अंतर्वसना सेक्स – योग की अदायें

मैं योग का शिक्षक हूँ। मैंने योग के द्वारा कई व्याधियां दूर की हैं। यह बात ओर है कि मेरी कमजोरी मध्यम उम्र की औरतें रही है। कितनी ही बार मैं वासना का शिकार हो कर फ़िसल जाता हूँ, पर इसमे मेरा दोष कम होता है, महिलाओं का अधिक होता है। मैं उन्हें सेक्सी लगता हूँ।

मेरे पड़ोस में आभा आण्टी रहती है। उन्हें कम उम्र में ही डायबिटीज हो गई थी। उदर सम्बन्धी अन्य शिकायतें भी थी। प्रायः सभी पाठकगण भी जानते हैं कि प्राणायाम और अन्य सरल आसनों से हम सब ये ठीक कर सकते हैं। जी हां खाने पर थोड़ा कन्ट्रोल तो करना ही पड़ता है। आभा आण्टी ने मुझे योग द्वारा उपचार करने को कहा, जिसे मैंने सहर्ष स्वीकार कर लिया। मेरी आभा आण्टी में खास रुचि भी थी, क्योंकि आरम्भ से ही मैं उन्हें अपने विचारों में चोदने की कोशिश करता था और मुठ मार कर वीर्य निकाल देता था। उनका हुस्न मुझे भाता है, खास करके उनके चूतड़ बहुत ही टाईट और उत्तेजक लगते हैं। उनके चेहरे पर एक सेक्सी सी मुस्कान हमेशा रहती है। मुझे नहीं पता था कि आभा मेरे बारे में क्या सोचती थी।

मैंने आभा को बताया कि सवेरे पांच बजे का समय उत्तम रहता है, मुझे पता था कि उसका पति यानि अंकल जी रात को देर से आते हैं और सवेरे सात बजे पहले नहीं उठते। गर्मी का मौसम था सो हम तीसरी मंजिल की छत पर चले आये।

उन्हें हल्के कपड़े पहनने थे, जिसमें उसका बदन बहुत सेक्सी लगता था। एक हल्का पजामा और और एक हल्का टॉप…. । पहले एक सप्ताह के प्रायाणाम से डायबिटीज पर अच्छा असर हुआ….। अब मैंने उन्हें कुछ आसन भी करवाने आरम्भ कर दिये और मैं उसके जिस्म के कटाव और उभारों को मन में बसा लेता था।

मेरे मन में अब उसे भोगने का लालच बढ़ता गया। फ़लस्वरूप मैं अब उसके जिस्म को भी छूने लगा था। अभ्यास के दौरान मैं उसके प्यारे से गोल गोल कसे हुये स्तनों को छू लेता था…. उसकी पीठ पर हाथ फ़ेर कर उसे उत्तेजित करने का प्रयत्न करता था। उसके जिस्म की कंपकंपाहट मुझे भी महसूस होती थी। पर उसने कभी भी इसका विरोध नहीं किया। एक बार सर्वांग आसन कराते समय मैंने उसके चूतड़ों को भी सहलाया और दबाया भी। उसके चूत का गीलापन भी मुझे दिखाई दे जाता था…. सो मुझे ये पता चल गया था कि अब वो उत्तेजित हो जाती है और शायद गीलापन उसकी चुदने की चाहत की निशानी थी।

यही सोच मेरे मस्तिष्क में थी। मेरी एक बार कोशिश करने की इच्छा प्रबल हो उठी। मैंने सर्वांग आसन के दौरान उसकी चूत जो गीली थी, उसे सहला दिया….

उसने अपने पांव नीचे कर लिये और शरमा गई।

“आकाश जी, यह आप क्या कर रहे थे….”

