हेलो दोस्तों, मैं मौलिक गुजरात जामनगर से, फिर से आपके पास एक नयी सेक्स कहानी (आप बीती) शेर करने आया हू. मेरी पिछली स्टोरी के लिए बहुत सारे लोगों ने काफ़ी अछा रेस्पॉन्स दिया. उन सभी पाठकों को दिल से धन्यवाद.
कैसे हो आप सब? अब जो भी मेरी स्टोरी रेड कर रहे हो, तो सही ही होंगे. अब आपका ज़्यादा समय ना गावते हुए सीधा स्टोरी पर आते है. मेरा मैल ईद है
जैसा की आप सब जानते है, मैं मौलिक गुजरात जामनगर से हू, और मैं अभी तक बहुत सारी लॅडीस को छोड़ चुका हू, और अपनी चुदाई के किससे ऐसे ही चालू रहते है. मेरी स्टोरी हमेशा लंबी रहती है, क्यूंकी जो घटनाए घाट-ती है, उन्हे वैसे ही बयान करता हू. तो लिखावट थोड़ी ज़्यादा हो जाती है.
अभी शादी का सीज़न चल रहा है, तो मुझे भी एक शादी अटेंड करने जाना था. वहाँ मुझे एक भाभी मिली, जिसका नामे सुधा था. वो डोर की कोई रिश्तेदार ही थी, लेकिन मैं पूरा नही जानता था. पर वो मुझे अची तरह जानती थी. अब हमारे बीच चुदाई कैसे हुई, इस चुदाई स्टोरी में पढ़िए.
जब मैं और मेरा परिवार शादी में गये, तब मैने ब्लॅक कलर की शर्ट और ब्लू जीन्स पहनी हुई थी. फिर हम शादी वाली जगह पहुँच गये. वहाँ ऑलमोस्ट सब हमारे रिलेटिव्स ही थे. फिर मैं और मेरा बेटा एक टेबल पकड़ के बैठ गये. मेरी वाइफ अपनी जेठनियों और देवराणियों के पास जाके अलग बैठ गयी.
सर्दी का मौसम चल रहा है, तो हम पार्टी प्लॉट में थे, जहाँ पर ठंड कुछ ज़्यादा ही लग रही थी. फिर मैं फोन चलाने लगा टाइम पास करने के लिए. तभी वहाँ पे एक भाभी आई, जिसने मुझे कहा-
भाभी: ही मौलिक, कैसे हो? बहुत टाइम बाद देखा तुम्हे. सब ठीक है?
मैने नज़र उपर उठाई, और देखा तो मैं देखता ही रह गया. वो भाभी ने ऑरेंज कलर की सारी और उसका मॅचिंग ब्लाउस पहना था. वो कोई अप्सरा से कम नही लग रही थी. फिर मैं बोला-
मौलिक: मैं ठीक हू आइए बैठिए. कैसे है आप? मैने शायद आपको कहीं देखा हो ऐसा लग रहा है. लेकिन आपका नामे भूल गया हू.
भाभी: अर्रे पागल लड़के, मैं सुधा हू, तुम्हारे डोर के बड़े पापा के लड़के की वाइफ.
मौलिक: ऊ सुधा भाभी, आप हो. ऊहह सॉरी-सॉरी, मैं तो भूल ही गया था. काफ़ी सालों बाद आपको देखा तो पहचान नही पाया.
दोस्तों मैं भाभी को शायद 12-13 साल बाद मिल रहा था. क्यूंकी वो डोर की रिस्त्ेदार थी, तो कभी मुलाकात हुई ही नही थी.
मौलिक: भाभी आप तो काफ़ी खूबसूरत बन गयी हो. जब शादी करके आई थी, तो सूखे पत्ते जैसी दिख रही थी आप (और हा-हा करके मैं हास दिया).
दोस्तों देवर-भाभी में तोड़ा-बहुत हस्सी मज़ाक चलता है. तो मैने भी मज़ाक में कह दिया सब.
अब मैं भाभी के बारे में बता डू. भाभी करीब 37-38 साल की होगी और बिल्कुल विद्या बालन की तरह भरा हुआ बदन था. संगेमरमर जैसी उसकी कातिल जवानी थी, उभरे हुए बूब्स, और बाहर की तरफ निकली हुई उसकी गांद थी, जिसे देख कर एक बार तो मेरा भी लंड खड़ा हो गया.
ऑरेंज कलर की ट्रॅन्स्परेंट सारी में उसके दीपकुट ब्लाउस में से झाँकते हुए बूब्स मुझे तोड़ा अनकंफर्टबल कर रहे थे. आँखों में काजल, होंठो पर ऑरेंज लिपस्टिक, हल्का मेकप था. मतलब पूरी की पूरी जवानी लूट लेने वाला माल बन के आई थी भाभी.
भाभी: चल हॅट बदमाश! तू कभी नही सुधरेगा हा? हमेशा अपनी भाभियों की टाँग खींचने में अव्वल अक़्था है तू. सब जानती हू मैं तेरे बारे में (और हा-हा करके सुधा भी हासणे लगी).
