राज और अमीना की चुदाई

रजनी की दोपहर की नींद आज कुछ जल्दी ही उचट गई। उसे प्यास लगी थी और उसकी नौकरानी अमीना उसके कमरे में पानी रखना भूल गई थी।

पहले तो उसका मन हुआ कि वो अमीना को आवाज़ लगा कर पानी मँगा ले.. फ़िर सोचा इस भरी दोपहरी में वो भी सो रही होगी। उसने ख़ुद ही उठने की सोची।
जैसे ही रसोई में पहुँची.. उसे नीचे गैराज़ में से कुछ अजीब सी आवाजें आईं।
ध्यान से सुनने पर उसे लगा कि यह तो अमीना के रोने की आवाज़ है।
किसी अनहोनी की आशंका से वो तुरन्त नीचे गैराज़ की ओर बढ़ी।

रसोई के पीछे कुछ सीढ़ियाँ उतर कर वो जैसे ही गैराज़ के दरवाज़े तक पहुँची.. अन्दर के नज़ारे पर नज़र पड़ते ही उसका दिल धक से रह गया।
यहाँ तो मामला कुछ और ही था।
अमीना रो नहीं रही थी.. वो अपने अस्त-व्यस्त कपड़ों के साथ कोने वाली टेबल पर लेटी हुई थी और रजनी का ड्राइवर राज.. अमीना की गोरी-चिकनी टाँगों के बीच उस पर झुका हुआ था और जिसे वो अमीना के रोने की आवाज़ समझ रही थी.. वो यौन-क्रीड़ा की मस्ती में मदहोश.. अमीना की सिसकारियाँ थीं।
रजनी को एक झटका सा लगा.. सहसा उसे विश्वास ही नहीं हुआ.. जो उसने देखा।
‘ओ माय गॉड.. ही इज़ फ़किंग हर..’
रजनी के पैर जैसे वहीं जम गए।
उसने देखा कि अमीना का घाघरा उसकी जाँघों से ऊपर तक सरक आया था.. उसका एक पैर राज के कन्धे पर था।
राज ने एक हाथ से उसकी जाँघ और दूसरे से उसकी पतली क़मर को थाम रखा था और पूरे दम से धक्के लगा रहा था।
अमीना के ब्लाउज़ के बटन खुले हुए थे और उसके बड़े-बड़े दूधिया स्तन राज के हर धक्के के साथ ऊपर को उछल रहे थे।
अमीना जैसे मस्ती में पगला सी गई थी, उसकी गहरे गुलाबी बड़े-बड़े निप्पल उत्तेजना से ऐंठ कर खड़े हो गए थे।
बड़ी बेशर्मी से वो राज को और ज़ोर से धक्के मारने को कह रही थी। राज के शरीर पर एक भी कपड़ा नहीं था और वो पूरे दम से उसे चोद रहा था।
रजनी सन्न रह गई।
उसकी 18 साल की नौकरानी.. जिसे वो मासूम बच्ची समझती थी.. वो और उसका ड्राइवर भरी दोपहर में उसी के घर के गैराज़ में सैक्स कर रहे थे।
नंगेपन का यह ख़ुला खेल देख कर गुस्से से उसके पूरे बदन में तनाव सा आ गया, उसकी साँसें तेज़-तेज़ चलने लगीं।
अचानक़ रजनी की नज़र राज पर पड़ी तो उसका दिल धक से रह गया, पूरा नंगा राज.. अमीना को चोदते हुए रजनी की ओर ही देख रहा था यानि कि वो जान चुका था कि रजनी वहाँ खड़ी थी।
दोनों की नज़रें आपस में मिलते ही रजनी के बदन में एक सिहरन सी उठी.. लेकिन वो उम्मीद कर रही थी कि अपने इस राज़ के खुलने पर राज शर्म से पानी-पानी हो जाएगा।
लेकिन ये क्या.. राज एक क्षण को ठिठका जरूर.. लेकिन अगले ही पल उसने अपनी मज़बूत बाँहों में अमीना को जकड़ लिया और रजनी की ओर देखते हुए अपने चोदने की रफ़्तार बढ़ा दी।
पगलाई अमीना भी अपने नितम्ब उछाल-उछाल कर राज का साथ दे रही थी। उसकी सिसकारियाँ अब मिन्नतों में बदल रही थीं- आऽऽऽह.. राज आऽऽऽह.. ऽऽऽराऽऽज चोदो मुझे.. और ज़ोर से जाऽऽऽनू.. मेरी प्यासी चूत की प्यास बुझा दो राजा.. ऽऽआह आहऽऽ..
साफ़ ज़ाहिर था कि काम-क्रीड़ा के चरम पर वो राज से पहले पहुँचना चाहती थी। राज अभी भी रजनी की ओर ही देख रहा था और उसकी आँखों में एक ढिठाई थी।
यह बात रजनी को नाग़वार ग़ुज़री.. वो उत्तेजना और गुस्से से काँपती हुई गैराज़ के बीचों-बीच आ गई और ज़ोर से चिल्लाई- यह क्या हो रहा है?
उसकी आवाज़ सुन कर अमीना की रूह काँप उठी। मस्ती के सातवें आसमान से भय के धरातल पर धड़ाम से गिरी अमीना ने राज को परे धकेल कर उठने की कोशिश की..