“सॉरी आभा, आपकी ये मुझे इतनी अच्छी लगी कि मैंने उसे छू लिया…. गीली भी थी ना !” मैंने हिम्मत करके उसे उकसाया।

“गीली…. आप तो मस्ती करने लगे…. उससे हो गई होगी….!” अब उसकी नजर भी मेरे उठे हुये लण्ड पर थी। उसका इशारा भी उसी ओर था। मैंने उसकी बांह थामते हुये उसके नजदीक आने की कोशिश की, पर वो समझ गई थी।

“अब योग समाप्त करते हैं और नीचे चलते हैं!” कह कर वह सीढ़ियों पर आ गई। मुझे तनिक निराशा सा हुई। मैं भी उसके पीछे पीछे सीढ़ियों पर आ गया। यहां से बाहर नहीं नजर आता था। मैंने मौका देख कर उसे अपने बाहों में लपेट लिया।

थोड़ी सी ना नुकुर के बाद उसने कोई विरोध नहीं किया। बस उसकी बाहें मेरी कमर से लिपट गई। उसके तने हुये स्तन मेरी छाती से रगड़ खाने लगे। मेरे जिस्म में सनसनाहट होने लगी, लण्ड फ़डफ़डा गया, खड़ा हो कर नीचे ठोकरें मारने लगा और कुछ ढूंढने लगा। उसकी चूत का दबाव भी मेरे लण्ड पर बढ़ गया और वो धीरे धीरे ऊपर नीचे उसे मेरे लण्ड पर घिसने लगी। आभा के मुख से सिसकारियाँ निकलने लगी। उसके कांपते होंठ मेरी ओर उठ गये…. मैंने झुक कर धीरे से उसके होंठ पर अपने होंठ रख दिये और अधरों का रसपान करते हुये हमारे बदन एक दूसरे को रगड़ने लगे। दोनों के जिस्मों में वासना का उफ़ान भर गया था। लण्ड और चूत एक दूसरे में घुसने की पुरजोर कोशिश कर रहे थे। मेरे हाथ उसके स्तनों को बेदर्दी से मसल रहे थे, उसकी निपल को घुमा कर खींच रहे थे। उसका हाथ मेरे लण्ड पर आ गया। उसने मुझे धक्का दे कर दीवार से लगा दिया और जैसे बेतहाशा लिपट गई।

“आ….आ…. आभा जी…. अब पजामा नीचे कर लो….अपनी मुनिया के दर्शन तो करा दो ….लण्ड….तो कड़क….”

उसने मेरे होंठों पर अंगुली रख दी और लण्ड पर मुठ मारने लग़ी। मैंने भी उसकी चूत दबा दी। हमें असीम आनन्द आने लगा था। एक दूसरे को हम बुरी तरह से दबा रहे थे। उसकी चूत जैसे लण्ड निगल लेना चाहती थी। दोनों की रगड़ जबरदस्त थी। दोनों के मुख से सिसकारी निकल पड़ी और गंगा जमुना हमारे अंगों से फ़ूट पड़ी। दोनों ही सिसकारियां भरते हुये अपना यौवन रस छोड़ चुके थे। आभा का पजामा नीचे से भीग उठा था और मेरे नीले पजामे में भी एक काला सा गीला धब्बा उभर आया था। मुझे अपने पांव पर अपना वीर्य बहता सा लगा। हम दोनों का जोश ठण्डा हो चुका था। आभा के चहरे पर शरम की झलक उभर आई थी। उसकी नजरें नीचे झुक गई थी। उसने मुस्काते हुये अपना चेहरा दोनों हाथों से छुपा लिया।

फिर मुझे तिरछी नजरों से देखती हुई सीढ़ियां उतर कर चली गई। आज तो उसने मुझे चाय को भी नहीं पूछा…. मैंने भी अपना सर झटका और तेजी से सीढ़ियां उतरता हुआ अपने घर आ गया।

