बहू का चीर-हरण

शमशेर सिंह ने अपने भतीजे रणधीर सिंह की शादी एक ऐसी लौंडिया से करवाई, जो कमाल की हसीना थी। लौंडिया का नाम बता देना सही रहेगा, उस हसीना जिसकी गरमागरम जवानी कमाल की थी, उसका नाम था बबिता।

जब बबिता अपने दूल्हे-राजा के घर आई तो उसके सपने काफ़ी रंगीन थे, वो अपने साथ बालीवुड के हीरो और हिरोइनों की तस्वीरें लेकर आई, लौंडिया को चुदाई और सेक्स के रंगीन ख्वाबों ने घेर रखा था।

हो भी क्यों न ! आखिर उसका हुस्न लाखों में एक था ! वह थी भी एक माल जैसा पीस।

मैं आपको जरा उसकी जवानी का नक्शा बता दूँ- कुछ लहलहाते हुए धान के खेतों के रंग का सुनहरा सा रूप, सावन-भादों के काले बादलों जैसे घने बाल और उनके नीचे सुराहीदार गरदन। चूचियों का विवरण देने के लिये शब्द नहीं हैं, लेकिन इतना तय है कि इन कुवाँरी चूचियों को देखकर बड़े से लेकर बुड्डे तक सबका दिमाग, इन्हें पीने को बेताब हो जाता था। ये मयखाने थे, जो अब तक किसी ने चखे नहीं थे।

शमशेर सिंह ने अपने भतीजे रणधीर सिंह की शादी करके उसके लिये एक खूबसूरत कामुक गरमा-गर्म बहू के रूप में अपने मतलब का माल ले आये थे।

शमशेर सिंह रिटायर्ड टीचर हैं और उनका लंड बड़ा ही घातक और प्रचंड है। उस पर तुर्रा यह कि उनकी बीवी की चूत एकदम सड़े हुए पपीते की तरह नाकाम हो चली है।

अब काम कैसे चलेगा, तो शमशेर सिंह ने अपने भतीजे की शादी एक गरीब बाप की खबसूरत बेटी से तय कर दी थी।

दुल्हन अपने पिया के घर आई, चुदाई के रंगीन सपने लिये। सुहागरात का नजारा, चलने से पहले बता दें कि रणधीर सिंह जी बड़े ही दुबले-पतले लंड वाले और हिले हुए पुर्जे टाइप के इंसान थे, जिनके बस का किसी गांड को मारना या, चूत की सील तोड़ना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन था।

सुहागरात की रात शमशेर सिंह ने यह नजारा देखने के लिये एक बड़ा ही चौकस जुगाड़ किया और जैसा कि पहले से ही सब तय था कि खुद का कमरा और सुहागरात वाला कमरा आजू-बाजू ही थे और एक ही दीवार दोनों को अलग करती थी। एक खिड़की थी जो सुहागरात वाले कमरे में झांकने का रास्ता थी। उसे उसने पहले से ही थोड़ा हिला-हिला के झिर्रीदार बना दिया था।

जैसे ही चूत की कहानी शुरु होती, शमशेर सिंह ने अपनी आँखें खिड़की से लगा दीं। रणधीर सिंह हिलते हुए अपनी दुल्हन के सामने खड़ा था, वो नीचे देख रही थी और वो ऊपर देख रहा था। कौन किसको चोदने वाला है, यही समझ नहीं आ रहा था लेकिन दुल्हन ने पहल की।

वो समझ गई थी कि ये लौंडा एकदम बकचोदू है और चिकलांडू है क्योंकि सामने चूत का मौका देख कर कोई बकलँड ही इस तरह कांप सकता है।

शमशेर सिंह को खिड़की से यह दृश्य दिखाई दे रहा था और उनका लंड धोती के अंदर डिस्को भांगड़ा करने लगा था। उन्होंने आंखें गड़ा दीं।

बहू ने रणधीर सिंह की शेरवानी खोल दी और पजामे का नाड़ा जल्दी में खींच के तोड़ डाला। कहानी उल्टी चल रही थी और शमशेर सिंह इतनी गर्म बहू देख कर एकदम बाग-बाग थे क्योंकि वो जान गये थे कि इतनी गर्म और कामुक बहू इस नादान और नामर्द लौंडे से संभलने वाली नहीं है, इसीलिए तो उन्होंने इसकी जल्दी ही शादी करवा दी थी।

बहू ने रणधीर सिंह को पूरा नंगा कर दिया। आज वो अपना हक अपने मर्द से छीन लेने वाली थी कि अपने पति का ‘टिंगू-लंड’ देख कर उसका दिल बैठ गया। एकदम दो इंच का लंड था और खड़ा होकर साढे तीन इंच का हो गया था। इसे तो चूसा भी नही जा सकता, हद है भई !

