रेश हो कर नाश्ता किया. फिर मैं वापस पढ़ाई करने रूम में आ गयी, क्यूंकी 4 दिन बाकी थे. लेकिन अभी भी हाफ यूनिट्स बाकी थे.

पढ़ाई करते-करते 12 बाज गये. मुझे पता नही चला लेकिन टाइम का तब पता चला जब मुराद भाईजान ने मेरे नाम की आवाज़ लगाई. बाहर आके देखा, तो भाईजान पिज़्ज़ा लेके आए थे.

नॉर्मली मुराद भाईजान कभी इतने मेहरबान होते नही है. जब भी उनसे पिज़्ज़ा की डिमॅंड करो तो बहाने मारने लगते है, कभी अपना काम करवाते है, या फिर मुझे पढ़ने को कह कर बात ताल देते है.

लेकिन आज मुझे क्या, मुझे तो बस पिज़्ज़ा दिखा, और मैं बस पिज़्ज़ा पे बरस पड़ी. मुझे खाता देख मुराद भाईजान ने मेरे सर पे हाथ सहलाया, और बोले-

मुराद: अर्रे आराम से खा पागल, तेरे लिए ही लाया हू.

मैं: वाह भाईजान, आज इतना मेहरबान कैसे हो गये? कोई लॉटरी वग़ैरा लग गयी है क्या?

मुराद: लॉटरी! हा लॉटरी जैसा ही कुछ कह सकती हो. किस्मत है मेरी बस, ये समझ ले.

मैं: हा तो बताओ ना, कितने की लगी लॉटरी?

मुराद: 35 से 40 क्ग के बीच में लगाई है.

मैं: अर्रे भाईजान, ये वेट क्या बता रहे हो. कितने रुपय की लगी है, ये बताओ?

मुराद: अर्रे वो तो मिलने के बाद बतौँगा ना.

तभी अम्मी भी आई, और टेबल पे पिज़्ज़ा देख बोल पड़ी.

अम्मी: जब तुझे पिज़्ज़ा लाना था, तो बोल देता, खाना कम बनती मैं.

मुराद: बस अम्मी, मूड बन गया तो ले आया. अछा मैं अब चलता हू. ऑफीस से आने में देर हो जाएगी.

“देर हो जाएगी ” इन वर्ड्स पे मुराद भाईजान ने बड़ा ही ज़ोर दिया, और जाते-जाते मुझे एक बार और निहारते हुए घर से निकल गये.

खाने के बाद मैं तक गयी, और सीधा बिस्तेर पर लेट-ते ही सो गयी. करीब 4 बजे फोन रिंग हुआ. फ्रेंड का फोन था. फोन उठाते ही उसने घबराते हुए पूछा.

फ्रेंड: साली कुटिया तूने सारा पढ़ लिया.

एक तो मैं नींद में, उपर से ये बातें, मेरा तो जैसे सर घूमा, और मैं भी गुस्से में बोल पड़ी-

मैं: बाकचोड़ी मॅट कर, सोने दे.

और फोन काट के फिरसे लेट गयी. लेकिन जैसे इस बार अधूरी नींद को अधूरा छ्चोढ़ कर अम्मी के पास गयी, तो उन्होने किचन के काम में लगा दिया, और खाना बनाते-बनाते 7:30 बाज गये.

कुछ पढ़ने के इरादे से बुक्स उठाई, लेकिन पता नही क्यूँ उनका वेट आज बहुत ज़्यादा लगा, और वापस हॉल में आ कर टीवी के सामने बैठ गयी.

वही बैठे-बैठे कब डिन्नर किया, और टाइम निकल गया, कुछ पता नही चला. फिर घड़ी की तरफ नज़र घूमी तो घड़ी में 9:45 हुए थे.

मैं: अम्मी! भाईजान ने खाना खा लिया?

अम्मी: अर्रे वो आज ऑफीस से लाते आएगा. जाते-जाते उसने बोला तो था. जेया तू भी जाके अब सो जेया.