लेकिन राज की कसरती भुजाओं ने उसे बेबस कर दिया।
अमीना कसमसा कर छूटने का प्रयास करने लगी, वो चिल्लाने और गालियाँ भी देने लगी.. मानो राज उसके साथ ज़बरदस्ती कर रहा हो। लेकिन राज पर उसके चिल्लाने.. गालियाँ देने का कोई असर नहीं हो रहा था, उसने अपनी कसरती भुजाओं में अमीना को दबोचा और अपनी उसी रफ़्तार से मंजिल की ओर बढ़ने लगा, उसने अपनी चुदाई की रफ्तार को और तेज़ कर दिया।
रजनी देख रही थी कि कुछ देर में अमीना बेबस हो चुकी थी। उसके तन की गहराइयों से निकलने वाली आनन्द की लहरों का प्रभाव उसके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था। उसकी आँखें बन्द थीं.. वो अब भी राज के चंगुल से छूटने का दिखावटी प्रयास कर रही थी।
इधर राज की साँसें तेज़ हो गई थीं.. वो शायद अपनी मनमानी के अन्तिम दौर में था। उसका मज़बूत बदन पसीने से लथपथ हो गया था तथा अमीना को चोदने की उसकी रफ़्तार और तेज़ हो गई थी। उसके ताक़तवर ज़िस्म के ज़ोरदार धक्कों से पैदा गर्मी से अमीना अपने यौन आनन्द के चरम पर पहुँच चुकी थी।
अमीना के अधनंगे ज़िस्म में एक तनाव आया और कुछ झटकों के साथ तृप्ति की गहरी साँसें लेती हुई वो निढाल हो गई।
रजनी ने राज को देखा.. वो अभी भी उसकी ओर ही देख रहा था। रजनी जहाँ उसकी ढिठाई को देख कर अवाक् थी.. वहीं उसका मज़बूत सुघड़ शरीर और अनथक सैक्स सामर्थ्य देख कर दंग रह गई।
राज कितनी देर से अमीना के शरीर के साथ खेल रहा था।

अमीना की गोरी-चिकनी जाँघों के बीच में तेज़ी से आगे-पीछे होती उसकी क़मर.. चौड़ी बालदार छाती.. गोल कन्धे और मज़बूत बांहों की मर्दाना माँसपेशियां देख उसे अपने शरीर में कुछ अज़ीब सा महसूस होने लगा।
उसका दिल तेज़ी से धड़कने लगा.. साँसें तेज़ चलने लगीं और शरीर काँपने लगा।
शायद गुस्से से.. या फ़िर उत्तेजना से.. यह वो तय नहीं कर पा रही थी।
उसे ये सब कुछ किसी फ़िल्म जैसा लग रहा था.. एक एडल्ट नंगी फ़िल्म जैसा।
अचानक राज के मुँह से तेज़ आवाज़ निकली.. वो स्खलित हो रहा था। दो-चार ज़ोर के झटके खा कर वो चरम आनन्द के साथ अमीना की नग्न छाती पर लुढ़क गया।
तब तक अमीना आनन्द के सुखदाई सागर में भरपूर गोते लगा कर सच्चाई की सतह पर आ चुकी थी.. जहाँ उसकी मालकिन उससे कुछ ही कदमों की दूरी पर आँखें फ़ाड़े उनके इस नंगे नाच को देख रही थी।
अमीना को जैसे काटो तो खून नहीं।
राज की पकड़ अब ढीली हो चुकी थी, अमीना ने राज को एक ओर धकेला और अपने कपड़े सम्भालती हुई तेज़ी से गैराज़ के बाहर भाग गई।
रजनी ने राज की ओर देखा।
राज अपने लण्ड पर से कण्डोम हटा कर उसमें गाँठ बाँध रहा था।
राज की पीठ रजनी की ओर थी। पता नहीं क्या आकर्षण था कि रजनी उसे एकटक देखे जा रही थी।
अचानक राज ने गर्दन घुमाई और रजनी की ओर देखा। रजनी एकदम से हड़बड़ा गई.. जैसे उसकी चोरी पकड़ी गई हो।
झेंप मिटाने के लिए वो गुस्से से बोली- इसी बात की तनख़्वाह लेते हो तुम?
उसकी बात सुन कर राज उसकी ओर घूम गया। रजनी का दिल धक्क से रह गया.. जब उसकी नज़र वीर्य से भीगे राज के अर्द्ध उत्तेजित लण्ड पर पड़ी।
‘उफ़्फ़ कितना बड़ा है।’
रजनी ना चाहते हुए भी यह नोटिस किए बिना नहीं रह सकी।
राज ने भी अपनी मर्दानगी को छुपाने का कोई प्रयास नहीं किया.. वो बेफ़िक़्री से रजनी के पास आ कर.. उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोला- नहीं मैडम.. यह काम तो मैं मुफ़्त में करता हूँ।
फ़िर हल्की सी एक मुस्कराहट के साथ, हाथ का कण्डोम कचरे के डब्बे में उछाल कर अमीना की पैण्टी से वो अपने गीले लण्ड को पौंछने लगा जो भागने की जल्दी में अमीना से वहीं छूट गई थी।
राज के इस बेहया रवैये से रजनी तिलमिला गई, वो तेज़ी से गैराज़ से निकल गई।

 

अपने कमरे में आ कर रजनी धम्म से सोफ़े पर गिर पड़ी, गुस्से के मारे उसकी साँसें तेज़ी से चल रही थीं, उसकी आँखों में गैराज़ के दृश्य तैर रहे थे और कानों में अमीना की निर्लज्ज सिसकारियाँ।
तभी अमीना कमरे में आई और रजनी के पास आ कर चिरौरियाँ करने लगी- दीदी जी, प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो। मेरी कोई ग़लती नहीं है।
रजनी ने गुस्से में मुँह दूसरी ओर घुमा लिया।
‘मैडम इस राज ने मुझे अकेली देख कर दबोच लिया था। मैं तो कभी उससे बात भी नहीं करती हूँ.. लेकिन ये मुझे अकेले में छेड़ता रहता है। आज भी उसने मुझे चाय देने के बहाने गैराज़ में बुलाया और जब मैं चाय देने गई तो मुझे पकड़ कर ज़बरदस्ती करने की कोशिश कर रहा था। आपने देखा ना.. आपके सामने भी वो मुझे छोड़ने को तैयार नहीं था। अच्छा हुआ आप वक़्त पर आ गईं.. वर्ना वो कमीना मेरी इज़्ज़त लूट लेता।’
अमीना रोते हुए अपनी सफ़ाई दे रही थी।
रजनी को उसकी दलीलों पर बड़ी खीज आई, गुस्सा दबाते हुए वो अमीना से बोली- अच्छा.. तो राज ज़बरदस्ती कर रहा था तेरे साथ?
‘हाँ दीदी!’ अमीना बोली।
‘वो जो हो रहा था.. तेरी मर्ज़ी के ख़िलाफ़ हो रहा था?’