रणधीर सिंह जी हांफ़ रहे थे, दुल्हन के इस गर्मागर्म रूप को देख कर। उसने रणधीर सिंह को पटक कर उनके मुँह पर अपनी चूत रख दी और रणधीर सिंह की सांसें फ़ूलने लगीं।

;साले लंड में नहीं था गूदा तो लंका में काहे कूदा !’ गाली देते हुए बोली- काहे तेरे मास्टर चाचा ने मेरी शादी तेरे से की ! मादरचोद ले, अब चूस मेरी चूत और सुबह उस धोती वाले की धोती में आग लगा न दी तो मेरा नाम बबिता नहीं।

लगभग आधा घंटा अपनी चूत और गांड उसके मुँह पर रगड़ने के बाद उसने लाईट आफ़ कर दी और अपनी चूत पसार कर सोने चली गई।

शमशेर सिंह का दिल बागम-बाग हो गया, लंड को तेल लगा कर उन्होंने मोटा और नुकीला किया और अपनी धोती खोल कर सहलाते हुए सो गये। बहुत जल्दी सीन में उन्हें एंट्री मारते हुए अपनी बहू को कब्जा लेना था। सुहागरात में अपने भतीजे रणधीर सिंह का नाकाम फ़्लाप शो देख कर खुश हुआ कि अब तो मेरे लंड को चौका मारने का मौका मिलना तय ही है।

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सुबह उसने अपने भतीजे रणधीर सिंह को किसी काम से 6-7 दिनों के लिये बाहर भेज दिया। अब घर में अकेले बहू बबिता और खूसट ठरकी बुढ़ऊ शमशेरसिंह ही बचे थे। खाना परोसते समय बहू का आँचल सरक गया, उसके ब्लाउज का मुँह बड़ा चौड़ा था, तो उजली चूचियों शमशेर सिंह के नजरों में चमक गईं। शायद यह बबिता की सोची समझी चाल थी। शाम को शौच के लिये उसे बाहर जाना था, खुले में।

बहू को डर लगा तो शमशेर सिंह के पास आई और पूछा- चाचाजी, मुझे बाहर जाना है, दो नम्बर के लिये ! लेकिन पहली बार इस गांव में निकलते हुए डर लग रहा है।

बुढ़ऊ का दिल बाग-बाग हो गया और उसने कहा- चिन्ता ना कर बहू, घर की चारदीवारी में ही खुले में इसी काम के लिए गड्डा बना रखा है, चली जा। मैं छत पर ही रहूँगा, कोई डरने की बात नहीं है।

बबिता चली गई और बुड्डा छत पर से उसे टट्टी करते देखता रहा। अचानक दोनों की नजरें मिल गईं। बबिता ने अपनी चूत पर टार्च जला कर बुड्डे को अपनी झांट वाली ‘बम्बाट’ बुर दिखा ही दी।

वहीं छत पर खड़े-खड़े बुड्डे की धोती में आग लग गई, लंड खड़ा होने लगा और बुड्डे शमशेर ने अपना सुपारा हाथ में लेकर रगड़ना शुरु कर दिया। अब वह चूत का मैदान मारने की तैयारी कर चुका था। जैसे ही बबिता अंदर आई, दरवाजे पर ही उसने उसे दबोच लिया।

वो बोली- अरे पापा जी रुकिये, गांड तो धो लेने दीजिए अभी टट्टी लगी है उसमें, इतने बेसबरे मत होइये।

शमशेर तुरंत हैंड्पंप के पास जाकर पानी चलाने लगा और बबिता ने लोटे से पानी लेकर अपनी गांड उस बुड्डे के सामने ही छप्पाक-छ्प्पाक धो डाली।

कहानी बुड्डे के अनुसार ही चल रही थी। बूढ़े को अपनी बहू की बड़ी गांड का छोटा छेद बड़ा प्यारा और नाजनीन लगा। वह समझ गया कि यही है मेरे लंड का अंतिम डेस्टिनेशन !

