जेठ जी से चूड़ने की मजबूरी

जब हवस की मौजें बन सैलाब बड़ी ऊँची उठ जाती हैं,
मर्दानगी तगड़ी जब रूप के अम्बार से मिल छलकाती हैं।

जब बदन की ज्वाला दावानल बन बेकाबू हो जाती हैं,
तब अभिसारिका बन औरत कई मर्दों से चुदवाती है।।

कैसे खुश होगी शमा एक परवाने की कुर्बानी से,
धधकती यह ज्वाला कैसे बुझ जायेगी आसानी से।

प्यार की रिमझिम बारिश की बर्षा ही उसे बुझाएगी
ममता करुणा और सहनशीलता से घर शांति आएगी।।

जब चुदाई के लिए मन में तीव्रेच्छा होती है, जब हवस दिमाग पर हावी होता है तो सिर्फ एक औरत को चोद कर या एक ही मर्द से चुदवा कर मन नहीं भरता। हमें उसमें विविधता चाहिए। विविधता भी कई रूप में प्रगट होती है। अलग अलग मर्दों से चुदवाना या अलग अलग औरतों को चोदना।

इसके अलावा विविधताओं में अलग अलग तरीकों से चुदाई करना या करवाना; जिसमें गाँड़ मारना या मरवाना (जिसे कई लोग अप्राकृतिक मानते हैं), दो या ज्यादा मर्दों से एक औरत की चुदाई, या दो कपल के बिच में एक दूसरे की बीबी को चोदना, और इस तरह की अनेकानेक कई विविधताएं शामिल होतीं हैं।

कई बार औरतों या मर्दों की आँखों पर पट्टी बाँध कर या हाथ पाँव बाँध कर औरतों को चोदना ऐसे प्रयोग होते हैं। आजकल तो पूरी दुनिया में इस तरह के नए नए प्रयोगों की भरमार नेट पर देखने को मिलती है।

ऐसे प्रयोग अगर सावधानी से और कभी कभी किये जाएँ तो उचित है। यह भी ध्यान रहे की पति और पत्नी ऐसे प्रयोग एक हादसा समझ कर ही करें। क्यूंकि यह प्रयोग अगर ज्यादा नियमित रूप से किया जाए तो पति और पत्नी में परिपक्वता के अभाव से कई बार अविश्वास, इर्षा, मोह और अहंकार के कारण क्लेश पैदा हो सकता है।

उस समय यह धधकती हवस की ज्वाला के पागलपन को शांत करने के लिए अपार धीरज, सहनशीलता और अपने साथीदार के प्रति संवेदनशीलता भरा प्यार हमारे अंतर्मन में होना आवश्यक है। पति पत्नी को यह समझना होगा की ऐसे प्रयोग जिंदगी की राह में एक अनुभव के तौर पर ही करने हैं।

जिंदगी तो अपने साथीदार के साथ ही गुजारनी है। जिंदगी में ऐसे प्रयोग एक रोमांचक हादसा ही बन कर रह जाए, जिंदगी की राह ना बदलने की कोशिश करें तो ही बेहतर हैं। कभी कभार उत्तेजना में चोदना या चुदवाना एक आसान बात है पर पति पत्नी बनकर जीवन भर साथ निभाना मुश्किल है।

जैसा की मैंने बताया, मैं माया से एकदम खुली हुई थी। माया मुझे उसकी चुदाई मेरे जेठजी कैसे करते थे उसके बारे में सब कुछ बताती थी। तब तक मुझे नहीं मालुम था की मेरे जेठजी इतने रंगीले मिजाज के होंगे।

जब अचानक एक दिन मैंने सोते हुए जेठजी का लण्ड देखा और नींद में ही जेठजी को उसे सहलाते देखा तब मुझे एहसास हुआ की मेरे जेठजी को उन्हें प्यार करने वाली औरत की सख्त जरुरत है। उस समय मेरे मन में भी अजीब सी हलचल हो रही थी। पर मेरे जेठजी का दबदबा ही कुछ ऐसा हमारे दिमाग पर छाया हुआ था की उनके बारे में इधरउधर सोचना हमारे लिए नामुमकिन सा था।