रजनी ने उसे घूरा।
अमीना रजनी से आँख नहीं मिला सकी.. उसने नज़रें चुराते हुए ‘हाँ’ में सिर हिलाया।
रजनी को अमीना के झूठ पर गुस्सा आने लगा- छिनाल.. ज़बरदस्ती वो बड़ी धीरे कर रहा था कि तू अपने कूल्हे उछाल-उछाल के उसको ज़ोर-ज़ोर से करने का कह रही थी? रजनी ने झुंझला कर पूछा।
अमीना के पैरों तले ज़मीन ख़िसक गई, उसकी पोल खुल चुकी थी। उसे जब कुछ नहीं सूझा तो वो रजनी के पैरों में गिर पड़ी- दीदी मुझसे ग़लती हो गई, आज के बाद ऐसा कभी नहीं होगा। प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो मैडम।
वो गिड़गिड़ाने लगी- किसी को पता चला तो मैं बर्बाद हो जाऊँगी।
काफ़ी देर तक अमीना रोती रही।
‘अच्छा अच्छा अब उठ.. मेरे लिए चाय बना।’
कुछ देर बाद आखिर रजनी का मन पसीज़ गया।
‘मुझे किसी से कह कर क्या लेना..’
अमीना की जान में जान आई.. फ़िर भी आशंका से उसने पूछा- आप मुझे काम से तो नहीं निकालेंगी ना? दीदी.. मेरा बापू मुझे जान से मार डालेगा। दीदी मैं वादा करती हूँ आगे से ऐसा कभी नहीं होगा।
‘अगर तू एक मिनट में यहाँ से नहीं गई रसोई में.. तो मैं तुझे ज़रूर निकाल दूंगी।’ रजनी ने बनावटी गुस्से से कहा।
अमीना ने राहत की साँस ली और रसोई की ओर चल दी।
अमीना के जाते ही रजनी की आँखों में फ़िर वो मंज़र तैर गया, उसने अपनी ज़िन्दगी में कभी अपने पति के अलावा किसी और मर्द को इस तरह नंगा नहीं देखा था।
राज के कसरती बदन की तस्वीर ज़ेहन में आते ही एक अज़ीब सी सुरसुरी उसके तन में छूट गई।

रजनी राज की हिमाक़त पर हैरान भी थी कि उसे देखने के बाद भी उसने अपनी हरक़त बन्द नहीं की। इतना ही नहीं बाद में नंगा ही उसके सामने खड़ा हो गया। अनायास ही रजनी को राज का मोटा लण्ड याद आ गया। रजनी की साँसें थोड़ी तेज़ हो गईं।
इतने में अमीना चाय लेकर आ गई और रजनी के विचारों का सिलसिला टूट गया।
उसे चाय देकर अमीना भी वहीं नीचे बैठ गई।
अड़तीस साल की रजनी का वैसे तो एक भरा-पूरा परिवार था। रुपये-पैसे की कोई कमी नहीं थी.. किन्तु पति शुरू से ही कारोबार के सिलसिले में अधिकतर बाहर रहते थे। ऐसे में जब बेटा भी अपनी इन्जीनियरिंग की पढ़ाई के लिए होस्टल चला गया.. तो अकेलापन काटने के लिए क़रीब चार-पाँच साल पहले वो अमीना को अपने मायके से ले आई।
कमसिन उम्र की अमीना उसके मायके के पास रहती थी। वैसे नाम उसका शबनम था.. पर सब उसे अमीना ही बुलाते थे। अमीना की माँ मर चुकी थी और अकेला बाप तीन जवान होती लड़कियों का बोझ नहीं ढो पा रहा था।
तीन बहनों में सबसे छोटी और चुलबुली अमीना रजनी से बहुत हिली-मिली थी। अपनी मदद के लिए रजनी उसे अपने साथ ले आई। अब वही उसके अकेलेपन का सहारा थी। घर के काम-काज़ के साथ वो प्राइवेट पढ़ाई भी कर रही थी।
रजनी के यहाँ रहते हुए वो एक बच्ची से सुन्दर किशोरी कब बन गई.. रजनी को पता ही नहीं चला। उसकी जवानी काफ़ी गदरा गई थी। छातियों के उभार और नितम्बों का आकार अब लोगों का ध्यान खींचने लगा था। लेकिन रजनी के लिए तो वो एक चुलबुली बच्ची ही थी।
राजेन्द्र सिंह उनका ड्राईवर था.. जिसे सब राज बुलाते थे.. बंगले के आउट हाउस में रहता था। अपने पति के दोस्त रमेश की सिफ़ारिश पर उसने राज को छ: महिने पहले ही नौकरी पर रखा था। चौबीस-पच्चीस साल का राज वैसे तो बहुत शालीन था। बंगले की रख-रखाव और बाज़ार से सौदा लाना उसके काम थे.. जिसे वो ईमानदारी से करता था।
लेकिन आज उसका ये रूप सामने आने के बाद से रजनी हैरान थी।
और अमीना?
उसे तो वो बच्ची समझ रही थी। लेकिन आज गैराज़ की टेबल पर वो एकदम खेली-खाई औरत जैसा बर्ताव कर रही थी। जिस बेशर्मी से वो चुदाई का मज़ा ले रही थी उससे साफ़ ज़ाहिर था कि वासना का ये खेल उसके लिए नया नहीं था।
‘कब से चल रहा हैं ये सब?’
रजनी ने पूछा तो अमीना की चाय उसके हलक में ही रह गई।
‘जी.. आज ही!’ अमीना ने बा-मुश्किल चाय निगलते हुए कहा।
‘मुझे क्या बच्ची समझ रखा है?’ रजनी ने मुस्कुराते हुए पूछा।
‘टेबल पर तेरे रंग-ढंग देख कर कोई बच्चा भी कह सकता हैं कि राज ने तुझे ये खेल बहुत पहले ही सिखा दिया है, तुझे पूरी औरत बना दिया है.. बता कैसे शुरू हुआ ये सब?’ रजनी के गुस्से पर अब जिज्ञासा हावी होती जा रही थी।
‘जी वो.. जी वो..’