फिर मैं बोला-
मौलिक: अब जो खींचने की चीज़ होगी वो तो खींचेंगे ही, थोड़ी ना आपके कपड़े खींचेंगे.
सुधा: कामीने कहीं के! तू अपनी हरकतों से बाज़ नही आएगा क्यूँ?
ऐसा करके उसने मेरी पीठ पर एक प्यार से थप्पड़ मार दिया. तभी वहाँ पर उसका बेटा दौड़ता हुआ आया, और उसने मम्मी से पैसे माँगे. तभी मेरा बेटा जो उसी की उमर का था, जिसने मुझसे भी पैसे माँगे.
बच्चो को आदत होती है कहीं बाहर जाते है, तो सब मेहमआनो के सामने ही पैसे माँगते है, ताकि मा-बाप माना ना करे. तभी भाभी ने अपना पर्स खोला, और उसमे से पैसे निकाल कर अपने बच्चे को दिए.
वो उसको बोली: इसको भी साथ में ले-जेया, और जाओ जो खाना है खा लो.
फिर दोनो बच्चे वहाँ से निकल गये. मैं बोला-
मौलिक: आओ भाभी, बैठो मेरे पास. और भैया कहाँ है? दिखाई नही दिए अभी तक?
सुधा: तुम्हारे भैया को खेत में काम था, और रात में भेँसो को चारा भी डालना होता है. तो वो नही आ पाए, इसलिए मैं और मेरा बेटा दो ही आए है.
मौलिक: ऊ मतलब आप अकेली हो.
सुधा: हा बिल्कुल अकेली ही हू. देखो ना यहाँ बहुत कम लोग है जो मुझे जानते हो. इसलिए तुम्हारे पास आई हू.
तभी भाभी बिल्कुल मेरे सामने की चेर पर जेया कर अपनी सारी संभालते हुए तोड़ा झुक के बैठी. इससे उसके बूब्स मुझे थोड़े बहुत दिखे, जो किसी रसगुल्ले की तरह दिख रहे थे. भाभी ने मुझे उसके बूब्स देखते हुए देख लिया, और मुस्कुराने लगी.
भाभी: मेरी देवरानी तेरा ध्यान नही रखती क्या, जो अपनी भाभियों को घूरता है?
मौलिक: अर्रे सुधा, देवरानी तो पूरा ध्यान रखती है. लेकिन बंदर अगर बुद्धा होते तक गुलाटी ना मारे तो वो बंदर किस काम का?
ऐसा बोल के मैने मज़ाक में आँख मार दी, और हासणे लगा (हमारे इधर भाभी का नामे लेके बुलाते है).
सुधा: ओह हा-हा, सब पता है. वैसे भी तुम्हारे किससे मैने सुने है अपने गाओं में. सब जानती हू तेरे बारे में.
मैं सोच में पद गया, ये साली क्या बोल रही थी? और इसको किसने बताया की मैं कितना बड़ा चुड़क्कड़ हू.
मौलिक: आप ये क्या बोल रही हो सुधा? मैं कुछ समझा नही.
सुधा: ज़्यादा भोला मत बन. मेरी दोस्त ने तेरे बारे में सब कुछ बता दिया है.
मौलिक: कों सी दोस्त?
फिर सुधा ने मेरी चाची सास का नामे बताया, जिसको मैने पूरी रात छोड़-छोड़ के बीमार कर दिया था. ये स्टोरी भी मैने ड्के पर उपलोआड करी हुई है, टाइम मिले तो पढ़ लेना. वो भी काफ़ी रोमांचक और सेक्स से भरपूर है.
मौलिक: ओह, तो ये बात है. लगता है चाची सास को पनिशमेंट देनी पड़ेगी.
ये सब बोलते हुए मैं सुधा की आँखों में ही देख रहा था. उसकी आँखों में मैने हवस देखी, जो सॉफ-सॉफ दिखाई दे रही थी
सुधा: अर्रे नही-नही बेचारी को कुछ बोलना मत. वरना तुम्हारी पनिशमेंट में फिर बीमार पद जाएगी. (और वो ज़ोर-ज़ोर से हासणे लगी. और साथ में मैं भी हासणे लगा.).
अब माहौल तोड़ा गरमा गया था. भाभी के बदन की गर्मी को मैं उसकी आँखों में सॉफ देख रहा था, और ठंड भी थोड़ी बढ़ गयी थी, क्यूंकी रात के करीब 11 बाज रहे थे. सब लोग अपने-अपने में बिज़ी थे. कोई दांदिया खेल रहा था, तो कोई ग्रूप बना के बैठ के बातें कर रहे थे.
मतलब कोई हमे नोटीस नही कर रहा था. तब थोड़ी देर के लिए हम दोनो चुप हो गये. माहौल तोड़ा शांत हो गया, तो भाभी बोली-
सुधा: मौलिक चल ना तेरा शहर घुमा दे, यहाँ मैं बोर हो रही हू.
फिर मैं बोला: ठीक है चलो.
फिर मैं उसे अपनी स्कूटी में बिता के तालाब (लेक) पे ले गया.
इसके आयेज क्या हुआ, वो आपको अगले पार्ट में पता चलेगा.