पर आखिर में तो मैं भी एक औरत ही थी ना? और किसी भी औरत को अगर किसी मर्द का ऐसा तगड़ा लण्ड देखने को मिले तो उसके मन में हलचल होगी ही, यह स्वाभाविक था। खास तौर से मेरे जैसी औरत के लिए, जिसने चुदाई में विविधता का अनुभव किया हुआ था और चुदाई के बारे में जिसके विचार ज्यादा रूढ़िवादी नहीं थे, उसका मन तो ऐसे वाकये से हिल जाएगा ही। ।

कुछ देर मेरे मन में भी उलटपुलट ख़याल आते रहे पर मैं अपनी चूत में मेरे जेठजी के लण्ड को लेने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी। फिर हमारे पास माया थी जो मेरे जेठजी की समस्या हल कर सकती थी। माया को भी एक मर्द की जरुरत थी।

जेठजी के साथ माया की सेटिंग कराना तर्कसुसंगत था। जेठजी का मन जानना जरुरी था इस कारण मैंने कुछ जोखिम मोल कर माया को किसी बहाने मेरे जेठजी के पास करीब आधी रात को अच्छी तरह समझा बुझा कर भेजा। जैसा की पाठक जानते हैं, माया जेठजी के पास गयी और फिर वही हुआ जो मैं चाहती थी और जो होना चाहिए था।

दोनों की वासना मर्यादाओं के बंधन तोड़कर बाहर आ गयी और पहली बार माया की मेरे जेठजी से तगड़ी चुदाई हुई और फिर उनकी शादी भी हो गयी। पहली रात की माया की तगड़ी चुदाई से ही मैं जान गयी थी (जब माया पूरी चुदाई के दरम्यान चीखती, चिल्लाती, कराहती और सिकारियाँ भरती रही थी) की मेरे जेठजी से चुदवाना किसी भी औरत के लिए एक ख़ास अनुभव होगा। अब मेरे जेठजी से चुदवाने की मेरी बारी आने वाली थी यह सोच कर ही मैं मन ही मन डर (या रोमांच?) के मारे काँप रही थी।

माया और मैं करीब करीब एक ही कद और काठी के थे। पर फिर भी मन में डर तो था ही की मुझे चोदते हुए मेरे जेठजी को कहीं शक ना हो जाए की मैं माया नहीं कोई दूसरी औरत थी। माया कई बार कह चुकी थी की मेरे जेठजी माया को कम ही बक्षते थे। जेठजी माया को करीब करीब हर रोज ही चोदते थे। माया भी तो बड़े उत्साह से चुदवाती थी।

यह तो साफ़ था की इतने समय में मेरे जेठजी माया के बदन के हरेक मोड़, हरेक उभार, हरेक ढलाव, हरेक छिद्र और हरेक कोने से वाकिफ हो चुके होंगे। भले ही दो औरतें बदन के नापदण्ड के हिसाब से एक दूसरे से मिलती जुलती हों, पर हर औरत के बदन में और चुदाई के समय की हरकतों में छोटामोटा फर्क तो होता ही है।

हालांकि माया ने मेरे साथ रह कर मुझे काफी टिप्स दिए थे की मुझे कैसे अपने आप को माया की तरह दिखाना है, पर फिर भी कहीं ना कहीं कुछ ना कुछ गड़बड़ हो सकती थी। इस बात को ले कर मन में डर तो था ही।

माया की टिप्स सुन कर तो मैं और डर गयी थी। तब मुझे माया ने ढाढ़स देते हुए कहा था, “दीदी, देखो अगर आपके जेठजी को कोई फर्क महसूस भी हुआ तो वह यही समझेंगे की मैं ही दिखावा कर रही होउंगी, ताकि उनको दूसरी औरत का एहसास हो। हाँ, एक बात हो सकती है। अगर आप को मेरे सामने नंगी होने में और मेरे पति और आपके जेठजी से चुदने में एतराज ना हो तो अगर आप कहो तो मैं आप के पास ही रहूंगी ताकि वक्त आने पर अगर कुछ बोलना पड़ा तो मैं बोल दूंगी।”