दिन भर इस घटना को याद करके मुझ में उत्तेजना भरती रही…. इतनी सी देर में जाने क्या से क्या हो गया। आभा को चोदने की ललक मुझमें बढ़ने लगी। इतना कुछ होने के बाद चुदाई में देरी क्यूं करूं…. सब कुछ तो खुल चुका था। सारा दिन जैसे एक साल की तरह निकला। सवेरे होते ही हम दोनों एक बार फिर तीसरी मंजिल की छत पर थे। आभा को मैंने पहले पूरा योग कराया फिर हल्का व्यायाम कराया। इस बीच उसने कोई भी ऐसा संकेत नहीं दिया कि बीते हुये दिन हम दोनों के बीच क्या हुआ था। बातों में भी ये नहीं लगा कि जैसे कल कुछ हुआ था। पर मैंने कल की तरह आज भी सीढ़ियों के समीप उसे जा दबोचा। उसके मम्मे धीरे धीरे खूब सहलाये। उसने भी मेरा लण्ड खूब दबाया और मसला। अन्त में हम दोनों एक दूसरे के अंगों में अपने लण्ड और चूत को रगड़ते हुये झड़ गये। वह शरमा कर फिर भाग गई।

मुझे तो अब उसे चोदने की लग रही थी, पर शायद उसे लग रहा थी कि उसके लिये इतना ही बहुत था। मैंने दबी जबान से उससे पूछा भी था, तो उसका जवाब था कि जब अपन दोनों को इसमें ही इतना मजा आता है तो चोदना क्या जरूरी है। उसकी इच्छा के विरुद्ध तो मैं वैसे भी कुछ नहीं करना नहीं चाहता था। पर हां उसने आज उसने मुझे चाय नाश्ता कराया था। पर मैंने आज एक करामात दिखा थी। उसने गलती से अपना पजामा वहीं डाल दिया था। मैंने तुरन्त एक ब्लेड से पजामे मे उसकी चूत के स्थान पर तीन चार टांके काट दिये। मेरा ये तरीका काम दे गया।

सवेरे योगाभ्यास कराने के बाद हम दोनों सीढ़ियों के पास फिर से लिपटे हुये थे। मैं उसके स्तनो को प्यार से सहला और दबा रहा था। वह भी आज खुल कर खेल रही थी। मेरे लण्ड को बाहर निकाल कर मुठ मार रही थी और मेरे गोल गोल कड़े और बंधे हुये चूतड़ों को दबा रही थी। उसका पजामा चूत के पास से गीला हो चुका था। उसने मेरा नंगा लण्ड हाथ से पकड़ कर अपनी चूत पर रगड़ना चालू कर दिया। मैंने भी उसे लिपटा लिया। उसके पजामे के ऊपर से लण्ड का सुपाड़ा रगड़ खा कर लाल हो गया था। अचानक ही उस कटे हुये पजामे में मेरा लण्ड घुस गया।

आभा के लण्ड को चूत में रगड़ने से लण्ड उसकी चूत के अन्दर रगड़ खा कर बाहर आ जाता था। पर इस बार लण्ड जैसे ही चूत के द्वार पर लगा, मैंने उसका हाथ छुड़ा कर अलग कर दिया और लण्ड चूत में उतरता चला गया। जैसे उसके मुख से एक मस्ती की किलकारी निकल पड़ी। उसकी चूत ने जोर लगा कर मेरा पूरा लण्ड अपनी गहराईयों में समेट लिया। मुझे एक नरम सा, गरम सा चूत की दीवारों का मधुर सा घर्षण महसूस हुआ। उसने मुझे दीवार के पास टिका दिया और अपना पूरा जोर मेरे लण्ड पर लगा दिया। उसका धक्का मुझे बहुत प्यारा लगा। अब वह मेरे चेहरे के पास अपना सर झुका कर नीचे धक्के पर धक्का मारने लगी। मेरे कूल्हे भी हिल हिल कर उसकी सहायता कर रहे थे। वहां एक मधुर सा सुहावना एवं मस्ती भरा समां सा बंध गया था। दोनों की मधुर सिसकारियां सीढ़ियों पर गूंजने लग गई थी। आभा अब अपनी शरम छोड़ चुकी थी। चुदते चुदते भी आगे की चुदाई का प्रोग्राम बना रही थी।

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“आप तो मेरे गुरू हो ना…. सवेरे दस बजे इनके जाने के बाद मुझे कमरे ही जम के चोदना…. वहां मजा आयेगा !”

