पर क्या सच में मैं उसे मार पाया था? वो हर साल इसी रात फिर जाने कहाँ से लौट आती थी, जाने कैसे लौट आती थी और ये रात ठीक उसी तरह चलती थी जैसे की 10 साल पहले चली थी.
वो खाना बनती थी, हम खाते थे, एक दूसरे को प्यार करते थे, सन्राइज़ देखने आते थे और मैं हर सुबह उसका खून करता था. हर साल इसी रात वो जैसे अपनी मौत की कहानी दोहराने फिर चली आती थी. एक ऐसा सिलसिला जो ख़तम होने का नाम ही नही ले रहा था. एक ऐसी ग़लती जो कि तो मैने 10 साल पहले थी पर अब हर साल करनी पड़ रही थी.
“ज़िंदगी गुज़र रही है इस तरह
बिना जुर्म कोई सज़ा हो जैसे.”
दोस्तो कहानी कैसी लगी ज़रूर बताना आपका दोस्त राज शर्मा
समाप्त
BHANCHODO MUZE GRP. ME CHODO
maa ki chut teri meri ID par usme se number Le aur mujhse baat kar