बबिता के खड़े होते ही शमशेर ससुर ने उसे दबोच लिया और उसकी साड़ी वहीं आंगन में ही खोलने लगा। घर में कोई नहीं था, चांदनी रात में भतीज-बहू का चीर-हरण, और दूधिया जवानी, दोनों का मेल गजब का था।

सारे कपड़े खोल बुड्डे ने बबिता के बड़ी चूचियों पर सबसे पहले मुँह मारा।

जैसे ही उसने मुँह मारा, बबिता गाली देने लगी- पी ले अपनी माँ के चूचे… बहनचोद बुड्डे ! कर दी शादी तूने मेरी नामर्द गांडू से?

शमशेर ने कहा- तो कोई बात नहीं बेटी, ये ले बदले में मेरा हल्लबी लौड़ा.. किसी भी जवान से ज्यादा सख्त और बुलंद है।

अपना लंड पकड़ कर वो खड़ा रहा और बबिता नीचे बैठ गई। लंड के सुपारे से चमड़े की टोपी हटा उसने लंड को सूंघा तो उसे उस गंध से समझ में आ गया कि यह पुराना चावल काफ़ी मजेदार है।

अपने मुँह में ढेर सारा थूक लेकर उसने लंड के ऊपर थूक दिया। मुँह में पेलने को बुड्डा बेताब हो रहा था लेकिन बबिता को अपनी ‘हायजीन’ का पूरा ख्याल था। उसने लंड को थूक से धोने के बाद उस थूक से लंड की मसाज चालू कर दी। बुढ़ऊ शमशेर गाली बक रहा था- हाय मादरचोद, मार डालेगी क्या ! साली जल्दी से मुँह में डाल ! इतना रगड़ती क्यों है… तेरी माँ का लौड़ा !! उफ़्फ़ चूस ना, चूस ना !

बबिता ने अधीरता नहीं दिखाई और आराम से लंड को थूक कर चाटती रही। जब पूरा लंड साफ़ चकाचक हो गया, अपने मुँह का रास्ता उस लंड को दिखा दिया। अब बुड्डे के लंड ने मुँह को चूत समझ लिया और उसमें अपना लंड किसी एक्सप्रेस की तरह घुसम-घुसाई करने लगा।

“आह… आह… ले… ले… ये ले… मादरचोद… तुम्हारा ससुर अभी जवान है… ये ले चूस तेरी माँ का लौड़ा।”

बबिता एकदम अवाक थी अपने बुड्डे ससुर की ‘परफ़ार्मेंस’ से। उसने अपना गला फ़ड़वाने की बजाय रात की प्यासी चूत की चुदास बुझाना बेहतर समझा।

अब बुड्डे का सपना सच हो गया था। बहू चोद ससुर शमशेर सिंह ने अपनी बहू बबिता को चोदने की सेटिंग कर ली। अब आप देखेंगे उन दोनों की चुदाई का भयंकर नजारा।

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बबिता ने तुरंत उसका लंड ऐंठ कर शमशेर सिंह को नीचे गिरा दिया। बुड्डा अपनी बहू के इस कदम से भौंचक्का रह गया, लेकिन यह काम बबिता ने उसके अंदर गुस्सा जगाने के लिये किया था जिससे कि वह बदले की भावना से जबरदस्त पेल सके।

बुड्डे ने अपनी धोती खोल फ़ेंकी, उसके अंडकोष किसी पपीते की तरह आधा-आधा किलो के थे। बबिता को पटक कर उसने अपना अंडकोष उसके मुँह में दे डाले, कहा- ले चूस बहू, बहुत कलाकार है तू बे मादरचोद साली, लाया था बहू, निकली रंडी। अब तो मेरा काम सैट कर देगी तू !

बबिता ने उस अन्डकोष को शरीफ़ा की तरह अपनी जीभ से कुरेदना जारी रखा। बुड्डा अपने मोटे लंबे लंड से चूत उसके बड़े चूचों की पिटाई कर रहा था और अपनी ऊँगलियाँ उसकी झांटों पर फ़िरा रहा था।

जब पूरे अंडकोष पर उसने अपनी जीभ फ़िरा चुकी तो बुड्डे ने अपनी गांड का छेद अपनी बहू के मुँह पर रख दिया।

“ले कर रिम-जॉब !”