अमीना हिचकिचाई तो रजनी बोली- अरे डर मत.. मैं तुझसे नाराज़ नहीं होऊँगी।
रजनी ने कुछ प्यार से कहा तो अमीना का हौसला कुछ बढ़ा।
‘दीदी.. ये जब से आया था ना.. मुझे घूरता था.. मुझसे बात करने की कोशिश करता रहता था। पहले तो मैंने उससे ज्यादा बात नहीं की.. लेकिन साथ-साथ काम करते-करते थोड़ी बहुत बातें होने लगीं और जब बातें होने लगी तो धीरे-धीरे वो चुटकुले सुनाने लगा। फ़िर उसके चुटकुले गंदे होते गए, अश्लील इशारे भी करने लगा..’ अमीना ने बताया।
अमीना ने रजनी की ओर देखा, उसकी आँखों में गुस्से की जगह जिज्ञासा के भाव देख कर अमीना को तसल्ली हुई और वो खुल कर बताने लगी- पहले पहले तो मुझे अजीब सा लगता था.. लेकिन धीरे-धीरे उसके मज़ाक मेरे जवान होते मन को अच्छे लगने लगे। वो जब गंदी बातें करता.. तो मेरे तन में एक फ़ुरफ़ुरी सी होती और मैं अन्दर से भीग जाती थी।
अमीना की स्वीकारोक्ति सुन कर रजनी के दिल में कुछ हलचल सी हुई।
अमीना ने आगे बताया-
एक दिन राज बाज़ार से सामान लेकर आया.. तो बताया कि वो फ़िश मार्केट से काफ़ी बड़ी मछली लाया था। मैंने उससे बताने के लिए कहा.. तो वो बोला कि ऐसे नहीं.. ऐसी मछली तुमने आज तक नहीं देखी होगी। पहले आँखें बन्द करो फ़िर दिखाऊँगा।
उसने मुझे कुर्सी पर बिठाया और मैंने आँख बन्द की और उसने मेरा हाथ अपने हाथ में लिया। कुछ क्षणों में उसने मेरे हाथ में एक बहुत बड़ी.. मोटी-ताज़ी मछली थमा दी।
लेकिन वो कुछ नई तरह की मछली थी। उसकी खाल पर काँटे नहीं थे और आम मछली से ज्यादा कड़क थी। मैंने जैसे ही उसे देखने को आँखें खोलनी चाही.. राज ने हाथ से मेरी आँखें बन्द कर दीं.. और बोला कि इतनी होशियार हो तो हाथों से टटोल कर बताओ.. कौन सी मच्छी है?
मैंने अपना हाथ मछली पर फ़िराया। लेकिन मैं पहचान नहीं पाई। उसका मुँह वगैरह दोनों हाथों से टटोल लिए पर मुझे कोई सुराग नहीं मिला।
मछली का पिछला हिस्सा राज ने पकड़ रखा था इसलिए में उसकी पूंछ वगैरह नहीं टटोल पाई। एक और बात दीदी.. जैसे-जैसे मैं मछली को टटोल रही थी.. वो मेरे हाथों में और बड़ी व कड़क हो गई थी।
मैं मछली की गन्ध से उसे पहचान लेती हूँ इसलिए उसे सूंघने लगी। जब उसे नाक से लगाया.. तो उसमें किसी जानी-पहचानी मछली की गन्ध नहीं थी।
ध्यान से सूंघा तो उसमें राज के पसीने की गन्ध सी आ रही थी।
तभी राज ने मेरी आँखों पर से हाथ हटाया और मैंने देखा कि मेरे हाथ में कोई मछली नहीं थी बल्कि राज का.. ‘वो’ था।
‘वो क्या?’ रजनी ने उसे छेड़ा।
‘वो’ ही दीदी.. आपको पता ही है ना कि लड़कों का..’ अमीना शरमा गई।
‘मुझे तो पता है.. पर मैं देखना चाहती हूँ कि तुझे क्या क्या पता है?’ रजनी ने फ़िर से छेड़ा।
‘उस हरामी ने सब कुछ सिखा दिया।’ अमीना ज़ोर से बुदाबुदाई।
‘फ़िर बता उसे क्या कहते हैं?’
रजनी को भी जैसे रोमांच हो आया, अचानक उसे उन बातों में रस आने लगा।
अमीना की आंखें शर्म से ज़मीन में गड़ गईं।
कुछ देर के मौन के बाद बोली- उसको लण्ड बोलते हैं ना? राज उसको लौड़ा भी बोलता है।’
रजनी की सांसें जैसे रुक गईं, अमीना के मासूम मुँह से ऐसे शब्द सुन कर उसके बदन में सनसनी सी दौड़ने लगी।
‘हूँऽऽ फ़िर?’
रजनी ने बात आगे बढ़ाने कि गरज़ से पूछा।
‘फ़िर क्या.. इतना बड़ा लौड़..आ.. मेरा मतलब वो.. देख कर मुझे एक झटका लगा। मैंने घबरा कर उसको छोड़ा और उससे दूर हट गई। राज ने ज़ोर का ठहाका लगाया और मुझे दिखा-दिखा कर हिलाता रहा।
मुझे थोड़ा डर लगा.. मेरी आँखों में आँसू आ गए। ये देख कर राज ने मज़ाक बन्द कर दिया और जल्दी से अपना ‘वो’ पैण्ट के अन्दर डाल दिया। फ़िर ‘सॉरी’ बोल कर रसोई से चला गया।
उस दिन मैंने तय कर लिया था कि अब मैं उससे कभी नहीं बोलूंगी। दो-तीन दिन मैं बोली भी नहीं.. रसोई के काम के लिए बोलना भी पड़ता.. तो उसकी ओर नहीं देखती थी।
मेरी बेरुख़ी देख.. वो भी मुझसे बोलने की हिम्मत नहीं कर पाया।’
‘फिर?’
‘फिर एक हफ़्ते भर बाद ही.. मैं उसे और उसके मज़ाक को मिस करने लगी। वो ज्यादा नहीं बोलता.. तब मुझे अच्छा नहीं लगता। इसलिए एक दिन जब वो बाज़ार से सामान लेकर आया तो मैंने उससे बात करने कि गर्ज़ से पूछा कि आजकल तुम बाज़ार से मछली नहीं लाते? तो वो बोला कि किसी को पसन्द नहीं है.. इसलिए नहीं लाता।’
‘हम्म..’
‘दीदी.. फिर मैं उसके पास गई और बोली कि किसने कहा.. मुझे तो पसन्द है.. इस पर वो मुस्कुराया और बोला कि ठीक है.. कल ले आऊंगा।’
‘फिर..’