“बस कुछ मत कहो मेरी आभा…. आपको चोदने में मस्त मजा आ रहा है। ”

हम दोनों चुदाई की चरमसीमा पर पहुंच चुके थे और दोनों के कलपुर्जे किसी इंजन की भांति तेजी से चल रहे थे…. कितना ही बचने की कोशिश करो…. एक सीमा के बाद आंखों के आगे मस्ती के सितारे चमक उठते हैं…. और झर झर करके रति-रस छलक पड़ता है। आभा ने मेरे लण्ड पर जोर लगाया और उसकी चूत लपलपा उठी। लहरें उठने लगी…. और चूत का गीलापन बढ़ गया…. तभी मेरे लण्ड ने भी बाहर आ कर अपनी फ़ुहारे छोड़ दी…. हम दोनों एक दूसरे से लिपट पड़े। दोनों की बाहें कस गई। काम रस चूत के द्वार से पांव के सहारे नीचे बह चला। मैं आभा के गालों और होंठो को चाटने लगा। उसके मुझे झटके दे कर दूर किया।

“आपके लण्ड में जोर है …. देखो तो मेरा पजामा फ़ाड कर चूत में घुस गया !” आभा ने शरमाते हुये कहा।

“नहीं आभाजी, मुझे तो आप को चोदना था इसलिये मैंने कल आपके पजामे के तीन-चार टांके ब्लेड से काट दिये थे !”

“क्याऽऽऽऽऽऽऽ? शरारती कहीं के…. मैं तो खुद ही आज आपसे चुदवा लेती…. पर इस तरीके से मुझे अधिक मजा आया…. सुनिये ! मेरी एक सहेली है मिनी, उसे भी ये योगा सिखा दो ना…. बस योगा ही….”

“जरूर , पर देखो सीखना तो पूरा ही होगा …. ये इफ़ और बट नही चलेगा !”

“नहीं तुम सिर्फ़ मुझे ही चोदोगे…. वर्ना सब केन्सल….!”

“यह तो ठीक नहीं है …. प्लीज…. देखो ये सुन कर मेरा लण्ड तो खड़ा होने लगा है !”

“यदि आपने ये सब किया तो फिर चोद लेना मुझे ?…. बड़े आये लण्ड वाले !”
आभा अब बेशर्मी से मुझसे लगभग रोज ही चुदाने लगी। उसे देख कर तो मुझे ऐसा लगने लगा कि उसे चुदाई की बेहद आवश्यकता थी। चुदाते समय मुझे लगता था कि वो जन्मों की प्यासी है। उसका व्यवहार अब मेरे प्रति और भी आसक्ति भरा हो गया था। मुझे जब भी देखती तो इतराने और इठलाने लगती थी। पर नुकसान यह हुआ कि वो मुझे अपने पति की तरह व्यवहार करने लग गई थी। मुझे किसी भी लड़की से बात नहीं करने देती थी, शक्की भी बहुत हो गई थी।

एक बार सवेरे जब मैं आभा को योग करवा रहा था तब एक अत्यन्त सुन्दर युवती के दर्शन हुये। मेरा ऊपर का शरीर नंगा था। एकबारगी तो वो मुझे देखती रह गई। मैं उसके इस तरह देखने से झेंप सा गया। आभा ने अपने टाईट पजामे को व्यवस्थित किया और मेरे से परिचय कराया। मैंने अपना हाथ मिलाने के लिये आगे बढ़ाया तो आभा ने तुरंत झटक दिया।

उसका नाम मिनी था, नाम की ही तरह उसके कपड़े भी छोटे ही थे। उसका रूप लावण्य जैसे छलका पड़ रहा था। उसकी खूबसूरत सी गोलाईयां जैसे मुझे ही दिखाने के लिये बाहर निकली हुई थी। शरीर की चिकनी सी लुनाई चमक पैदा कर रही थी। मिनी योग सीखने के लिये आई थी। आभा ने उसे अपना ही समय दे दिया कि वे दोनों साथ साथ ही योग करेंगी, शायद इसके पीछे मिनी पर नजर रखना था। उसे मैंने ड्रेस आदि के बारे बता दिया।