माया की बात सुन कर मेरा माथा भी ठनक गया था। अब यही बाकी रह गया था! खैर, जब जेठजी से चुदवाना ही था और वह भी माया के कहने से तो फिर वैसे भी क्या शर्म और क्या लाज? माया ने भी तो मेरे कहने से मेरे जेठजी से चुदवाया था।

माया भी जेठजी की चुदाई के बारे में मुझे आकर कुछ भी छिपाए बिना सब कुछ साफ़ साफ़ बता देती थी। मैं इतने महीनों में माया से जेठजी कैसे चोदते थे, क्या क्या पोजीशन में चोदते थे, चोदते समय वह क्या क्या बोलते थे और माया क्या क्या बातें करती थी यह सारी बातें माया मुझे विस्तार पूर्वक बताती रहती थी।

कई बार ऐसा होता था की माया नहा रही होती थी और अगर मैं उसके कमरे में पहुँच गयी तो बेतकल्लुफ, माया मेरे साथ बातें करते हुए तौलिये से अपना बदन पोंछते हुए मेरे सामने ही कपडे बदलती थी और ऐसा करते हुए कई बार मुझे उसकी जाँघें, चूत, गाँड़, चूँचियाँ, निप्पलेँ सब कुछ दिख जाता था। वह उन्हें छिपा ने की कोशिश भी नहीं करती थी।

एक दो बार तो तौलिया गिर जाने से वह मेरे सामने बिलकुल नंगी भी हो गयी थी। बादमें जैसे कुछ हुआ ना हो वैसे माया तौलिया उठा कर लपेट लेती थी। एक बार तो उसने बगैर तौलिया लपेटे ही नंगी रहते हुए ही अलमारी में से कपडे निकाल कर पहन लिए थे। मैं जब उसे भौंचक्की सी देखने लगी तो मुझे देख कर वह बोली, “क्या हुआ दीदी? हम दोनों औरतें ही तो हैं? इस में क्या छिपाना?”

माया की बात सुनकर मैं तय नहीं कर पा रही थी की क्या मुझे माया के देखते हुए मेरे जेठजी से चुदवाना चाहिए या नहीं? सबसे पहली बार माया ने जब मुझे मेरे जेठजी से हुई तगड़ी चुदाई के बारे में सविस्तार बताया था तब से मेरे मन में पता नहीं क्या अजीबोगरीब भाव पैदा होने लगे थे। उस वक्त तो मेरी चूत इस कदर गीली हो गयी की शायद मेरी पैंटी भी भीग गयी थी। उसके साथ साथ ना चाहते हुए भी कहीं ना कहीं मेरे मन की गहराइयों में माया के लिए इर्षा के भाव हो रहे थे।

काश माया की जगह मैं मेरे जेठजी से चुदवा ने के लिए जा पाती। मेरे जहन में यह इच्छा एक ज्वाला की तरह भड़क उठी थी। पर जेठजी का दबदबा और मर्यादा के कारण इसे अमल में लाना तो दूर, इसके बारे में सोचना भी मेरे लिए लक्ष्मण रेखा को लांघने के समान अयोग्य था।

वही मेरे मन की प्रबल इच्छा छद्म रूप में ही सही पर अब पूरी होने जा रही थी। मैं मेरे जेठजी से चुदने वाली थी। मैंने माया को कहा, “जब सिर ही ओखल में रख ही दिया है तो अब मुसल के क्या डरना?”