‘फिर..इतने दिनों बाद राज के चेहरे पर मुस्कान देख कर मुझे अच्छा लगा। मुझे पता नहीं क्या सूझा.. मैं उसके बिल्कुल करीब गई और पैण्ट के ऊपर से उसका लण्ड पकड़ लिया और..’
‘और..?’
‘और.. मैंने उसके लण्ड को रगड़ते हुए कहा कि राज साहब.. मुझे ये मछली चाहिए।’
रजनी की साँसें तेज होने लगीं और वो उत्कंठा से आगे का मंजर जानने के लिए आँखें अमीना की तरफ किए बैठी थी।
‘दीदी.. राज का लण्ड मेरे हाथ के नीचे फ़ूलने लगा। उसको शायद यक़ीन नहीं हो रहा था.. कि ये मैं कर रही हूँ। यकीन तो मुझे भी नहीं था कि मैं ये कर रही हूँ.. पर ना जाने क्यों मैं अपना हाथ नहीं हटा पाई।’
‘ओह्ह.. फिर..?’
‘राज वैसे ही बुत बना खड़ा था। मानो उसे डर था कि अग़र वो हिला तो कहीं मैं अपना इरादा ना बदल दूँ। वो मुझे देखे जा रहा था कि मैंने उसके पैण्ट की चैन खोल के हाथ अन्दर सरका दिया..’ अमीना बोलते-बोलते रुक गई।
वो सोचने लगी कि उसकी इस बेशर्म हरकत पर रजनी की ना जाने क्या प्रतिक्रिया होगी। वो चुप हो कर ज़मीन को ताकने लगी।

यह कहानी भी पड़े  मैथ्स के प्रोफेसर ने मुझे कॉलेज में ही पटक पटक कर चोदा

 

रजनी को अमीना की बेहयाई पर हालांकि झटका ज़रूर लगा था लेकिन अब उसे बातें सुनने में एक अज़ीब सा मज़ा आ रहा था।
अमीना जब राज के लण्ड के बारे में बता रही थी.. तब रजनी की आँखों के सामने राज का गठीला.. नंगा ज़िस्म तैर गया था और उसके अंगों में एक फ़ुरफ़ुरी सी हो रही थी।
‘फ़िर क्या हुआ?’ उत्तेजना मिश्रित जिज्ञासा से उसने पूछा।
‘फ़िर..’ अमीना उसकी आवाज़ में जिज्ञासा को भाँप कर राहत महसूस करने लगी।
‘फ़िर राज ने मुझसे पूछा कि ये मछली खाओगी? मुझे उसकी बात का मतलब तो समझ नहीं आया लेकिन मैंने ‘हाँ’ में सिर हिला दिया।
इस पर राज ने मुझे पास पड़ी एक चेयर पर बिठाया और खुद मेरे सामने खड़ा हो गया। मैं कुछ समझ पाती इसके पहले उसने अपना पैण्ट खोल के नीचे खिसका दिया। अब उसका लण्ड ठीक मेरे मुँह के सामने था। उसने मेरा हाथ पकड़ कर अपना लण्ड पकड़ाया। इस बार मैं डरी नहीं। उसका लण्ड मुट्ठी में ले कर मसलने लगी।’
अमीना रजनी की ओर देखने लगी, रजनी पर उत्तेजना हावी होती जा रही थी, उसका चेहरा तमतमाने लगा था।
अमीना ने आगे बताया- दीदी.. सच कहूँ तो मेरी हालत बहुत खराब हो गई थी। मैं अन्दर तक भीग गई थी। तभी राज बोला कि अब खाओ मछ्ली.. मैंने पूछा कैसे.. तो उसने बताया कि पहले मैं उसके लण्ड को किस करूँ।
मुझे थोड़ा अज़ीब लगा.. पर मैं लण्ड को किस करने लगी.. फ़िर वो बोला कि अब इसे ऐसे चूसो जैसे तुम आइसक्रीम खाती हो.. मैंने मना कर दिया।
तो वो बोला कि अरे करके तो देखो.. कितना मज़ा आता है।
उसके थोड़ा ज़ोर देने पर मैंने उसका लण्ड मुँह में ले लिया और चूसने लगी। पहले तो थोड़ा गंदा लगा.. लेकिन फ़िर मज़ा आने लगा। मेरे नीचे एक मीठी सनसनी होने लगी, मैं अब ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगी।
राज को मज़ा आने लगा, वो मुझसे मिन्नतें करने लगा कि मैं और ज़ोर से चूसूँ।
मैं काफ़ी देर तक उसका लण्ड चूसती-चाटती रही कि अचानक उसने अपना लण्ड मेरे मुँह से बाहर खींच लिया और बोला तू भी तो कपड़े उतार.. तुझे नंगी देखना है।’
अमीना की यह बात सुनकर रजनी को एक बार फिर राज का लौड़ा दिखने लगा था।
‘यह सुन कर मानों मेरी साँसें रुक गईं। हट हरामी.. कह कर मैं कुर्सी से खड़ी हुई तो राज ने मुझे बाँहों में जकड़ लिया। मैं छूटने के लिए कसमसाई तो राज ने मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए और उन्हें चूमने लगा।
उसके चूमने में जैसे कोई जादू था। एक-दो क्षणों में.. मैं अपना सारा विरोध भूल कर राज से लिपट गई और उसे चूमने लगी। मैं राज के एक एक चुम्बन के साथ आनन्द के भँवर में गोते लगाने लगी। राज मेरे होंठों को.. मेरे गालों को.. मेरी गर्दन और मेरे कन्धों को चूमता-चूसता हुआ अपने हाथों से मेरे शरीर को सहलाने लगा।’
ये सब बताते-बताते अमीना की साँसें फ़िर फूलने लगीं। रजनी को लग गया कि पहले मिलन को याद कर अमीना फिर से गर्म हो रही थी।
ख़ुद रजनी की हालत खराब हो रही थी। जिस बेबाकी से कमसिन अमीना अपने यार के साथ मौज-मस्ती का बयान कर रही थी.. उसे सुन कर रजनी का शरीर भी मस्ती से भरने लगा था। रजनी को अपनी चूत में से भी पानी छूटता महसूस हुआ।
रजनी ने पूछा- आगे क्या हुआ?