“ये मरी राण्ड, अब मुझे तकलीफ़ देगी… अभी तक तो मस्ती से चुदाई करते थे, और अब हाय रे… जो… इस कमीनी से मेरा पीछा छुड़ाओ ना… ” वह बड़बड़ाने लगती थी।

उसके दिल की तड़प मुझे नजर आ रही थी। मैंने आभा को सुझाया कि उसके पति जब काम पर चले जाये तब अपन नीचे कमरे में मस्ती करेंगे। उसे ये सुझाव पसन्द आया।

दूसरे दिन से मिनी भी आने लग गई। वो योग भी बला की खूबसूरती से करती थी जैसे वो पहले से ही इसमें अभ्यस्त हो। कुछ दिनों में वह समझ गई थी कि आभा और मेरे चुदाई के सम्बंध हैं और आभा उसे मुझसे नहीं मिलने देगी।

एक दिन मिनी ने चुपके से एक कागज मेरे हाथ में थमा दिया। मैंने जल्दी से उसे छिपा लिया कि कहीं आभा ना देख ले। उसने शाम को मुझे चाय पर बुलाया था, नीचे उसका पता लिखा था।

मैं शाम को अपनी मोटर साईकल कर वहां पहुंचा तो उसका बंगला देख कर हैरान रह गया। वो एक मशहूर बिल्डर का मकान था। बाहर एक सुरक्षा गार्ड था। उसे मैंने पता बताया तो उसने अपने मोबाईल से अन्दर मिनी को फोन किया। मुझे तुरंत अन्दर बुलाया गया। मिनी उस समय केजुअल ड्रेस में थी। एक हल्का सा काप्री और झीना सा टॉप पहना था। जो मुझे उत्तेजित करने के लिये बहुत था।

उसने मेरी आवभगत की। कुछ देर बातचीत करने के बाद वो मुझे अपने कमरे में ले गई।

अचानक मेरी नजर उसकी काप्री पर चूत के स्थान पर पड़ गई, जहां एक गीला धब्बा उभर आया था। मुझे लगा कि वह अभी हीट में है। तभी मुझे उसने मुझे एक सीधा झटका दिया।

“ये पढ़ो… ” उसने पहले से लिखा हुआ एक कागज मुझे दिया। मैंने उसे पढ़ा और बुरी तरह से चौंक गया। उसमें मिनी ने बड़े साफ़ शब्दों में बिना किसी शर्म के लिखा था, “प्लीज फ़क माई पूसी”

मैं नोर्मल होता हुआ बोला,”क्या अभी… ?”

“आप अगर चाहें तो… ” उसने बड़ी बेशर्मी से मेरे जिस्म को निहारा।

“जैसी आपकी इच्छा… ”

“जो… थेंक्स … देखो प्यार से चोदना… जैसे मैं चाहूं वैसा ही करना… मैं इसकी कीमत दूंगी… ”

“जी… उसकी कोई जरूरत नहीं है… आप जैसे परी मेरे भाग्य में आई, यही बहुत है।”

वह मेरे पास आ गई और मेरी जीन्स के ऊपर से मेरा लण्ड सहलाया और दबा दिया। मैंने अपनी आंखे बंद कर ली। उसने लण्ड दबाते हुये वासना भरी एक सिसकी ली।

“आभा को कैसे चोदते हो… ?” उसकी मुख से जैसे वासना भरी महक निकली। मैं चौंक गया। … तो इसे सब मालूम है।

“जी, कभी तो खड़े खड़े… कभी उसे घोड़ी बना कर… फिर उसे गाण्ड चुदाने का बहुत शौक है… और आप अपने दोस्तों से कैसे चुदती हो?”