बुड्डा वाकई चोदूमल था, उसे रिम-जाब मतलब कि गांड को चटवाने की कला भी आती थी और वो इसका रस खूब लेता रहा था। वाकयी में जब भी वो सोना-गाछी जाता रंडियाँ उसे नया-नया तरीका सिखातीं और अब तो वह अपने घर में ही परमानेंट रंडी ले आया था।

बबिता ने उसकी गांड को चाट कर उसमें एक उंगली करनी शुरु कर दी। बुढ्ढा पगला गया, उसने तपाक बहू की झांटें पकड़ी और ‘चर्र’ से एक मुठ्ठी उखाड़ लीं।

“हाय !! मादरचोद बुड्डे !! तुझको अभी देखती हूँ !”

बबिता ने बदले में पूरी उंगली उसकी गांड में घुसेड़ कर कहा- मादरचोद पेलेगा नहीं सिर्फ खेलेगा ही क्या बे?

कहानी मजेदार होती जा रही थी। अब बुढ़ऊ की मर्दानगी जग चुकी थी, भयंकर रूप लिये बरसों से चूत के प्यासे मोटे लंबे लंड को, उसने अपनी प्यारी बहू की मुलायम चिकनी चूत में डाल देने का फ़ैसला कर लिया था।

उसने बबिता की टाँगें खोल दीं और अपनी उंगलियों से चूत का दरवाजा खोला।

बबिता मारे उत्तेजना के गालियाँ बक रही थी। वो खेली-खाई माल थी। बुड्ढे ने अपने लंड के सुपारे को चूत के मुहाने पर छोटे से छेद की बाहरी दीवार वाली लाल-लाल पंखुड़ी पर घिसना चालू किया।

बबिता की सिसकारियाँ गहरी होती चली जा रही थीं। ससुर शमशेर ने उसकी बाहर की ‘मेजोरा- लीबिया’ मतलब कि चूत की बाहरी दीवाल को ऐसे खींच रखा था, जैसे टीचर किसी छोटे बच्चे का कान खींच के सजा दे रहा हो। माहौल एकदम गर्म हो चुका था।दोनों तरफ़ की दीवालों को रगड़ने के बाद बुड्ढे ने अपना लंड का मुँह बबिता के थूक से दोबारा गीला करने के लिये बबिता के मुँह में हाथ डाल ढेर सारा थूक बटोरा और फ़िर अपने लंड के मुहाने पर लगा और अपना थूक उसकी चूत में चारों तरफ़ घिस कर अपना लंड धंसाना शुरु कर दिया।

बबिता की आँखें नाचने लगीं थी। उसकी कहानी ससुर के लंड से लिखी जा रही थी और वाकयी ससुर शमशेर का बुड्ढा लंड जवानों के लंड से भी बेहतरीन था वो कहते हैं ना “पुराने देसी घी और पिशौरी बादाम खाए हुए थे !”

वो रुका नहीं और चूत के पेंदे पर जाकर सीधा टक्कर मारी, बबिता चिल्लाई- अई माँ ! मर गई प्लीज पापा रुकिये ना !

लेकिन नहीं… शमशेर सिंह को चुदास चढ़ चुकी थी और सालों बाद कोई करारा माल और उसकी चूत की कहानी लिखने का मौका मिला था। लंड नुकीला करके उन्होंने उस चूत का सत्यानाश करना शुरु कर दिया था और फ़िर उसके सुनामी छाप धक्कों से चूत की दीवालें तहस-नहस हो रही थीं।

बबिता अध-बेहोश हो चली थी और शमशेर ने उसे पलट कर पेट के बल लिटा दिया। अब उसकी गांड फ़टने वाली थी, दो उंगलियों से पकड़कर उसकी गांड खोल दी शमशेर ने और अपनी जीभ अंदर डाल दी। ताजा-ताजा धुली गांड खूश्बूदार थी। गांड को गीला कर के ढेर सारा थूक अंदर कर दिया, गांड तैयार थी।

उसने अपना मोटा लंड एक ही बार में अंदर कर दिया और बबिता चिल्लाई- बचाओ !!

लेकिन कोई फ़ायदा नहीं। उसकी गांड खुल चुकी थी और लंड उसे छेदते हुए अंदर था। आधे घंटे तक यह गांड मारने के बाद शमशेर सिंह ने अपना वीर्य उसके पिछवाड़े पर निकाल कर लंड को चूचों में पोंछ दिया।

रात में यह कार्यक्रम तीन-चार बार उस खुली चांदनी में फ़िर चला। ससुर और बहू की यह कहानी अनवरत चुदाई के साथ चलती रही।



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