‘दीदी.. किस करते-करते राज के हाथ मेरे मम्मों को सहलाने लगे। मेरा मज़ा जैसे दुगुना हो गया। वो कुर्ते के ऊपर से ही मेरे स्तनों को दबाने लगा।
मैंने उसका हाथ लेकर अपने कुर्ते के नीचे पेट पर रख दिया। नंगे पेट पर उसका खुरदुरा स्पर्श पा कर मैं जैसे बौरा उठी। राज भी मेरा इशारा समझ गया। उसका हाथ बिना वक़्त गँवाए ऊपर की ओर बढ़ने लगा। जल्दी ही वो काले रंग की ब्रा में कसे मेरे उरोजों तक पहुँच गया और उन्हें मसलने लगा।
मैं तो जैसे पगला गई थी। राज की शर्ट में हाथ डाल कर उसकी बालों वाली छाती को सहलाते हुए मैं उसे और भी ज़ोरों से किस करने लगी।
राज ने मेरी ब्रा का हुक खोल दिया और ब्रा को ऊपर खिसका दिया। जैसे ही मेरे मक्खन जैसे मम्मे उसके सामने आए.. वो पागलों की तरह उन पर टूट पड़ा। दोनों हाथों से उन्हें दबाते हुए वो उन्हें चूमने-चाटने लगा।मेरे कड़क निप्पलों को अपनी जीभ से चाट रहा था। निप्पल तो तन कर एकदम कड़क हो चुके थे। वो हाथों से दबा भी रहा था। हाय दीदी.. क्या बताऊँ इतना मज़ा आ रहा था कि पूछो मत।’ अमीना ने साइड बदलते हुए कहा।
वो इतनी गर्म हो रही थी कि उसके लिए एक पोजिशन में बैठना मुश्किल हो रहा था।
अमीना ने आगे कहा- दीदी.. तभी मुझे उसका हाथ नीचे अपनी जाँघों के बीच महसूस हुआ। मेरी रूह जैसे झनझना उठी। सलवार के ऊपर से ही वो ‘वहाँ’ दबाने लगा.. हाथ रगड़ने लगा।
‘चूत पे?’ रजनी पूछे बिना नहीं रह सकी।
अमीना ने आश्चर्य से उसकी ओर देखा। शायद वो रजनी से ‘चूत’ जैसा शब्द बोलने की आशा नहीं कर रही थी.. इसलिए खुद भी बोलते हुए हिचक रही थी।
रजनी ने उसे अपने को घूरते देखा तो ठहाका लगा के हँस दी- आगे बताओ अमीना रानी!
कह कर उसने अमीना को छेड़ा।
‘दीदी उसने मेरी चूत को रगड़ना चालू रखा। चूत में से ढेर सारा पानी निकलने लगा। उत्तेजना के मारे मैं अब खड़ी नहीं रह पा रही थी.. तो उसने मुझे रसोई के प्लेटफ़ॉर्म पर लिटा दिया, कुर्ता और ब्रा ऊपर कर उसने अपना मुँह मेरे मम्मों पर लगा लिया और हाथ मेरी चूत पर!’
‘तेरे ब्रेस्ट वैसे तो काफ़ी बड़े दिखते हैं.. साइज़ क्या है उनकी?’ रजनी अचानक पूछ बैठी।
‘दीदी मैंने तो कभी नापे नहीं।’ अमीना बोली- पर मेरी ब्रा पर कुछ 36 जैसा लिखा है।
‘हम्म..’ रजनी मुस्कुराई, ‘पहले से इतने बड़े थे.. कि राज ने कर दिए?’
‘क्या दीदी आप भी..’ अमीना एकदम से लजा गई।
‘हा..हा..हा..’
‘जाओ मैं नहीं बताती आपको कुछ भी।’ अमीना झूठमूठ की रूठ गई।
‘अच्छा-अच्छा नहीं छेडूंगी.. आगे बता.. राज ने तेरी सलवार उतारी?’ रजनी ने सीधे ही सवाल कर दिया।
अमीना एक क्षण के लिए ठिठक गई.. उसे रजनी से ऐसी बेबाक़ी की उम्मीद नहीं थी।
वो बोली- अरे दीदी.. वो कहाँ छोड़ने वाला था ऐसे.. एक ही झटके में उसने मेरी सलवार और चड्डी दोनों खींच दिए नीचे.. हरामी ने एकदम से नंगा कर दिया।
मैं शर्म के मारे दोहरी हो गई, शर्म के मारे मैंने घुटने मोड़ लिए तो उसने जबर्दस्ती उन्हें सीधा कर दिया और..’ आगे कहते-कहते अमीना रुक गई।
‘और क्या?’ रजनी ने पूछा- बोल ना.. शर्मा क्यों रही है?
