मेरी सहेली की मम्मी की चुत चुदाइयों की दास्तान-4

मैंने देखा कि बंटी और उसके दोस्त ने कपड़े पहनने शुरू कर दिए थे। कम से कम ये दोनों मुझे कई बार नहीं चोदेंगे। ऑटो वाले के हर झटके के साथ उसका पूरा लंड मेरी चुत में जाता और मुझे उसकी झाटें अपनी गांड पर महसूस होतीं।
घोड़ी बनाकर वह चोदते हुए मेरे मम्मे भी दबा रहा था।

मुझे अहसास हुआ कि मुझे मजा आ रहा था, मैं थक गई थी और दर्द हो रहा था, मेरे घुटने छिल गए थे लेकिन घोड़ी बन कर चुदना मेरी सबसे मनपसंद पोजीशन है।

‘बहुत गालियाँ दे रही थी न तू मुझे साली रांड… तेरी चुत का भोसड़ा न बना दिया तो भजन लाल मेरा नाम नहीं!’ वह पूरा जंगली बना मुझे चोद रहा था।
उसकी स्पीड बढ़ती ही जा रही थी, उसका काला मोटा लंड सच में मेरी चुत का भजिया बना रहा था।

‘आह्हह्ह ह्हह्हह… मेरा पानी निकल रहा है साली रंडी! तूने चुदाई करवा कर आत्मा तृप्त कर दी!’ अगले ही पल उसने मुझे मेरी कमर को पकड़ कर कस कर भींच लिया।
उसका गर्म बहता हुआ लावा मैं अपनी चुत में महसूस कर रही थी जो बहता हुआ बाहर मेरी जांघों तक आ रहा था।

ऑटो ड्राईवर ने भी अपना पानी मेरी चुत में छोड़ा और फिर अपना लंड निकाल लिया।
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बंटी और उसका दोस्त कपड़े पहन चुके थे, उन्होंने मेरी टी-शर्ट और जीन्स मेरी ओर उछालते हुए कहा- जल्दी से पहन लो, यहाँ से निकलते हैं।
‘नम्बर तो देकर जा यार?’
‘जल्दी नोट करो, बहुत देर से निकली हुई हूँ।’

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पाँच मिनट बाद हम वापस उसी मेट्रो स्टेशन पहुँच गए। मेरा बैग मुझे पकड़ा कर बंटी और उसका दोस्त किसी और ट्रेन में चढ़ गए, और ऑटो रिक्शा वाला चला गया।

मैं थोड़ी देर तक स्टेशन पर बैठ कर अपने टांगों के बीच में बहते चिपचिपे वीर्य, अपने मम्मों के ज़ख़्म और चुत के दर्द को महसूस करती रही।
मैं उन दोनों लड़कों और ऑटो वाले से पूरी रात चुदवाना चाहती थी लेकिन शादीशुदा औरत थी कोई रंडी नहीं, इसलिए मन मसोस कर चुपचाप वापस आ गई।
किसी से कुछ कह ही नहीं सकती थी।

घर आते वक्त जब अपनी गली में दाखिल होने लगी तो वहाँ मेरे कॉलेज का मेरा एक स्टूडेंट गोविंद बैठा था। हमारी गली की दूसरी तरफ़ रास्ता नहीं है, बंद गली है।
गोविंद पर जैसे ही मेरी नज़र पड़ी, उसने कहा- हाय मैडम हाऊ आर यू? मैडम मैं आपसे इंग्लिश की कोचिंग लेना चाहता हूँ।
‘ओह! ऐसा क्या? तो इतनी रात में यहाँ बाहर क्यों बैठे हो, अन्दर आकर बात करो।’
‘अभी आपके पति हैं। फिर कभी आऊंगा।’

‘ठीक है। तुम कल से आना शुरू कर दो।’ मैंने उसको ऊपर से नीचे तक देखते हुए जवाब दिया।
‘मैडम ये खाने के लाई हो या कुछ और…?’ मेरे हाथ में केलों के थैले की तरफ इशारा करते हुए पूछा।

मैंने हल्के से मुस्कुराते हुए उसकी तरफ़ देखा- शैतान कहीं का…
‘उफ़्फ़ क्या कहूँ… उसका दूसरा हाथ तो उसकी पैंट पर था और वो लंड को पैंट पर से सहला रहा था। मैं थोड़ा सा शरमा गई लेकिन फिर हिम्मत करके हल्की सी मुस्कुराहट देकर आँख मार दी और घर पहुँच गई।

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मेरी प्यासी जवानी को जल्द ही नया जवान स्टूडेंट का लंड मिलने वाला था। मुझे ख़ुद पर गुस्सा भी आ रहा था कि मैं तो दिन भर जवान लंडों के बीच ही रहती हूँ फिर इतना तड़पना क्यों था अब तक!

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