पड़ोसन भाभी चूत पसार कर चुदी -1

‘उंह… उम्म्म्म.. उम्म अँह.. चस्स्सस्स… उम्मामा..’

फिर मैंने आहिस्ते-आहिस्ते अपनी जीभ भी चूत के अन्दर डाल कर हिलाने लगा और एक हाथ से चूत के ऊपर वाले दाने को सहला रहा था।
भाभी के मुँह से बस यही निकल रहा था- आअहह… ऑह उम्म्म्म.. अहम्म्मी आअहज ओमम्मह..

भाभी भी भी दो बार झड़ चुकी थीं। मुझे पता ही नहीं चला कि मैं भाभी की चूत आधे घन्टे तक चूसता ही रहा।
भाभी तो कब से बोले जा रही थीं- अब डाल भी दे अपना लंड मेरी चूत में.. चोद दे रे.. अपनी भाभी की चूत.. अब और नहीं रहा जा रहा..

पर मैं कहाँ मानने वाला था.. मैं तो सुन के अनसुना कर रहा था.. क्योंकि मैं तो चोदने में चूत का रसपान करके और मम्मों को दबा-दबा कर पूरा मज़ा लेता हूँ।

मैं अब उठा और भाभी को एक बार और अपना लंड चूस कर चिकना करने को कहा.. तो भाभी ने झट से लंड को मुँह में ले लिया और लंड को तगड़ा करने लगीं।
अब मैं भाभी को कुतिया की मुद्रा में होने को कहा।
भाभी तुरंत तैयार हो गईं।

मैंने अपना एक हाथ से लंड पकड़ कर चूत के मुहाने पर रखा और दूसरे हाथ से भाभी की कमर पकड़ी और लंड अन्दर डालने लगा। जब दो से तीन कोशिश में भी लंड अन्दर नहीं गया.. तो भाभी ने मज़ाक से कहा- लगता है आज तुम्हारा लंड ज्यादा मोटा हो गया है..
मैं बोला- भाभी जी सब आपका कमाल है।
भाभी बोलीं- अच्छा तुम लेट जाओ.. मैं तुम्हारे लंड के ऊपर बैठती हूँ.. तब लंड आराम से अन्दर चला जाएगा।

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मैं चित्त लेट गया और भाभी मेरे लंड के ऊपर बैठने लगीं.. थोड़ा ज़ोर लगाने से लंड अन्दर घुस गया.. अभी आधा गया लेकिन भाभी की जो चीख निकली.. ‘आआअहह..’
मत पूछिए..

भाभी की सास की आवाज़ आई- क्या हुआ बहू?
मैं तो डर ही गया।
भाभी ने कहा- कुछ नहीं मम्मी जी.. वो मोटा सा चूहा था.. कहीं घुस गया है..

मेरी तो जान में जान आई.. मेरा तो अभी आधा लंड ही चूत में गया था।
भाभी ने कहा- मैं झूठ नहीं बोलती.. तुम्हारा चूहा मेरे बिल में घुस गया है।
मैं हँस दिया।

भाभी थोड़ी देर में कुछ शान्त हुईं और अपनी कमर आहिस्ते-आहिस्ते हिलाने लगीं।
मैं समझ गया कि अब मौका सही है.. और अपनी मोटर भी स्टार्ट करनी चाहिए।
मैंने भाभी से कहा- आप मेरे लंड उछलो.. और मैं नीचे से आपकी चूत को गरम करता हूँ।

भाभी के मुँह से सिर्फ़ ‘आअहह… आाहह… म्म्म्मँमह.. आअहह ओहह.. अहाआ हाहह…’ निकल रही थी।
हालाँकि 5 मिनट तक ऐसे चला.. पर दोनों के धक्के एक साथ नहीं लग पा रहे थे जिससे ठीक से बात नहीं बन पा रही थी।
तो मैंने कहा- भाभी पहले आप उछल लो.. जब आप थक जाओगी.. फिर मैं करूँगा।

दस मिनट बाद भाभी थक गईं और बोलीं अब मैं नीचे लेटती हूँ.. तुम करो।
भाभी अब नीचे चूत पसार कर लेट गईं.. मैं उठ कर भाभी की चूत को लंड से रगड़ने लगा। भाभी के मुँह से भी सिसकारियाँ निकलने लगी थीं।

‘आह.. ओह.. आअहहा.. अम्म्म्म और जोर से चोदोओ.. आअहह.. हाआ और करो अन्दर तक.. डालो.. अजईतत्त..’

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कुछ देर चोदने के बाद मैंने उठ कर भाभी को उठाया और भाभी को अब मैं खड़े कर चोदने लगा।
भाभी भी साथ दे रही थीं और मस्त हो कर चुद रही थीं।
भाभी दो बार झड़ चुकी थीं और अब मैं भी झड़ने वाला था।

मैंने पूछा- भाभी कहाँ निकालूँ?
उन्होंने कहा- रूको.. मेरे मुँह में निकालना।

मैंने लंड बाहर निकाल कर.. मैं बिस्तर पर लेट गया और लौड़ा भाभी के मुँह में दे दिया.. उन्होंने मेरा पूरा माल खींच लिया और वो लौड़ा चूसती ही रहीं.. मुझे कब नींद आई.. पता ही नहीं चला।

सुबह हम दोनों ने एक राउंड और खेला। उस दिन बहुत तरीके से चुदाई का मज़ा लिया।

अब आप सबकी इज़ाज़त चाहता हूँ, कोई ग़लती हुई हो तो माफ़ कर दीजिएगा।
मैं आपको अब अगली कहानी में बताऊँगा कि कैसे भाभी ने मुझे अपनी कुछ रिश्तेदारी की औरतों से और अपनी सहेलियों से भी मिलवाया। कुछ को तो ग्रुप में भी चोदना पड़ा।

आप सबको मेरी कहानी कैसी लगी.. मुझे ईमेल करके ज़रूर बताईएगा।

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