‘जी वो.. फ़िर उसने मेरी टाँगें फ़ैला दीं।’ अमीना धीरे से बोली।
‘हुम्म..’ रजनी की धड़कन जैसे ठहर गई।
‘और.. मेरी चूत से अपना मुँह सटा लिया। मेरी जाँघों पर उसकी जीभ का गरम और गीला स्पर्श होने लगा। वो पागलों की तरह मेरे क़मर के नीचे चूमने-चाटने लगा।
मेरे शरीर में जैसे बिज़ली का करण्ट दौड़ने लगा, मेरी साँसें तेज़-तेज़ चलने लगीं। इतना अच्छा मुझे कभी नहीं लगा था।
मैंने अपनी जाँघें थोड़ी और फ़ैला लीं.. ताकि वो मेरी चूत को अच्छे से चूम सके। उसने अपना मुँह मेरी चूत से सटा लिया और चूत पर चुम्बन अंकित करने लगा। फ़िर वो अपनी जीभ से चूत में से निकलने वाला पानी चाटने लगा। मेरे कोमल अंगों पर तेज़ी से लपलपाती उसकी जीभ मुझे पागल बनाए जा रही थी।
उसने मेरी क़मर को थाम रखा था। मैं अब मस्त हुई जा रही थी। एक तूफ़ान सा मेरे अन्दर उमड़ रहा था। मैं चाह रही थी कि उसके जीभ की चोट मेरी चूत पर ऐसे ही पड़ती रहे।
हर एक गुज़रते क्षण में मेरे अन्दर का तूफ़ान बड़ा होता जा रहा था, मेरा तन एक अज़ीब से तनाव से भर उठा।
शायद राज कि जीभ मेरी चूत के भीतर तक घुस चुकी थी, वो तेज़ी से जीभ बाहर-अन्दर कर रहा था और चूत बावली हो कर और और रस छोड़ रही थी।
राज की उंगलियाँ मेरी चूत के दाने को मसल रही थी। वो इस खेल का पक्का खिलाड़ी था.. उसने मुझ पर अपने सारे हुनर आज़मा लिए।
मैं अब आनन्द के चरम पर थी। मैंने उसका सिर दोनों हाथों से अपनी चूत में दबा रखा था और नीचे से अपने नितम्ब उछाल रही थी। वो बेफ़िक्री से मेरी रसभरी चूत को चाटे जा रहा था।
कुछ समय तक ऐसे ही चलता रहा फ़िर अचानक़ मुझे कुछ हो गया.. मैं अपने होश खो बैठी। मेरे शरीर के भीतर से जैसे कुछ छूटा और मैं आनन्द के चरम पर पहुँच गई, मेरा शरीर हल्के-हल्के झटके खाने लगा, मुझे और कुछ याद नहीं रहा.. सिवाय मेरे ज़िस्म में दौड़ती करण्ट की लहरों के।
यह मेरे जीवन का पहला चरमानन्द था, वो वक़्त शायद संसार का सबसे हसीन पल था अल्लाह कसम..’
रजनी ने देखा अमीना का शरीर काँप रहा था। शायद वो मस्ती के उन पलों को याद करती हुई फ़िर उसी चरमानन्द का अनुभव करने लगी थी।
‘पता नहीं कितनी देर तक मैं यूँ ही पड़ी.. उस हसीन अनुभव को जज़्ब करती रही। राज मेरे करीब आ गया और मैं उससे लिपट गई।
कुछ देर मुझे सीने से सटा कर रखा तो मैंने उसे किस करने शुरू हर दिए। मैं उसका शुक्रिया करना चाहती थी और वो हरामी फ़िर शुरू हो गया।
मैं प्लेटफ़ॉर्म पर बैठ गई और वो मेरी टाँगों के बीच खड़ा था। वो मेरे मम्मों को थाम कर उन्हें हल्के-हल्के मसलने लगा और निप्पलों को हल्के-हल्के से चूसने-चाटने और दांतों से काटने भी लगा।
एक रोमांच फ़िर से दिल में होने लगा। मैंने अपना कुर्ता और ब्रा को तन से अलग कर दिया और उसकी शर्ट के बटन खोलने लगी। क़मर से नीचे तो वो वैसे भी नंगा था ही.. शर्ट के उतरते ही.. ना उसके ज़िस्म पर एक भी कपड़ा था.. ना मेरे!’
इतना कह कर अमीना ने रजनी की ओर देखा रजनी बड़ी तन्मयता से उसे सुन रही थी।
अमीना ने कहना शुरू किया- मैं प्लेटफ़ॉर्म से टाँगें नीचे लटका कर बैठी थी और वो उनके बीच में था। वो जब मुझसे सटा तब उसका लण्ड मेरे पेट से टकराया। मैंने उसको मुट्ठी में भर लिया और मसलने लगी।
हम दोनों ना जाने कब तक किस करते रहे कि अचानक़ राज मेरे कान में फ़ुसफ़ुसाया- चुदोगी?
मैंने कहा- धत्त्..
और मैं नीचे देखने लगी।
उसने फ़िर पूछा- मेरा लौड़ा लोगी अपनी भोसड़ी में?

यह कहानी भी पड़े  जीजा साली का वासना भरा प्यार

मैंने उसका लण्ड और ज़ोर से पकड़ लिया। दिल अचानक़ ज़ोर-ज़ोर से धड़कने लगा और चूत फ़िर से गीली हो गई।
राज ने वहीं प्लेटफ़ॉर्म पर पड़े अपने पैण्ट की जेब से एक कण्डोम निकाला और अपने तने हुए लण्ड पर चढ़ा दिया। मेरा दिल धक्क से रह गया।मुझे पता था कि राज अब मुझे चोदने वाला था।
अमीना ने यह कहा तो रजनी रोमांचित हो उठी, उसकी चूत भी गीली हो गई।
‘मैंने कुछ बोलना चाहा तो राज बोला कि भरोसा करो.. कुछ नहीं होगा।’
मैंने कहा- पर राज.. मुझे बहुत दर्द होगा.. तुम्हारा तो काफ़ी बड़ा है। ये मेरे अन्दर कैसे जाएगा?
राज बोला- सब मुझ पर छोड़ दो। तुम बस मज़े लो।
इतना कह कर उसने खूब सारा थूक अपने हाथ में लिया और पहले अपने लण्ड पर और फ़िर मेरी चूत के अन्दर लगाया। उसका हाथ अपनी चूत पर लगाते ही मैं जैसे सारे विरोध भूल गई।
उसने मुझे प्लेटफ़ॉर्म पर लेट जाने को कहा और मेरी एक जाँघ अपने कन्धे पर रख दी। फ़िर अपना थूक से सना लण्ड मेरी चूत के मुँह पर रख कर रगड़ने लगा।
फ़िर बोला- अमीना बस शुरू में थोड़ा सा दर्द होगा.. तुम हिम्मत रखना फ़िर बहुत मज़ा आएगा।
यह कह कर उसने अपने लण्ड को मेरी चूत में घुसाना शुरू किया। चूत के रस और थूक के कारण चूत हालांकि पूरी लसलसाई हुई थी और लण्ड का आगे का कुछ हिस्सा मेरी चूत में आसानी से घुस गया। लेकिन पीछे से उसका लण्ड बहुत मोटा है दीदी.. जैसे ही उसने एक धक्का दिया..
मुझे बहुत ज़ोर का दर्द हुआ, मेरी जान निकल गई और मैं उसे रोकने लगी- आहऽऽ राज..