“मेरे बहुत से दोस्त हैं … मुझे नये लण्ड बहुत भाते हैं … आह मेरे जो… आओ किस करें … फिर मेरी चूचियों का नम्बर लगाना… ” वो एक वासना की मारी जबरदस्त सेक्सी लड़की थी। उसके कहने का अन्दाज सीधा था कि चोदो और रास्ता लो… ।

इससे अच्छी तो आभा ही है ! मिनी जैसी खूबसूरत बला को चोदने के लिये मन का शैतान जाग उठा। यानी अपनी मस्ती लो और उसे रगड़ कर चोदो और चल दो… उस पर दया करने की जरूरत नहीं है… मैंने उसके नरम गद्दे पर उसके साथ ही छलांग लगा दी। मैंने बिना कुछ सोचे समझे उसके सबसे प्यारे अंग जो मुझे अच्छे लगते थे… उसे एक एक करके दबाना और मसलना चालू कर दिया। उसका टॉप उतार कर एक तरफ़ फ़ेंक दिया। उसके कोमल, गोरे पर वासना से भरपूर स्तन कठोर हो चुके थे। मैं उसे अपने मुख में लेकर काटने और चूसने लगा। मेरा दूसरा हाथ उसकी चूत पर जम गया। पर अप्रत्याशित रूप से मेरे जंगलीपने में उसे आनन्द आ रहा था। मैं उसके होंठों को भी चूसने और काटने लगा।

कुछ देर में मेरे पूरे कपड़े उतर चुके थे। मिनी भी नंगी हो चुकी थी। मैंने अपना मोटा लण्ड उसके मुख में घुसेड़ दिया। तभी मुझे लगा कि दरवाजे पर से कोई हमें देख रहा है।

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मैंने अपना ध्यान फिर से मिनी की ओर केन्द्रित किया और वहशीपने से उसे नोचने खसोटने लगा,”मेरी मिनी, तेरी चूत मारूं … भोसडी की… चूस मेरा लौड़ा… ”

मेरी गालियाँ सुन कर वो और उत्तेजित हो गई।

“मिनी जी… आज तो आपका भोसड़ा चोद कर कीमा बना दूंगा !” मिनी जाने क्यूं मेरी गालियां सुन कर और भड़क रही थी।

“क्या कहा मेरे राजा… भोसड़ा… आह ले … मेरा भोसड़ा ले ले… ” उसने मेरा लण्ड मुख में दबा कर चूसना चालू कर दिया। मैं घूम कर मुख नीचे करके उसका भोसड़ा चाटने लगा और तीन अंगुलियां अन्दर डाल दी। मिनी ने मुझे इशारा किया तो मैंने अपना लण्ड उसके मुँह में डाल दिया। अब हम दोनों मस्ती से एक दूसरे का लण्ड और भोसड़ा चूस रहे थे… उसकी चूत भूरी और गोरी थी, नरम भूरी झांटे, उसका फ़डकता हुआ दाना गुलाबी रंग से लाल हो गया था। चूत अन्दर से खूब पानी छोड़ रही थी। दाना चूसते ही उसकी हालत नाजुक हो जाती थी। इसी रगड़ा-रगड़ी में मिनी के मुख से आह निकली और उसके भोसड़े से रती रस निकल पड़ा। मैं अभी झड़ना नहीं चाहता था।

“मिनी, बस अब मत चूसो, मेरा निकल जायेगा… !”

“आह जो… … बस, कुछ मत बोल … तेरा लौड़ा आज तो खा जाऊंगी मैं… ” वो नहीं मानी।

तब मैंने अपना लण्ड उसके मुख में दबा दिया… शायद गले के पास तक चला गया। तभी मेरा काम रस उबल पड़ा और वीर्य उसके मुख में निकल पड़ा। उसे मौका ही नहीं मिला और वीर्य उसके गले से उतरने लगा।

मुझे फिर दरवाजे से सिसकारी सुनाई पड़ी। उसने मुझे हटाने की कोशिश की पर तब तक मेरा सारा वीर्य उसके मुंह में खल्लास हो चुका था।

“जो साले, हारामी… ये क्या किया… ”

“सॉरी मिनी… अपने आप निकल गया… ”

“मेरे प्यारे कुत्ते… मजा आ गया … अब ऐसा ही करना… तूने तो सभी को पीछे निकाल दिया… ”

“आह्… मैं तो समझा था कि आपको बुरा लगा… ”