मैंने अपने मन से सारे डर और झिझक को निकाल फेंका। मैं जेठजी से वैसे ही चुदवाने के लिए मानसिक रूप से तैयार हो गयी जैसे मैं अपने पति से या किसी और मनपसंद मर्द से चुदवाती। मैंने जेठजी को मेरे जेठजी के रूप में नहीं पर मेरे आशिक़ या प्रेमी के रूप में देखने का मन बना लिया।

अगर मैं मेरे जेठजी से चुदवाते समय उन्हें मेरे जेठजी के रूप में देखूंगी तो मेरे मनमें उनके लिए जो श्रद्धा रूपी आदर है उसके कारण मुझमें एक अजनबी सा भौतिक अंतर, हिचकिचाहट और झिझक रहेगी। वह भाव मुझे उनसे प्यार से चुदवाने नहीं देगा।

मैं यहां यह स्वीकार करती हूँ की मेरे मन में हमेशा मेरे जेठजी के लिए जो गाढ़ आदर और सम्मान के कारण प्यार का भाव था उसके चलते मैंने कई बार सपनों में जेठजी से बेतहाशा दबंगाई से खूब चुदवाया था।

हरेक स्त्री के मन में जो उसके अति प्रिय पुरुष रिश्तेदार, चाहे वह भाई, पिता, जेठ, देवर, ससुर, चाचा, ताऊ या कोई और हो; कहीं ना कहीं, कभी ना कभी उनसे चुदवाकर उनको बेतहाशा प्यार कर उनको सुख देने का भाव तो आता ही है। शायद इसी भाव पर लगाम देने के लिए समाज ने कुछ नियम बनाये और उनके द्वारा बंधन पैदा किये, जिनके कारण इस भावना पर नियंत्रण किया जा सके।

जब मुझे मेरे जेठजी से चुदवाने का अवसर मिला तो मेरा कर्तव्य बनता था की मैं उनको वह उच्छृंखल, उन्मत्त, उन्मादपूर्ण आनंद दे पाउं जो मुझे उनको एक प्यारी अभिसारिका के रूप में देना चाहिए। अगर भावान्तर बिच में आ गया तो फिर ना ही मैं स्वयं उनसे वह चुदाई का आनंद ले पाउंगी जिसके लिए मैंने इतना बलिदान किया था और ना ही मैं उनको वह आनंद दे पाउंगी जो मुझे उनको देना चाहिए।

यह सच था की मैं उनसे माँ बनने के लिए चुदवा रही थी। पर यह भी सच था की चुदवाते समय अगर स्त्री उन्छृंखल आनद से चुदवाती है तो उसका बच्चा भी आनंदी, शकुशल, कुशाग्र, समझदार और संतोषी पैदा होता है। अगर चुदवाते समय स्त्री के मन में चिंता, द्वेष, ग्लानि या दोष का भाव हो तो उसका नकारात्मक असर बच्चे पर भी पड़ता है।

मैंने माया को कहा, “माया, मैं सच कहती हूँ, जब तुमने मुझे मेरे जेठजी से चुदवाने का प्रस्ताव किया था तब तो मैं दिखावा कर रही थी की मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती थी। पर वास्तव में तो मेरे अंतर्मन से बहुत खुश हुई थी। मेरी समस्या यह थी की मैं मेरे जेठजी के सामने उनकी बहु बन कर कैसे चुदवा सकती हूँ? आज तुमने मुझे यह मौक़ा दिया है की मैं उनसे चुदवा भी लुंगी और हमारा भेद भेद ही रहेगा। तो अब हमें इस प्रयास को सफल बनाना है।

माया प्लीज यह देखना की मेरी इज्जत बनी रहे और यह भेद ना खुले। मैं तुम्हारे भरोसे यह रिस्क ले रही हूँ। मुझे पुरे स्वच्छंद तरीके से मेरे जेठजी से चुदवाना है। मैं चाहती हूँ की मैं भी तुम्हारे पति और मेरे जेठजी को वैसा आनंद दे सकूँ जैसा की तुम देती हो। इसके लिए बेहतर है तुम भी पास में ही रहो और जरुरत पड़ने पर इशारों से मुझे मार्गदार्शन करती रहो। मुझे तुम्हारे पति और मेरे जेठजी से तुम्हारे सामने ही चुदवाना होगा। मैं तैयार हूँ।”

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