इस पर उसने धक्के रोक दिए और अपना लण्ड बाहर खींच लिया। फ़िर अपनी हथेली में ढेर सारा थूक लेकर अपने लण्ड पर लगाया। वापस मेरी चूत के मुँह पर रख कर एक धक्का दिया।
इस बार लण्ड कुछ ज्यादा अन्दर चला गया, थोड़ा दर्द तो हुआ पर राज हल्के-हल्के से धक्के लगाने लगा।
मुझे दर्द तो हुआ.. लेकिन कुछ मज़ा भी आया।
राज ने मेरे मम्मों को थाम लिया और मुझे किस भी करने लगा, मेरा ध्यान दर्द से हट गया और मैं उसके गहरे चुम्बनों का आनन्द लेने लगी।
राज ने मुझे आराम में पाकर अपने धक्कों की रफ़्तार थोड़ी बढ़ा दी। उसका मोटा लण्ड मेरी चूत की दीवारों से रगड़ खा रहा था। दर्द हालांकि हो रहा था.. लेकिन मज़ा ज्यादा आ रहा था।
फच्च-फच्च की आवाज़ मेरी गीली चूत से आने लगी और मेरे मुँह से सिसकारियाँ निकलने लगीं।’
रजनी अमीना की बातों से मानो खुद को चुदास के नशे में डूबती हुई महसूस करने लगी थी।
‘दीदी.. मुझ पर नशा सा सवार हो गया था। मस्ती की लहरें मेरे तन-मन को भिगो रही थीं। मैं तेज़-तेज़ साँसें लेने लगी। मैं भी अपने नितम्ब उछाल-उछाल कर राज के लण्ड को पूरा लेने को बेताब हो रही थी।
राज ने ये देख कर अपनी रफ़्तार तेज़ कर दी। पूरी रसोई ‘फ़च्च फ़च्च’ की आवाज़ और मेरी सिसकारियों से गर्मा गई थी।
मैं राज को देख रही थी उसका बदन पसीने-पसीने हो गया था और साँसें भी तेज़ चल रही थीं.. लेकिन उसकी चोदने की गति कम नहीं हुई।
मेरे शरीर का तूफ़ान अब ज़ोर मारने लगा था, आनन्द की लहरें योनि की दीवारों से उठ कर दिमाग को झनझना रही थीं। मेरा तन अकड़ने लगा।
दिमाग में वैसे ही हल्के-हल्के विस्फ़ोट होने लगे.. जैसे थोड़ी देर पहले चरम सुख पर पहुँचने के वक़्त हो रहे थे।
मैं चरम के निकट थी, मैंने राज की क़मर को थाम लिया और उसके चोदने की ताल से ताल मिलाने लगी, मेरे मुँह से भी सीत्कारें फूटने लगीं- आहऽऽ.. राज.. आऽऽह.. हाँ राज ऐसे ही चोदो मुझे.. हाँ राज ज़ोर से और ज़ोर से..’ की मादक आवाज़ें निकालने लगीं।
‘मेरी इन सिसकारियों ने राज की उत्तेजना को और बढ़ा दिया वो मुझे बेरहमी से पेलने लगा।
मेरी साँसें और तेज़ हो गईं.. मैं अब झड़ने लगी थी।
मेरी चूत अब आनन्द का सरोवर बन चुकी थी.. जिसमें राज और मैं गोते लगा रहे थे।
थोड़ी देर में ही मेरे अन्दर से आनन्द का एक फ़व्वारा छूटा और मैं अपनी सुध-बुध खो बैठी। अगले कुछ मिनटों तक मुझे कुछ होश नहीं रहा। सुध-बुध लौटी तो महसूस हुआ कि राज का लौड़ा अभी भी मेरी चूत की दीवारों से सिर टकरा रहा था।
आनन्द की लहरें कम हुई तो दर्द लौट आया। पूरी चूत और जाँघों में पीड़ा होने लगी। या मालिक ये इन्सान थकता नहीं हैं क्या? मेरी कराहें निकलने लगीं।
रजनी एकदम से गर्म हो उठी थी और वो बस आँखें फाड़े एकटक अमीना की तरफ निहार रही थी।
‘उई अम्मा.. मैं मर गई.. हाय दैय्या.. बस करो राज मेरी फ़ट जाएगी राज..’
मैं मिन्नतें करने लगी, राज तुम्हें अल्लाह का वास्ता.. बस भी करो। अब कल कर लेना राज.. प्लीज़ मुझे छोड़ दो प्लीज़।
राज को मेरे दर्द का एहसास शायद हो गया था इसलिए उसने अपना लण्ड बाहर खींच लिया।
मैंने राहत की साँस ली। वो तेज़ी से मेरे मुँह के पास अपना लण्ड लाया.. उसने अपना कण्डोम खींच कर निकाला और अपने हाथ से अपने लौड़े को तेज़ी से हिलाने लगा।
मैंने देखा कि उसका लण्ड मेरी चूत का पानी पी कर और मोटा हो गया था।
कुछ पलों के बाद लण्ड से गाढ़े और गर्म वीर्य का एक फ़व्वारा छूटा जो मेरे चेहरे.. मुँह और दूधिया छातियों को भिगो गया। कुछ वीर्य मेरे मुँह में भी चला गया।
नमकीन सा स्वाद अज़ीब था.. लेकिन अच्छा लगा।
राज ने मेरे मम्मों पर पड़ा सारा वीर्य मेरे बदन पर फ़ैला दिया।
मैंने मुस्कुरा कर कहा- हरामी ये क्या कर रहा है.. अब मुझे नहाना पड़ेगा।
तो मुझे चूम कर बोला- चल रानी.. इकट्ठे ही नहा लेते हैं। मैंने हँस कर उसके पिछवाड़े पर एक चपत जमा दी।
फ़िर वो बोला- तेरे मुँह से ‘हरामी’ सुनना बड़ा अच्छा लगता है.. अब से तू मुझको हरामी ही बुलाना।’
‘तू है ही हरामी साले.. कितना ज़ोर-ज़ोर से चोदता है। कितना दर्द हुआ.. मुझे लगा फ़ट ही जाएगी मेरी तो..’
‘दीदी.. वो हँसा और अपने कपड़े पहन कर बाहर चला गया और मैं ना जाने कितने देर तक वैसे ही पड़ी रही।’
रजनी शबनम के चहरे पर तृप्ति की लाली साफ़ देख पा रही थी।



error: Content is protected !!