वह उठी और अलमारी से कुछ ड्राई फ़्रूट ले आई। ज्यूस के साथ कुछ देर तक हम नाश्ता करते रहे। तब तक हम एक दूसरे को किस करते रहे और बदन की गोलाईयों का लुफ़्त उठाते रहे। वह बार बार खड़े हो कर अपनी चूत चटवाती रही। ज्यूस समाप्त करते ही मेरा लण्ड तन कर तैयार था और मिनी की फ़ुद्दी गरम हो चुकी थी।

“जो … तेरा लण्ड तो सोलिड है… गाण्ड मरवाने लायक है… चल लग जा मेरी पिछाड़ी पर… देखना मस्त कर दूंगी… गाण्ड उछाल उछाल कर… ”

“मिनी तुझे गाली बुरी तो नहीं लगी ना… तेरी मां की भोसड़ी … वगैरह?”

“राजा, चुदाई में तो गालियां चूत में पानी उतार देती है… फ़ाड दे साली बुण्ड को !”

“अह्ह ये बुण्ड क्या होता है…? ”

“मेरी गाण्ड का छेद बुण्ड होता है… !” मिनी कराहते हुये बोली। वासना उस पर बहुत जल्दी सवार होती थी। अभी तो कुछ आरंभ भी नहीं किया था। पर मैंने देर करना ठीक नहीं समझा और उसके चूतड़ों से जा चिपका। वो घोड़ी बनी हुई थी। मैंने उसके चूतड़ों को थपथपाया और चूतड़ चीर कर उसकी बुण्ड पर लौड़ा रख दिया और थूक का लौन्दा उस पर टपका दिया। पर यह क्या… लण्ड सर सर सरकता हुआ ऐसे अन्दर चला गया जैसे वो गाण्ड मराने में अभ्यस्त हो। साथ ही इस बार भी मुझे दरवाजे की ओर से सिसकियां सुनाई दी। उसकी गाण्ड का छेद तो पहले से खुला हुआ था, नरम था… लगता था बहुत से लौड़े ले चुकी थी। पर लौड़ा अन्दर पूरा बैठते ही उसने गाण्ड को भींच लिया,”लगा अब झटके, मां के लौड़े… ”

मैं मुस्करा उठा… मैंने लण्ड खींच कर बाहर निकाला और दम लगाकर अन्दर ठूंस दिया।

“हाय री… लग गई मुझे तो… ” मिनी तड़प उठी।

“मिनी जी भारतीय गांव का लौड़ा है… शहरी लण्ड नहीं है… देसी घी पीता है… !”

उसने अपनी गाण्ड ढीली छोड़ दी और चुदने के लिये तैयार हो गई। अब मैंने उसे पेलना आरम्भ कर दिया था। लण्ड सटासट अन्दर बाहर चल रहा था। उसकी गाण्ड का मजा मुझे आने लगा था। मैंने अपनी तीन अंगुलियां उसकी चूत में सरका दी और हौले हौले से उसे चूत में चलाने लगा। उसकी गाण्ड चुद रही थी। मिनी जोर जोर से सीत्कार भर रही थी। जोर की चीख पुकार सुन कर उसकी एक नौकरानी भाग कर आई। उसने हमें देखा और कहा, ” सॉरी बेबी… मैंने नहीं देखा…”

“साली, कुत्ती, कमीनी… भाग जा यहां से… आह चोद ना … रुक क्यों गया?”

“वो आपकी सर्वेन्ट्… ”

“अरे वो तो हमेशा आ जाती है… चल चोद… !” मिनी ने सिसकारी भरते हुये कहा।

नौकरानी ने हमें मुस्कराते हुये देखा और दरवाजे के पास खड़ी हो गई और अपना घाघरा उठा कर चूत में अंगुली डाल कर मुठ मारने लगी। मैंने ध्यान से देखा तो वहां उसकी दूसरी नौकरानी भी थी। दोनों ही आहें भर भर के मुठ मार रही थी।

यहां तो खुला खाता है… बेचारी तड़पती हुई नौकरानियां… मुझे क्या … मैं अपनी चुदाई पर लग गया।