लेकिन मेरा मॅन अभी सोने का नही था. पर तभी अब्बू का फोन आया, और मैं सोने का बहाना करके रूम में चली आई.

अब्बू: बेटी ज़राइना कैसी है?

मैं: आपके बिना तो अब्बू मैं बोर हो गयी हू पुर दिन.

अब्बू: अछा तो ज़रा वीडियो कॉल पे आओ. अभी सारी की सारी बोरियत मिटा देते है.

लॅपटॉप में वीडियो कॉल लगा के अब्बू के सामने बैठ गयी मैं.

अब्बू: ज़राइना, जब से यहा आया हू, तब से तेरी याद में मूठ मार चुका हू. अब चाहता हू इस वाली मूठ मारने में तू मेरा साथ दे.

मैं: अब्बू, सेम मेरा भी हाल है आपके जाने से. मेरी छूट भी वीरान हो गयी थी.

और यहा पहले मैने अपना टॉप निकाला, और स्कर्ट निकाल कर अब्बू के सामने ब्रा पनटी में बैठ गयी. फिर मैं अपने बूब्स दबाने लगी. वही अब्बू मेरी मसलनी देख के अपना लंड सहलाने लगे.

कामुकता की सीडी चढ़ते-चढ़ते इधर मैने एक-एक कर अपनी ब्रा पनटी भी अपने शरीर से उतार दी थी. वही अब्बू भी नीचे से पुर नंगे हो कर अपना लंड धीरे-धीरे सहलाए जेया रहे थे. उनका सहलाता हुआ लंड देख मेरी छूट तूफान उठाने लगी, और अपनी 1 उंगली डाल कर मैं तूफान को शांत करने की कोशिश करने लगी.

कुछ देर तूफान थमा सही, लेकिन अचानक से तूफान ने स्पीड पकड़ी, जिसे पकड़ने के लिए मैने अपनी दूसरी उंगली भी छूट में घुसा दी. ये सोच कर की शायद अब मेरी छूट का तूफान शांत हो जाए.

लेकिन जैसे अब्बू की चुदाई ने मेरी छूट के तूफान को जानम दिया हो, और इसको शांत होने के लिए बस अब्बू का लंड ही था, जो इसको शांत कर सकता था. लेकिन उस टाइम मेरे पास कोई नही था. पर तूफान को शांत करना भी ज़रूरी था.

इसलिए मैं तीसरी उंगली भी डाल कर छूट में उंगली करने लगी. छूट में उंगली करने की स्पीड को देखते हुए अब्बू ने भी मूठ मारने के स्पीड बढ़ा दी. अब्बू का लंड झाड़ चुका था. लेकिन फिर भी वो मूठ मारे जेया रहे थे, मारे जेया रहे थे.

मेरी छूट में घुसती निकलती उंगलियों की रफ़्तार को देख अब्बू रुकना नही चाहते थे, और वही मेरी छूट की भी हालत थी. छूट में जन्मा तूफान शांत होने का नाम नही ले रहा था.

लेकिन जैसे मुझे ऐसा फील हो रहा था, की कुछ है जो मेरी छूट से निकालने वाला था. निकालने वाला क्या निकल ही गया. लॅपटॉप की स्क्रीन को अपनी छूट ने नीचे रखते हुए ( जिससे मेरी छ्होटी छूट अचानक से स्क्रीन पे बड़ी-बड़ी दिख रही थी), ज़ोर-ज़ोर से उंगली करने लगी. फिर ज़ोरदार प्रेशर से मेरी छूट से गरम धारा निकलती गयी.

निकलती गरम धारा के साथ मेरी कामुक आवाज़े भी निकली. लेकिन उसको बंद करने के लिए मूह पे हाथ रखा. पर जैसे तब तक बहुत देर हो चुकी हो. तभी अचानक से मेरे रूम का दरवाज़ा खुला, और बाहर से मुराद भाईजान ठीक मेरे सामने आ गये.

तो थोड़ी देर के लिए यही रुकते है. बाकी जब अगली बार मिलेंगे तब.

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