चुद गयी नौकरानी मुझसे

‘अभी कितने बच्चे है’

शरमाते हुए उसने जवाब दिया, “अभी तो एक लड़की है, 2 साल की।”

“उसे क्या घर में अकेला छोड़ कर आती हो ?” मैं पूछता रहा।

“नही, मेरी बूढी सास है ना। वो सम्भाल लेती है।”

“तुम कितने घरों में काम करती हो ?” मैंने पूछा।

“साहब, बस आपके और एक नीचे घर में।”

मैंने फिर पूछा, “तो तुम दोनो का काम तो चल ही जाता होगा।”

“साहब, चलता तो है, लेकीन बड़ी मुश्किल से। मेरा आदमी शराब में बहुत पैसे बरबाद कर देता है।”

अब मैंने एक इशारा देना उचित समझा। मैंने सम्भलते हुए कहा, “ठीक है, कोई बात नही। मैं तुम्हारी मदद करूंगा।”

उसने मुझे अजीब सी नज़र से देखा, जैसे पूछ रही हो – क्या मतलब है आपका।

मैंने तुरन्त कहा, “मेरा मतलब है, तुम अपने आदमी को मेरे पास लाओ, मैं उसे समझाऊंगा।”

“ठीक है साहब,” कहाते हुए उसने ठण्डी सांस भरी।

इस तरह, दोस्तों मैंने बातों का सिलसिला काफ़ी दिनो तक जारी रखा और अपने दोनो के बीच की झिझक को मिटाया। एक दिन मैंने शरारत से कहा,

“तुम्हारा आदमी पागल ही होगा। अरे उसे समझना चाहिये। इतनी सुन्दर पत्नी के होते हुए, उसे शराब की क्या ज़रूरत है।”

औरत बहुत तेज़ होती है दोस्तों। उसने कुछ कुछ समझ तो लिया था लेकिन अभी तक अहसास नही होने दिया अपनी ज़रा सी भी नाराजगी का। मुझे भी ज़रा सा हिन्ट मिला कि अब तो ये तस्वीर पर उतर जायेगी। मौका मिले और मैं इसे दबोचूं। चुदवा तो लेगी और आखिर एक दिन ऐसा एक मौका लगा। कहते है ऊपर वाले के यहां देर है लेकीन अन्धेर नहीं।

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रविवार का दिन था। पूरी फ़ेमिली एक शादी में गयी थी। मैंने पढायी का नुक्सान की वजह बताकर नही गया। कह कर गयी थी “आरती आयेगी, घर का काम ठीक से करवा लेना।”

मैंने कहा, “ठीक है,”

मेरे दिल में लड्डू फ़ूटने लगे और लौड़ा खड़ा होने लगा। वो आयी, उसने दरवाज़ा बन्द किया और काम पर लग गयी। इतने दिन की बातचीत से हम खुल गये थे और उसे मेरे ऊपर विश्वास सा हो गया था इसी लिये उसने दरवाज़ा बन्द कर दिया था। मैंने हमेशा की तरह चाय बनवायी और पीते हुए चाय की बड़ाई की। मन ही मन मैंने निश्चय किया की आज तो पहल करनी ही पड़ेगी वरना गाड़ी छूट जायेगी। कैसे पहल करे ? आखिर में ख्याल आया कि भैया सबसे बड़ा रुपैया। मैंने उसे बुलया और कहा,

“आरती, तुम्हे पैसे की ज़रूरत हो तो मुझे ज़रूर बताना। झिझकना मत।”

“साहब, आप मेरी तनखा काट लोगे और मेरा आदमी मुझे डांटेगा।”

“अरे पगली, मैं तनखा की बात नही कर रहा। बस कुछ और पैसे अलग से चाहिये तो मैं दूंगा मदद के लिये। और किसी को नही बताऊंगा। बशर्ते तुम भी ना बताओ तो।”

और मैं उसके जवाब का इनतज़ार करने लगा।

“मैं क्यों बताने चली। आप सच में मुझे कुछ पैसे देंगे ?” उसने पूछा।

बस फिर क्या था। कुड़ी पट गयी। बस अब आगे बढना था और मलाई खानी थी।

“ज़रूर दूंगा आरती। इससे तुम्हे खुशी मिलेगी ना,” मैंने कहा।

“हां साहब, बहुत आराम हो जायेगा।” उसने इठलाते हुए कहा।

अब मैंने हलके से कहा, “और मुझे भी खुशी मिलेगी। अगर तुम भी कुछ ना कहो तो और जैसा मैं कहूं वैसा करो तो ? बोलो मंज़ूर है ?”

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