“जो राजा… मेरी चूत भी तो है ना… उसका क्या अचार डालना है… ?” मिनी ने तभी शिकायत की, शायद अब वो चूत का मजा लेना चाह्ती थी। मुझे हंसी आ गई। मैंने धीरे से अपना लण्ड उसकी गाण्ड में से निकाला और उसकी चूत में पिरो दिया।

उसकी कोमल सी चूत, चिकनी सी चूत में लण्ड अन्दर सरकता चला गया। मिनी के मुख से जोर से सीत्कार निकल पड़ी। साथ में दरवाजे से भी सिसकियों की आवाज आने लगी। मेरे धक्के अब जोर दार चलने लगे थे। अचानक उसकी दोनों नौकरानियां मेरे पास आ गई और खड़ी हो गई… और मेरे चूतड़ों को सहलाने लगी, मेरी गाण्ड में अंगुली डालने लगी। दूसरी मेरे बदन से लिपट कर मेरा शरीर चाटने लगी।

मेरी उत्तेजना चरम बिन्दु पर पहुंचने लगी।

“साली रण्डियों, भागो यहां से… ठीक से चुदने तो दो… !”

पर वो दोनों भी वासना में बह चुकी थी… अनसुना करते हुये उन्होने भी मिनी को चूमना चाटना शुरू कर दिया। एक ने तो दूसरी के स्तन दबा कर अपनी चूत उसके चूतड़ों से रगड़ने लगी।

“हाय जो… चोद दे … फ़ाड दे मेरी… अरे तुम हटो ना !” मिनी वासना की आग में तड़प रही थी। उसने दोनों को धक्का दे दिया। वो दोनों ही फ़र्श की कालीन पर एक दूसरे से लिपट पड़ी और अपने आप को शान्त करने कोशिश करने लगी। तभी मेरा तन से रस निकलने को होने लगा। मेरा लण्ड उसकी चूत पर जोर जोर से चलने लगा।

“अरे मर गई … मेरी मां… माल निकला… जो हाय री… जरा कस कर चोद दे… हाय ओह्ह्ह्ह्… उईईईईई… जो… जो… अह्ह्ह्ह” और मिनी झड़ने लगी… मैंने अपना लण्ड भी बाहर निकाल लिया… और दोनो नौकरानियां जैसे भूखे शेर की तरह मेरे लण्ड पर टूट पड़ी। एक तो मुझसे लिपट गई और दूसरी मेरे लण्ड को मुठ मारने लगी। मिनी पल्टी खा कर सीधी हो गई और उन दोनों को निहारने लगी। मैंने दोनों को अपने आप से चिपका लिया था… और वीर्य को रोक रहा था कि कहीं निकल ना जाये। पर हाय रे… नहीं रोक पाया और वीर्य एक तेज धार की तरह फ़ूट पडा…

मैंने दोनों को दबा लिया और उन्हें चूमने लगा…

“बस बहुत हो गया… हरामजादियो, अब भाग जाओ यहां से… !” मिनी ने गुस्से से कहा।

“मिनी, मजा आ गया… आप तो बला की सेक्सी हैं… !”

“और आप भी… लगता है हम तीनों को एक साथ चोद सकते हो… ” मिनी मुस्कराई।

“थेंक्स, अब मैं चलता हूं… आज्ञा दो अब कब हाजिर होना है… लव यू… ”

“… इश्क जगे तो आ जइयो चाहे बजे रात के बारह… ये अपनी फ़ीस तो ले जाओ !” एक चवन्नी टाईप का गाना गुनगुनाते हुये उसने एक लिफ़ाफ़ा मुझे दिया। मैंने चुपचाप उसे जेब में डाल लिया… पैसे की जरूरत किसे नहीं होती है… मिनी ने इशारा किया और दोनों नौकरानियाँ मेरा हाथ पकड़ कर बडी अदा से मुझे बाहर तक छोड़ने आई। रास्ते भर वो मेरे चूतड़ दबाती रही और मेरे लण्ड को मसलती रही।

“अब फिर कब आओगे बाबू जी, कभी हमरा नम्बर भी लगाओ ना !”

मैंने एक मुस्कान भरी नजर डाली और बाहर की ओर चल दिया।



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